9 साल बाद बचपन के दोस्त से मिलने पहुँची करोड़पति लड़की ; 2 बच्चों को देखकर हो गयी हैरान …

नमस्कार मेरे प्रिय दोस्तों, स्वागत है आप सभी का। यह कहानी है महक चौधरी की, जो एक सफल बिजनेस वूमन है। एक दिन वह अपनी शानदार गाड़ी लेकर अपने बचपन के गांव पहुंचती है। लेकिन उसे नहीं पता था कि उसका बचपन का दोस्त रोहित अब इस दुनिया में नहीं रहा। गांव में सन्नाटा छाया हुआ था और लोग अजीब निगाहों से देख रहे थे। जब महक रोहित की झोपड़ी में पहुंचती है, तो उसे सिर्फ दो छोटे बच्चे मिलते हैं। फिर महक ने जो किया, वह सुनकर आप सभी को बहुत खुशी होगी।

गांव की यादें

महक ने अपनी गाड़ी से उतरकर कच्चे रास्ते पर कदम रखा। जब उसने पहली बार गांव की मिट्टी को छुआ, तो एक अजीब सा सुकून दिल में उतरा। लेकिन उसके मन में कई सवाल थे। वह अपने बचपन के दोस्त रोहित से मिलने आई थी, जिसने बरसों पहले उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत में उसका साथ दिया था।

उसे याद था जब उसके पिता का निधन हुआ था और उनकी मां के पास घर चलाने के लिए पैसे नहीं थे। तब रोहित ने अपने पिता की कमाई से कुछ पैसे निकालकर उसकी मदद की थी। महक ने उसी दिन तय कर लिया था कि जब भी वह काबिल बनेगी, इस मदद को लौटाएगी।

दुखद समाचार

महक जब झोपड़ी तक पहुंची, तो ना वहां रोहित था, ना उसकी पत्नी, सिर्फ दो छोटे बच्चे खेलते हुए दिखे। महक ने जब दरवाजा खटखटाया, तो एक सात-आठ साल की बच्ची बाहर आई।

“बेटा, तुम्हारे पापा कहां हैं?” महक ने हल्की मुस्कान के साथ पूछा। बच्ची की आंखों में कुछ झिझक थी। “पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं,” उसने धीमे स्वर में कहा।

महक के कदम लड़खड़ा गए। एक झटके में जैसे उसका पूरा अतीत उसके सामने आ खड़ा हुआ। रोहित, जिसने उसकी मदद के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था, आज इस दुनिया में नहीं था। महक की आंखों में हल्की नमी तैरने लगी।

बच्चों की जिम्मेदारी

महक ने झोपड़ी के अंदर दाखिल हुई। चारों तरफ गरीबी का आलम था। टूटी-फूटी चारपाई, कोने में रखे बर्तन और एक दीवार पर रोहित की धुंधली सी तस्वीर। महक ने तस्वीर को देखा और उसके जेहन में बीते दिनों की यादें ताजा हो गईं। वही मुस्कुराता चेहरा, वही दोस्त जिसने हमेशा उसे हौसला दिया था।

गांव के कुछ लोग अब झोपड़ी के बाहर जमा हो गए थे। वे चुपचाप महक को देख रहे थे। कुछ फुसफुसा रहे थे, “क्यों आई है?” महक ने गहरी सांस ली और खुद से एक संकल्प लिया। वह इन बच्चों को रोहित की तरह तंगहाली में नहीं रहने देगी।

मदद का हाथ

महक ने धीरे से पूछा, “क्या तुमने खाना खाया?” बड़ी बच्ची ने सिर झुका लिया। “मां ने कहा था कि जब वह लौटेगी तब खाना बनाएगी।” महक का दिल बैठ गया। उसने जेब से अपना पर्स निकाला और कुछ पैसे निकालकर बच्ची की ओर बढ़ाए।

