SP साहब को देखकर… भीख मांगने वाले बच्चे ने कहा आप तो मेरे पापा हो, फिर जो हुआ…

सर्दियों की एक ठंडी शाम थी। डीएसपी विक्रम सिंह अपनी गाड़ी में बैठकर किसी महत्वपूर्ण बैठक के लिए जा रहे थे। सड़क पर हल्की भीड़ थी, और गाड़ी धीरे-धीरे ट्रैफिक में आगे बढ़ रही थी। अचानक, एक छोटा बच्चा, फटे पुराने कपड़े पहने और नंगे पैर, उनकी गाड़ी के पास आकर भीख मांगने लगा।

“साहब, कुछ पैसे दे दो। दो दिन से भूखा हूं,” बच्चे की आवाज में एक अजीब सी मासूमियत थी। विक्रम ने बच्चे की आवाज सुनी और गाड़ी का शीशा नीचे किया। लेकिन जैसे ही उन्होंने जेब से पैसे निकालने की कोशिश की, बच्चे ने विक्रम की आंखों में देखा और चौंकते हुए कहा, “आप… आप तो मेरे पिता हो।”

भाग 2: अतीत की यादें

विक्रम के हाथ कांप गए। बच्चे की आंखों में एक चमक थी, मानो वह वर्षों से किसी का इंतजार कर रहा हो। “क्या?” विक्रम ने बस इतना ही कहा। बच्चा अब रोने लगा, और आसपास के लोग भी रुककर देखने लगे।

“मेरा नाम सूरज है। मेरी मां ने बताया था कि मेरे पिता पुलिस में हैं। पर उन्होंने हमें छोड़ दिया था,” बच्चे ने कहा। विक्रम के दिमाग में एक झटका सा लगा। कुछ पुरानी यादें धुंधली होकर सामने आने लगीं।

“तेरी मां कौन थी?” विक्रम ने पूछा। बच्चे ने कहा, “सीमा। मां ने कहा था कि पापा बहुत बड़े अफसर हैं। वो हमें छोड़कर चले गए थे। मां ने कहा था कि एक दिन वो जरूर आएंगे। लेकिन अब वो नहीं रही।”

भाग 3: विक्रम का दर्द

विक्रम का दिल एक अजीब दर्द से भर गया। वह सोचने लगा कि उसने सीमा को क्यों छोड़ा। वह उसकी जिंदगी का पहला प्यार थी। कॉलेज के दिनों में दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई थीं। लेकिन जब उसका सिलेक्शन पुलिस सर्विस में हो गया, तो उसके परिवार ने उसे सीमा से दूर कर दिया।

सीमा गर्भवती थी, लेकिन विक्रम मजबूर था। उसने कभी मुड़कर भी नहीं देखा। अब सामने उसका बेटा खड़ा था, जो सड़कों पर भीख मांग रहा था। विक्रम ने सूरज को सीने से लगा लिया और कहा, “बेटा, मुझे माफ कर दो। मैंने बहुत बड़ी गलती की।”

भाग 4: भूख और दर्द

सूरज ने कांपती आवाज में कहा, “क्या आप मुझे छोड़कर नहीं जाएंगे?” विक्रम ने उसे कसकर गले लगाया। “नहीं, अब कभी नहीं।” लेकिन सूरज की मासूमियत ने विक्रम को और भी दुखी कर दिया।

“आपके पास पैसे हैं, लेकिन मैं जहां रहता हूं, वहां कोई नहीं है। कभी मंदिर के बाहर, कभी फुटपाथ पर। कभी-कभी भूखा भी सोना पड़ता है,” सूरज ने कहा। विक्रम का दिल बैठ गया। एक बच्चा जिसका बाप डीएसपी था, वो सड़कों पर भीख मांग रहा था।

भाग 5: मां की यादें

“जब मां बीमार थी, तब तुमने किसी से मदद नहीं मांगी?” विक्रम ने पूछा। सूरज ने कहा, “मां ने कहा था कि हमारे अपने ही हमें छोड़ गए, तो गैरों से क्या उम्मीद करें?” विक्रम को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसकी आत्मा को चीर दिया हो।

“जब भूख लगती थी, तो मां मुझे अपने हिस्से का खाना दे देती थी और खुद कई दिन भूखी रहती थी। मैं कहता था, ‘मां तुम भी खाओ,’ लेकिन वो बस इतना कहती, ‘बेटा, मां को भूख नहीं लगती।’” सूरज की बातें सुनकर विक्रम का दिल टूट गया।

