टीचर पति के सामने झुक गई तलाकशुदा IAS पत्नी… वजह जानकर हर कोई हैरान रह गया…

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उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में एक सरकारी स्कूल का साधारण शिक्षक मनोज कुमार रहता था। उसकी सबसे बड़ी पूंजी थी—सच्चाई, सादगी और एक शांत स्वभाव। मनोज का जीवन बहुत ही सरल था, लेकिन उसकी सोच बहुत बड़ी थी। वह मानता था कि शिक्षा से ही समाज बदल सकता है।

इसी जिले में एक लड़की थी—आराध्या। बड़े सपने वाली, मेहनती, और जिद्दी। उसकी आंखों में यूपीएससी पास करने और IAS बनने का सपना था। आराध्या की शादी मनोज से हुई। उसके माता-पिता को लगा कि मनोज जैसा टीचर पति उनकी बेटी के सपनों को कभी रोक नहीं सकता। शादी के बाद मनोज ने खुद को पति से ज्यादा एक दोस्त और साथी साबित किया।

वह सुबह चाय बनाता, आराध्या को पढ़ने बैठाता, घर का सारा काम करता ताकि आराध्या का ध्यान कभी भटके नहीं। मनोज हर रोज कहता, “आरू, तुम IAS बनोगी। मैं तुम्हारे नाम से जाना जाऊंगा।” आराध्या हंसकर कहती, “मनोज, तुम्हारी वजह से ही बनूंगी।”

फिर आया इंटरव्यू का दिन। आराध्या ने पूरी तैयारी से हर सवाल का जवाब दिया। मनोज बाहर बैठा, उसकी सफलता की दुआ कर रहा था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। रिजल्ट आया, आराध्या फेल हो गई। उसकी आंखों में चमक की जगह धुंधलापन उतर आया।

समाज के ताने उसके दिल में जहर की तरह जमने लगे। “शादी कर ली, दिमाग कहां लगेगा? पति टीचर है, किस्मत भी वही की होगी।” जब इंसान का मन टूटता है, तो वह सबसे पहले अपने सबसे करीब वाले को दोष देता है। आराध्या बदलने लगी। मनोज की हर बात उसे चुभने लगी।

कभी कहती, “तुम मनहूस हो मनोज। तुमसे शादी करके ही मेरा ध्यान भटका।” कभी कहती, “अगर तुम मेरे सपनों का रास्ता नहीं बन सके तो कम से कम बाधा भी मत बनो।” मनोज हर बार चुप रहता। वह जानता था कि यह उसकी पत्नी नहीं बोल रही, यह उसकी असफलता का दर्द बोल रहा है।

लेकिन दर्द भी एक हद तक सह जाता है। एक दिन आराध्या ने साफ कहा, “मैं तलाक चाहती हूं। मुझे अपनी जिंदगी दोबारा शुरू करनी है।” मनोज ने उसे बहुत देर तक देखा। आंखों में आंसू थे, लेकिन होठों पर सिर्फ एक वाक्य, “खुश रहना, यही मेरी दुआ है तुम्हारे लिए।”

तलाक हो गया। आराध्या शहर चली गई। मनोज अपनी टूटी दुनिया में सिर्फ एक बात समझता रहा—प्यार और त्याग में कभी शोर नहीं होता, बस दर्द की धीमी गूंज होती है।

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तीन साल बाद वही आराध्या IAS बन गई। किस्मत को देखिए, उसकी पहली पोस्टिंग उसी जिले में हुई जहां मनोज सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाता था। आराध्या नई-नई IAS के रूप में जिले में पहुंची। चेहरे पर आत्मविश्वास, लेकिन दिल के किसी कोने में मनोज नाम का एक धब्बा था, जिसे वह भूलना चाहती थी, पर मिटा नहीं पा रही थी।

जिला अधिकारी ने उसे सरकारी स्कूलों में शिक्षा सुधार अभियान की जिम्मेदारी दी। अभियान का पहला दौरा मनोज के स्कूल में होना था। जब गाड़ी स्कूल के गेट पर रुकी, बच्चे फुसफुसाने लगे, “नई IAS मैडम आई हैं, बहुत सख्त हैं।”

मनोज ब्लैक बोर्ड पर गणित समझा रहा था। बच्चे उसकी बातों को ऐसे सुन रहे थे, जैसे कोई पिता अपने बच्चों को जीवन के सबक दे रहा हो। “कौन सा भाग यहां कठिन लग रहा है?” मनोज ने एक बच्चे से पूछा। “सर, यह वाला,” बच्चे ने डरते हुए कहा। मनोज मुस्कुराया, “डर नहीं, समझो। गणित नहीं, कोई भी मुश्किल धीरे-धीरे आसान होती है।”

तभी दरवाजे पर आईएएस का बैज, सफेद साड़ी और तीन साल पहले छोड़ी गई पत्नी आराध्या खड़ी थी। एक पल को मनोज पत्थर सा हो गया। चेहरा सख्त नहीं हुआ, बस शांत हो गया। आराध्या ने कागजों में देखकर कहा, “आप मनोज कुमार?” स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक। मनोज ने वही पुरानी विनम्र आवाज में कहा, “जी मैडम।”

निरीक्षण शुरू हुआ। आराध्या हर फाइल, रजिस्टर, नोटबुक देख रही थी। लेकिन उसका ध्यान फाइलों से ज्यादा मनोज के स्वभाव पर था। कितनी सहजता से वो बच्चों को संभाल रहा था। कितने प्यार से पढ़ा रहा था। एक बच्चे ने कहा, “मैडम, मनोज सर हमारे हीरो हैं। अगर वह ना होते तो हम पढ़ ही नहीं पाते।”

जांच के अंत में आराध्या ने पूछा, “स्कूल का स्टाफ कम है, सुविधाएं भी खराब हैं, फिर भी आप शिकायत क्यों नहीं करते?” मनोज ने धीरे से कहा, “मैडम, शिकायत करने से समय जाता है, बच्चों को पढ़ाने से भविष्य बनता है।”

इस एक वाक्य ने आराध्या के अंदर कुछ तोड़ दिया। वह बाहर चली गई। पर मनोज को पढ़ाते देख उसके मन में एक आवाज गूंज रही थी, “क्या मैंने इसी आदमी को मनहूस कहा था?”

