ठेले वाला रोज़ एक भूखे बच्चे को मुफ्त खाना खिलाता रहा,सालों बाद बच्चे ने जो किया उसने सबको रुला दिया

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ठेले वाला और भूखा बच्चा: एक दिल छू लेने वाली कहानी

एक गर्मी की दोपहरी थी, जब सूरज अपनी पूरी ताकत से चमक रहा था। सड़कें धूप से तप रही थीं और चारों ओर धूल उड़ रही थी। इस भीड़भाड़ में एक गरीब ठेले वाला, रामलाल, रोज़ अपने ठेले पर गरमागरम छोले, कुल्चे, समोसे और पराठे बेचने के लिए खड़ा होता था। उसकी उम्र 50 के पार थी, चेहरे पर गहरी झुर्रियां थीं, और बदन पर पुरानी, मैली सी बनियान थी। लेकिन उसकी आंखों में इंसानियत और दया की चमक थी।

हर सुबह, रामलाल अपनी पुरानी साइकिल पर ठेला खींचकर गली के मोड़ पर आता और ठेले पर छोटी सी डिबरी जलाकर तवे पर गर्म पराठे सेंकने लगता। एक दिन की सुबह, जब ठेले से उठती गरमागरम समोसे की खुशबू चारों ओर फैल रही थी, तभी एक छोटा बच्चा वहां आकर खड़ा हो गया। बच्चा दुबला-पतला था, उसके पैरों में चप्पल तक नहीं थी, और कपड़े फटे हुए थे। उसकी आंखों में भूख साफ दिख रही थी।

बिना कुछ कहे, वह ठेले पर रखे समोसों को घूर रहा था। रामलाल ने उसे देखा और मुस्कुराकर कहा, “क्या हुआ बेटा? भूख लगी है क्या?” बच्चा झेप गया और धीरे से बोला, “हां, मगर मेरे पास पैसे नहीं हैं।”

रामलाल ने बिना एक पल गवाए एक प्लेट में दो समोसे रखे और उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोला, “ले बेटा, पहले खा ले, पैसे की चिंता मत कर।” बच्चा पीछे हटते हुए बोला, “नहीं अंकल, मैं कैसे खा सकता हूं बिना पैसे?”

रामलाल ने नरम आवाज में कहा, “बेटा, भूख और पैसों का कोई हिसाब नहीं होता। पहले पेट भर ले, बाकी भगवान देख लेगा।” बच्चे की आंखों में आंसू आ गए। उसने कांपते हाथों से समोसा उठाया और धीरे-धीरे खाने लगा। हर कौर उसके चेहरे पर संतोष की लकीरें खींच रहा था।

यहीं से शुरू हुआ रिश्ता। एक गरीब ठेले वाले और एक भूखे बच्चे के बीच का रिश्ता। रिश्ता भूख और दया से जन्मा। लेकिन वक्त के साथ वो रिश्ता गहरा होता चला गया। अब यह सिलसिला रोज का बन गया। हर सुबह बच्चा आता और रामलाल उसे खाना खिलाता। कभी छोले कुलचे, कभी पराठा, कभी समोसा। रामलाल खुद कभी कम खाता, कभी भूखा भी रह जाता, लेकिन उस बच्चे का पेट भरना वह कभी नहीं भूलता।

एक दिन बच्चे ने हिम्मत करके कहा, “अंकल, मैं भी पढ़ना चाहता हूं। लेकिन मेरे पास स्कूल जाने के पैसे नहीं हैं।” रामलाल ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “पढ़ना जरूरी है बेटा। पढ़ाई ही सबसे बड़ी दौलत है। डर मत। भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। तेरी पढ़ाई का रास्ता जरूर खुलेगा।” बच्चे की आंखों में हल्की मुस्कान आ गई।

साल गुजरते गए। बच्चा बड़ा होता गया। लेकिन एक दिन अचानक वो बच्चा ठेले पर आना बंद हो गया। रामलाल हर रोज इंतजार करता। दूर तक आंखें घुमाता। सोचता कहीं कुछ हो तो नहीं गया, कहीं शहर छोड़कर चला तो नहीं गया। लेकिन कोई जवाब नहीं था। वक्त गुजरता रहा। अब रामलाल बूढ़ा हो चुका था। बाल सफेद, शरीर कमजोर, लेकिन ठेला अब भी लगाता था। क्योंकि उसी ठेले से उसका जीवन चलता था।

फिर एक शाम, सूरज ढल रहा था। सड़क पर हल्की चहल-पहल थी। तभी एक बड़ी गाड़ी आकर उसके ठेले के पास रुकी। गाड़ी से एक नौजवान उतरा। चेहरे पर आत्मविश्वास, आंखों में चमक, कपड़े साफ-सुथरे। वह सीधा रामलाल के ठेले पर आया और मुस्कुरा कर बोला, “रामलाल अंकल, पहचान पाए?”

