👉 SP मैडम के पिता को मार रहे थे पुलिस वाले- फिर एसपी मैडम ने जो किया सबको हैरान कर दिया…सच्ची घटना

दिल्ली के करोल बाग बाजार की शाम का समय था। बाजार में रौनक अपने चरम पर थी। लोग खरीदारी में व्यस्त थे, और चाय, समोसे, जलेबी की खुशबू हवा में फैली हुई थी। इस चहल-पहल के बीच एक छोटा सा ठेला था, जो रामू चाचा का था। उनकी उम्र 60 के पार थी, लेकिन उनकी आंखों में जीवन का उत्साह और हाथों में काम करने की अद्भुत क्षमता थी। रामू चाचा आलू टिक्की बना रहे थे, और गर्म तवे पर घी में सिकती टिक्की की आवाज उनके लिए संगीत की तरह थी।

रामू चाचा का यह ठेला पिछले 40 सालों से उनके परिवार का सहारा था। वह हर शाम अपनी कमाई गिनते और अपनी इकलौती बेटी प्रिया के भविष्य के सपने बुनते। उनके सपने बड़े नहीं थे, बस प्रिया को अच्छी शिक्षा मिले और एक सम्मानजनक जीवन जिए। प्रिया ने अपने पिता के इन सपनों को कभी व्यर्थ नहीं जाने दिया। उसने अपनी मेहनत और लगन से भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में एक ऊंचा मुकाम हासिल किया और आज वह दिल्ली की एक क्षेत्रीय एएसपी थी।

एक दर्दनाक घटना

एक दिन, जब रामू चाचा अपने ठेले पर ग्राहकों से घिरे हुए थे, तभी अचानक एक काली महिंद्रा बलेरो जीप तेजी से उनके ठेले के पास रुकी। जीप से तीन पुलिस वाले उतरे, जिनकी वर्दी पर चमकदार बैज थे। बाजार के लोग सहम गए, क्योंकि ऐसे मौकों पर अक्सर पुलिस वसूली या किसी छोटी-मोटी गड़बड़ी के लिए आती थी।

कांस्टेबल रमेश, जो उन तीनों में से एक था, ने घुंघराले स्वर में कहा, “ए बुड्ढे, यहां से हटा अपना ठेला। यह कोई तेरी बाप दादा की जागीर नहीं है।” रामू चाचा ने घबरा कर कहा, “साहब जी, मैं तो यहीं रोज लगाता हूं। इतने सालों से कभी किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई। मेरा घर इसी से चलता है।”

लेकिन पुलिस वालों के दिल पत्थर के थे। कांस्टेबल सुरेश ने गुस्से में कहा, “यह सरकारी फुटपाथ है। कोई तेरा रसोई घर नहीं। चल, हटा इसे नहीं तो देख क्या करते हैं।” इससे पहले कि रामू चाचा कुछ और सफाई दे पाते, हवलदार विजय ने ठेले को एक जोरदार धक्का दिया। ठेले पर सजी गरमागरम आलू टिक्की, समोसे और हरी चटनी की कटोरियां जमीन पर बिखर गईं।

क्रूरता की पराकाष्ठा

रामू चाचा का कलेजा जैसे मुंह को आ गया। उनकी मेहनत, उनकी छोटी सी पूंजी पल भर में धूल में मिल गई। उनकी आंखों में बेबसी और निराशा के आंसू छलक आए। लेकिन पुलिस वालों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। कांस्टेबल रमेश ने लाठी उठाई और रामू चाचा की पीठ पर पूरी ताकत से वार किया।

दर्द की एक तीखी लहर रामू चाचा के पूरे शरीर में दौड़ गई। वे चीखना भी चाहते थे, लेकिन आवाज गले में ही अटक गई। कांस्टेबल सुरेश ने भी लाठी उठाई और लगातार उन पर वार करने लगा। रामू चाचा धूल, बिखरे हुए भोजन और अपने ही आंसुओं के बीच दर्द से कराह रहे थे।

बाजार के लोग यह सब देख रहे थे। कुछ दुकानदार अपनी दुकानें बंद करने लगे थे, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वे आगे आकर कुछ कहें या पुलिस वालों को रोकें। डर और बेबसी ने पूरे बाजार को जकड़ लिया था।

उम्मीद की किरण

रामू चाचा की हालत देखकर सबका दिल पसीज रहा था। लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था। रामू चाचा दर्द से करहते हुए जमीन पर पड़े थे। उनकी फटी धोती और बिखरे हुए सफेद बालों के साथ उनके मुंह से बस एक ही शब्द निकला, “बेटा प्रिया।” उनकी आंखों के सामने प्रिया का चेहरा घूम गया।

