ट्रेन छूटने पर फूट-फूट कर रोया, 1 घंटे बाद स्टेशन पर ऐसी खबर मिली कि हज़ार बार मालिक को शुक्रिया कहा
मोहन की प्रेरणादायक कहानी – “निराशा से उम्मीद तक का सफ़र”
उत्तर प्रदेश के बेलारी गांव की सुबह, जैसे सूरज की पहली किरणों के संग सपनों का एक नया संसार रचती थी। ताजी हवा में रची-बसी मिट्टी की सौंधी खुशबू, खेतों में शुरू होती जिंदगी, मंदिर की घंटियों की गूंज – सब वातावरण में उम्मीद भर देते थे।
मोहन की जि़ंदगी और उसकी उम्मीदें
मोहन, 25 साल का होनहार नौजवान, अपने टूटे-फूटे घर की छत पर खड़ा खूबसूरती को निहार रहा था। उसकी आंखों में वो चमक थी, जो उसके बड़े-बड़े सपनों का आईना थी। परिवार था बेहद साधारण: पिता हरिराम छोटे किसान, जिनकी किस्मत हर साल की फसल पर टिकी थी, मां कमला जी जान से परिवार के लिए जुटी रहती थीं, छोटी बहन राधा जिसकी शादी की चिंता अब घर-घर चर्चा बनने लगी थी। मोहन जानता था– उसकी मेहनत, पूरे परिवार की एकमात्र उम्मीद थी। उसने हौसले से इंजीनियरिंग की डिग्री ली, मगर गांव में नौकरी नहीं। पिछले एक वर्ष वह बड़े शहरों की खाक छान रहा था, दर्जनों इंटरव्यू दिए, मगर हर बार खाली हाथ लौटा।
नई सुबह… नया मौका
आज उसके पास सुनहरा मौका था: मुंबई की बड़ी कंपनी “देसाई ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज” से इंटरव्यू का बुलावा आया था। जिसमें सफलता का अर्थ था– मोहन का परिवार, उसका गांव, उसके नाम पर गौरवान्वित होता। मां ने पूजा कर माथे पर तिलक लगाया: “भगवान तेरे साथ हैं बेटा।” पिता ने साहूकार से उधार लाकर पैसे थमाए: “यह हमारा आखिरी दांव है, हार मत मानना।” दो जोड़ी कपड़े, ज़रूरी कागजात, और मां के हाथों का भोजन वाला बैग लेकर मोहन निकल पड़ा। गांव वाले, सबसे अच्छा दोस्त रामू– सब शुभकामनाएं दे रहे थे। दिल्ली, लखनऊ, बनारस के इंटरव्यू की नाकामियां पीछे थीं, पर आज, उसके दिल में डर और उम्मीद दोनों थी।
मुश्किल रास्ता, ट्रेन का छूटना
जिस सरकारी बस से स्टेशन जाना था, वह समय पर न आई। 8 बजे वाली बस खचाखच भरी मिली, किसी तरह भीड़ में चढ़ पाया। ट्रैफिक जाम ने परेशान किया, स्टेशन पहुंचने से 2 किलोमीटर पहले ही उतार दिया। वह धड़कते दिल, भीगे कपड़ों में भागता प्लेटफार्म पहुंचा– पर उसकी ट्रेन काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस निकल चुकी थी।
अरमानों का सपना, परिवार की उम्मीदें, एक ही पल में बिखर गईं। प्लेटफार्म पर थककर गिर पड़ा, रोने लगा, पर किसी को उसके आंसुओं की परवाह न थी। क्या घर लौट जाए? मां-बाप को क्या बताएगा? अपनी किस्मत, खुद को कोसता रहा…
किस्मत का करिश्मा: हादसा और चमत्कार
अचानक घोषणा हुई– “काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस खंडाला घाट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई, S7 समेत कई कोच तबाह।” मोहन वहीं S7 की टिकट को देखता रह गया। जिस गाड़ी के छूटने पर रो रहा था, उसी छूटने ने उसकी जान बचा ली थी! उसकी तकदीर, जो उसे मौत के मुंह में ले जा सकती थी, अब उसकी सबसे बड़ी हिफाजत बन गई। वह घुटनों के बल बैठ भगवान को धन्यवाद देने लगा। आंसू अब दुख के नहीं, कृतज्ञता के थे।
वरीयता और साक्षात ईश्वर की कृपा
पास ही बैठा एक सज्जन, उसकी बात सुनते समझते मोहन से बोले – “तुम बहुत भाग्यशाली हो, बेटा। भाग्य जिन्हें चाहता है, उनकी परीक्षा भी कठिन लेता है।” मोहन ने फूट-फूटकर पूरी कहानी सुनाई। उस सज्जन ने जब कंपनी का नाम सुना, तो मुस्कुरा उठे: “तुम देसाई ग्रुप में इंटरव्यू देने जा रहे थे? बेटा, मैं ही देसाई ग्रुप का मालिक– आर के देसाई हूं! मुझे लगा, आज मुंबई जाना है, मगर लास्ट मिनट पर मीटिंग कैंसिल हो गई। मैं यहीं रुक गया।”
मोहन जैसे सिहर उठा। देसाई साहब ने कार्ड थमाया: “कल सुबह दिल्ली में मेरे हेड ऑफिस आना, अपॉइंटमेंट लेटर ले लेना– जितना सोच रहे थे, उससे ज्यादा सैलरी। तेरा इंटरव्यू यहीं पूरा हुआ!”
नई शूटिंग, नई जिंदगी
सपनों के टूटने पर मिट्टी में मिल जाने के बजाय, भगवान ने मोहन को कर्ज उतारने, बहन की शादी, मकान बनाने और गांव के बच्चों के लिए लाइब्रेरी खोलने का मौका दिया। जब वह देसाई साहब के ऑफिस पहुंचा, साहब उसका इंतजार कर रहे थे। अपॉइंटमेंट लेटर पकड़ाते वक्त बोले: “यह दुनिया एहसानों से नहीं, मेहनत और सच्चाई से चलती है! बस ईमानदारी से काम करना, हमारी कंपनी को तेरे जैसे नौजवानों की जरूरत है।”
मोहन की पहली तनख्वाह का बड़ा हिस्सा परिवार को भेजा, गांव की लाइब्रेरी तैयार करवाई, और बच्चों को पढ़ाने के लिए गांव जाता। लोग उसे “बेलारी का हीरा” कहने लगे। देसाई साहब उसके लिए बॉस से बढ़कर पिता जैसे बन गए। गांव, दोस्त, परिवार – सबका सपना मोहन का सपना था, और वह सपना अब सच हो रहा था।
कहानी का सबक:
“बेटा, बड़ा आदमी वह है, जो अपनी हार को जीत में बदल सके…” – मोहन अब बच्चों को यही सिखाता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है: जब आपको लगे कि सब दरवाजे बंद हो गए, किस्मत ने साथ छोड़ दिया है – तब भी मेहनत, आस्था और उम्मीद कभी न छोड़ें। क्या पता, सबसे बड़ी अभिशाप कही जाने वाली घटना, असल में ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान बन जाए!
अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो शेयर करें… चाहे जैसे हालात हों, निराशा के बाद ही उम्मीद की सबसे सुनहरी सुबह आती है।
शुक्रिया। 🌟
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