A lost daughter was found selling flowers on the temple steps. What she said to her father will m…

दोस्तों, जरा सोचिए, मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी वह छोटी सी बच्ची, जिसकी उम्र मुश्किल से 11 साल होगी। अपनी झोली में फूल सजा रही थी। चेहरे पर धूप की परछाई पड़ रही थी, पर आंखों में कुछ ऐसा दर्द था जो शायद उम्र से कहीं ज्यादा बड़ा था। वह मंदिर के बाहर हर सुबह सबसे पहले पहुंच जाती। थोड़ा पानी छिड़कती, फूलों को सजाती और फिर अपनी टूटी बाल्टी को उठाती और गुजरते लोगों से कहती, “भैया, फूल ले लो, देवी मां को चढ़ा देना। मैं सस्ता दे दूंगी।”

आरु का संघर्ष

कई लोग बिना देखे निकल जाते। कुछ मुस्कुराते हुए फूल भी खरीद लेते, कुछ दया खाकर पैसे फेंक देते और कुछ बस तिरस्कार भरी नजर से देख जाते। पर वह हर बार मुस्कुरा देती क्योंकि शायद उसने दर्द को भी आदत बना लिया था। एक बुजुर्ग महिला उसके पास आती है और कहती है, “आरु, जल्दी कर, आज बहुत भीड़ है। मंदिर में मेला लगा है। आज ज्यादा फूल बिक जाएंगे, जल्दी जा।” आरु मुस्कुरा कर कहती, “हां अम्मा, अभी कर रही हूं।”

वो बच्ची जिसका असली नाम किसी को नहीं पता, सब उसे आरु कहके बुलाते थे। कहते हैं, अम्मा ने उसे बरसों पहले रेलवे स्टेशन के पास अकेला रोते हुए पाया था। तब से वहीं उसकी मां, वहीं उसका घर है। लेकिन दोस्तों, सच्चाई इससे भी कई ज्यादा गहरी थी। इस बच्ची की अपनी मां ने ही उसे रोते हुए सड़क पर छोड़ दिया था। जिसकी वजह से वह करोड़पति की बेटी होते हुए भी मंदिर की सीढ़ियों पर फूल बेच रही थी।

पिता की पहचान

बच्ची के पिता को इसके बारे में कुछ पता नहीं था। लेकिन एक दिन जब वह मंदिर जाते हैं, तब उन्हें वहां अपनी बेटी फूल बेचती हुई मिलती है। जिसे देख वह हैरान रह जाते हैं। तो दोस्तों, उसकी मां ने अपनी बेटी के साथ ऐसा क्यों किया था? क्यों उसे रोता सड़क पर छोड़ दिया था? सच्चाई जानकर तंग रह जाओगे।

आरु ने जिंदगी के सबसे बड़े सबक बहुत जल्दी सीख लिए थे। भूख क्या होती है? अपमान कैसा लगता है? और अकेलापन कैसे जिया जाता है? कभी मंदिर के भक्त उसे धक्का देते हुए निकल जाते तो कभी दुकानदार चिल्लाते, “दूर हट जा, भीड़ बढ़ा रही है।” लेकिन वह हर बार मुस्कुरा देती और वही वाक्य कहती, “कोई बात नहीं भगवान। सब देखते हैं।”

एक दयालुता का पल

वह खड़े होकर आते-जाते लोगों को फूल बेच रही थी। “भैया, फूल ले लो, माता रानी को चढ़ा देना। बहुत सुंदर फूल है, गुलाब का ले लो। माता रानी आपसे खुश हो जाएंगे।” लेकिन सब उसे अनदेखा करते हुए आगे बढ़ जाते। तभी अचानक एक छोटी बच्ची मंदिर की सीढ़ी से गिर जाती है। आरु भागकर उसे उठा लेती है और कहती है, “अरे रो मत। देखो कुछ नहीं हुआ।”

