गरीब रिक्शे वाले ने अमीर लड़की की मदद की थी, बदले में लड़की ने जो किया किसी ने सोचा नहीं था…

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कहानी: इंसानियत की मिसाल

प्रारंभ

यह कहानी है गोपाल की, जो एक गरीब रिक्शा चालक था। उसकी जिंदगी संघर्ष से भरी हुई थी, लेकिन उसके दिल में इंसानियत का जज़्बा कूट-कूट कर भरा हुआ था। गोपाल का एक सपना था कि वह अपनी बहन सुनीता की शादी अच्छे से कर सके। लेकिन गरीबी ने उसे हर कदम पर रोक रखा था।

एक दिन, बरसात का मौसम था। गोपाल अपने रिक्शे में बैठा था, जब अचानक एक चमचमाती काली कार बीच सड़क पर बंद हो गई। पीछे खड़े वाहनों ने जोर से हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। लोग बड़बड़ाने लगे कि अमीर लोग गाड़ी तो महंगी ले लेते हैं, लेकिन चलाना नहीं आता। कार के अंदर बैठी लड़की, रिया, परेशान थी। वह शहर के सबसे बड़े उद्योगपति की इकलौती बेटी थी। उसके लिए यह स्थिति नई थी, और वह घबराकर मोबाइल निकालती है, लेकिन ड्राइवर छुट्टी पर था।

गोपाल की मदद

जब रिया ने देखा कि कोई उसकी मदद करने को तैयार नहीं है, तो उसने बाहर झांका। तभी गोपाल का पुराना रिक्शा वहाँ आया। उसने भीड़ को चीरते हुए कार के पास जाकर खिड़की पर दस्तक दी। रिया ने खिड़की नीचे की और रुखाई से बोली, “क्या बात है? बताओ।”

गोपाल ने शांत लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “मैडम, आपकी गाड़ी खराब हो गई है। रोड जाम पड़ा है। इसे साइड करना पड़ेगा।” रिया ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और सोचा कि यह आदमी पैसे मांगेगा। लेकिन भीड़ की नजरें उस पर थीं, और मजबूरी में उसने सिर हिलाया।

गरीब रिक्शे वाले ने अमीर लड़की की मदद की थी, बदले में लड़की ने जो किया किसी  ने सोचा नहीं था...

गोपाल ने कार को धक्का देना शुरू किया। उसके पैर कीचड़ में बार-बार फिसल रहे थे, लेकिन उसके चेहरे पर हार मानने का कोई भाव नहीं था। धीरे-धीरे कार खिसकने लगी। गोपाल ने और जोर लगाया। उसकी नसें फूल गईं और साँसे तेज हो गईं। लेकिन उसने तब तक नहीं छोड़ा जब तक कार साइड में नहीं लग गई। रिया ने चैन की सांस ली।

इंसानियत का मूल्य

रिया ने पर्स खोला और 500 के दो नोट निकालकर खिड़की से बाहर बढ़ाए। “यह लो, तुमने जो मेरी मदद की है उसके पैसे,” उसने कहा। गोपाल ने पलट कर उसकी ओर देखा और कहा, “मैडम, पैसे उस काम के होते हैं जो पैसों के लिए किया जाए। मैंने तो इंसानियत के लिए हाथ बढ़ाया है, और इंसानियत का कभी दाम नहीं लगाया जाता।” इतना कहकर उसने अपना गमछा कंधे पर डाला और वापस अपने रिक्शे की ओर बढ़ गया।

रिया के हाथ में नोट वैसे के वैसे रह गए। उसका दिल धक-धक करने लगा। उसने पहली बार महसूस किया कि इस शहर की भीड़ में कोई ऐसा भी है जिसे पैसे से खरीदा नहीं जा सकता। वह खिड़की से बाहर झांकती रही, बारिश में भीगते जाते हुए उस आदमी को देखते हुए।

एक नई दिशा

कुछ दिनों बाद, रिया को ऑफिस की एक अर्जेंट मीटिंग में जाना था। लेकिन ड्राइवर अभी तक नहीं पहुंचा था। उसने तय किया कि ड्राइवर का ज्यादा वेट करना सही नहीं है। वह पास से गुजरते किसी रिक्शे में बैठ जाएगी। तभी उसकी नजर उसी पुराने रिक्शे पर पड़ी। यह वही गोपाल था जिसने उसकी बारिश में मदद की थी। रिया ने हाथ उठाया। गोपाल ने तुरंत रिक्शा रोका और झुककर बोला, “बैठिए मैडम।”

