गरीब लड़की रोज होटल जाकर बचा हुआ खाना मांगती थी, फिर मालिक ने जो किया…

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फुटपाथ से आसमान तक

अध्याय 1: फुटपाथ की जिंदगी

नई दिल्ली की हलचल भरी गलियों में, फुटपाथ के एक कोने पर 10 साल की पूजा रोज खड़ी रहती थी।
उसके बाल उलझे हुए, कपड़े फटे, और नंगे पैर थे। हाथ में एक टूटी थाली, आँखों में भूख और चेहरे पर उम्मीद।
हर रोज वह उसी बड़े होटल के गेट पर आकर बचा हुआ खाना मांगती।
“भैया, थोड़ा बचा हुआ खाना दे दीजिए। मेरे भाई-बहन बहुत भूखे हैं।”
होटल के कर्मचारी रोज उसे डांटते, कभी धक्का देते, कभी उसकी थाली छीन लेते।
एक दिन एक कर्मचारी ने उसे जोर से धक्का दिया, पूजा गिर गई, उसकी थाली गटर के पास जा गिरी।
आँखों से आँसू छलक पड़े, लेकिन भूख इतनी तेज थी कि आँसू भी उसे रोक नहीं पाए।

पूजा ने हाथ जोड़कर कहा, “भैया, मैं काम कर लूंगी। बर्तन मांझ दूंगी। बस थोड़ा खाना दे दो।”
कर्मचारी हँसने लगे, “अरे वाह, छोटी बच्ची बर्तन मांझेगी। चल अंदर आजा।”

पूजा ने आँसू पोंछे, थाली उठाई और होटल के अंदर चली गई।

अध्याय 2: बचपन की मजबूरी

पूजा का परिवार बेहद गरीब था।
पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे, एक हादसे में उनकी मौत हो गई।
माँ सिलाई करती थी, लेकिन अब बीमार रहने लगी थी।
घर का गुजारा मुश्किल हो गया था। पूजा सबसे बड़ी थी, लेकिन खुद भी बच्ची थी।
छोटे भाई-बहन भूख से रोते रहते, माँ आँसू बहाकर कहती, “बेटा, भगवान सब ठीक करेगा।”
लेकिन भगवान शायद कहीं और व्यस्त था।

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पूजा हर रोज होटल के बाहर खड़ी होती, बचा हुआ खाना मांगती।
कभी रोटी, कभी आधी प्लेट बिरयानी, कभी छोले कुलचे।
धीरे-धीरे होटल उसका ठिकाना बन गया।
शुरुआत में उसे बचा खाना मिल जाता था, लेकिन धीरे-धीरे कर्मचारियों को उसकी आदत चुभने लगी।
गुस्से में बोलते, “तू रोज-रोज क्यों आती है? भिखारिन कहीं की!”

फिर भी पूजा रोज आती रही, क्योंकि भूख ताने सुनने से कहीं बड़ी थी।

अध्याय 3: मजबूरी का काम

एक दिन एक कर्मचारी ने उसकी थाली छीन ली, गुस्से में बोला, “फ्री का खाने का शौक है? ऐसे नहीं मिलेगा, झूठे बर्तन धो तभी खाना मिलेगा।”
उसने पूजा के हाथ में चिकन की हड्डियों से भरी थाली थमा दी।
पूजा ठिठक गई, आँखों में आँसू थे, दिल ने कहा, “यह मेरा काम नहीं है।”
लेकिन भूख ने कहा, “अगर इंकार किया तो आज रात पेट खाली रहेगा।”

अपनी माँ और भाई-बहन का पेट भरने के लिए उसने सिर झुका लिया और नन्हे हाथों से थालियाँ धोने लगी।
कभी चिकन की हड्डियाँ, कभी पिज्जा के गंदे टुकड़े।
वह गंदगी साफ करती और फिर वही बचे टुकड़े खा लेती।
बच्ची के लिए यह रोज की जिंदगी बन गई थी।
खिलौनों की जगह उसके हाथों में गंदे बर्तन थे, पढ़ाई की जगह आँखों में भूख और आँसू, हँसी की जगह चेहरे पर थकान और बेबसी।

अध्याय 4: किस्मत बदलने की शुरुआत

एक शाम होटल के सामने एक बड़ी गाड़ी आकर रुकी।
गाड़ी से उतरे आमिर मलिक, शहर के जाने-माने बिजनेसमैन और होटल के मालिक।
कर्मचारी लाइन में खड़े हो गए, “नमस्ते मालिक!”