वह अपने दुपट्टे से बच्चे का घाव साफ करती है और उसे अपने स्टॉल पर बैठा देती है। आरु मुस्कुरा कर बोली, “लो, फूल ले लो। यह तुम्हारे लिए फ्री है।” कहते हैं, जिसने जिंदगी में कभी किसी का प्यार नहीं पाया, वो सबसे ज्यादा प्यार बांटता है। आरु भी शायद वही कर रही थी।

एक उम्मीद की किरण

शाम हो चुकी थी। मंदिर की घंटियां बज रही थीं। सूरज ढल रहा था। आरु दिन भर की कमाई गिनती है। कुछ सिक्के, थोड़े नोट, उसके पास एक टूटा हुआ ब्रेसलेट था जिसे वह हमेशा अपनी जेब में रखती है। वो ब्रेसलेट ही उसकी एकमात्र याद थी। उस पर धुंधले शब्दों में कुछ लिखा था। पर मिट चुके थे। बस “पा, प्रिन” इतना ही पढ़ा जा सकता था।

अम्मा आरु से आकर रहती हैं। “चल आरु, आज अच्छा काम हुआ, खाना खा ले।” आरु ने अम्मा से कहा, “अम्मा, क्या भगवान कभी किसी को ढूंढने में मदद नहीं करता है?” अम्मा ने कहा, “क्यों पूछ रही है?” आरु आंखें झुका कर बोली, “बस ऐसे ही, कभी-कभी लगता है कोई मुझे ढूंढ रहा है।”

एक नया मोड़

अगले सुबह आरु हर दिन की तरह मंदिर के बाहर खड़ी होकर फूल बेच रही थी। उसी दिन मंदिर में एक बड़ा उद्योगपति आया। राजवीर सिंघानिया। राजवीर उस दिन मंदिर के दरवाजे पर रुका तो था बस पूजा करने के लिए। पर जो हुआ, वह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ बन गया।

चारों तरफ भीड़ थी। कैमरों की चमक, लोग उसके नाम के नारे लगा रहे थे। “राजवीर जी आए हैं। देखो देखो!” पर उस शोर के बीच उसकी नजर कहीं और अटक गई। मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी एक नन्ही सी लड़की, धूप की हल्की किरण उसके बालों पर गिर रही थी। वो अपने छोटे-छोटे हाथों से फूल सजा रही थी और गुजरते हर शख्स से कह रही थी, “भैया, फूल ले लो ना, माता रानी को चढ़ा देना।”

राजवीर के कदम खुद ब खुद रुक गए। वो लड़की वही आंखें, वही मासूम चेहरा, जैसे किसी भूली हुई याद ने अचानक जोर से दस्तक दी हो। वो धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ा। लोगों ने रास्ता बना दिया। पर उसकी निगाहें सिर्फ उसी बच्ची पर थीं। आरु ने ऊपर देखा। थोड़ी देर तक उसे देखा। फिर वही मुस्कान जो उसके पास दुनिया की सबसे बड़ी पूंजी थी।

एक अनमोल पहचान

वो बोली, “फूल लोगे भैया, ताजे हैं। सुबह-सुबह तोड़े हैं।” राजवीर झुक कर बैठ गया। उसने अपने कोर्ट की जेब से कुछ नोट निकाले पर उसके हाथ कांप रहे थे। “तेरा नाम क्या है?” उसने पूछा। आरु ने बड़ी सादगी से कहा, “सब आरु कहते हैं मुझे।”

राजवीर का दिल जैसे धड़कना भूल गया। वह नाम वही जो कभी उसकी जिंदगी की धड़कन था। वह चुप रहा। बस उसे देखता रहा। जैसे कोई खोया हुआ टुकड़ा अचानक सामने आ गया हो। आरु ने नोट को उसकी हथेली में धकेला। “इतने पैसे नहीं चाहिए भैया, बस फूल ले लो।”