लेकिन बच्ची ने पीछे हटते हुए कहा, “मां कहती है कि हमें किसी से भीख नहीं लेनी चाहिए।” महक का दिल भर आया। यह आत्मसम्मान था जो शायद रोहित ने अपनी बेटी में भरा था। तभी गांव की कुछ औरतें वहां आ पहुंचीं।

पहचान का पल

“बिटिया, तुम कौन हो? इन बच्चों से तुम्हारा क्या रिश्ता है?” एक औरत ने पूछा। महक ने गहरी सांस ली। “मैं रोहित की दोस्त हूं। बचपन में साथ खेला करते थे। जब सुना कि वह अब इस दुनिया में नहीं रहा, तो सोचा उसके बच्चों से मिलूं।”

महक की सच्चाई उनके दिल तक पहुंच रही थी। तभी दूर से एक दुबली-पतली औरत दिखाई दी, जो शायद बच्चों की मां थी। महक के मन में सवाल उठ रहे थे। क्या वह उसे पहचान पाएगी? क्या वह महक से बात करेगी?

सविता का संकोच

महक की नजरें उस दुबली-पतली औरत पर टिक गईं, जो तेजी से झोपड़ी की ओर बढ़ रही थी। उसने हल्की नीली साड़ी पहन रखी थी, जो कई जगह से फटी हुई थी। उसके चेहरे पर थकान साफ छलक रही थी, लेकिन आंखों में एक अजीब सा डर और चिंता थी।

“मां,” बच्ची दौड़ कर अपनी मां से लिपट गई। महक के दिल में हलचल मच गई। यह औरत रोहित की पत्नी थी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ी। “तुम कौन हो?” औरत ने घबराई आवाज में पूछा।

महक ने नरमी से कहा, “मुझे पहचानती हो? मैं महक हूं। रोहित की दोस्त, बचपन की दोस्त।” औरत की आंखों में एक पल के लिए कुछ पहचान की झलक उभरी, फिर वह बुझ गई। “महक, वो करोड़पति बिजनेस वूमन?”

मदद का प्रस्ताव

महक ने हल्की मुस्कान दी। “हां, लेकिन यहां मैं किसी करोड़पति के रूप में नहीं बल्कि रोहित की दोस्त के रूप में आई हूं।” औरत की आंखें भर आईं। “आप यहां क्यों आई हैं?” महक ने चारों ओर देखा, टूटी हुई झोपड़ी, बच्चों के चेहरे पर भूख की लकीरें।

उसने गहरी सांस लेते हुए कहा, “मैं यहां तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की मदद करने आई हूं।” “मदद?” रोहित की पत्नी की आंखों में अचानक एक अजीब सा संकोच आ गया। “नहीं, हमें किसी की भीख नहीं चाहिए। हम खुद मेहनत करके जी रहे हैं।”

महक को इस जवाब की उम्मीद थी। यह आत्मसम्मान रोहित की पहचान थी और उसकी पत्नी भी उसी विचारधारा की थी। “मैं भीख देने नहीं आई। मैं तुम्हारे बच्चों का भविष्य संवारने आई हूं।”

एक नई शुरुआत

महक ने दृढ़ता से कहा, “रोहित ने बचपन में मेरी मदद की थी और आज मैं उसका कर्ज चुकाने आई हूं।” औरत ने अपने बच्चों की तरफ देखा। लेकिन वह खुद असमंजस में थी। महक ने उसका हाथ थामा। “देखो, मैं तुम्हें कोई एहसान नहीं देना चाहती। मैं चाहती हूं कि तुम्हारे बच्चे अच्छी शिक्षा पाए। अच्छा जीवन जी। यह मेरा और रोहित का अधूरा वादा है जिसे मैं पूरा करना चाहती हूं।”

औरत की आंखों में आंसू आ गए। उसने सिर झुका लिया। “क्या तुम सच में हमारी मदद करोगी?” महक ने हल्की मुस्कान दी। “हां, लेकिन सिर्फ अगर तुम इजाजत दोगी।”

