सड़क पर भीख मांग रहे थे असली माँ-बाप… सामने आया करोड़पति बेटा! इंसानियत रोपड़ी, फिर जो हुआ

“भीख मांगते माता-पिता और करोड़पति सौतेला बेटा – रिश्तों की असली पहचान”
उत्तर प्रदेश के एक छोटे कस्बे रामगढ़ में विश्वनाथ जी (उम्र 78) और उनकी पत्नी मीरा देवी (उम्र 75) रहते थे। दोनों ने अपना जीवन सच्चाई और मेहनत से जिया था। उनके दो बेटे थे – अभय, जो सगा था, और वरुण, जो मीरा देवी की पहली शादी से था, यानी विश्वनाथ जी का सौतेला बेटा। दोनों बेटों में बचपन में खूब प्यार था, लेकिन समय के साथ अभय में अहंकार और लालच बढ़ता गया।
एक रात का दर्दनाक मोड़:
एक दिन रात को, जब विश्वनाथ जी और मीरा देवी खाने के लिए बैठे ही थे, अभय गुस्से में दरवाजा खोलकर अंदर आया। उसके पीछे उसकी पत्नी नेहा थी, जिसके चेहरे पर षड्यंत्र की मुस्कान थी।
अभय चिल्लाया, “तुम दोनों को शर्म नहीं आती? मेरी बीवी की तरफ आंख उठाकर देखते हो! नेहा ने जो कहा वह झूठ नहीं है। तुम दोनों बूढ़े हमारे घर में रहकर हमें ही बदनाम कर रहे हो।”
विश्वनाथ जी सदमे में थाली से दाल-चावल परोसते-परोसते रुक गए। उन्होंने कांपती आवाज में कहा, “बेटा, तू कैसा इल्जाम लगा रहा है? क्या तेरा बाप तेरी बहू पर गंदी नजर डालेगा?”
लेकिन अभय के चेहरे पर नफरत थी। उसने पास रखी मेज पलट दी, पानी का गिलास जमीन पर फेंक दिया और अपने बाप को जोर से धक्का दिया। विश्वनाथ जी दीवार से टकराकर गिर पड़े। मीरा देवी दौड़ी और पति को सहारा देने लगी।
अभय ने दोनों का छोटा सा सामान, एक पुरानी अटैची और कपड़े का थैला बाहर फेंक दिया। “निकल जाओ! अब यह घर सिर्फ मेरा है।”
मोहल्ले के लोग बालकनी से देख रहे थे, लेकिन अभय के गुस्से के डर से कोई आगे नहीं आया।
मीरा देवी की टूटी चश्मा जमीन पर पड़ी थी। विश्वनाथ जी ने कांपते हाथ से चश्मा उठाया और मीरा देवी का हाथ पकड़कर बोले, “भगवान देख रहा है, चलो शायद अब हमारी असली परीक्षा शुरू हो गई है।”
सड़क पर बेघर और भूखे:
रात के 3 बजे थे। भूख और ठंड से कांपते हुए मीरा देवी को ब्लड प्रेशर की दवा लेनी थी। सामने एक छोटा सा ढाबा था – “भोजन घर”।
विश्वनाथ जी ने ढाबे के मालिक दयाराम से कहा, “भैया, भूख लगी है। अगर खाना दे दो तो बदले में बर्तन धो देंगे।”
दयाराम ने उनकी हालत देखकर कहा, “आप मेरे बाबूजी जैसे हैं। बैठिए, मैं खाना लाता हूं।”
मीरा देवी ने खाना खाया, लेकिन उनका दिल बुझा था। विश्वनाथ जी ने चुपचाप खाना खाया, लेकिन अपमान और आत्मग्लानि उनके मन में थी।
खाने के बाद एक रिक्शा वाला आया, जिसने उन्हें शहर के बाहर एक सुनसान डेरे पर छोड़ दिया। वहां कई बुजुर्ग फटे-पुराने कपड़ों में बैठे थे।
वहां का सरगना वही रिक्शा वाला था। उसने दोनों को अलग-अलग कमरों में बंद कर दिया और सुबह शहर के चौराहे पर भीख मांगने भेज दिया।
नर्क से निकलने की उम्मीद:
विश्वनाथ जी ने कटोरी को छूने से मना कर दिया। तभी एक चमकदार गाड़ी उनके सामने रुकी।
एक सूट-बूट पहने आदमी उतरा, जिसकी आंखों में नमी थी।
वह दौड़ते हुए आया, “बाबूजी, क्या आप मुझे पहचानते नहीं? मैं वरुण हूं, आपका बेटा!”