पिता का दर्द

राजवीर ने पूछा, “यह ब्रेसलेट कहां से मिला तुम्हें?” आरु ने हंसते हुए कहा, “यह मुझे नहीं पता। जब से याद है, यह मेरे पास है। अम्मा कहती हैं शायद किसी ने साथ छोड़ा होगा।” राजवीर ने वह ब्रेसलेट ध्यान से देखा। वही टूटा हुआ सिल्वर ब्रेसलेट, जिस पर कभी खुद उसने अपनी बेटी का नाम खुदवाया था। “प्रिंसेस आर्या।” पर अब अक्षर मिट चुके थे। बस “प्रिण” बचा था।

राजवीर की आंखों से आंसू गिर पड़े। वो पल जैसे वक्त रुक गया हो। भीड़, शोर, कैमरे सब गायब। बस एक पिता और उसकी खोई हुई बेटी। पर वह कुछ कह नहीं पाया। गला भर आया था। शब्द जैसे कहीं खो गए थे। आरु ने मासूमियत से पूछा, “भैया, आपको क्या हुआ? आप रो क्यों रहे हो?”

राजवीर ने मुस्कुराने की कोशिश की, पर आवाज कांप जाती है। “कुछ नहीं बिटिया, बस फूल बहुत सुंदर हैं।” वो फूल ले लेता है और मंदिर की सीढ़ियों से वापस नीचे उतर जाता है। पीछे मुड़कर एक बार फिर देखता है। आरु अब किसी और को फूल बेच रही थी और मुस्कुराती हुई कह रही थी, “भैया, माता रानी खुश होंगी।”

एक पिता का संकल्प

उस मुस्कान में मासूमियत थी। पर राजवीर के दिल में तूफान था। वो कार में बैठते हुए सोचता है, “क्या यह हो सकता है? क्या वो मेरी आर्या है?” वो पल उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा सवाल बन गया। उस रात राजवीर की नींद उड़ गई थी। उसकी आंखों के सामने बार-बार वही चेहरा आ रहा था। वो छोटी सी बच्ची, जिसके बोलने का अंदाज, जिसकी मुस्कान, सब कुछ उसकी बेटी आर्या जैसा ही था।

बीती यादें

वह पल याद आया जब बरसों पहले तूफान में उसकी गाड़ी पलट गई थी। उस हादसे ने उसकी दुनिया छीन ली थी। पत्नी वहीं मर गई थी और आर्या लापता हो गई थी। सालों तक उसने हर जगह तलाश की। पोस्टर छपवाए, अखबारों में इश्तहार दिए, पर कोई सुराग नहीं मिला। धीरे-धीरे सब ने कहा, वह नहीं रही। लेकिन एक पिता कभी मान नहीं पाता कि उसकी बेटी चली गई। राजवीर ने भी नहीं माना और अब इतने सालों बाद वह चेहरा, वह ब्रेसलेट सब कुछ जैसे फिर से उसकी खोई हुई उम्मीद को जिंदा कर गया था।

एक नई शुरुआत

अगले ही दिन सुबह राजवीर फिर उसी मंदिर पहुंचा। भीड़ वहीं थी, आरु वहीं थी। वो फिर फूल सजा रही थी। वही मुस्कुराहट, वही मासूमियत। राजवीर दूर खड़ा देखता रहा। उसकी आंखों में आंसू थे। पर दिल में सवाल। “क्या सच में यह मेरी आर्या हो सकती है?” वो धीरे से उसके पास पहुंचा और बोला, “बिटिया, तुम्हारे साथ कोई नहीं रहता।”

आरु ने कहा, “है ना, अम्मा है। उन्होंने ही मुझे पाला है।” “तुम्हारे मां-बाप?” राजवीर ने कांपती आवाज में पूछा। आरु मुस्कुराई। “नहीं है भैया। शायद कभी थे पर अब याद नहीं।” राजवीर का दिल टूट गया। वो बच्ची जो कभी उसके कंधों पर बैठकर आसमान में उड़ने के सपने देखती थी, आज मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी जिंदगी से जूझ रही थी।

