संसद में बैलेट से चुनाव पर मचा ऐसा घमासान, विरोध में आई भाजपा, फिर आंदोलन उतरे

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संसद में बैलेट पेपर चुनाव पर मचा हंगामा

परिचय

हाल के हफ्तों में, भारतीय संसद बैलेट पेपर के बजाय इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के उपयोग को लेकर एक युद्धभूमि बन गई है। यह बहस तीव्र चर्चाओं और विरोध प्रदर्शनों को जन्म दे रही है, विशेष रूप से विपक्षी पार्टियों के बीच, जबकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने खुद को बचाव की मुद्रा में पाया है। यह टकराव भारतीय राजनीति में गहरे विभाजन को उजागर करता है, जो चुनावी सत्यता, प्रौद्योगिकी और अतीत के नेताओं की विरासत के बारे में है।

परिवर्तन की मांग

यह हलचल तब शुरू हुई जब विपक्षी नेताओं, विशेष रूप से समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने चुनावों के लिए बैलेट पेपर की वापसी की मांग की। उन्होंने तर्क किया कि ईवीएम धोखाधड़ी और हेरफेर के प्रति संवेदनशील हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करती हैं। यह भावना उन कई नागरिकों के साथ प्रतिध्वनित हुई है जिन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के बारे में चिंता व्यक्त की है।

संसद के एक सत्र के दौरान, एक प्रमुख विपक्षी नेता ने कहा, “हमें चुनाव बैलेट पेपर के माध्यम से कराए जाने चाहिए। ईवीएम को बैन किया जाना चाहिए; वे सुरक्षित नहीं हैं!” इस बयान ने बहस की आग को भड़काया, जिसमें विभिन्न पार्टियों के सदस्य समान भावनाओं का प्रदर्शन कर रहे थे।

संसद में बैलेट से चुनाव पर मचा ऐसा घमासान, विरोध में आई भाजपा, फिर आंदोलन  उतरे

भाजपा की प्रतिक्रिया

इसके विपरीत, भाजपा ने ईवीएम के उपयोग का जोरदार बचाव किया है। पार्टी के नेताओं, जिनमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी शामिल हैं, ने विपक्ष के आरोपों को निराधार और राजनीतिक प्रेरित बताया। नड्डा ने टिप्पणी की, “इस देश में हर समस्या के लिए नेहरू जिम्मेदार हैं। हमें आगे बढ़ना चाहिए, पीछे नहीं।” हालांकि, इस प्रतिक्रिया ने विपक्ष के सदस्यों के बीच बढ़ती असंतोष को कम करने में मदद नहीं की।

जब अभिनेत्री कंगना रनौत, जो भाजपा की समर्थक हैं, ने ईवीएम के बारे में विवादास्पद टिप्पणियाँ कीं, तो स्थिति और भी बढ़ गई। उन्होंने कहा कि बैलेट पेपर के लिए आह्वान “पुरातन” है और देश को आधुनिक प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिए। उनकी टिप्पणियों ने तीखी आलोचना को आकर्षित किया और विपक्ष के भीतर असंतोष को और बढ़ावा दिया।

संजय सिंह का विस्फोटक खुलासा

इस बीच, आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने संसद में एक विस्फोटक खुलासा किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में चल रही स्थिति से तीन करोड़ वोटों की चोरी होने जा रही है। उन्होंने तर्क दिया कि वर्तमान चुनावी प्रणाली दोषपूर्ण है और चुनावों की सत्यता खतरे में है। “हम लोकतंत्र की चोरी होते हुए देख रहे हैं,” उन्होंने घोषणा की, जिससे दर्शकों में हलचल मच गई।

सिंह के दावों ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया, क्योंकि उन्हें ईवीएम के बारे में बढ़ते सबूतों और जनाक्रोश का सामना करना पड़ा। चर्चाएँ केवल चुनाव सुधारों से बढ़कर लोकतंत्र की नींव के बारे में व्यापक बातचीत में बदल गईं।

वंदे मातरम की बहस

जैसे-जैसे चुनाव सुधारों पर बहस बढ़ी, एक और मुद्दा उभरा: राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम” के बारे में चर्चा। प्रधानमंत्री ने संसद में इस गीत के महत्व पर चर्चा करने की इच्छा व्यक्त की, जिससे विवाद और बढ़ गया। आलोचकों ने यह बताया कि जो लोग “वंदे मातरम” का समर्थन कर रहे थे, उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में कोई योगदान नहीं दिया था।