आमिर की नजर कोने में बैठी पूजा पर पड़ी, जो गंदे पानी से बर्तन धो रही थी और आधी जली रोटी खा रही थी।
आमिर रुक गए, “यह बच्ची कौन है? यहाँ क्यों काम कर रही है?”
कर्मचारी बोले, “साहब, रोज खाना मांगने आती थी, तो काम पर रख लिया।”

आमिर की आँखों में गुस्सा भर गया, “इतनी छोटी बच्ची से काम करवा रहे हो? होटल है या नरक?”
पूजा डरकर बोली, “साहब, मेरी गलती नहीं। मुझे भूख लगी थी। मैं काम करके खाना खाती हूँ।”

आमिर झुककर उसके पास गए, सिर सहलाया, “बेटी, अब तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा। भूखा नहीं रहना पड़ेगा। आज से तुम मेरे साथ चलोगी।”

अध्याय 5: नया घर, नई उम्मीद

कार धीरे-धीरे बंगले के अंदर दाखिल हुई।
बड़ा सा गेट, हरे-भरे पेड़, बीच में चमचमाती सड़क और अंत में शाही सा बंगला।
पूजा ने खिड़की से बाहर झाँका, उसकी आँखों में आश्चर्य और डर दोनों थे।
इतना बड़ा घर उसने सपनों में भी नहीं देखा था।

आमिर ने मुस्कुराकर कहा, “बेटी, अब यह तुम्हारा घर है। यहाँ तुम भूखी नहीं रहोगी।”
दरवाजा खुला, आमिर की पत्नी झारा बाहर आई।
चेहरे पर सादगी, आँखों में ममता।
उन्होंने पूजा को गले लगा लिया, “अरे, यह प्यारी सी बच्ची कौन है?”
आमिर बोले, “झारा, यह पूजा है। आज से हमारी जिम्मेदारी है।”

झारा ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, “बेटी, अंदर आओ।”
पूजा हिचकिचाती हुई अंदर दाखिल हुई।
बड़े झूमर, मुलायम कालीन, चमकती दीवारें।
वह सोचने लगी, क्या सच में यह मेरा घर है या सपना?

रात को झारा ने रसोई से खाना भिजवाया, पूरी प्लेट, दाल, सब्जी, चावल, मिठाई।
पूजा की आँखें भर आईं, उसने महीनों बाद गर्म रोटी देखी थी।
खाते-खाते आँसू गालों पर लुढ़क आए।
झारा ने उसे पास खींचकर कहा, “बेटी, अब यह आँसू खुशी के लिए होंगे।”

अध्याय 6: पढ़ाई और सपनों की उड़ान

अगली सुबह पूजा को स्कूल भेजा गया।
पहली बार उसने साफ कपड़े पहने, कार से स्कूल गई।
क्लास में बच्चे हँसते, “अरे, यह वही है ना जो होटल में बर्तन धोती थी।”
लेकिन धीरे-धीरे उसकी मेहनत और लगन ने सबका दिल जीत लिया।
पूजा हर रोज सबसे आगे बैठती, ध्यान से पढ़ती, अच्छे नंबर लाती।
आमिर और झारा हर शाम उसके पास बैठकर पूछते, “बेटी, आज स्कूल कैसा रहा?”
यह सवाल सुनकर पूजा की आँखें चमक जातीं, क्योंकि उसके असली घर पर कभी किसी ने उससे यह सवाल नहीं पूछा था।

एक दिन पूजा ने झिझकते हुए कहा, “साहब, मेरी माँ बहुत बीमार है। छोटे भाई-बहन भूखे रहते हैं।”
आमिर की आँखें भर आईं, डॉक्टर बुलवाए, माँ का इलाज शुरू हुआ।
कुछ महीनों में हालत सुधरने लगी, भाई-बहनों को भी स्कूल में दाखिला दिला दिया गया।
पूजा की माँ ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, आपने तो भगवान का काम किया है।”
आमिर बोले, “नहीं अम्मा, भगवान ने मुझे भेजा है ताकि मैं आपकी पूजा जैसी बच्चियों की मदद कर सकूँ।”

अध्याय 7: इंसानियत की मिसाल

आमिर के इस कदम की चर्चा पूरे शहर में फैल गई।
अखबारों की हेडलाइन बनी, “शहर का बड़ा होटल, अब कोई भूखा नहीं जाएगा।”
कई लोग होटल में गरीबों के लिए खाना खाने आने लगे।
कुछ अमीर ग्राहक नाक-भौं सिकोड़ते, “अब तो होटल धर्मशाला बन गया है।”
लेकिन धीरे-धीरे वही लोग गरीब बच्चों को खाते देख भावुक हो जाते।
एक बुजुर्ग बोले, “बेटा, तूने इंसानियत जिंदा रखी है।”

पूजा अब हर रात पढ़ाई करती, किताबों में डूबी रहती।
उसकी आँखों में अब एक सपना पलने लगा, डॉक्टर बनने का सपना।
एक दिन झारा ने पूछा, “बेटी, इतनी मेहनत क्यों कर रही हो?”
पूजा बोली, “माँ कहती थी कि अगर पढ़ लिख जाऊंगी तो भूख से लड़ सकती हूँ। और अब मैं चाहती हूँ कि कोई और बच्चा मेरी तरह होटल के गेट पर भूखा खड़ा ना हो।”

झारा की आँखें भर आईं, “बेटी, तू सिर्फ हमारी नहीं, पूरे समाज की बेटी है।”