एक खोज

वो धीरे से बोला, “क्या मैं तुम्हारी अम्मा से मिल सकता हूं?” आरु ने सिर हिलाया। “हां, वो पास ही फूलों की दुकान चलाती हैं।” राजवीर उसके साथ उस छोटे से स्टॉल पर पहुंचा, जहां एक बुजुर्ग महिला बैठी थी। सफेद बाल, झुर्रियों से भरा चेहरा, पर आंखों में ममता झलक रही थी।

आरु बोली, “अम्मा, यह भैया मुझसे मिलने आए हैं।” अम्मा ने मुस्कुरा कर कहा, “नमस्ते बेटा। आरु बहुत प्यारी बच्ची है। भगवान ने भेजी हुई।” राजवीर ने झिझकते हुए पूछा, “अम्मा, क्या आपको याद है यह बच्ची कहां मिली थी आपको?”

सच्चाई का सामना

अम्मा ने सांस भरी। फिर बोली, “बरसों पहले की बात है बेटा। रेलवे स्टेशन के पास रात में जोर की बारिश हो रही थी। मैंने एक बच्ची को रोते देखा। गोद में उठाया तो बेहोश थी। पास में बस एक टूटा हुआ ब्रेसलेट था। तब से यही मेरी बेटी है।”

राजवीर की आंखों से आंसू बह निकले। वह कांपती आवाज में बोला, “अम्मा, उस ब्रेसलेट पर क्या लिखा था? याद है?” अम्मा ने बोली, “हां बेटा, कुछ अंग्रेजी में था। लगता था जैसे किसी ने प्यार से खुदवाया हो। ‘प्रिंसेस आर्या’ या ऐसा कुछ?” वो सुनते ही राजवीर जैसे पत्थर का हो गया। गला भर आया। शब्द बाहर नहीं निकले। वो बस वहीं जमीन पर बैठ गया। आंखों से आंसू लगातार गिर रहे थे।

एक पिता की पहचान

अम्मा घबरा गई। “क्या हुआ बेटा? तुम ऐसे क्यों रो रहे हो?” राजवीर ने धीरे से कहा, “क्योंकि यह मेरी बेटी है, अम्मा। मेरी आर्या।” वो कांपते हाथों से जेब से एक पुरानी फोटो निकालता है। जिसमें वही मुस्कान थी। वही चेहरा और एक आदमी की गोद में बैठी छोटी बच्ची। बिल्कुल आरु जैसी।

अम्मा ने कांपते हुए फोटो देखी। फिर आरु को देखा। फिर राजवीर को और उनके होठों से बस इतना निकला। “हे भगवान!” आरु कुछ समझ नहीं पा रही थी। वह मासूमियत से बोली, “क्या हुआ अम्मा, यह अंकल रो क्यों रहे हैं?”

राजवीर ने उसे सीने से लगा लिया। आंखों से बहते आंसुओं के बीच बस इतना कह सका, “क्योंकि अब मुझे मिल गई मेरी दुनिया। मेरी बेटी!” “आरु चौकी?” राजवीर ने कहा। “हां, आर्या, तुम मेरी आर्या हो। मेरी छोटी प्रिंसेस।” वो ब्रेसलेट उसकी कलाई में चमक रहा था जैसे समय ने खुद उस पल को रोशन कर दिया हो।

आरु की आंखों में आंसू थे। पर अम्मा ने राजवीर का हाथ थाम कर कहा, “आपने मेरी बेटी को जीवन दिया है। अब से आप भी मेरे साथ चलेंगी।” अम्मा मुस्कुरा दी। उनकी आंखों में राहत थी। जैसे भगवान ने आखिर उनकी झोली में सुकून डाल दिया हो।

