दिल्ली की बारिश वाली सुबह – अर्जुन का सबक
दिल्ली की एक बारिश वाली सुबह थी। आसमान में घने बादल छाए थे, हल्की बूंदाबांदी हो रही थी और सड़क पर धुंध सा माहौल था। ट्रैफिक की आवाज़ बारिश की रिमझिम के साथ मिलकर एक अजीब सा वातावरण बना रही थी। शहर के एक छोटे से अपार्टमेंट में चाय की खुशबू फैल रही थी।
अर्जुन, दस साल का दुबला पतला लड़का, डाइनिंग टेबल पर बैठा था। उसकी छोटी बहन अंजलि, जो अभी एक साल की भी नहीं थी, उसकी गोद में बैठी रो रही थी। अर्जुन उसे धीरे-धीरे झुला रहा था। उनके पिता, राजेश शर्मा, कमरे में आए। वे एक सफल व्यापारी थे लेकिन उनका रहन-सहन बहुत साधारण था। उन्होंने अलमारी से एक पुरानी शर्ट और पायजामा निकाला, जो कई बार धोने से फीका पड़ चुका था।
राजेश ने अर्जुन से कहा, “यह कपड़े पहन लो बेटा।”
अर्जुन ने हैरान होकर कपड़ों को देखा, “लेकिन पापा, ये तो बहुत पुराने हैं। स्कूल में सब मुझ पर हँसेंगे।”
राजेश मुस्कुराए, पर उनकी आँखों में गंभीरता थी। “आज तुम स्कूल नहीं जाओगे। आज मैं तुम्हें कुछ ऐसा सिखाऊँगा जो कोई किताब नहीं सिखा सकती।”
उन्होंने अपनी जेब से एटीएम कार्ड निकाला और अर्जुन को दिया, “इससे दो हज़ार रुपये निकालो, अंजलि के लिए दूध और खाने का सामान ले आओ।”
अर्जुन ने मासूमियत से पूछा, “आप क्यों नहीं जा रहे, पापा?”
राजेश ने गहरी साँस ली, “क्योंकि आज तुम देखोगे कि दुनिया तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार करती है जब उसे पता नहीं होता कि तुम कौन हो। और याद रखना, जो भी हो, गुस्सा मत करना।”
अर्जुन थोड़ा उलझन में था, लेकिन उसने सिर हिला दिया। कुछ देर बाद उसने पुराने कपड़े पहन लिए, पैरों में बड़ी सी रबर की चप्पलें, अंजलि को गोद में लिया, छोटा सा बैग कंधे पर डाला और निकल पड़ा। बैग में पानी की बोतल और दो खाली दूध की बोतलें थीं।
बारिश की हल्की बूंदें उसके बालों को भिगो रही थीं। घर से बैंक की दूरी करीब तीन किलोमीटर थी। अर्जुन चलने लगा। सड़क पर लोग छाते लेकर जल्दी-जल्दी जा रहे थे, किसी की नजर उस पर नहीं पड़ी। रास्ते में चलते हुए अर्जुन सोच रहा था कि पापा ने ऐसी बात क्यों कही।
करीब एक घंटे बाद वह शहर की सबसे बड़ी बैंक शाखा के सामने पहुँचा। बैंक के बाहर दो सिक्योरिटी गार्ड खड़े थे। उन्होंने अर्जुन को एक नजर देखा और फिर अपनी बातों में लग गए। अर्जुन ने हिम्मत करके बैंक के अंदर कदम रखा। ठंडी एसी की हवा उसके गीले चेहरे पर लगी। अंदर लोग आराम से बैठे थे, कुछ लाइन में थे, कुछ काउंटर पर बात कर रहे थे। महंगे परफ्यूम की खुशबू थी, पॉलिश किए जूतों की चमक थी।
लेकिन जैसे ही कुछ लोगों ने अर्जुन को देखा, उनके चेहरे बदल गए। एक महिला ने अपना हैंडबैग कसकर पकड़ लिया, एक आदमी ने नाक पर रुमाल रख लिया। कोई धीरे से बोला, “यह कहाँ से आ गया?” अंजलि का रोना अब और तेज हो गया।
अर्जुन धीरे-धीरे काउंटर की ओर बढ़ा। डर और असहजता का अजीब मिश्रण उसके मन में था। उसे नहीं पता था आगे क्या होगा।
काउंटर पर पहुँचकर अर्जुन बोला, “मैं दो हज़ार रुपये निकालना चाहता हूँ।”
टेलर ने उसकी फटी पायजामा, गंदी शर्ट और अंजलि के रोते चेहरे को देखा और हँसकर बोला, “यह बैंक है भाई, कोई फ्री राशन की दुकान नहीं। यह कार्ड कहाँ से मिला?”
अर्जुन बोला, “यह मेरे पापा का कार्ड है।”
टेलर ने कार्ड को उलट-पुलट कर देखा, “यह क्या, कोई खिलौना एटीएम कार्ड है? यहाँ पैसे कहाँ हैं?”
लाइन में खड़े एक आदमी ने मजाक में कहा, “इसे दो रुपये दे दो, टोपी खरीद लेगा।”
कुछ लोग हँसे, बाकी मुंह फेर लिए। अंजलि का रोना और तेज हो गया। अर्जुन चुप रहा, कार्ड वापस लेने की कोशिश की, लेकिन टेलर ने नहीं दिया।
तभी ब्रांच मैनेजर राघव प्रसाद बाहर आए। उन्होंने टेलर से पूछा, “क्या हुआ?”