रिया बिना कुछ कहे रिक्शे में बैठ गई। उसके हाथ में एक बड़ा सा चमड़े का बैग था जिसमें कंपनी की महत्वपूर्ण फाइलें और पेमेंट वाउचर रखे थे। यह बैग उसके पिता ने खुद उसे सौंपा था। रिक्शा धीरे-धीरे चल पड़ा। रिया मोबाइल में मीटिंग के नोट्स देख रही थी और कभी-कभी घड़ी पर नजर डाल रही थी।

बैग की भूल

जब रिया ऑफिस पहुंची, तो वह जल्दी में उतरी। पर्स से पैसे निकाले और आगे बढ़ गई। जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि बैग रिक्शे की सीट पर रखा है। गोपाल ने भी बैग का ध्यान नहीं दिया और रिक्शा आगे बढ़ा दिया। स्टैंड पर पहुंचने के बाद उसने सीट पर बैग देखा तो दंग रह गया। गोपाल ने बैग उठाया। बैग बहुत भारी था। उसने सोचा, “यह तो बहुत कीमती लगता है।”

उसने यह बैग वापस करने की सोची और कंपनी की तरफ मोड़ दिया। लेकिन अब तक बहुत देर हो चुकी थी और रिया ऑफिस के अंदर जा चुकी थी। गोपाल ने सिक्योरिटी गार्ड से कहा कि उसे अंदर मैडम से मिलना है। लेकिन गार्ड ने कहा, “सॉरी सर, बिना एंट्री पास या परमिशन के अंदर जाने की अनुमति किसी को नहीं है।”

गोपाल ने बैग को घर लेकर जाने का फैसला किया। रास्ते में उसका मन हुआ कि खोल कर देखे, लेकिन हर बार उसके दिल से आवाज आई, “यह मेरा नहीं है। दूसरों की चीज छूना भी पाप है।”

परिवार की उम्मीदें

जब वह घर पहुंचा, तो मां और बहन सुनीता वहीं बैठी थीं। सुनीता ने बैग देखते ही पूछा, “भैया, यह कहां से आया? किसका है यह?” गोपाल ने जवाब दिया, “एक सवारी भूल गई।” मां ने धीमी आवाज में कहा, “बेटे, इसको खोल के देख लो। क्या पता इसमें पैसे हो। तेरी बहन की शादी भी नजदीक है।”

सुनीता की आंखों में उम्मीद की चमक थी। “अगर इसमें पैसे हुए तो हमारी सारी परेशानी दूर हो जाएगी।” गोपाल ने पल भर के लिए सोचा, लेकिन फिर उसने बैग अपनी छाती से लगा लिया और बोला, “सुनीता, तेरी शादी बेईमानी के पैसों से नहीं होगी। अगर मुझे दिन रात रिक्शा चलाना पड़े तो चलाऊंगा, लेकिन दूसरों का हक छीन कर तुझे दुल्हन नहीं बनाऊंगा।”

गोपाल का संकल्प

उसकी मां और सुनीता का मुंह शर्म से नीचे हो गया। गोपाल ने मन ही मन कहा, “मां और सुनीता भी अपनी जगह ठीक हैं, लेकिन अगर आज मैं उनकी बात मान लेता हूं तो इन पैसों के लालच में आकर जो मैं अपनी आत्मा पर दाग लगाऊंगा, शायद ही उसे कभी मिटा पाऊं।”

अगली सुबह उसने बैग उठाया और सीधे उसी बड़ी कंपनी के ऑफिस पहुंचा। रिसेप्शन पर खड़े आदमी ने गोपाल को ऊपर से नीचे तक देखा। “क्या चाहिए?” उसने तिरस्कार भरे स्वर में पूछा। गोपाल ने बैग आगे बढ़ाते हुए कहा, “कल आपकी मैडम यह बैग रिक्शे में भूल गई थीं। यह उन्हीं का है। मैं इसे लौटाने आया हूं।”

रिसेप्शनिस्ट चौंक गया। उसने बैग खोला। अंदर इंपॉर्टेंट फाइलें और पैसे थे। “इतनी बड़ी रकम और कागजात, और यह आदमी बिना कुछ करे इसे वापस करने आया है।” उसने रजिस्टर निकाला। “नाम लिखो। पहचान के लिए।”

रिया की पहचान

गोपाल ने कांपते हाथों से अपना नाम लिखा। “गोपाल, रिक्शा ड्राइवर।” थोड़ी देर बाद जब रिया ऑफिस पहुंची और रिसेप्शन पर बैग देखा, तो वह एकदम सन्न रह गई। “यह बैग कहां से आया?” उसने हड़बड़ाकर पूछा। रिसेप्शनिस्ट ने बताया, “मैडम, एक रिक्शा ड्राइवर लेकर आया था। उसने कहा, ‘आप भूल गई थीं?’”

