प्लेटफार्म नंबर तीन की कविता – एक सशक्त महिला की कहानी

दिल्ली के भीड़ भरे रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नंबर तीन हर सुबह गहमागहमी से भर जाता है। यात्रियों की आवाजाही, कुलियों की पुकार, और चाय-समोसे की खुशबू से माहौल जीवंत रहता है। इसी प्लेटफार्म के एक कोने में, एक साधारण-सी महिला कविता अपने छोटे से चाय के ठेले पर ग्राहकों को चाय के गिलास थमा रही थी। उसका चेहरा थकान से भरा था, लेकिन उसकी आंखों में एक अलग ही चमक थी—जैसे हर दिन की जद्दोजहद को उसने अपनी ताकत बना लिया हो।

कविता का जीवन आसान नहीं था। सात साल पहले तक वह एक साधारण गृहणी थी। उसका पति, रोहन, एक महत्वाकांक्षी युवक था, जो आईपीएस बनने का सपना देखता था। शादी के शुरुआती सालों में दोनों के बीच प्यार था, लेकिन वक्त के साथ-साथ रोहन की महत्वाकांक्षा ने रिश्ते में दरार डाल दी। एक दिन, बिना किसी सूचना के रोहन घर छोड़कर चला गया—कविता को यह कहकर कि वह अपनी और उसकी बेहतर जिंदगी के लिए मेहनत करने जा रहा है। कविता के लिए यह सब किसी तूफान से कम नहीं था। अकेली, असहाय और समाज के तानों के बीच उसने अपना आत्मसम्मान बचाए रखा। नौकरी की तलाश में दर-दर भटकी, लेकिन जब कोई रास्ता न मिला तो प्लेटफार्म पर चाय का ठेला लगा लिया।

कविता के ठेले पर रोज़ सैकड़ों यात्री आते, कोई जल्दी में होता, कोई उदास, कोई मुस्कुराता। लेकिन किसी को भी यह नहीं पता था कि चाय परोसने वाली यह महिला किस दर्द और संघर्ष से गुज़र रही है। कविता ने अपने जीवन को नए सिरे से जीना शुरू किया। उसने हर दिन खुद को मजबूत किया, अकेलेपन को अपनी ताकत बना लिया।

एक दिन, प्लेटफार्म पर एक लंबी ट्रेन आकर रुकी। उसमें से एक लंबा-चौड़ा आदमी उतरा—चेहरे पर आत्मविश्वास, चाल में तेजी, और आंखों में सख्ती। कंधे पर बैग लटकाए वह सीधे कविता के ठेले तक पहुंचा। कविता ने उसकी ओर देखा, लेकिन चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। उसने गिलास में चाय डाली, “लो जी, चाय पी लो, दस रुपये का गिलास है।”

आदमी ने गिलास लिया, उसकी निगाहें कविता पर टिकी थीं। एक घूंट पीने के बाद वह धीरे से बोला, “कविता, मैं हूं… रोहन। तुम्हारा पति।”

कविता ने बिना पलक झपकाए उसकी आंखों में देखा, “गल पहचान है आपकी। मेरा कोई पति नहीं है। और अगर होता भी तो इस तरह बीच स्टेशन पर आकर खुद को साबित नहीं करता।”

रोहन ने गिलास मेज पर रखा और थोड़ी ऊंची आवाज़ में कहा, “तुम मुझे पहचानने से इंकार कर रही हो? यह नाटक बंद करो कविता। मैं सात साल बाद लौटा हूं, आईपीएस बनकर तुम्हारे लिए।”

कविता ने ज़ोर से जवाब दिया, “सात साल! सात साल तक तुम्हारा कोई पता नहीं था। ना फोन, ना चिट्ठी। तुम्हें मेरी याद तब आई जब तुमने वर्दी पहन ली। और सुनो, यहां भीड़ है, बेकार का तमाशा मत बनाओ।”

रोहन का चेहरा लाल हो गया। उसने गुस्से में पास खड़े एक लड़के को हटाया और कहा, “तुम मेरे साथ चलो। अभी बात करनी है।”

कविता ने हाथ झटकते हुए कहा, “मुझे कहीं नहीं जाना। मेरा काम है और काम के वक्त फालतू बातें करने का समय नहीं।”

रोहन ने उसकी कलाई पकड़ ली और भीड़ से दूर खींचते हुए प्लेटफार्म के किनारे बने पुराने वेटिंग रूम में ले गया। दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। गुस्से में बोला, “अब तो कोई तमाशा नहीं है। बोलो, तुम यह इंकार क्यों कर रही हो? मैं तुम्हारा पति हूं।”

कविता ने आंखों में सीधी चुनौती के साथ जवाब दिया, “पति? तुम्हारे पति होने का सबूत क्या है? सात साल पहले तुम बिना कुछ कहे चले गए थे। तब भूखी-प्यासी मैं यहां चाय बेच रही थी। तुम्हें किसी दिन याद आया कि मैं कहां हूं, कैसी हूं? और अब अचानक लौट कर कहते हो कि साथ रहना होगा? नहीं रोहन, मेरे लिए तुम कुछ भी नहीं हो।”

रोहन ने दांत भींचते हुए कहा, “तुम्हें मेरी मेहनत की कीमत नहीं पता। मैंने अपनी जान दांव पर लगाई। ट्रेनिंग, पोस्टिंग सब झेला ताकि तुम्हें बेहतर जिंदगी दे सकूं। और तुम कह रही हो कि मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं हूं?”