एक नया अध्याय

मंदिर की घंटियां फिर बजने लगीं। आरु ने पहली बार सिर झुकाया और कहा, “माता रानी, आपने सच में चमत्कार कर दिया।” आरु अब आर्या सिंघानिया बन चुकी थी। सालों की जुदाई के बाद राजवीर की दुनिया फिर से रोशनी से भर गई थी। वो उसे अपने आलीशान बंगले में लेकर आया। वो घर जो कभी हंसी से गूंजता था, आज फिर एक बच्चे की आवाज से महक उठा।

आर्या हैरान थी। उसे महंगे कपड़े, बड़ा कमरा, खिलौने सब कुछ मिला। पर अम्मा के छोटे से घर की मिट्टी की खुशबू उसे याद आती रही। राजवीर ने उसके लिए सबसे अच्छे डॉक्टर बुलाए, काउंसलर रखे ताकि वह अपनी पुरानी यादें वापस पा सके। लेकिन हर बार जब कोई उससे पूछता, “तुम्हें कुछ याद है आर्या?” वो बस चुप रह जाती क्योंकि उसके दिल में कुछ था जो उसे खुद भी समझ नहीं आता था।

एक अनजान फोन कॉल

कुछ हफ्ते बीत गए। एक शाम राजवीर अपने ऑफिस में बैठा था। उसके फोन पर एक अनजान नंबर से कॉल आया। “मिस्टर राजवीर सिंघानिया जी बोल रहा हूं।” फोन के उस पार एक भारी आवाज थी। “आपकी बेटी आर्या, वो जिस हादसे में खोई थी, वो कोई हादसा नहीं था।”

राजवीर के हाथ से फोन लगभग गिर गया। “क्या मतलब?” आवाज बोली, “जिस रात आपकी गाड़ी नदी में गिरी थी, वह किसी ने जानबूझकर करवाया था और आपकी पत्नी भी शायद उतनी मासूम नहीं थी जितना आप सोचते हैं।” कॉल कट गया। राजवीर कुछ पल तक सन्न रह गया। दिल में सवालों का तूफान उठने लगा।

सच्चाई की खोज

उसने अगले ही दिन उस पुराने केस की फाइल निकलवाई। हर रिपोर्ट, हर तस्वीर, हर सबूत को दोबारा देखा। और फिर एक नाम सामने आया जो उसने कभी गौर से नहीं देखा था। “ड्राइवर रामेश्वर।” रिपोर्ट के अनुसार हादसे की रात वह ड्राइवर गायब हो गया था। कभी वापस नहीं मिला। किसी ने तलाश भी नहीं की।

राजवीर ने पुलिस से संपर्क किया। लेकिन अब केस पुराना हो चुका था। कई रिकॉर्ड खो चुके थे। पर उस रात एक और अजीब बात हुई। आर्या अपने कमरे में थी। वह ब्रेसलेट, जिसे वह हमेशा पहनती थी, उसमें कुछ उभर आया था। सालों की धूल साफ करने पर धातु के नीचे से शब्द साफ दिखने लगे। “प्रिंसेस आर्या लव मॉम।”

लेकिन नीचे बहुत बारीक अक्षरों में कुछ और लिखा था। “इफ लॉस्ट, फाइंड मीरा आश्रम वाराणसी।” आर्या घबरा गई। “मीरा कौन?” उसने वो ब्रेसलेट लेकर राजवीर को दिखाया। राजवीर ने जैसे वह नाम सुना, उसका चेहरा पीला पड़ गया।

एक नई खोज की शुरुआत

वह बुदबुदाया, “मीरा, वह तो मेरी पत्नी की दोस्त थी जो हादसे से एक हफ्ते पहले ही घर छोड़कर चली गई थी।” राजवीर ने तुरंत अपने सहायक से कहा, “मुझे वाराणसी का हर आश्रम खंगालो। मीरा नाम की कोई महिला जरूर होगी।” तीन दिन बाद फोन आया। “सर, हमें एक महिला मिली है। उम्र लगभग 50 के आसपास, नाम मीरा पर वह किसी से बात नहीं करती।”