रिया ने थोड़ी देर सोचा। फिर उसने रजिस्टर पलटा और गोपाल का नाम पढ़ा। कुछ पल के लिए वह ठिठक गई। उसे याद आया बारिश का वह दिन जब वही आदमी बिना कुछ लिए उसकी मदद करके उसकी इज्जत बचाई थी और आज लाखों का बैग भी उसने बिना खोले लौटा दिया। उसके दिल से आवाज निकली, “पापा हमेशा कहते थे गरीब भरोसे लायक नहीं होते। लेकिन गोपाल ने एक पल में पापा की सारी कहावतों पर पानी फेर दिया।”

गोपाल की ईमानदारी

अगली सुबह का आसमान धुंधला था। हल्की ठंडी हवा गलियों से होकर गुजर रही थी। लेकिन गोपाल के दिल पर एक अजीब सा बोझ था। रात भर नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। मां की बीमारी, बहन सुनीता की चिंतित निगाहें और शादी की तारीख का नजदीक आना सब मिलकर उसे भीतर से तोड़ रहे थे।

सुनीता आंगन में बैठी थी। उसके हाथों में शादी के कार्ड थे। उसने धीरे से कहा, “भैया, पंडित जी ने 21 दिन बाद की तारीख निकाली है। मंडप वाले ने कहा है एडवांस दो वरना बुकिंग कैंसिल कर देंगे।” गोपाल ने उसकी ओर देखा और कहा, “सुनीता, मैं तेरी शादी किसी भी हाल में उसी तारीख पर कराऊंगा। चाहे मुझे दिन रात मेहनत क्यों न करनी पड़े।”

कठिनाइयाँ

अगले दिन भर उसने रिक्शा चलाया। बिना थकान की परवाह किए पूरे दिन मेहनत की। शाम तक उसने ₹1000 जोड़ लिए। लेकिन यह रकम उन बड़े-बड़े खर्चों के सामने राई के बराबर थी। वह घर लौटा तो बहन दरवाजे पर खड़ी थी। “भैया, पैसों का जुगाड़ हुआ?” गोपाल ने उसकी आंखों से बचते हुए सिर झुका लिया। “हां बहन, हुआ तो है लेकिन इतने पैसों से शायद ही कुछ हो पाए।”

सुनीता ने उसकी हालत देखकर रोते हुए कहा, “भैया, तूने मेरी डोली उठाने के लिए अपने आप को मेहनत की भट्टी में झोंक दिया। तेरे इस उपकार का बदला मैं सात जन्मों में भी नहीं चुका सकूंगी।” उधर मां की आंखें भी भीग गईं। उसने गोपाल के सिर पर हाथ रखा। “बेटा, भगवान बहुत बड़ा है। वह हमारी मदद जरूर करेगा।”

मदद का रास्ता

उसी वक्त दरवाजे पर दस्तक हुई। मंडप वाले का आदमी आया था। उसने रुखाई से कहा, “गोपाल, अगर कल तक एडवांस नहीं मिला तो कल से बुकिंग कैंसिल समझो। हमें और आर्डर मिल रहे हैं।” गोपाल ने हाथ जोड़कर कहा, “भाई, बस दो दिन का वक्त और दे दो। मैं आपका एडवांस दे दूंगा।” मंडप वाले ने कहा, “ठीक है भाई, लेकिन कल तक काम हो जाना ही चाहिए।”

गोपाल ने हां में सिर हिलाया। लेकिन गोपाल के दिल में बार-बार एक ही सवाल गूंज रहा था। “अगर कल तक पैसे का जुगाड़ नहीं हुआ तो क्या होगा?” उस रात गोपाल मंदिर के सामने दीपक जलाकर बैठा। हाथ जोड़कर बोला, “हे भगवान, मेरी बहन की इज्जत दांव पर है। तुझसे कभी कुछ नहीं मांगा। पर आज तेरे आगे सिर झुकाता हूं। कोई रास्ता दिखा।”

रिया का संकल्प

अगले दिन रिया अपनी कार में बैठी ऑफिस की ओर जा रही थी। ट्रैफिक थोड़ा धीमा था। उसने खिड़की से बाहर झांका तो सड़क किनारे वही गोपाल का रिक्शा देखा। वह सिर झुकाए बैठा था। जैसे पूरी दुनिया का बोझ उसके कंधों पर हो। रिया ने ड्राइवर से कहा, “गाड़ी थोड़ी धीमी करो।”

जब कार धीमी हुई, तो उसने देखा पास ही दो आदमी आपस में खड़े बातें कर रहे थे। पहला बोला, “सुना है गोपाल की बहन की शादी है। कुछ ही दिनों में मंडप वाले ने कह दिया है कि एडवांस नहीं मिला तो बुकिंग कैंसिल।” दूसरा बोला, “हां भाई, सही कह रहे हो। और कैटर भी पैसा मांग रहा है। रिश्तेदारों ने भी हाथ खड़े कर दिए। अब वह बेचारा करेगा क्या?”

