पत्नी पुलिस officer बनते ही अपने पति को छोड़ दिया, फिर पति ने कुछ ऐसा किया कि
आरव मल्होत्रा की कहानी: दर्द, प्रेम और आत्मसम्मान की मिसाल
दिल्ली के एक बड़े प्रशासनिक भवन में आज एक नाम गूंज रहा था—आरव मल्होत्रा। वह शहर का जिला मजिस्ट्रेट था, वही शहर जहाँ से उसके सपनों की नींव कभी हिल गई थी। लेकिन यह आज की बात है।
कहानी कई साल पहले शुरू होती है, एक छोटे से किराए के मकान में। वहाँ आरव और उसकी पत्नी पूजा ने अपने जीवन के सबसे खूबसूरत और संघर्ष भरे दिन बिताए थे।
आरव एक सीधा-साधा, मेहनती लड़का था। उसकी आंखों में ईमानदारी की चमक और होठों पर संतोष की मुस्कान हमेशा रहती थी। वह एक प्राइवेट फर्म में साधारण मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव था, आय बस इतनी थी कि मुश्किल से गुजारा हो सके।
पूजा सिर्फ उसकी पत्नी नहीं, उसका जुनून थी, उसका सपना थी। पूजा बचपन से ही पुलिस अधिकारी बनने का सपना देखती थी और अब वह UPSC की तैयारी में जी-जान से जुटी थी। उनका जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन प्रेम से भीगा हुआ।
संघर्ष और समर्पण
आरव के लिए पूजा का सपना उसका अपना सपना बन गया था। वह हर पल पूजा के साथ खड़ा रहता। सुबह 5 बजे उठकर उसके लिए चाय बनाना, नोट्स व्यवस्थित करना, रात-रात भर जागकर रिवीजन में मदद करना, उसके लिए पसंदीदा व्यंजन बनाना—यह सब आरव की दिनचर्या का हिस्सा था।
पूजा जब थक जाती, तो आरव उसे कहानियां सुनाता, उसका मन हल्का करता। पूजा की सफलता ही उसकी अपनी सफलता थी। उसने कभी अपने करियर या जरूरतों के बारे में नहीं सोचा।
कई बार आर्थिक तंगी भी सामने आती। आरव ने अपनी पसंदीदा किताबें बेच दीं, बाइक ठीक करवाने की बजाय पैदल ऑफिस जाना शुरू कर दिया, बस इसलिए कि पूजा की कोचिंग और किताबों का खर्चा पूरा हो सके।
पूजा को यह सब पता था। वह हर छोटे-से-छोटे त्याग को पहचानती थी। कई बार उसने पूछा, “क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम अपने लिए कुछ नहीं कर रहे?”
आरव मुस्कुरा देता—“मेरा अपने लिए तो तुम हो, पूजा। तुम्हारी सफलता मेरी सबसे बड़ी जीत होगी।”
सपनों की उड़ान और रिश्ते की दरार
फिर वो दिन आया जब UPSC का रिजल्ट आया। पूजा ने कंप्यूटर पर अपना रोल नंबर डाला, स्क्रीन पर उसका नाम जगमगाया। आरव की आंखों में खुशी के आंसू थे। पूजा ने उसका हाथ थामा—“अब हमारी जिंदगी बदल जाएगी, आरव। तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं थी।”
उस पल आरव को लगा उसने दुनिया जीत ली है।
लेकिन वक्त रेत की तरह फिसलता रहा। पूजा की ट्रेनिंग खत्म हुई, उसकी पोस्टिंग बड़े शहर में हो गई। दिल्ली की चकाचौंध, बड़े पद का ग्लैमर पूजा को एक नई दुनिया में खींच रहा था।
आरव, जो हमेशा उसकी परछाई की तरह रहा था, अब दूर रहने लगा। पूजा के नए सहयोगी, नए दोस्त, नया परिवेश—सबने उसे बदल दिया।
अब वह सिर्फ आरव की पूजा नहीं थी, वह IPS अधिकारी पूजा वर्मा थी।
आरव ने इस बदलाव को स्वाभाविक माना, लेकिन धीरे-धीरे पूजा के व्यवहार में दूरी आने लगी। फोन कॉल्स कम हो गए, बातें बदल गईं। अब उसकी बातें विभाग, सहकर्मियों, शहर की चकाचौंध के इर्द-गिर्द घूमती थीं।
नई पहचान और टूटता रिश्ता
आरव ने मुंबई में उसके साथ शिफ्ट होने का सुझाव दिया, लेकिन पूजा ने हर बार कोई बहाना बना दिया।
“यहां बहुत काम है, आरव। तुम इस शहर में एडजस्ट नहीं कर पाओगे। मुझे अपना करियर बनाना है।”
फिर एक नया नाम उनकी बातचीत में शामिल होने लगा—विवेक राठौड़। पूजा के सीनियर, स्मार्ट, ऊंचा कद, पुलिस विभाग में मजबूत पकड़। पूजा की आंखें उसके नाम पर चमक उठती थीं।
आरव के दिल में बेचैनी बढ़ने लगी।
पूजा देर से घर आती, फोन पर मुस्कुरा कर बात करती, उसकी मुस्कुराहटें अब आरव के लिए नहीं थीं।
एक रात, आरव ने हिम्मत करके पूछा—“पूजा, क्या कोई और है?”
पूजा क्षणभर ठिठकी, फिर दृढ़ता से बोली—“हाँ, विवेक है और मैं उससे प्यार करती हूँ।”
ये शब्द आरव के दिल के आर-पार हो गए।
“तुम मुझसे तलाक चाहती हो?”