विपक्षी नेताओं ने तर्क दिया कि ध्यान महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार पर होना चाहिए, न कि प्रतीकात्मक इशारों पर। उन्होंने सत्ताधारी पार्टी पर गंभीर समस्याओं से ध्यान हटाने का आरोप लगाया।

अन्ना हजारे की वापसी

राजनीतिक हलचल के बीच, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने आंदोलन को फिर से शुरू करने की घोषणा की। वर्षों की चुप्पी के बाद, हजारे ने घोषणा की कि यदि लोकपाल बिल को लागू नहीं किया गया, तो वह 30 जनवरी 2026 से अनशन करेंगे। उनकी इस घोषणा ने राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मचा दी, जो पहले उनके आंदोलनों की याद दिला रही थी।

हजारे की सक्रियता ने वर्तमान भ्रष्टाचार विरोधी उपायों की प्रभावशीलता पर सवाल उठाए और क्या सरकार वास्तव में इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उनके पिछले आंदोलनों ने सार्वजनिक राय और नीति को काफी प्रभावित किया था, और कई लोग सोच रहे थे कि क्या वह फिर से वही सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

चुनावों में प्रौद्योगिकी की भूमिका

ईवीएम और बैलेट पेपर के विवाद ने चुनावों में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर फिर से चर्चा शुरू कर दी है। ईवीएम के समर्थक तर्क करते हैं कि ये मतदान प्रक्रिया को सरल बनाते हैं और मानव त्रुटियों के अवसर को कम करते हैं। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि प्रौद्योगिकी पर निर्भरता ऐसी कमजोरियों को जन्म दे सकती है जो चुनावी सत्यता को खतरे में डालती हैं।

जर्मनी, नीदरलैंड और आयरलैंड जैसे देशों ने ईवीएम पर प्रतिबंध लगा दिया है, सुरक्षा और विश्वसनीयता के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए। संजय सिंह के इन उदाहरणों का उल्लेख करने से भारत के चुनावी प्रौद्योगिकी के पुनर्मूल्यांकन की मांग बढ़ गई है।

जनता की प्रतिक्रिया

इस बहस के प्रति जनता की प्रतिक्रिया मिश्रित रही है। कई नागरिक चुनावी प्रक्रिया से निराशा व्यक्त कर रहे हैं और अधिक पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। सोशल मीडिया नागरिकों की आवाज़ उठाने का एक मंच बन गया है, जिसमें #BanEVMs जैसे हैशटैग लोकप्रिय हो रहे हैं।

जनता की भावना पारंपरिक मतदान विधियों की वापसी की ओर इशारा कर रही है, जिसमें कई लोग तर्क करते हैं कि बैलेट पेपर अधिक विश्वसनीय और भरोसेमंद हैं। जैसे-जैसे बहस आगे बढ़ती है, यह देखना बाकी है कि सरकार इन चिंताओं को कैसे संबोधित करेगी।

निष्कर्ष: भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण

संसद में ईवीएम बनाम बैलेट पेपर के उपयोग पर चल रही हलचल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करती है। जैसे-जैसे विपक्षी पार्टियां बदलाव की मांग में एकजुट होती हैं, भाजपा पर नागरिकों और राजनीतिक नेताओं द्वारा उठाए गए सवालों का सामना करने के लिए बढ़ता दबाव है।

अन्ना हजारे जैसे व्यक्तित्वों की वापसी और चुनावी सुधार की बढ़ती सार्वजनिक मांग के साथ, सरकार को इन चुनौतियों का सावधानीपूर्वक सामना करना होगा। इस बहस का परिणाम न केवल भारत में चुनावों के भविष्य को आकार देगा, बल्कि नागरिकों के लोकतांत्रिक संस्थानों पर विश्वास के स्तर को भी निर्धारित करेगा।

जैसे-जैसे चर्चाएँ आगे बढ़ती हैं, एक बात स्पष्ट है: भारत के चुनावी प्रक्रिया की सत्यता के लिए लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। लोगों की आवाज़ें, कार्यकर्ताओं की दृढ़ता, और राजनीतिक नेताओं के कार्य अंततः राष्ट्र के लोकतंत्र के लिए आगे का रास्ता तय करेंगे।