15 साल की बच्ची अपनी माँ की जगह एक टेक कंपनी में इंटरव्यू देने पहुंची , फिर जो हुआ उसने सभी को हैरान

“जिद की जीत: एक मां-बेटी की प्रेरणादायक गाथा”
प्रस्तावना
दिल्ली के एक मध्यमवर्गीय फ्लैट में, जहां हर दिन की शुरुआत संघर्ष और उम्मीदों के साथ होती है, वहीं एक ऐसी कहानी जन्म लेती है, जो उम्र, समाज और नियमों के बंधनों को तोड़कर एक नई मिसाल कायम करती है। यह कहानी है नताशा शर्मा और उसकी 15 साल की बेटी अंजलि की—जिन्होंने यह साबित किया कि अगर इरादे मजबूत हों, तो दुनिया की कोई दीवार बड़ी नहीं होती।
नताशा शर्मा: सपनों से भरी एक मां
नताशा शर्मा, 35 वर्ष की एक प्रतिभाशाली महिला, जिसने देश के सबसे बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज से गोल्ड मेडल हासिल किया था। कोडिंग उसके लिए सांस लेने जैसी थी। उसकी उंगलियां कीबोर्ड पर ऐसे नाचती थीं, जैसे कोई संगीतकार सितार बजा रहा हो। मल्टीनेशनल कंपनी में शानदार नौकरी, प्यार करने वाला पति सुनील, और फिर आई उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी—बेटी अंजलि।
मां बनने के बाद नताशा ने अपने चमकते करियर को पॉज पर रख दिया। उसने सोचा, “कुछ सालों बाद वापसी आसान होगी।” लेकिन जब उसने पांच साल बाद जॉब मार्केट में कदम रखा, तो उसे बार-बार एक ही सवाल का सामना करना पड़ा—”आपके रिज्यूमे में यह 5 साल का गैप क्यों है?” कंपनियों को लगता था कि वह आउटडेटेड हो चुकी है। उसके ज्ञान, मेहनत और जुनून को अनदेखा कर दिया गया।
संघर्ष की रातें और सीख की सुबहें
नताशा हार मानने वालों में नहीं थी। जब दुनिया सोती थी, तब वह पढ़ती थी। उसने एआई के नए मॉडल्स, पाइथन, क्लाउड कंप्यूटिंग—सब सीख लिया। उसके पर्सनल प्रोजेक्ट्स उसकी पहचान बन गए। लेकिन नौकरी मिलना फिर भी नामुमकिन सा था।
अंजलि, अब 15 साल की हो चुकी थी, अपनी मां की परछाई थी। उसने कोडिंग में वही जुनून पाया जो उसकी मां में था। स्कूल के लैब में उसके प्रोजेक्ट्स टीचर्स को हैरान कर देते थे। वह खुद एक जीनियस बन रही थी।
घर में आर्थिक तंगी बढ़ रही थी। सुनील की तनख्वाह घर चलाने के लिए तो पर्याप्त थी, पर अंजलि की ऊंची पढ़ाई के खर्चे का डर उन्हें सताता रहता। नताशा सिर्फ पैसे के लिए नहीं, अपनी पहचान के लिए, अपने वजूद के लिए नौकरी चाहती थी। वह दुनिया को दिखाना चाहती थी कि एक मां आउटडेटेड नहीं, बल्कि मल्टीटास्कर होती है।
उम्मीद की किरण: टेन सॉलशंस
सैकड़ों रिजेक्शन के बाद नताशा को टेन सॉलशंस नाम की कंपनी से इंटरव्यू कॉल आया। यह टेक की दुनिया का मक्का था। नताशा ने दिन-रात मेहनत कर एक नया एआई मॉडल तैयार किया, जो हेल्थ केयर में बीमारियों को पहले ही प्रिडिक्ट कर सकता था। अंजलि उसकी मदद करती, प्रेजेंटेशन बनाती, सवाल पूछती।
इंटरव्यू से दो दिन पहले नताशा का एक्सीडेंट हो गया। डॉक्टर ने 15 दिन बेड रेस्ट का आदेश दिया। नताशा का सपना टूटने की कगार पर था। कंपनी ने इंटरव्यू रीशेड्यूल करने से मना कर दिया।
बेटी की जिद: असंभव को संभव बनाना
अंजलि ने मां से कहा, “आपका इंटरव्यू मैं दूंगी।” नताशा और सुनील चौंक गए। अंजलि ने तर्क दिया, “मां, उन्हें आपका टैलेंट चाहिए, शरीर नहीं।” नताशा ने हार मान ली। अगले दो दिन घर वॉर रूम बन गया। नताशा ने अंजलि को प्रोजेक्ट की हर बारीकी समझाई। अंजलि ने सवालों से मां को भी चौंका दिया।