मदद की आवश्यकता

रिया के कान खड़े हो गए। उसकी नजर फिर गोपाल पर गई। वही आदमी जिसने बिना कुछ लिए बारिश में उसकी मदद की थी, वही जिसने लाखों का बैग लौटा दिया था। आज बेबस, लाचार और टूटा हुआ बैठा था। उसका दिल कसक उठा। “तो यह है असली वजह। इसीलिए आज गोपाल इतना टूटा हुआ है।”

उसने ड्राइवर से गाड़ी साइड में लगाने को कहा और तुरंत अपने मोबाइल पर कांटेक्ट लिस्ट खोली। उसने खुद से कहा, “अगर इस इंसान की मदद मैंने नहीं की, तो फिर इंसानियत शब्द का कोई मतलब नहीं।” उसने अपने मैनेजर से कैटर और ज्वेलर के नंबर निकालने को कहा। थोड़ी देर बाद मैनेजर ने नंबर भेजे। नंबर मिलते ही रिया ने तुरंत फोन उठाया।

रिया की मदद

उसने सबसे पहले हॉल मैनेजर को कॉल किया। “गोपाल नाम के आदमी की बुकिंग है आपके यहां जिसकी बहन की शादी है।” मैनेजर ने कहा, “हां मैडम, है लेकिन उनका अभी तक एडवांस पेमेंट नहीं आया है। अभी बुकिंग फाइनल नहीं हुई है।” रिया बोली, “मैं आपको पूरी पेमेंट भेज रही हूं। बुकिंग फाइनल कर दो।”

मैनेजर को पेमेंट मिलते ही उसने बुकिंग फाइनल कर दी। फिर उसने कैटर से कहा, “गोपाल नाम के आदमी की बुकिंग है आपके यहां जिसकी बहन की शादी है। उसकी बुकिंग किसी भी हालत में कैंसिल नहीं होनी चाहिए। जितना भी पैसा चाहिए, अभी ट्रांसफर कर रही हूं।”

गोपाल की नई जिंदगी

अगली सुबह गोपाल के घर मंडप वाला खुद आया। “गोपाल भाई, आपकी बुकिंग पक्की हो गई है। एडवांस आ गया है। चिंता मत करो।” फिर कैटर का आदमी आया। “आर्डर कैंसिल नहीं होगा। पैसे मिल गए हैं। हम तय तारीख पर आ जाएंगे।” गोपाल की आंखें फटी की फटी रह गईं। मां और बहन हैरान रह गईं।

सुनीता ने कहा, “भैया, यह सब कैसे हुआ? किसने हमारी मदद की?” गोपाल ने भगवान की मूर्ति की ओर देखा और हाथ जोड़ लिए। “यह किसी देवता का काम है बहन। जिसने भी किया, उसने हमारी इज्जत बचा ली।”

फिर शादी का दिन आया और सभी रस्में पूरी हुईं। गोपाल ने बहन का हाथ पकड़ कर विदाई की। उसकी आंखों से आंसू बहते रहे। लेकिन दिल में गर्व था कि उसने अपनी बहन की शादी इज्जत से कराई।

अंत

भीड़ में दूर खड़ी रिया भी यह सब देख रही थी। शादी पूरी होने के बाद उसने अपने पिता को सब बताया। “पापा, यही वह रिक्शा वाला है जिसने हमारा इंपॉर्टेंट फाइल्स और पैसे से भरा बैग लौटाया था।” पिता ने गंभीर स्वर में कहा, “रिया, तुम जानती हो मैं ऐसे लोगों पर भरोसा नहीं करता था। लेकिन इसकी ईमानदारी ने मेरी सोच को मिट्टी में मिला दिया।”

फिर पिता ने गोपाल को बुलाया। “आज से तुम सिर्फ रिक्शा वाले नहीं रहोगे। हमारी कंपनी की लॉजिस्टिक्स यूनिट में काम करोगे। तुम्हें पक्की नौकरी मिलेगी, सुविधाएं मिलेंगी और सबसे बड़ी बात तुम्हें इज्जत मिलेगी।”

गोपाल की आंखें भर आईं। उसने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, आपने जो दिया, उसका मैं ता उम्र कर्जदार रहूंगा। भरोसा रखिए। मैं आपके विश्वास को कभी टूटने नहीं दूंगा।”

इस तरह गोपाल की ईमानदारी ने उसकी जिंदगी को बदल दिया। उसने न केवल अपनी बहन की शादी इज्जत से कराई, बल्कि खुद को भी एक नई पहचान दिलाई। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि इंसानियत का मूल्य कभी नहीं घटता, और सच्ची मदद हमेशा लौटकर आती है।

धन्यवाद!