💔 अपमान की रात और अंतिम सच का बोझ

 

प्रकरण 6: आँखों का सैलाब और टूटी कसमें

 

शमशान घाट से लौटने के बाद, जुहू के अपने आलीशान घर में हेमा मालिनी टूट चुकी थीं। सफ़ेद वस्त्रों में बैठी वह एक पत्थर की मूरत लग रही थीं, पर उनकी आँखें लगातार बह रही थीं।

ईशा और अहाना उन्हें संभाल रही थीं, पर माँ के दर्द को देखकर वे ख़ुद भी बेबस थीं। 40 साल तक हेमा मालिनी ने अपनी कसम निभाई थी—कि वह कभी प्रकाश कौर और उनके परिवार के सामने नहीं जाएँगी, उनके एकांत में दख़ल नहीं देंगी। पर आज, न चाहते हुए भी उन्हें उस अपमान का सामना करना पड़ा था जिसने उनके आत्म-सम्मान को गहरा घाव दिया।

“माँ, आपको वहाँ नहीं जाना चाहिए था,” ईशा ने दुखी होकर कहा। “हमारा वहाँ रुकना उन्हें गवारा नहीं था।”

हेमा मालिनी ने आँसू पोंछे। “ईशा, मैं धर्म निभाने गई थी। पत्नी होने का धर्म। 40 साल तक मैंने दूरी रखी, पर आख़िरी पल में… आख़िरी पल में उन्हें मेरा साथ चाहिए था। मगर… वहाँ भी नाइंसाफ़ी हुई।”

उन्हें सबसे ज़्यादा तकलीफ़ इस बात से थी कि उन्हें ‘पत्नी’ होने के नाते अंतिम रस्मों में शामिल नहीं होने दिया गया। प्रकाश कौर का हक़ था, और वह सम्माननीय थीं, पर क़ानूनी रूप से हेमा मालिनी भी धर्मेंद्र जी की पत्नी थीं। यह नाइंसाफ़ी सनी देओल और बॉबी देओल के बरसों पुराने गुस्से का आईना थी।

प्रकरण 7: बेटों का मौन और दर्द की दीवार

 

धर्मेंद्र के जुहू वाले घर में, जहाँ प्रकाश कौर अपने बेटों के साथ बैठी थीं, वहाँ भी एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। अंतिम रस्में तो पूरी हो गई थीं, पर सनी और बॉबी के दिल में शांति नहीं थी।

उन्होंने अपनी माँ के सम्मान के लिए वह किया जो उन्हें सही लगा—उन्होंने हेमा मालिनी को दूर रखा। पर यह जीत, उन्हें खोखली लग रही थी।

“सनी, तुमने सही किया,” प्रकाश कौर ने शांति से कहा। उनकी आवाज़ में थकान थी, बरसों के त्याग की थकान।

सनी देओल ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने अपनी माँ के दर्द को देखकर यह दीवार खड़ी की थी। पर आज, जब वह अपने पिता की राख को देखते हैं, तो उन्हें पिता की वह आँखें याद आती हैं, जिनमें हमेशा दो परिवारों को जोड़ने की एक अधूरी इच्छा झलकती थी।

“मम्मी, वह चली गईं, पर…,” बॉबी ने धीमी आवाज़ में कहा, “पर पिताजी की आखिरी इच्छा…”

सनी को पिताजी के वे शब्द याद आए: “तू बड़ा है, तू हाथ बढ़ाएगा तो परिवार एक होगा।”

क्या अपमान करके उन्होंने अपने पिता को शांति दी थी? यह सवाल उनके ज़मीर को कचोट रहा था।

प्रकरण 8: एक अप्रत्याशित मुलाक़ात

 

उसी रात, एक अप्रत्याशित घटना घटी। ईशा देओल ने एक हिम्मत भरा फ़ैसला लिया। वह जानती थी कि उनके पिता की आत्मा को शांति तब तक नहीं मिलेगी जब तक यह बैर ख़त्म नहीं होता।

ईशा ने अपने एक बहुत ही क़रीबी दोस्त, जो देओल परिवार के भी नज़दीक था, उसके ज़रिए सनी देओल से मिलने का समय माँगा।

अगले दिन, सुबह-सुबह, जुहू के एक शांत कॉफ़ी शॉप पर ईशा देओल और सनी देओल का सामना हुआ। यह सालों की दूरी और चुप्पी के बाद दोनों भाई-बहनों की पहली, व्यक्तिगत मुलाक़ात थी।