गांव का समर्थन

गांव के लोग चुपचाप यह सब देख रहे थे। कुछ लोग फुसफुसा रहे थे, लेकिन ज्यादातर के दिल में महक के लिए इज्जत बढ़ गई थी। महक ने आगे बढ़कर बच्चों को गले से लगा लिया। “अब मैं तुम्हारे भविष्य की रोशनी बनूंगी।”

महक ने झोपड़ी के बाहर बैठी रोहित की पत्नी सविता को गौर से देखा। उसकी आंखों में अब भी झिझक थी। महक समझ सकती थी कि अचानक आए इस मदद को स्वीकार करना उसके लिए आसान नहीं था।

एक नई दिशा

सविता ने धीरे से कहा, “महक, मैं जानती हूं कि तुम्हारी नियत अच्छी है। लेकिन मैं नहीं चाहती कि कोई हमारे ऊपर दया करें।” महक मुस्कुराई, “मैं दया नहीं कर रही। सिर्फ उस दोस्ती का फर्ज निभा रही हूं जो मैंने रोहित से बचपन में की थी। यह कोई एहसान नहीं, बल्कि एक अधूरा वादा है जिसे मैं पूरा करना चाहती हूं।”

सविता ने अपने दोनों बच्चों की ओर देखा। वे उत्सुकता से महक की बातों को सुन रहे थे। बड़े बेटे आर्यन ने हिम्मत जुटाकर पूछा, “क्या हम भी स्कूल जा सकते हैं?” महक की आंखें नम हो गईं।

बच्चों का भविष्य

उसने तुरंत सिर हिलाया। “बेटा, तुम अच्छे स्कूल में पढ़ सकते हो और वह सब कर सकते हो जो तुम्हारे पापा चाहते थे।” सविता की आंखों में आंसू आ गए। “अगर रोहित होता तो वह भी यही चाहता।”

महक ने सविता का हाथ थामा और कहा, “तो फिर तुम भी रोहित की तरह हिम्मत दिखाओ। यह तुम्हारे बच्चों का भविष्य है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी भी मदद कर सकती हूं।”

एक नया अवसर

सविता कुछ देर तक चुप रही। फिर धीरे से बोली, “तुम्हारी मदद का मतलब क्या होगा?” महक ने शांत स्वर में कहा, “तुम्हें किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी। मैं तुम्हें एक सिलाई सेंटर खोलकर दूंगी, जहां तुम अपनी मेहनत से कमाओगी और आत्मनिर्भर बनोगी। तुम्हारे बच्चे पढ़ेंगे और तुम्हारी जिंदगी बेहतर होगी।”

सविता की आंखों में हल्की चमक आ गई। यह पहली बार था जब उसे किसी ने भीख के बजाय एक अवसर देने की बात की थी। गांव के लोग अब भी दूर खड़े होकर यह सब देख रहे थे। कुछ लोग फुसफुसा रहे थे, लेकिन ज्यादातर लोग यह देखकर खुश थे कि कोई वास्तव में इस परिवार की मदद करना चाहता है।

मदद का हाथ

सविता ने अपनी आंखें पोंछी और हल्के स्वर में कहा, “अगर तुम सच में ऐसा कर सकती हो तो मैं मना नहीं करूंगी।” महक ने मुस्कुराते हुए कहा, “हम कल ही शुरुआत करेंगे।”

गांव में नई उम्मीद की किरण जाग चुकी थी। महक ने ठान लिया था कि वह रोहित के सपनों को पूरा करेगी। यह सिर्फ एक दोस्ती का फर्ज नहीं था बल्कि एक इंसानियत की मिसाल थी। सुबह का सूरज जब गांव के आसमान पर फैला, तो उसके साथ एक नई उम्मीद भी जागी।