ठीक उसी पल, एक सफेद टाटा सफारी गाड़ी तेजी से बाजार के उस छोर पर पहुंची जहां यह सब हो रहा था। गाड़ी से एक युवा महिला अधिकारी उतरी, जो अपनी वर्दी में थी और उसके कंधे पर तीन चमकदार सितारे थे। वह एसपी प्रिया थी।

एसपी प्रिया का आगमन

प्रिया ने दूर से ही उस भीड़ को देखा और फिर उस जगह पर रुक गई जहां कुछ पुलिसकर्मी एक बूढ़े आदमी को बेरहमी से पीट रहे थे। प्रिया के चेहरे का रंग उड़ गया। यह दृश्य उनके लिए असहनीय था। उन्होंने तेजी से उन पुलिस वालों की ओर बढ़ी और कहा, “यह क्या बकवास हो रही है यहां पर? रुक जाओ तुम लोग, कर क्या रहे हो?”

प्रिया की आवाज में एक ऐसी गरज थी जिसने बाजार के शोर को चीर दिया। उनकी आवाज सुनकर लोगों में हलचल हुई। पुलिस वाले जो अपने ही रब और नशे में चूर थे, अचानक प्रिया को देखकर चौंक गए।

प्रिया ने रामू चाचा को देखा जो जमीन पर पड़े दर्द से कराह रहे थे। उनके कपड़े फट गए थे और पीठ पर लाठी के गहरे निशान उभर आए थे। प्रिया की आंखें नम हो गईं, लेकिन उन्होंने खुद को संभाला।

गुस्से का विस्फोट

प्रिया ने गुस्से से कहा, “किसकी हिम्मत हुई मेरे पिता पर हाथ उठाने की?” उनके एक-एक शब्द में अथाह शक्ति थी जो उन पुलिस वालों के सीने में तीर की तरह चुभ रहे थे। कांस्टेबल रमेश ने लड़खड़ाती जुबान में कहा, “मैडम, हमें पता नहीं था। यह ठेले वाला हमें लगा यह अवैध रूप से दुकान लगा रहा था।”

प्रिया ने चिल्लाते हुए कहा, “तुम्हें अपने पद का जरा भी लिहाज नहीं है। तुमने अपनी वर्दी पर लगे इन सितारों का अपमान किया है। एक बेबस बूढ़े आदमी पर हाथ उठाते हो। तुम्हारी वर्दी किस लिए है? लोगों की रक्षा के लिए या उन्हें प्रताड़ित करने के लिए?”

न्याय की स्थापना

प्रिया ने तुरंत अपने साथ आए दो सुरक्षा कर्मियों और ड्राइवर को रामू चाचा को निकटतम सरकारी अस्पताल ले जाने का निर्देश दिया। उन्होंने अपने वॉकी टॉकी पर अपने सब इंस्पेक्टर विनय को तुरंत घटना स्थल पर पहुंचने और उन तीनों पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।

आसपास खड़ी भीड़ अब तालियां बजाने लगी थी। कुछ लोग प्रिया के जयकारे भी लगा रहे थे। प्रिया ने उन तीनों पुलिस वालों की ओर मुड़ी जो अब थर-थर कांप रहे थे।

प्रिया ने कहा, “तुम तीनों तत्काल प्रभाव से निलंबित हो। तुम्हारी वर्दी अभी यहीं उतार दी जाएगी और तुम पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाएगा।”

मीडिया में हंगामा

अगले ही दिन यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। मीडिया में भी यह घटना प्रमुखता से छाई रही। टीवी चैनलों पर बहस हुई, अखबारों में सुर्खियां बनीं और सोशल मीडिया पर प्रिया की बहादुरी की कहानियां वायरल हो गईं।

लोगों ने एसपी प्रिया की बहादुरी, ईमानदारी, अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा और अपने पिता के प्रति प्रेम की जमकर सराहना की। यह घटना सिर्फ एक पिता के अपमान और एक बेटी के न्याय की कहानी नहीं थी। बल्कि यह साबित हुआ कि कानून के सामने सब बराबर हैं।

निष्कर्ष

इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि वर्दी का मतलब सेवा है, अत्याचार नहीं। प्रिया ने न केवल अपने पिता का सम्मान बचाया, बल्कि पुलिस विभाग की छवि को भी सुधारने का कार्य किया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई और न्याय के लिए खड़ा होना हमेशा जरूरी है। चाहे कोई भी स्थिति हो, हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और दूसरों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए।

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