कूड़ा बीनने वाले बच्चे ने कहा – ‘मैडम, आप गलत पढ़ा रही हैं’… और अगले पल जो हुआ, सब हैरान रह गए

दीवार के उस पार – रामू की कहानी
भाग 1: सपनों की दीवार
कभी-कभी जिंदगी बच्चों के हाथों में खिलौने नहीं देती, बस एक फटा हुआ बोरा थमा देती है। शिवनगर की गलियों में एक ऐसा ही बच्चा था – रामू।
हर सुबह वो कूड़े के ढेर में रोटी ढूंढता, फटे कपड़े, टूटी चप्पलें, चेहरे पर मिट्टी, लेकिन आंखों में अजीब सी चमक।
पिता कहीं खो गए, मां बीमार और मजबूर। रामू ने अपनी उम्र से पहले जिम्मेदारी सीख ली थी।
हर सुबह रामू शिवनगर की सबसे बड़ी दीवार के पास रुकता – उस दीवार के पार था ज्ञानदीप पब्लिक स्कूल।
वो दीवार के नीचे की दरार से झांकता, कान लगा देता और अंदर से आती किताबों, टीचर की आवाजें, बच्चों की हंसी सुनता।
धीरे-धीरे वो सुन-सुनकर सब याद करने लगा – हिंदी की कविताएं, अंग्रेजी के शब्द, कबीर के दोहे।
भाग 2: दीवार के बाहर का सपना
एक दिन टीचर पढ़ा रही थी – “उत्तर प्रदेश की राजधानी इलाहाबाद है।”
रामू का माथा सिकुड़ गया, उसने कई बार अखबार में पढ़ा था – राजधानी लखनऊ है।
हिचकिचाते हुए दीवार के बाहर से बोला – “मैडम, आप गलत पढ़ा रही हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है।”
टीचर बाहर आई, रामू को देखा – गंदे कपड़े, हाथों में मिट्टी, आंखों में डर और सच्चाई।
“तुम्हें कैसे पता?”
“मैं अखबार में पढ़ा था, जो कूड़े से उठा लाया था।”
टीचर की आंखें भर आईं।
“अंदर आओ।”
रामू क्लास में आया, टीचर ने सवाल पूछा – “भारत की राजधानी?”
रामू बोला – “नई दिल्ली।”
पूरी क्लास तालियों से गूंज उठी।
रामू मुस्कुराया, आंखों से आंसू बह निकले।
टीचर ने कहा – “बस्ता हम देंगे, किताबें भी। बस तुम रोज आना।”
भाग 3: संघर्ष और उम्मीद
अगले दिन रामू पहली बार स्कूल के गेट के अंदर गया – हाथ में पुराना टिफिन, टीचर की दी हुई फटी सी बस्ता, आंखों में चमक।
कुछ बच्चे मुस्कुराए, कुछ कानाफूसी करने लगे – “यह तो वही कूड़ा बिनने वाला है।”
रामू ने सुना, पर कुछ कहा नहीं। सिर झुकाया और किताब में आंखें गड़ा ली।
लंच टाइम में रामू ने सूखी रोटी निकाली, सामने वाले बच्चे बोले – “उफ कैसी बदबू है, दूर जाकर खा।”
रामू का दिल कांप गया, वो क्लास के बाहर दीवार के नीचे बैठ गया।
टीचर आई – “रामू, तुम यहां क्यों बैठे हो?”