नई शुरुआत

महक ने दिन की शुरुआत पूरे जोश के साथ की। वह सविता और बच्चों के लिए एक नई जिंदगी की योजना बना चुकी थी। आज वह सविता को लेकर शहर जाने वाली थी, जहां वह उसे एक अच्छे सिलाई सेंटर में दाखिला दिलाएगी।

जब महक अपनी गाड़ी से सविता और उसके बच्चों को लेने झोपड़ी के बाहर पहुंची, तो गांव के लोग अचरज भरी निगाहों से उन्हें देखने लगे। कुछ फुसफुसा रहे थे, तो कुछ मुस्कुरा रहे थे। “अरे, इतनी बड़ी साहबजादी गांव की गरीब औरत के लिए इतना कर रही है,” एक बूढ़ी औरत ने कहा।

साहस और आत्मनिर्भरता

महक ने उनकी बातों को नजरअंदाज किया। उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ रोहित के परिवार को संवारना था। सविता पहली बार महक के साथ शहर जा रही थी। गाड़ी में बैठते ही उसके हाथ कांपने लगे। उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था।

महक ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराते हुए कहा, “डरने की जरूरत नहीं, सविता। यह सब तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए है।” सविता ने हिम्मत जुटाकर सिर हिलाया।

नया अध्याय

शहर पहुंचने के बाद महक सीधे उसे एक प्रतिष्ठित सिलाई संस्था में ले गई। वहां के प्रशिक्षकों से बात करके उसने सविता का नामांकन करवाया। “यहां से तुम सिर्फ कपड़े सिलना नहीं सीखोगी, बल्कि अपने पैरों पर खड़े होने की ताकत भी पाओगी,” महक ने कहा।

सविता की आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। यह सब उसके लिए एक सपने जैसा था। इसके बाद महक बच्चों को लेकर एक अच्छे स्कूल पहुंची। वहां उसने प्रिंसिपल से मिलकर उनके दाखिले की बात की।

शिक्षा का उजाला

“यह बच्चे पढ़ने में बहुत अच्छे हैं। बस एक मौका चाहिए,” महक ने दृढ़ता से कहा। स्कूल प्रशासन ने बच्चों का प्रवेश दे दिया। जब महक ने बच्चों को यह खुशखबरी सुनाई तो उनकी आंखें चमक उठी।

आर्यन ने भावुक होकर कहा, “दीदी, आप हमारे लिए भगवान से कम नहीं हो।” महक ने गर्व से उसका माथा चूमा और कहा, “मुझे पहले से पता था कि तुम जरूर कुछ बड़ा करोगे।”

बदलाव का असर

गांव के लोगों को यह देखकर गर्व महसूस होने लगा कि उनका गांव भी अब तरक्की कर रहा है। जो लोग कभी महक की आलोचना करते थे, वही अब उसकी तारीफ करने लगे थे। प्रधान रमेश यादव ने पंचायत में घोषणा की कि महक के इस प्रयास को और भी बड़े स्तर पर ले जाया जाएगा।

महक की मेहनत रंग लाई। उसका यह छोटा सा प्रयास अब एक आंदोलन बन चुका था। गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही थीं। उनके बच्चों का भविष्य संवर रहा था और सबसे बड़ी बात, गांव की सोच बदल रही थी।

एक नई पहचान

महक ने गांव के बीच खड़े होकर आसमान की ओर देखा। उसे लगा जैसे उसकी बचपन की दोस्त की आत्मा उसे आशीर्वाद दे रही हो। आज उसने ना सिर्फ अपना कर्ज चुकाया था, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के लिए नई राह भी खोल दी थी।

तो दोस्तों, यह थी हमारी आज की कहानी। आप सभी को कैसी लगी, कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमें जरूर बताएं। दोस्तों, साथ ही हमारे चैनल “स्माइल वॉइस” को सब्सक्राइब करना ना भूलें।

अंत

दोस्तों, मिलते हैं ऐसी ही इंटरेस्टिंग और प्रेरणादायक कहानी के साथ। तब तक के लिए आप सभी का तहे दिल से धन्यवाद।

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