राजवीर तुरंत वाराणसी पहुंचा। आश्रम में जब उसने मीरा को देखा, वह पूरी तरह बदल चुकी थी। सफेद कपड़े, आंखों में खालीपन पर चेहरे पर वह पहचान साफ थी। राजवीर ने कहा, “मीरा, याद है मुझे?” मीरा ने आंखें खोली। काफी देर तक उसे देखती रही। फिर कांपती आवाज में बोली, “तुम अब भी जिंदा हो?”

राजवीर हैरान। “तुम यह क्या कह रही हो?” मीरा ने आंखें बंद की। “वो रात हादसा नहीं था। राजवीर, वो सब प्लान किया गया था।” “किसने?” राजवीर ने चीख कर पूछा। मीरा ने धीरे से कहा, “तुम्हारी पत्नी नीलिमा।”

एक पिता का दर्द

राजवीर जैसे पत्थर का हो गया। “क्या बकवास कर रही हो तुम?” मीरा बोली, “नीलिमा को शक था कि तुम किसी और से प्यार करते हो। वो पागलपन की हद तक जलन में थी। उसने ड्राइवर को पैसे देकर एक्सीडेंट करवाया। पर गाड़ी पलट गई और सब कुछ उसके खिलाफ हो गया।”

राजवीर की आंखों में आंसू थे और आर्या। मीरा बोली, “जब मैंने देखा कि गाड़ी डूब रही है, मैं भाग कर पहुंची। बच्ची को बाहर निकाला, नीलिमा तब तक बेहोश हो चुकी थी। मैंने बच्ची को ट्रेन स्टेशन के पास छोड़ दिया ताकि उसे कोई बचा ले, क्योंकि पुलिस मुझे इसमें फंसा देती।”

राजवीर सन्न रह गया। “मतलब मेरी बेटी सालों तक मंदिर के बाहर रही क्योंकि उसकी मां के गुस्से ने मेरी दुनिया तोड़ दी।” मीरा ने सिर झुका लिया। “मैंने गलती की राजवीर, पर भगवान ने तुम्हें फिर से बेटी दे दी। अब उसे कभी अकेला मत छोड़ना।”

सुख का एहसास

राजवीर चुपचाप वहां से निकल गया। गंगा किनारे बैठा बस आसमान की तरफ देखता रहा। आंसू गालों से बह रहे थे। पर इस बार उनमें एक सुकून था। क्योंकि सच कितना भी दर्दनाक क्यों ना हो, वो झूठ से ज्यादा पवित्र होता है।

उस रात उसने आर्या को गले लगाकर कहा, “अब कोई तुझे मुझसे नहीं छीन पाएगा।” आर्या ने बस इतना कहा, “माता रानी ने तो कहा था ना पापा, हर चमत्कार के पीछे एक परीक्षा होती है।”

एक नया अध्याय

राजवीर ने सोचा था अब सब कुछ खत्म हो गया। अब कोई रहस्य बाकी नहीं। लेकिन किस्मत उसे फिर से एक मोड़ पर ले आई। उस दिन आर्या अपने कमरे में पुरानी अलमारी देख रही थी। वहीं उसे एक पुराना बक्सा मिला, जिस पर धूल जमी थी और ताले में जंग लगी थी। जब उसने उसे खोला, अंदर पुराने खिलौनों के साथ एक लिफाफा रखा था। पीला पड़ चुका था। लेकिन उस पर साफ लिखा था “मेरे राजवीर के लिए।”

आर्या ने वह पत्र अपने पिता को दिया। राजवीर के हाथ कांप रहे थे क्योंकि वह उसकी पत्नी नीलिमा की लिखावट थी। वो स्त्री जिसके बारे में उसने अभी-अभी जाना था कि शायद उसी ने उसकी जिंदगी तोड़ दी थी।