अध्याय 8: संघर्ष और जीत

एक शाम पूजा को पता चला कि उसकी माँ की हालत फिर बिगड़ गई है।
डॉक्टर बोले, “इलाज लंबा चलेगा, खून की जरूरत है।”
पूजा घबरा गई, “साहब, माँ मर तो नहीं जाएगी ना?”
आमिर बोले, “नहीं बेटी, जब तक मैं जिंदा हूँ, तेरी माँ को कुछ नहीं होगा।”

रात को अस्पताल में खून की जरूरत थी, लेकिन कोई देने को तैयार नहीं था।
पूजा दौड़-दौड़कर लोगों से हाथ जोड़कर कहती, “भैया, मेरी माँ को बचा लीजिए।”
आखिरकार एक अजनबी आगे आया, “मेरा ब्लड ग्रुप मैच करता है, मैं खून दूंगा।”
पूजा उसके पैरों में गिर गई, “भैया, आप भगवान हैं।”

ऑपरेशन कई घंटे चला, सुबह डॉक्टर बोले, “अब मरीज खतरे से बाहर है।”
पूजा भागकर माँ के पास गई, माँ ने आँखें खोली, “बेटा, मैं कहीं नहीं जाऊंगी। भगवान ने मुझे तेरे लिए बचा लिया।”

अध्याय 9: समाज में बदलाव

पूजा और उसकी माँ की कहानी मीडिया तक पहुँच गई।
अखबारों, टीवी चैनलों पर खबर छपी—गरीब बच्ची पूजा, जो होटल के गेट पर झूठे बर्तन धोकर खाना खाती थी, आज उसी होटल के मालिक ने उसे अपनी बेटी बना लिया।
आमिर बोले, “मैं जानता हूँ भूख क्या होती है। मैं भी कभी गरीब था। अगर किसी ने मुझे मदद की थी तो अब बारी मेरी है।”

पूजा कैमरे के सामने बोली, “अगर साहब मुझे उस दिन होटल से उठाकर घर नहीं लाते, तो शायद आज मैं जिंदा भी नहीं होती।”
लाखों लोगों के दिल पिघल गए।
कई रेस्टोरेंट्स और होटल्स ने ऐलान किया—हमारे यहाँ बचा हुआ खाना अब गरीबों को दिया जाएगा।
सड़कों पर अब बच्चों को होटल के बाहर धक्के नहीं खाने पड़ते थे।

अध्याय 10: सपनों की उड़ान

कुछ साल गुजर गए।
पूजा अब बड़ी हो चुकी थी, स्कूल में टॉपर बनी, डॉक्टर बनने के लिए तैयारी करने लगी।
एक दिन आमिर का होटल एक बड़ी मुश्किल में फँस गया, किचन में आग लग गई, कई कर्मचारी घायल हो गए।
कुछ लोग बोले, “अब इसका बिजनेस डूबेगा।”
पूजा ने सबकी देखभाल की, अस्पताल में इलाज करवाया।
मीडिया ने फिर खबर चलाई—गरीबी से उठकर समाज की प्रेरणा बनी पूजा आज अपने पिता के होटल को बचाने में लगी है।

पूजा ने सबके सामने कहा, “मैं गरीब थी, भूखी थी। लेकिन अगर आज खड़ी हूँ, तो सिर्फ इंसानियत की वजह से। इस होटल को बंद नहीं होने दूंगी। क्योंकि यह सिर्फ व्यापार नहीं, हजारों गरीबों की भूख मिटाने का जरिया है।”

लोगों ने तालियाँ बजाई, कई दानदाता आगे आए, होटल को दोबारा बनाने के लिए मदद की।

अध्याय 11: असली पहचान

इसी दौरान पूजा को आमिर मलिक का बचपन का रजिस्ट्रेशन मिला—अनाथालय एक्स वाई जेड।
पूजा चौंक गई, “मतलब साहब भी अनाथ थे?”
आमिर बोले, “हाँ, मैं भी तुम्हारी ही तरह भूखा बच्चा था। मैं चाहता था लोग मेरी मेहनत देखें, दया नहीं।”

पूजा की आँखों से आँसू बह निकले, “साहब, आप मेरे पिता हैं। आपने मुझे जन्म से नहीं, दिल से बेटी बनाया है।”
आमिर ने उसे गले लगा लिया, “बेटी, अब तू ही मेरी असली पहचान है।”

अध्याय 12: प्रेरणा का संदेश

पूजा ने मन लगाकर पढ़ाई की, डॉक्टर बन गई।
एक दिन मीटिंग में सफलता का कारण पूछा गया, तो उसने कहा, “इंसानियत।”
अगर आमिर साहब ने मेरी मदद नहीं की होती, तो आज शायद जिंदा भी न होती।
झारा की ममता, आमिर की इंसानियत ने उसकी दुनिया बदल दी।

पूजा ने कहा, “अब मैं चाहती हूँ कि कोई और बच्चा मेरी तरह भूखा न रहे। मैं डॉक्टर बनकर गरीबों की मदद करूंगी।”

पूरे शहर में पूजा की मिसाल दी जाने लगी।
होटल में अब हर गरीब को खाना मिलता था, कोई भूखा नहीं रहता था।