भाग 6: विक्रम की प्रतिज्ञा

“बेटा, मां ने आखिरी बार कुछ कहा था?” विक्रम ने पूछा। सूरज ने कहा, “मां ने कहा था, ‘अगर कभी पापा मिले, तो उनसे कहना कि मैंने उन्हें कभी दोष नहीं दिया। बस इतना कहना कि सूरज को अकेला मत छोड़ना।’”

विक्रम का शरीर शून्य पड़ गया। उसने अपनी जिंदगी में किए गए गुनाहों का एहसास किया। “मैं तुझे तेरा हक दिलाकर रहूंगा। मैं तुझे इस दुनिया की हर खुशी दूंगा।”

भाग 7: अस्पताल की दौड़

तभी विक्रम को फोन आया कि सूरज बेहोश पड़ा है। विक्रम तुरंत अस्पताल दौड़ा। वहां पहुंचकर उसने सूरज को गोद में उठाया और डॉक्टर से कहा, “इसे बचा लीजिए।” डॉक्टर ने कहा, “बहुत देर से भूखा था। हालत नाजुक है।” विक्रम ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “मेरी जान ले लीजिए, लेकिन इसे बचा लीजिए।”

डॉक्टरों ने तुरंत खून चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू की। विक्रम ने सूरज को अपनी बाहों में पकड़ा और कहा, “सूरज, मैं तुझे बचाऊंगा। तू मुझसे दूर नहीं जाएगा।”

भाग 8: अंतिम क्षण

लेकिन सूरज की हालत बिगड़ती गई। डॉक्टर ने कहा, “बच्चा बहुत कमजोर है। अगर जल्दी कुछ नहीं किया गया तो हम इसे बचा नहीं पाएंगे।” विक्रम ने कहा, “जो भी करना पड़े कीजिए। मेरे बेटे को मत छीनिए।”

अचानक सूरज की सांसें धीमी होने लगीं। विक्रम ने डॉक्टर से कहा, “मेरा बेटा जिंदा है। वह ऐसे नहीं जा सकता!” लेकिन डॉक्टर ने सिर झुका लिया। “सॉरी। हमने पूरी कोशिश की लेकिन हम इसे बचा नहीं सके।”

विक्रम का दिल टूट गया। उसने सूरज को गोद में उठाया और फूट-फूट कर रोने लगा। “बेटा, मैंने तुझे खो दिया।”

भाग 9: सूरज की अंतिम यात्रा

विक्रम ने सूरज की चिता तैयार की। जब चिता जलने लगी, तो उसने कहा, “तू चला गया लेकिन तेरा नाम हमेशा जिंदा रहेगा। अब कोई और बच्चा भीख नहीं मांगेगा।” विक्रम ने अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ दी और बेसहारा बच्चों के लिए एक अनाथालय बनाने का फैसला किया।

भाग 10: नया जीवन

विक्रम ने “सूरज बाल सदन” नामक अनाथालय खोला। वहां हर बेसहारा बच्चे को छत, खाना और प्यार मिला। विक्रम ने अपने गुनाहों का प्रायश्चित किया और हर बच्चे के लिए एक पिता बना।

भाग 11: सूरज की यादें

सालों बीत गए, लेकिन सूरज की यादें विक्रम के दिल में जिंदा रहीं। उसने अपने बेटे को खोने का दर्द सहा, लेकिन अब वह दूसरों के लिए एक उम्मीद बन चुका था।

भाग 12: अंत की ओर

रात का समय था। विक्रम अनाथालय के एक छोटे से कमरे में बैठा था, जहां सूरज की तस्वीर दीवार पर टंगी थी। उसने कहा, “बेटा, मैंने कोशिश की कि कोई और सूरज भूखा ना सोए।”

उसकी आंखों में नमी थी। विक्रम ने सूरज की तस्वीर को अपनी हथेलियों में लेकर धीरे से कहा, “काश मैंने पहले तुझे पहचान लिया होता।”

निष्कर्ष

विक्रम ने अपने बेटे की याद में एक नया जीवन शुरू किया। वह जानता था कि सूरज अब हमेशा उसके साथ है, और वह कभी भी अकेला नहीं होगा।

Play video :