रात को IAS बंगले में बैठी आराध्या देर तक सोचती रही। बाहर से वह कड़क अफसर थी, लेकिन भीतर एक टूटी हुई इंसान बनी बैठी थी। शायद पहली बार उसका अहंकार उसकी सफलता से बड़ा नहीं था। वो खुद से कहने लगी, “जिस आदमी ने मेरी हर सुबह संभाली, मैंने उसी को मनहूस कह दिया।”

कुछ दिनों बाद जिले में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक सम्मान का कार्यक्रम था। नई IAS मैडम को निर्णय लेना था कि कौन शिक्षक सम्मान के योग्य है। दर्जनों नाम थे, लेकिन आराध्या की आंखें बस एक नाम पर अटक गई—मनोज कुमार।

उस रात आराध्या देर तक निर्णय नहीं ले पा रही थी। मनोज को सम्मान देना केवल एक पुरस्कार नहीं था, यह मानना था कि वह गलत थी। लेकिन सच से कब तक भागा जा सकता है? उसने फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए।

कार्यक्रम का दिन आ गया। मंच पर आराध्या ने ट्रॉफी उठाई। उसकी नजर पहली बार मनोज की आंखों से मिली। वही आंखें जो कभी उसे सुकून देती थी, अब शांत थी। उसने ट्रॉफी मनोज को दी। मनोज ने धीरे से कहा, “धन्यवाद मैडम।” यह मैडम उसे भीतर तक चीर गया। उसने चाहा, मनोज एक बार कह दे—आरू। लेकिन अब यह संभव नहीं था।

मनोज ने भाषण में कहा, “शिक्षा सम्मान से नहीं, विश्वास से चलती है। अगर एक शिक्षक बच्चों पर भरोसा कर ले तो बच्चे अपना भविष्य खुद बना लेते हैं। मैं अपने छात्रों का आभारी हूं, क्योंकि उन्होंने मुझे शिक्षक नहीं, अभिभावक बनाया है।”

कार्यक्रम के बाद आराध्या मंच के पीछे गई। मनोज अपनी फाइलें समेट रहे थे। आराध्या ने धीमे से कहा, “मनोज, एक बात कर सकती हूं?” मनोज मुड़े, “जी मैडम।” आराध्या को यह मैडम एक दीवार की तरह लगा। वह बोली, “मनोज, मैं गलत थी। मैंने तुम्हें मनहूस कहा, तुम्हें छोड़ दिया और तुमने कभी गुस्सा तक नहीं किया।”

मनोज ने हल्की मुस्कान दी, “असफलता किसी को भी कड़वा बना सकती है। आप उस समय बहुत टूट चुकी थी। मैं कैसे आप पर गुस्सा हो सकता था?”

आराध्या फफक पड़ी, “तुम्हें तो मुझसे नफरत होनी चाहिए थी।” मनोज ने सिर हिलाया, “नफरत बहुत भारी बोझ होता है, आराध्या। और मैं इतना मजबूत कभी था ही नहीं कि नफरत उठा सकूं। मैंने बस जिंदगी को आगे बढ़ जाने दिया।”

यह पहली बार था जब उसने मैडम नहीं, आराध्या कहा। आराध्या ने धीमी आवाज में कहा, “क्या हमारे बीच कुछ भी नहीं बचा?” मनोज ने गहरी सांस ली, “कुछ भी नहीं यह कहना ठीक नहीं होगा। हमारे बीच एक समय था, प्यार था, सपने थे। लेकिन अब जिंदगी हमें अलग राहों पर ले आई है।”

आराध्या ने मनोज का हाथ पकड़ लिया, “तो फिर मिलकर एक नई दुनिया बनाते हैं, मनोज। सरल भी, सुंदर भी और सच्ची भी।”

उसी समय बाहर से एक बच्चा दौड़ता हुआ आया, “सर, ट्रांसफर कैंसिल हो गया। ऊपर से नया आदेश आया है। आपको यहीं रहना है।”

मनोज ने कागज लिया, आदेश में लिखा था—शिक्षण कार्य में उत्कृष्ट योगदान के कारण श्री मनोज कुमार का तबादला स्थगित किया जाता है।

आराध्या मुस्कुराई, “मनोज, क्या हम फिर से एक शुरुआत कर सकते हैं?” इस बार मनोज ने मैडम नहीं कहा। उसने धीरे से आराध्या का हाथ थाम लिया और बोला, “हां आरू, हम एक नई शुरुआत करेंगे।”

कुछ महीनों बाद दोनों की दोबारा शादी हुई। बहुत सादगी भरी, लेकिन बेहद खूबसूरत। एक साल बाद उनके घर एक बेटी हुई। मनोज उसे गोद में लेकर कहता, “तुम्हारी मां IAS है, लेकिन तुम्हारे पिता तुम्हारा पहला विद्यार्थी भी है।”

आज मनोज बच्चों को पढ़ाता है, आराध्या जिले को संभालती है और शाम को दोनों अपनी बेटी के साथ छत पर बैठकर चाय पीते हैं। किस्मत ने उन्हें दूर कर दिया था, लेकिन सच्चे प्यार ने फिर उन्हें मिला दिया।

समाप्त