कविता ने ताना मारते हुए कहा, “बेहतर जिंदगी? वो जिंदगी जिसमें सात साल तक पत्नी का कोई अता-पता ना हो? तुम्हारे लिए यह सिर्फ अहंकार की जीत है।”

रोहन बोला, “अगर तुमने इस जिद को नहीं छोड़ा तो यह मत सोचो कि मैं हार मान लूंगा। मैं तुम्हें जब तक सच्चाई नहीं मानूंगी, तब तक चैन से नहीं बैठूंगा।”

कविता ने बिना डरे जवाब दिया, “तो कोशिश कर लो रोहन। लेकिन याद रखना, मैं अब वही औरत नहीं हूं जो तुम्हें विदा करने स्टेशन आई थी। अब मैं अपने दम पर खड़ी हूं और किसी की वर्दी के आगे झुकने वाली नहीं।”

इसी बीच वेटिंग रूम का दरवाजा जोर से खुला। वहां तैनात रेलवे पुलिस का एक कांस्टेबल अंदर आया। उसने रोहन और कविता को देखा, फिर थोड़ी हिचकिचाहट के साथ बोला, “साहब, यहां भीड़ इकट्ठा हो रही है। लोग कह रहे हैं कि किसी महिला को जबरदस्ती अंदर ले जाया गया है।”

रोहन ने उसे घूरते हुए कहा, “तुम्हें पता भी है तुम किससे बात कर रहे हो? मैं आईपीएस रोहन कुमार हूं।”

कांस्टेबल थोड़ा संभल गया, लेकिन तुरंत बोला, “साहब, चाहे जो हो, स्टेशन पर किसी महिला को इस तरह खींच कर लाना सही नहीं है। बाहर लोग मोबाइल से वीडियो बना रहे हैं।”

कविता ने तुरंत सबके बीच में कहा, “वीडियो बनाओ, फोटो खींचो ताकि सबको पता चले कि यह आदमी जो खुद को मेरा पति बताता है, कैसे भीड़ में मुझे खींच कर लाया और अब दबाव डाल रहा है।”

रोहन का गुस्सा और भड़क गया। उसने कांस्टेबल को बाहर जाने का इशारा किया। लेकिन कांस्टेबल ने साफ कह दिया, “साहब, मामला महिला का है। बिना स्टेशन मास्टर की अनुमति के हम दरवाजा बंद नहीं रहने देंगे।”

कविता ने अपने ठेले की ओर जाते हुए कहा, “अब मैं यहां खड़ी होकर तुम्हारे साथ बहस नहीं करूंगी। रोहन, जो करना है कानून के रास्ते से करो। मैं डरने वाली नहीं हूं।”

रोहन उसके सामने आकर रुक गया, “कानून? अच्छा तो सुन लो, मैं इस मामले को अब कानून में ही ले जाऊंगा। देखता हूं कितने दिन तुम यह नाटक करती हो।”

कविता ने सीधा जवाब दिया, “नाटक तो तुम कर रहे हो। सात साल बाद लौट कर सोच रहे हो कि तुम्हारा नाम, तुम्हारी वर्दी देखकर मैं मान जाऊंगी। लेकिन सुन लो, अब मैं अपनी जिंदगी खुद चलाती हूं और तुम्हारी बात नहीं मानूंगी।”

कविता ने अपने ठेले पर वापस जाकर चाय बनानी शुरू कर दी, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। रोहन कुछ देर वहीं खड़ा रहा। उसकी आंखों में अब गुस्से के साथ-साथ एक अलग तरह का सन्नाटा था। वह बिना कुछ बोले प्लेटफार्म से बाहर निकल गया। जाते-जाते उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला और किसी को कॉल लगाई, “हां, मैं हूं। कल सुबह स्टेशन पर आना, साथ में दो-तीन लोग और लाना। यह मामला अब यहीं खत्म नहीं होगा।”

अगले दिन सुबह स्टेशन पर माहौल सामान्य नहीं था। नौ बजे प्लेटफार्म से रोहन आता हुआ दिखाई दिया। इस बार वह अकेला नहीं था। उसके साथ दो पुलिस वाले भी थे। सभी के चेहरे पर गंभीरता थी। रोहन सीधा कविता के ठेले की तरफ बढ़ा। भीड़ तुरंत इकट्ठा हो गई।

रोहन ने ऊंची आवाज में कहा, “कविता, आज भीड़ के सामने फैसला होगा। तुम मुझे पहचानने से मना करती हो। ठीक है, लेकिन अब यह मामला सिर्फ तुम्हारा और मेरा नहीं है। यह अब कानूनी मामला है। मैं तुम्हें थाने ले जाऊंगा।”