रामलाल ने आंखें मिचमिचा कर देखा। कांपती आवाज में बोला, “तू कौन है बेटा?” नौजवान हंसते हुए बोला, “अंकल, मैं वही बच्चा हूं जो रोज आपके ठेले से मुफ्त में खाना खाता था।” रामलाल जैसे ठिठक गया। उसकी आंखों में आंसू भर आए। “सच कह रहा है तू? तू वही बच्चा है?”

नौजवान ने गहरी सांस ली और भावुक होकर बोला, “अंकल, सच कहूं तो उस वक्त मेरी हालत बहुत खराब थी। लेकिन आपके समोसे ने, आपकी दया ने मुझे जीने की ताकत दी। आपसे मिला साहस ही मुझे आगे ले गया। एक दिन मेरी हालत देखकर एक स्कूल के मास्टर साहब ने मुझे बुलाया। उन्होंने कहा कि अगर मैं मन लगाकर पढ़ाई करूं तो वह मेरी फीस खुद भरेंगे।”

शुरुआती सालों तक उन्होंने मेरी पढ़ाई का खर्च उठाया। बाद में जब मैंने अच्छे अंक लाने शुरू किए, तो मुझे सरकारी स्कॉलरशिप मिलने लगी। मैंने रात-रात भर दीपक के नीचे बैठकर पढ़ाई की। दिन में काम किया, शाम को पढ़ाई की। पढ़ाई आसान नहीं थी। लेकिन आपके दिए हर निवाले ने मुझे हिम्मत दी कि मैं हार न मानूं।

और अंकल, आज उसी मेहनत और उन्हीं दुआओं की बदौलत मैं इस शहर का डॉक्टर बन गया हूं।” रामलाल का गला भर आया। उसकी आंखों से आंसू थम ही नहीं रहे थे। कांपती आवाज में बोला, “सच में बेटा, तू डॉक्टर बन गया।”

युवक ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां अंकल, और आज मैं यहां सिर्फ एक वजह से आया हूं। अब आपकी बारी है। अब आपको ठेला लगाने की जरूरत नहीं। आपने मुझे संभाला। अब मेरी जिम्मेदारी है कि मैं आपको संभालूं।”

इतना कहकर युवक ने अपनी गाड़ी से एक पैकेट निकाला। रामलाल के हाथ में रखते हुए बोला, “इसमें आपके लिए नए कपड़े हैं, थोड़े पैसे हैं और एक छोटे से घर की चाबी है। अब आपको इन सड़कों पर धूप बारिश में ठेला खींचने की जरूरत नहीं। अब आप मेरे साथ रहेंगे, मेरे अपने की तरह।”

रामलाल सुबकते हुए बोला, “बेटा, मैंने तो बस भूख से तुझे बचाया था। मुझे नहीं पता था कि भगवान तुझे इतना बड़ा इंसान बना देगा।” युवक ने उसका हाथ पकड़कर कहा, “अंकल, आप मेरे लिए भगवान से कम नहीं हैं। आपकी दया ने मुझे जीना सिखाया। अब मेरी जिंदगी, मेरी सफलता सब आपकी है।”

वो गरीब ठेले वाला जिसने कभी अपनी भूख से ज्यादा किसी और की भूख को महत्व दिया, वही उसकी सबसे बड़ी पूंजी बन गई। जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है कि अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते। वक्त जरूर बदलता है, लेकिन नेक काम हमें हमेशा लौट कर आते हैं।

उस दिन से रामलाल ने ठेला लगाना छोड़ दिया। वह अपने नए घर में आराम से रहने लगा और हर शाम वह उस युवक के साथ बैठकर यही सोचता कि भूख से शुरू हुआ रिश्ता किस्मत बदल देने वाला इतिहास बन सकता है।

यह कहानी सिर्फ एक ठेले वाले और एक बच्चे की नहीं है, यह कहानी हम सबकी है। एक छोटा सा नेक काम किसी की पूरी जिंदगी बदल सकता है। इसलिए अगर मौका मिले तो किसी भूखे को खाना खिलाना मत भूलना। क्योंकि वही भूखा बच्चा कल का सबसे बड़ा इंसान बन सकता है। यही जिंदगी का सच है।

अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते। एक छोटा सा नेक काम कल किसी के लिए रोशनी बन सकता है। अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो इसे लाइक कीजिए। अपने दोस्तों और परिवार तक शेयर कीजिए और ऐसी ही कहानियां सुनने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना मत भूलिए।

हम फिर मिलेंगे एक और दिल छू लेने वाली कहानी के साथ। तब तक याद रखिए, रामलाल ठेले वाले की तरह इंसानियत ही सबसे बड़ी दौलत है।

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