एक अनकही सच्चाई

उसने कांपते हाथों से वह पत्र खोला और पढ़ना शुरू किया। “प्रिय राजवीर, जब तुम यह पत्र पढ़ रहे होगे, शायद मैं इस दुनिया में नहीं रहूंगी। तुम सोचोगे कि मैंने वह हादसा करवाया। पर सच यह है राजवीर, वो रात मेरी सबसे बड़ी गलती नहीं, मेरी सबसे बड़ी कुर्बानी थी। मुझे पता चला था कि तुम्हारे बिजनेस पार्टनर मल्होत्रा तुम्हें खत्म करने की साजिश रच रहे हैं। वह तुम्हारी गाड़ी में बम लगाने वाले थे ताकि तुम्हें हादसे में मार सके। मैंने ड्राइवर को कहा था कि गाड़ी उसी रास्ते से ना ले जाए। पर उसने लालच में मल्होत्रा का साथ दे दिया। जब मैंने देखा कि सब खत्म होने वाला है, मैंने आर्या को अपनी गोद में लिया और गाड़ी से बाहर फेंक दिया ताकि वह बच जाए, भले मैं ना रहूं। मुझे पता है यह सुनकर तुम मुझसे नफरत करोगे। पर याद रखना मैंने तुम्हें और अपनी बेटी को बचाने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाई थी। अगर कभी आर्या मिल जाए तो उसे बताना। उसकी मां बुरी नहीं थी, बस मजबूर थी। तुम्हारी नीलिमा।”

एक पिता की पहचान

पत्र खत्म होते ही राजवीर के हाथ कांपने लगे। आंखों से आंसू बहे जा रहे थे। वह जमीन पर बैठ गया और फूट-फूट कर रो पड़ा। जिस औरत को उसने गुनहगार समझा, वह दरअसल उसकी रक्षक थी। आर्या पास आई। उसने अपने नन्हे हाथों से उसके आंसू पोंछे और बोली, “पापा, मां ने तो हमारी जान बचाई थी ना।”

राजवीर ने उसे सीने से लगाकर कहा, “हां बेटा, तुम्हारी मां ने हमें मौत से छीना था। मैंने उसे कभी समझा ही नहीं।” वो रात बेहद शांत थी। मंदिर की घंटियां दूर से सुनाई दे रही थीं। राजवीर ने वही ब्रेसलेट आर्या की कलाई में बांधा और धीरे से कहा, “अब यह सिर्फ एक ब्रेसलेट नहीं, तुम्हारी मां का आशीर्वाद है।”

आर्या ने आसमान की ओर देखा, जहां बादलों के बीच जैसे कोई मुस्कुरा रहा था। शायद नीलिमा ही थी, जो अब अपनी बेटी और पति को देखकर चैन पा चुकी थी।

एक नई शुरुआत

अगले दिन राजवीर ने उस मंदिर के बाहर एक छोटा सा स्कूल बनवाया। जहां अब कोई भी आरू दोबारा अकेली जिंदगी ना जी सके। उस स्कूल का नाम रखा गया “नीलिमा आश्रय।” हर सुबह आर्या वहीं जाकर बच्चों के बीच बैठती और फूल बांटती। बिल्कुल वैसे ही जैसे वह सालों पहले बेचा करती थी। फर्क बस इतना था, अब वह फूल बेच नहीं रही थी, बल्कि जिंदगी बांट रही थी।

निष्कर्ष

कभी-कभी जिंदगी हमें भटकाती नहीं बल्कि सिखाती है कि जो खो गया लगता है, वह बस सही वक्त का इंतजार कर रहा होता है। और जब वह वक्त आता है, तो हर बिछड़ा रिश्ता, हर टूटा सपना फिर से लौट आता है। ठीक उसी जगह जहां पहली बार किसी ने “मां” कहा था या किसी ने बेटी को गले लगाया था।

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