बेघर लड़का ट्रेन की पटरी पर कूद पड़ा करोड़पति को बचाने – 3 सेकंड बाद पूरी दुनिया सन्न रह गई!

एक करोड़पति, एक गुमराह पोता और एक गरीब लड़के की कहानी

मुंबई के एक सुनसान रेलवे स्टेशन पर आधी रात का समय था। पीले बल्ब की धीमी रोशनी में स्टेशन वीरान लग रहा था। हवा में अजीब सी खामोशी थी। अचानक एक ट्रेन की सीटी ने इस सन्नाटे को तोड़ दिया।

रमेश शर्मा, एक सफल और अमीर बिजनेसमैन, स्टेशन पर अकेले खड़े थे। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। हाल के दिनों में व्यापारिक प्रतिद्वंद्वियों और पारिवारिक कलह ने उन्हें तोड़ दिया था। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उनकी जिंदगी उस रात एक खतरनाक मोड़ लेने वाली है।

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पीछे से किसी ने उनके कंधे पर हाथ रखा। जब तक वह पलटकर देख पाते, एक दवा में भीगा रुमाल उनकी नाक पर रख दिया गया। कुछ ही पलों में वह बेहोश हो गए। जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने खुद को रेलवे ट्रैक के किनारे बंधा हुआ पाया। उनके हाथ-पैर रस्सियों से जकड़े हुए थे, और सामने से ट्रेन की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही थी।

गुनहगार का खुलासा

उनकी आंखों के सामने उनका अपना पोता, करण खड़ा था। करण, जिसे उन्होंने बचपन से पाला था, जिसे वह अपने साम्राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, वही आज उनकी जान लेने की साजिश में शामिल था।

करण की आंखों में डर और पछतावा था, लेकिन उसने कहा, “माफ करना, दादाजी। मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।”

दरअसल, करण जुए की लत में डूब चुका था। उसके ऊपर कर्ज का बोझ था, और उसके दुश्मन, मिस्टर मल्होत्रा, ने उसकी इस कमजोरी का फायदा उठाया था।

एक गरीब लड़के का साहस

ट्रेन की आवाज करीब आ रही थी। रमेश जी ने छटपटाने की कोशिश की, लेकिन रस्सियां बहुत मजबूत थीं। उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने सोचा कि शायद अब उनका अंत आ गया है।

लेकिन तभी, अंधेरे में से एक दुबला-पतला लड़का दौड़ता हुआ आया। वह राजू था, जो स्टेशन पर लॉटरी टिकट बेचता था। उसने रमेश जी को देखा और बिना कुछ सोचे-समझे ट्रैक पर कूद पड़ा।

राजू ने अपनी पूरी ताकत लगाकर रस्सियों को खोलने की कोशिश की। उसकी उंगलियों से खून बहने लगा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। ठीक उसी पल, जब ट्रेन कुछ ही इंच की दूरी पर थी, राजू ने रमेश जी को खींचकर ट्रैक से दूर कर दिया।

ट्रेन तेज रफ्तार से गुजर गई। दोनों जमीन पर गिरे हुए थे। रमेश जी की आंखों में आंसू थे। उन्होंने राजू की ओर देखा और कहा, “बेटा, तुमने मेरी जान बचाई।”

साजिश का पर्दाफाश

पुलिस मौके पर पहुंची। उन्होंने रमेश जी को बचाया और मामले की जांच शुरू की। राजू ने पुलिस को बताया कि उसने करण को कुछ अजनबियों के साथ देखा था।

जल्द ही, पुलिस को पता चला कि इस साजिश के पीछे रमेश जी के पुराने दुश्मन, मिस्टर मल्होत्रा का हाथ था। मल्होत्रा ने करण को पैसे और धमकियों के जाल में फंसा लिया था।

करण का पछतावा

करण, जो इस साजिश में शामिल था, अब अपनी गलती पर पछता रहा था। वह अपने दादा की आंखों में दर्द और निराशा देख चुका था। उसने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया और रोने लगा।

पुलिस ने करण को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ के दौरान, उसने अपनी गलती स्वीकार की। उसने कहा, “मैं लालच और डर के कारण गलत रास्ते पर चला गया। मुझे माफ कर दीजिए।”

न्याय की जीत

मल्होत्रा को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत में राजू ने गवाही दी। उसने सच्चाई को सबके सामने रखा। उसकी मासूमियत और साहस ने पूरे कोर्ट रूम को भावुक कर दिया।

अंत में, न्यायाधीश ने मल्होत्रा को कड़ी सजा सुनाई। करण को अपनी गलती स्वीकार करने और जांच में सहयोग करने के लिए कम सजा दी गई।

पुनर्मिलन और नई शुरुआत

कुछ समय बाद, रमेश जी करण से मिलने जेल गए। करण ने अपने दादा से माफी मांगी। रमेश जी ने उसे गले लगाते हुए कहा, “तुमने गलती की, लेकिन तुम्हारे पास फिर से शुरुआत करने का मौका है।”

रमेश जी ने राजू और उसकी मां को अपने घर में रहने का न्योता दिया। उन्होंने राजू को स्कूल भेजा और उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया।

राजू की कहानी पूरे देश में मशहूर हो गई। लोग उसकी तारीफ करने लगे। स्कूलों में उसकी कहानी पढ़ाई जाने लगी। राजू ने साबित कर दिया कि साहस और दयालुता किसी भी इंसान को नायक बना सकते हैं।

अंतिम संदेश

आज, रमेश जी का परिवार फिर से एक हो गया है। करण ने अपनी गलतियों से सीख ली है और अब अपने दादा और राजू के साथ मिलकर गरीब बच्चों की मदद करता है।

यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयां क्यों न हों, माफी और पश्चाताप से सब कुछ ठीक किया जा सकता है। और कभी-कभी, सबसे बड़ा नायक वह होता है, जो बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की मदद करता है।

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