विश्वनाथ जी चौंक गए। वरुण वही सौतेला बेटा था, जिसे 15 साल पहले झूठे इल्जाम में घर से निकाल दिया गया था।
वरुण उनके पैरों में बैठ गया, “पिताजी, मैंने आपको उसी दिन माफ कर दिया था। मैंने बहुत ढूंढा आपको। मेरी आत्मा कांप रही है आपको इस हालत में देखकर।”
मीरा देवी भी दौड़ती हुई आई, वरुण को देखकर रोने लगीं।
तभी सरगना आया, “कौन है तू? मेरे शिकार को हाथ क्यों लगा रहा है?”
वरुण ने पुलिस को फोन किया, सरगना को पकड़वा दिया।
वरुण अब एक सफल इंजीनियर और सरकारी अधिकारी था। वह अपने माता-पिता को अपने आलीशान घर ले गया। उसकी पत्नी शालिनी ने पांव छूकर स्वागत किया। शालिनी स्वयं अनाथालय में पली-बढ़ी थी। उसने कहा, “मां-बाबूजी, आज मेरा घर पूरा हुआ।”
सम्मान और सुकून की वापसी:
विश्वनाथ जी पहली बार सुकून से मुस्कुराए। उन्हें लगा, भगवान ने उनका खोया सम्मान लौटा दिया है।
कुछ समय बाद वरुण का नया बंगला बनकर तैयार हुआ।
एक दिन रंगाई के काम के दौरान विश्वनाथ जी ने मजदूरों के बीच अभय को देखा। अभय मैले कपड़ों में, बाल बिखरे, सीढ़ी पर काम कर रहा था।
अभय अपनी बुरी आदतों, नशे और जुए के कारण बीवी नेहा और नौकरी दोनों गंवा चुका था। अब पेट भरने के लिए मजदूरी कर रहा था।
अभय ने पिता को देखा, डर गया। सीढ़ी से उतरकर उनके पैरों में गिर पड़ा, “पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने आपको घर से निकाला, झूठा इल्जाम लगाया। मेरी बीवी भी मुझे छोड़कर चली गई। मैं बर्बाद हो गया।”
विश्वनाथ जी का दिल रो रहा था।
तभी वरुण आगे बढ़ा, अभय को उठाया, “अभय, हम बचपन में लड़ते थे, पर अब नहीं। मैं चाहता हूं कि हम फिर से भाई बन जाएं। शालिनी कभी मां नहीं बन सकती, मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं। क्या मैं तुम्हारे दोनों बच्चों को गोद ले सकता हूं? उन्हें प्यार और शिक्षा दूंगा।”
अभय की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे, उसने सिर हिलाया।
वरुण ने उसे गले लगाया।
विश्वनाथ जी की आंखों से आंसू बह रहे थे।
आज उन्हें अपने सौतेले बेटे पर गर्व था, जिसे कभी ठुकराया था।
अब वही टूटे हुए घर को जोड़ रहा था।
रिश्तों की रोशनी:
अब अभय अपने बच्चों के साथ वरुण के घर में रहने लगा। शालिनी ने बच्चों को मां का प्यार दिया।
दो साल बाद एक चमत्कार हुआ – शालिनी और वरुण का भी एक बेटा हुआ।
वह घर, जो कभी अपमान से घिरा था, अब प्यार और रिश्तों की रोशनी से जगमगा रहा था।
अंतिम संदेश:
एक दिन विश्वनाथ जी की तबीयत बिगड़ गई। वरुण और अभय दोनों उनके पास थे।
विश्वनाथ जी ने वरुण का हाथ थामा, “बेटा, इंसानियत और धर्म का हिसाब यहीं होता है। अभय के बच्चों को कभी पराया मत बनने देना। उनमें वही मोहब्बत रखना जो अपने बेटे में रखते हो।”
वरुण की आंखें भीग गईं, “पिताजी, ये मेरे भाई के नहीं, मेरे अपने बच्चे हैं। जब तक मेरी सांस चलेगी, इन्हें अपनी जान से भी ज्यादा संभालूंगा।”
विश्वनाथ जी मुस्कुराए और संतोष के साथ आंखें बंद कर लीं।
समापन:
विश्वनाथ जी के जाने के बाद भी परिवार नहीं बिखरा।
वरुण ने हर वादा निभाया।
अभय ने ईमानदारी और मेहनत को अपनाया।
यह परिवार रामगढ़ में रिश्तों की मिसाल बन गया –
रिश्ते खून से नहीं, प्यार और सम्मान से बनते हैं।
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मिलते हैं अगली प्रेरणादायक कहानी में।
जय हिंद!
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