रामू बोला – “मैं पढ़ना चाहता हूं, पर सब कहते हैं मैं गंदा हूं।”
टीचर ने सिर सहलाया – “कभी किसी की बातों से खुद को छोटा मत समझना।
जिस बच्चे के पास चाहत है, वह सबसे बड़ा होता है।”
भाग 4: दीवार के पार की उड़ान
रामू अब किसी की बातों से नहीं टूटता था।
टीचर ने टेस्ट लिया, सबसे पहले रामू ने हाथ उठाया – कबीर का दोहा और उसका अर्थ बताया।
क्लास चुप थी, टीचर की आंखों में आंसू थे, पूरी क्लास ने ताली बजाई।
धीरे-धीरे रामू सबका ध्यान खींचने लगा।
हर सवाल का जवाब देने लगा, टीचर रोज क्लास के बाद उसे पढ़ातीं।
फिर स्कूल में वार्षिक समारोह आया।
टीचर बोली – “इस बार रामू कविता सुनाएगा।”
रामू ने मां को बताया – “मां, मैं स्कूल में कविता बोलने वाला हूं।”
मां बोली – “तू पहले ही मेरा गर्व है, अब दुनिया भी देखेगी तेरा उजाला।”
समारोह के दिन रामू ने स्कूल की यूनिफार्म पहनी, स्टेज पर पहुंचा – हाथ कांप रहे थे, दिल कह रहा था – आज दीवार टूटने वाली है।
माइक पर बोला – “मेरा नाम रामू है, मैं पहले स्कूल के बाहर दीवार के पास बैठता था, आज उसी स्कूल के मंच पर बोल रहा हूं।”
वही दोहा सुनाया – “बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलिया कोई।”
पूरे स्कूल ने खड़े होकर तालियां बजाईं।
रामू के लिए अब वह दीवार टूट चुकी थी।
भाग 5: सपना जो दीवार के पार गया
साल बीत गए।
शिवनगर के उस छोटे स्कूल की दीवार अब पुरानी पड़ चुकी थी, लेकिन उस पार एक नया सपना उगा था – रामू का सपना।
वो बच्चा, जो कभी कूड़ा बीनता था, अब शिक्षक बन चुका था।
गरीब बच्चों को पढ़ाता, उन बच्चों को जिनकी कहानियां कभी उसके जैसी थी।
मां अब बूढ़ी थी, लेकिन जब कोई पूछता – “अम्मा, आपका बेटा क्या करता है?”
वो मुस्कुरा कर कहती – “वो बच्चों को सपने सिखाता है।”
एक दिन रामू को ज्ञानदीप स्कूल से मुख्य अतिथि बनने का न्योता मिला।
समारोह के दिन स्कूल के गेट पर फूलों की माला लिए बच्चे खड़े थे।
रामू ने गेट के अंदर कदम रखा, भीतर जाने से डर नहीं था, अभिमान था।
टीचर नीलिमा मैडम ने रामू को देखा – “मैं जानती थी, तुम एक दिन जरूर लौटोगे।”
स्टेज पर प्रिंसिपल ने कहा – “आज हमारे बीच वह शख्स है, जो कभी इस स्कूल के बाहर दीवार के पास बैठा करता था।
आज उन्हीं दीवारों ने उसके नाम की मिसाल बंधी है।”
रामू बोला – “कभी मैं इस स्कूल की दीवार के बाहर बैठता था,
आज उसी स्कूल के मंच पर खड़ा हूं।
शायद यही असली पढ़ाई है कि दीवारें गिरा दो और दिलों तक पहुंचो।”
वही दोहा दोहराया – “बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलिया कोई।”
पूरा हाल खामोश, फिर तालियां गूंज उठीं।
रामू मुस्कुरा रहा था – अब कोई दीवार नहीं बची थी।
रामू ने पहली कतार में बैठे छोटे बच्चों से कहा –
“तुम्हें किसी दीवार की जरूरत नहीं, बस अपने अंदर भरोसा रखो, जिंदगी बदल जाएगी।”
सीख:
दीवारें किताबों में नहीं, दिलों में होती हैं।
अगर चाहत और मेहनत हो, तो हर दीवार टूट सकती है।
रिश्ते, सपने और सफलता – सब दिल से शुरू होते हैं।
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मिलते हैं अगली दिल छू लेने वाली कहानी के साथ।
जय हिंद।
समाप्त
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