दोनों के बीच एक असहज चुप्पी थी। ईशा ने उस चुप्पी को तोड़ा।

“पाजी,” ईशा ने शुरू किया। “मैं यहाँ अपनी माँ के अपमान के लिए शिकायत करने नहीं आई हूँ। मैं यहाँ सिर्फ़ इसलिए आई हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि आप और बॉबी पाजी हमसे कितना प्यार करते थे।”

“पापा चले गए हैं। और अंतिम समय में जो हुआ… वह दुखद था। पर आप जानते हैं, पापा की आखिरी इच्छा क्या थी? वह चाहते थे कि हम सब भाई-बहन एक हों।

ईशा ने अपना पर्स खोला और उसमें से एक छोटा, पुराना रुमाल निकाला।

“यह पापा का रुमाल है,” ईशा की आवाज़ भारी थी। “यह उनके पास हमेशा रहता था। पिछली रात, उन्होंने यह माँ (हेमा मालिनी) को दिया था। यह कोई संपत्ति नहीं है, पाजी। यह उनका प्यार है।”

ईशा ने रुमाल को टेबल पर रखा।

प्रकरण 9: बेटों का बड़प्पन और शांति का पुल

 

सनी देओल ने उस रुमाल को देखा। रुमाल पर हल्की सी इत्र की ख़ुशबू थी, जो उन्हें सीधे अपने पिता की याद दिला गई। उन्हें अपनी माँ के साथ हुए अन्याय का दर्द था, पर अब, उनके सामने उनके पिता की बेटी, उनकी छोटी बहन, खड़ी थी।

सनी को महसूस हुआ कि उनका गुस्सा अब बेमानी हो चुका था। उनके पिता की अंतिम साँसें चली गई थीं। अब बचा था तो सिर्फ़ प्यार और माफ़ी

सनी ने धीरे से हाथ बढ़ाया और रुमाल उठा लिया।

“ईशा,” सनी ने पहली बार, प्यार भरी आवाज़ में अपनी छोटी बहन को पुकारा। “हम जानते हैं। पापा हमसे भी यही चाहते थे। माँ का दर्द… वह हमेशा हमारे साथ रहेगा। पर अब, कोई दीवार नहीं रहेगी।”

“मैं, बॉबी और हमारी बहनें… हम सब तुम्हारे और अहाना के साथ हैं। आख़िरी रस्मों में जो हुआ, मैं उसके लिए… मैं माफ़ी नहीं माँगूँगा, पर मैं तुम्हें सम्मान दूँगा। क्योंकि तुम मेरी बहन हो।”

यह ‘माफ़ी’ नहीं थी, बल्कि सम्मान का एक मौन वादा था। सनी देओल ने यह साबित कर दिया कि एक बेटे का बड़प्पन, बरसों के दर्द से भी बड़ा होता है। उन्होंने अपने पिता के अंतिम आदेश का पालन किया।

प्रकरण 10: टूटी हुई दीवारों का जश्न

 

सनी देओल ने तुरंत बॉबी देओल को फ़ोन किया और उन्हें पूरी बात बताई। बॉबी भी भावुक हो गए और उन्होंने ईशा को गले लगाया।

धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई में हुई नाइंसाफ़ी का दर्द अब धीरे-धीरे कम हो रहा था। हेमा मालिनी को जब इस मुलाक़ात के बारे में पता चला, तो उन्होंने अपनी बेटियों को गले लगा लिया।

यह सिर्फ़ एक परिवार का मिलन नहीं था। यह उस आख़िरी जीत का जश्न था जो धर्मेंद्र जी ने अपनी मृत्यु के बाद हासिल की थी। उन्होंने अपनी बेटियों को उनके भाइयों का प्यार और सम्मान दिलवा दिया था।

हेमा मालिनी ने चुपचाप अपनी कार सलमान खान के घर की तरफ़ मोड़ी। उन्हें पता था कि इस शांति के पीछे एक अदृश्य पुल था, जिसे उनके पति ने बनाने की कोशिश की, सलमान खान ने मज़बूत किया, और ईशा देओल ने पार किया।

धर्मेंद्र जी की अंतिम विदाई में हुई ‘नाइंसाफ़ी’ अब एक भावनात्मक सच में बदल गई थी: कि कभी-कभी, सम्मान के लिए दूरी ज़रूरी होती है, पर प्यार और एकता हमेशा अंतिम सच्चाई होती है।

अब देओल परिवार के पुरुष और हेमा मालिनी की बेटियाँ एक साथ आगे के रास्ते पर चल पड़े थे। दीवारें टूट चुकी थीं।

(यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है।)