कविता ने ठंडी आवाज में जवाब दिया, “ले जाओ। मैं किसी से नहीं डरती। लेकिन वहां भी यही कहूंगी कि तुम मेरे पति नहीं हो। और तुम हो भी तो सात साल तक गायब रहने वाले आदमी की जगह मेरी जिंदगी में अब नहीं है।”

रोहन ने पुलिस वालों को इशारा किया। उनमें से एक आगे बढ़ा और कविता से बोला, “मैडम, आपको हमारे साथ चलना होगा। स्टेशन पर हंगामा और झगड़ा करना गलत है।”

कविता ने ठेले से चाय का गिलास उठाकर जोर से मेज पर पटका, “हंगामा मैंने नहीं किया। यह आदमी कर रहा है। सात साल बाद लौट कर जबरदस्ती मुझे कि तुम मेरी पत्नी हो और अब पुलिस का इस्तेमाल कर मुझे डराना चाहता है। चलो, मैं तैयार हूं थाने जाने को। वहां सब सच सामने आएगा।”

थाने पहुंचते ही स्टेशन का यह मामला और गहरा गया। एसएचओ ने दोनों को सामने बैठाया। उसने गंभीर लहजे में पूछा, “रोहन साहब, आप कह रहे हैं कि यह आपकी पत्नी है। लेकिन यह महिला साफ इंकार कर रही है। क्या आपके पास कोई सबूत है?”

रोहन ने गुस्से में कहा, “सबूत क्या मेरा नाम, मेरा रिकॉर्ड, मेरी ट्रेनिंग, मेरी फाइल सबूत नहीं है? यह मेरी पत्नी कविता है। गांव में सब जानते हैं। शादी का प्रमाण पत्र घर में है।”

कविता ने तुरंत जवाब दिया, “शादी का प्रमाण पत्र अगर है तो लेकर आओ। अभी यहां दिखाओ। और अगर गांव में लोग जानते हैं तो बुलाओ उन्हें। मैं मानती हूं कि मैं शादीशुदा हूं लेकिन मेरा पति वो नहीं है। मेरा पति मुझे छोड़कर भागा नहीं था। मेरा पति वो नहीं हो सकता जो सात साल तक गायब रहे और लौट कर सिर्फ वर्दी का रब दिखाए।”

थाने का माहौल भारी हो गया। सिपाही और अफसर सब चुपचाप खड़े थे। एसएचओ ने दोनों की बातें सुनी और सख्ती से बोला, “यह मामला पति-पत्नी का विवाद है। रोहन साहब, आप आईपीएस हैं, फिर भी आपने अपने पद का दुरुपयोग किया। और कविता जी, आप भीड़ के सामने गर्म हुईं। दोनों को ही कानून मानना होगा।”

रोहन गुस्से में उठा और टेबल पर हाथ मारकर बोला, “मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि मेरी पत्नी मुझे पहचानने से इंकार करें।”

कविता गुस्से में बोली, “और मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि कोई आदमी वर्दी की आड़ लेकर मुझे गुलाम समझे। अगर तुम सच में मेरे पति हो तो कानून से साबित करो और अगर नहीं हो तो समझ लो कि स्टेशन पर चाय बेचने वाली कविता तुम्हें हर जगह चुनौती देती रहेगी।”

थाने में सन्नाटा छा गया। एसएचओ ने आदेश दिया कि दोनों पक्ष लिखित बयान दें और मामला अदालत के हवाले किया जाए। रोहन थाने से बाहर निकला। आंखों में अब गुस्से के साथ हार का दर्द भी था।

अगले दिन कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने सबूतों के आधार पर फैसला सुनाया कि रोहन और कविता कोई पति-पत्नी नहीं हैं। रोहन की पत्नी तो उसे छोड़कर चली गई थी और अब रोहन किसी और को अपनी पत्नी बता रहा है।

कविता प्लेटफार्म पर लौट आई। उसके ठेले पर ग्राहकों की भीड़ थी। अब लोग उसे और भी सम्मान से देखते थे। उसकी संघर्ष की कहानी प्लेटफार्म की दीवारों पर गूंज रही थी।

कहानी की सीखें:

    स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी ताकत है।
    रिश्तों में सम्मान और विश्वास जरूरी है, वरना रिश्ता बोझ बन जाता है।
    कानून सबके लिए बराबर है, चाहे कोई कितना भी बड़ा अफसर क्यों न हो।
    बीते हुए अतीत को जबरदस्ती वापस लाना सही नहीं।
    महिलाओं को कमजोर मत समझो, वे अपने हक के लिए लड़ना जानती हैं।

निष्कर्ष:
कविता की कहानी हर उस महिला का प्रतीक है जो संघर्ष में भी अपनी पहचान और स्वाभिमान नहीं खोती। रिश्ते, वर्दी या समाज की सोच से ऊपर उठकर वह अपने अधिकार के लिए लड़ती है। प्लेटफार्म नंबर तीन की कविता ने साबित कर दिया कि हर इंसान को अपने जीवन का फैसला खुद लेने का हक है।