टेलर बोला, “सर, यह बच्चा दो हज़ार रुपये निकालना चाहता है। इसके कपड़े गंदे हैं, गरीब लगता है, कहता है कार्ड उसके पापा का है।”
मैनेजर ने अर्जुन को देखा, “तुम्हें पता है यह अपराध है? यह कार्ड तुम्हारा नहीं है। तुम झूठ बोल रहे हो।”
अर्जुन बोला, “यह मेरा है सर, मेरे पापा ने दिया है।”
मैनेजर गुस्से में चिल्लाए, “सिक्योरिटी, इसे बाहर निकालो।”
गार्ड आगे आया, उसके चेहरे पर थोड़ी हमदर्दी थी, लेकिन ड्यूटी का दबाव था। उसने नरमी से कहा, “बच्चे, चलो यहाँ से। यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है।”
अर्जुन ने कार्ड कसकर पकड़ लिया, “मैं सिर्फ पैसे निकालना चाहता हूँ, मैं झूठ नहीं बोल रहा।”
लेकिन गार्ड ने उसका हाथ पकड़कर बाहर ले जाने की कोशिश की। बैंक के अंदर सबकी नजरें उस पर थीं। कुछ चेहरों पर हमदर्दी थी, बाकी लोग इसे मनोरंजन की तरह देख रहे थे। एक बुजुर्ग महिला ने धीरे से कहा, “गरीबों को कभी इज्जत नहीं दी जाती।” यह शब्द अर्जुन को तीर की तरह चुभे।
जब अर्जुन को बैंक से बाहर निकाला जा रहा था, ठंडी हवा और हल्की बारिश की बूंदें उसके शरीर को छू रही थीं। उसकी छोटी उंगलियाँ एटीएम कार्ड को कसकर पकड़े थीं। अंजलि उसकी गोद में और जोर से रो रही थी। अर्जुन का दिल तेज धड़क रहा था। उसने कभी इतना अपमान नहीं महसूस किया था। पापा के शब्द उसके दिमाग में गूंज रहे थे – “जो भी हो, गुस्सा मत करना।”
अर्जुन को लग रहा था कि पूरी दुनिया उसके खिलाफ हो गई है। उसके पैर कांप रहे थे, ठंड से नहीं, बल्कि उस अन्याय से जो वह महसूस कर रहा था। वह सिर्फ एक लड़का था जिसके पास उसके पापा का सच्चा कार्ड था, फिर भी उसे बैंक से बाहर निकाल दिया गया।
वह ठंडे कंक्रीट पर बैठ गया, अंजलि उसकी गोद में रो रही थी। बारिश हल्की पड़ रही थी, ट्रैफिक की आवाज़ दूर से आ रही थी जैसे दुनिया उसके दर्द को नज़रअंदाज़ कर रही हो। वह नहीं जानता था कि कितनी देर वह बैठा रहा। उसके दिमाग में उथल-पुथल थी – “मैंने कुछ क्यों नहीं कहा? क्यों नहीं चिल्लाया? क्यों नहीं सच्चाई बताई?” लेकिन फिर भी एक एहसास था कि उसने कुछ गलत नहीं किया।
कुछ देर बाद अर्जुन ने गीली सड़क पर गाड़ी के टायरों की आवाज सुनी। एक काली लग्जरी कार उसके पास आकर रुकी। कार से उसके पापा, राजेश शर्मा, बाहर निकले। वे सलीके से काला सूट पहने थे, चेहरे पर शांति थी, आँखों में अर्जुन के लिए प्यार।
राजेश ने झुककर पूछा, “तुम ठीक हो अर्जुन?”
अर्जुन ने कहा, “पापा, मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैं सिर्फ अंजलि के लिए पैसे लेना चाहता था।”
राजेश ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “सब ठीक है बेटा। मुझे पता है तुमने कुछ गलत नहीं किया।”
अर्जुन ने रोते हुए पूछा, “उन्होंने मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया? उन्होंने सुना ही नहीं, मुझे भिखारी समझा। सब हँस रहे थे।”
राजेश ने लंबी साँस ली, फिर अर्जुन को खड़ा किया और बोले, “चलो अंदर चलो।”
वे दोनों बैंक के अंदर गए।
अब माहौल बदल गया था। सिक्योरिटी गार्ड डर गए, बैंक के कर्मचारी चुप थे।
राजेश ने मैनेजर से पूछा, “यहाँ क्या हो रहा है? मेरे बेटे को बैंक से बाहर कैसे निकाला?”
उनके शब्दों में असाधारण ताकत थी।
मैनेजर स्तब्ध थे, उन्हें एहसास हुआ कि वे शहर के सबसे अमीर व्यक्ति का अपमान कर चुके हैं।
जल्दी-जल्दी अर्जुन को पैसे दिलवाए गए।
राजेश ने अर्जुन की ओर देखकर मुस्कुराया, “आज का सबक पैसे के बारे में नहीं, बल्कि लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए उसके बारे में है।”
अर्जुन ने महसूस किया कि असली ताकत गुस्से या चिल्लाने में नहीं, बल्कि शांति और धैर्य में है।
जब वे अपार्टमेंट लौटे, राजेश ने फिर से एटीएम कार्ड अर्जुन को दिया, “चलो, अब अंजलि के लिए कुछ खिलौने खरीदो।”
निकलने से पहले राजेश ने कहा, “याद रखना बेटा, दुनिया तुम्हें तुम्हारे कपड़ों, तुम्हारे पास क्या है या नहीं, इन सब से जज करेगी। लेकिन असली पहचान तुम्हारे चरित्र और काम से बनती है।”
अर्जुन ने उस दिन जीवन का सबसे बड़ा सबक सीखा –
**सम्मान, ताकत और पहचान – धन या दिखावे से नहीं, बल्कि इंसानियत और अच्छे कर्मों से मिलती है।**
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