पूजा ने बिना झिझक कहा—“हाँ, क्योंकि मैं अब उस जिंदगी का हिस्सा नहीं बनना चाहती जो तुम्हारे साथ थी। मुझे अपनी पहचान, अपना करियर चाहिए। मुझे ऐसा साथी चाहिए जो मेरी दुनिया का हिस्सा हो, तुम उस दुनिया का हिस्सा नहीं हो।”
आरव को लगा जैसे जमीन पैरों तले से खिसक गई हो।
जिस रिश्ते को उसने अपनी जिंदगी का आधार माना था, वह अब सिर्फ एक बोझ था।
नया संघर्ष, नई उड़ान
आरव ने चुपचाप रिश्ता छोड़ दिया। कागजी कार्यवाही एक दर्दनाक औपचारिकता थी। पूजा ने जल्दी ही सब निपटा दिया।
आरव ने किसी से शिकायत नहीं की, विवाद नहीं किया। उसने पूजा को उसके नए जीवन के लिए शुभकामनाएँ दीं।
अब उसके जीवन में खालीपन और दर्द था।
लेकिन उसने तय किया कि वह पूजा के खिलाफ नहीं, उस सोच के खिलाफ लड़ेगा जो साधारण होने को कमजोरी मानती है।
उसने नौकरी छोड़ दी, एक कमरा किराए पर लिया, खुद को UPSC की तैयारी में झोंक दिया।
अब वह खुद के लिए रणनीतियाँ बना रहा था। उसका दर्द, उसका गुस्सा, उसकी निराशा सब उसकी प्रेरणा बन गए।
हर अपमान, हर उपेक्षा, पूजा के शब्द—“तुम उस दुनिया का हिस्सा नहीं हो”—उसकी ताकत बन गए।
सुबह 4 बजे उठना, देर रात तक पढ़ाई, खाना-पीना भी भूल जाता।
उसने लाइब्रेरी को अपना घर बना लिया।
हर किताब, हर विषय को ऐसे पढ़ता जैसे अतीत के दर्द को मिटा रहा हो।
प्रारंभिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा, साक्षात्कार—हर पड़ाव पर खुद को साबित किया।
उसके भीतर आत्मसम्मान की आग जल रही थी।
वह सिर्फ परीक्षा नहीं, जीवन का सबसे बड़ा युद्ध लड़ रहा था।
सफलता की ऊँचाई और पुराना सामना
तीन साल बाद, UPSC का अंतिम रिजल्ट आया—AIR 19, आरव मल्होत्रा, IAS।
उस छोटे से कमरे में जब उसने अपना नाम देखा, उसकी आंखों में फिर आंसू थे—इस बार दर्द के नहीं, संतोष के।
यह उसकी जीत थी, आत्मसम्मान की जीत।
पूरा देश उसकी मिसाल देने लगा।
अखबारों में उसके संघर्ष की कहानी छपी।
उसकी पहली पोस्टिंग उसी जिले में मिली जहाँ पूजा अब SP थी।
किस्मत का खेल—अब वे एक ही प्रशासनिक क्षेत्र में थे।
अंतिम सामना: आत्मसम्मान की जीत
एक मीटिंग में पूजा और आरव आमने-सामने बैठे थे।
पूजा वर्दी में आत्मविश्वास से बैठी थी, उसकी नजर आरव पर पड़ी तो एक पल के लिए सब थम गया।
वही आदमी, जिसे उसने साधारण कहकर छोड़ा था, आज उससे ऊँचे पद पर था।
आरव की आंखों में कोई दर्द नहीं, सिर्फ शांत आत्मविश्वास और दृढ़ता थी।
मीटिंग में आरव ने अपने मुद्दे इतनी स्पष्टता से रखे कि सबने सराहा।
पूजा सुनती रही, उसके भीतर पछतावे का दर्द उठने लगा।
मीटिंग के बाद पूजा ने हिम्मत करके आरव से बात की।
“आरव, तुमने यह सब कैसे किया?”
आरव ने मुस्कुरा कर कहा—“जब दिल टूटता है, या इंसान बिखरता है या बनता है। मैंने दूसरा रास्ता चुना।”
पूजा की आंखों में आंसू थे—अब पछतावे के।
“मुझे माफ कर सकते हो?”
आरव ने कहा—“मैंने माफ कर दिया। तुम्हारे जाने से मुझे खुद को खोजने का मौका मिला। मैं अब वहां लौटना नहीं चाहता जहाँ से तुम्हारे साथ निकला था।”
पूजा ने देखा—अब वह आरव नहीं था जिसे उसने साधारण समझकर छोड़ा था।
वह अब एक ऐसा व्यक्ति था जिसने अपने दर्द को अपनी सबसे बड़ी शक्ति बना लिया था।
पूजा वहीं खड़ी रही, अपनी वर्दी में, जो अब उसे दागदार लग रही थी।
उसे एहसास हुआ कि उसने क्या खो दिया—एक ऐसा व्यक्ति जिसने निस्वार्थ प्रेम दिया, सपनों के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया।
सीख और संदेश
पूजा ने अपने सपनों को पाया, लेकिन आत्मसम्मान और सच्चा प्यार खो दिया।
आरव ने अपने टूटे दिल से नई कहानी लिखी—सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी की नहीं, बल्कि इंसाफ, आत्मसम्मान और इच्छाशक्ति की मिसाल।
उसने दिखा दिया कि किसी का साधारण होना कमजोरी नहीं, असाधारण क्षमता का संकेत है।
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