अंजलि ने मां से कहा, “मुझे आपकी सबसे मुश्किल कोडिंग रन करने का मौका दीजिए।” नताशा के पास खोने के लिए अब कुछ नहीं बचा था। उसने बेटी को अपनी सारी मेहनत, अनुभव और तकनीकी ज्ञान सौंप दिया।
इंटरव्यू का दिन: जंग का मैदान
अंजलि ने अपनी मां की सिंपल कॉटन की कुर्ती पहनी, लैपटॉप बैग कंधे पर टांगा और पापा के साथ ऑफिस पहुंची। रिसेप्शन पर उसे रोक दिया गया, सिक्योरिटी बुला ली गई। अंजलि ने सबके सामने चिल्लाकर कहा, “अगर आपकी कंपनी सिर्फ उम्र देखकर नौकरी देती है, तो मेरी मां को यहां काम नहीं करना।”
तभी कंपनी के एचआर हेड मिस्टर वर्मा और टेक लीड रिया आए। रिया ने कहा, “देखते हैं बच्ची क्या दिखाना चाहती है।” अंजलि को 10 मिनट का मौका मिला।
जीनियस की पहचान: एक बच्ची की प्रस्तुति
कॉन्फ्रेंस रूम में अंजलि ने प्रोजेक्ट संजीवनी पेश किया। कोड दिखाया, मॉडल की स्केलेबिलिटी, एथिक्स, माइक्रो सर्विसेस आर्किटेक्चर सब समझाया। एथिकल ऑडिटर ‘त्रिनेत्र’ का फीचर दिखाया, जो बायस डिटेक्ट कर रियल टाइम में करेक्ट करता था।
सीटीओ सिद्धार्थ ने तालियां बजाईं। रिया ने कहा, “यह प्रोजेक्ट ओमेगा का सॉल्यूशन है, जिस पर हम 8 महीने से अटके थे।” सिद्धार्थ ने तुरंत नताशा को ऑफर लेटर भेजने का आदेश दिया और अंजलि को पेड इंटर्नशिप ऑफर की।
मां-बेटी की जीत: खुशी के आंसू
अंजलि ने मां को वीडियो कॉल किया। नताशा की आंखों में खुशी के आंसू थे। सिद्धार्थ ने कहा, “आपका प्रोजेक्ट आउटस्टैंडिंग है। जब ठीक हो जाएं, ज्वाइन करिए या घर से काम करिए।”
सुनील को अंजलि का मैसेज मिला—”पापा, मां की नौकरी पक्की हो गई।”
नताशा की वापसी: पहचान की नई शुरुआत
नताशा ने घर से ही काम शुरू किया। उसकी पहचान, उसका आत्मविश्वास लौट आया। अंजलि स्कूल के बाद रिया की टीम के साथ काम करने लगी। दोनों मां-बेटी ने मिलकर टेक कंपनी में नई क्रांति ला दी। नताशा ने अपने अनुभव से कंपनी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया और अंजलि ने अपनी जिज्ञासा और ऊर्जा से टीम को प्रेरित किया।
समाज को संदेश: उम्र और जेंडर की सीमाएं तोड़ना
यह कहानी हमें सिखाती है कि टैलेंट किसी उम्र या जेंडर का मोहताज नहीं होता। मां का अनुभव और बेटी का जुनून मिल जाए तो कोई भी मुश्किल इंटरव्यू क्रैक हो सकता है। यह उन सभी महिलाओं को सलाम है जो करियर में गैप लेने के बाद खुद को कमजोर समझती हैं। आपका तजुर्बा कभी बेकार नहीं जाता।
यह कहानी समाज को आईना दिखाती है कि असली काबिलियत कभी छुपती नहीं है। अगर इस कहानी ने आपके दिल को छुआ है, तो इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।
अंतिम शब्द: जिद की ताकत
उस दिन जब अंजलि शीशे की इमारत से बाहर निकली, वह सिर्फ 15 साल की बच्ची नहीं, एक योद्धा थी जिसने अपनी मां के सम्मान की लड़ाई जीत ली थी। उसकी जिद ने दुनिया बदल दी। उसने साबित कर दिया कि नियमों और पॉलिसी से बड़ी होती है इंसान की सच्ची जिद और मेहनत।
सीख और प्रेरणा
मां का अनुभव: कभी बेकार नहीं जाता।
बेटी का जुनून: हर मुश्किल को आसान बना सकता है।
जिद: अगर सच्ची हो, तो दुनिया बदल सकती है।
समाज: उम्र, जेंडर या गैप कभी काबिलियत की सीमा नहीं बन सकते।
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