सास ने जिसे घर से निकाला, उसी गरीब बहू ने डॉक्टर बनकर उसकी जान बचाई—फिर जो हुआ उसने सबकी आंखें नम कर दी!

डॉक्टर बहू: इंसानियत, त्याग और क्षमा की सबसे बड़ी मिसाल

.

.

.

राजस्थान के एक छोटे से गांव धनपुर में गरीबी में पली-बढ़ी राधिका के सपने बड़े थे। उसके पिता दीनदयाल मजदूरी करके घर चलाते थे, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को हमेशा पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। राधिका ने भी अपने पिता के सपनों को अपनी आंखों में बसा लिया। पढ़ाई में अव्वल आकर उसने जयपुर के सबसे अच्छे कॉलेज में दाखिला पा लिया।

जयपुर की बड़ी दुनिया में राधिका की मुलाकात रोहन से हुई, जो शहर के सबसे अमीर व्यापारियों का बेटा था। दोनों का प्यार सच्चा था, लेकिन रोहन की मां शारदा देवी—घमंड और रुतबे की मूरत—कभी इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर सकती थीं। झूठ बोलकर, गरीबी छुपाकर, शादी तो हो गई, पर किस्मत ने राधिका के लिए एक और इम्तिहान लिख रखा था।

शादी के कुछ समय बाद, एक दिन राधिका के गरीब माता-पिता उसकी ससुराल आ गए। शारदा देवी के सामने सच आ गया। उनका गुस्सा, उनका अहंकार फूट पड़ा। उन्होंने सबके सामने राधिका को अपमानित किया, उसे “भिखारिन” कहकर घर से निकाल दिया—even जब राधिका दो महीने की गर्भवती थी। उस रात राधिका को सड़क पर छोड़ दिया गया, उसका बच्चा भी खो गया।

राधिका टूटी नहीं। उसने अपने आंसुओं को ताकत बनाया। गांव लौटकर दिन-रात पढ़ाई की, मेडिकल की परीक्षा पास की और पूरे राजस्थान में टॉप किया। दिल्ली के एम्स में दाखिला मिला। सात साल की मेहनत के बाद, वह देश की सबसे प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट बन गई। माता-पिता भी अब उसके साथ सम्मान की जिंदगी जी रहे थे।

इधर, शारदा देवी की दुनिया उजड़ चुकी थी। बेटे रोहन ने भी उनसे दूरी बना ली थी। शारदा देवी बीमार रहने लगीं, हार्ट अटैक के बाद डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। आखिरी उम्मीद दिल्ली के लाइफ केयर हॉस्पिटल की डॉक्टर राधिका शर्मा थी। रोहन मां को लेकर दिल्ली आया। ICU में डॉक्टर राधिका को देखकर रोहन के पैरों तले जमीन खिसक गई—वो वही राधिका थी, जिसे उसकी मां ने घर से निकाला था।

अब राधिका के सामने उसकी सास की जान बचाने की जिम्मेदारी थी। एक पल को उसके मन में दर्द, गुस्सा, बदला लेने की भावना आई—but फिर उसके डॉक्टर के धर्म ने उसे जीत लिया। उसने आठ घंटे लंबी सर्जरी की और शारदा देवी की जान बचा ली।

होश आने पर शारदा देवी को जब पता चला कि उनकी जान उसी बहू ने बचाई है, जिसे उन्होंने धक्के मारकर घर से निकाला था, तो उनका घमंड चूर-चूर हो गया। उन्होंने राधिका से माफी मांगी, रोती रहीं—”मुझे माफ कर दे बेटी, मैंने तेरा सब कुछ छीन लिया था।” राधिका ने उन्हें गले लगा लिया—”मैंने आपको उसी दिन माफ कर दिया था, मांजी, जिस दिन मैंने यह सफेद कोट पहना था।”

उस दिन अस्पताल के कमरे में सिर्फ एक डॉक्टर और मरीज नहीं, बल्कि एक मां और बेटी सालों बाद फिर मिल गईं। राधिका का त्याग, उसकी क्षमा और इंसानियत की सेवा ने सबकी आंखें नम कर दीं।

यह कहानी हमें सिखाती है कि इंसानियत, क्षमा और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं। अगर डॉक्टर राधिका की कहानी ने आपके दिल को छुआ, तो इसे जरूर शेयर करें, ताकि यह संदेश हर किसी तक पहुंचे।