जब car शो-रूम के मालिक को गरीब समझकर निकाला बाहर… थोड़ी देर बाद उसकी असली पहचान जानकर सब दंग रह गए!
एक सुनहरे दिन की शुरुआत हुई, जब एलट ऑटो गैलेरिया का शानदार शोरूम सूरज की रोशनी में चमक रहा था। यह कोई साधारण शोरूम नहीं था; यह एक महल था जहां दुनिया की सबसे महंगी गाड़ियां बेची जाती थीं। कांच की विशाल दीवारें, इटालियन मार्बल का फर्श, और हवा में महंगी लेदर की खुशबू थी। शोरूम के बीचों-बीच एक घूमता हुआ प्लेटफार्म था, जिस पर Lamborghini सियान खड़ी थी, जिसकी कीमत 30 करोड़ थी।
सुबह के ठीक 11:00 बजे, एक बुजुर्ग आदमी ने शोरूम में कदम रखा। उसकी पगड़ी, धोती-कुर्ता और घिसी हुई जूतियों ने उसे एक साधारण व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन जैसे ही उसने शोरूम में प्रवेश किया, दरवाजे पर खड़े गार्ड ने उसे रोक दिया। “यह शोरूम है, कोई धर्मशाला नहीं। बाहर जाओ!” गार्ड ने कहा। बुजुर्ग ने शांति से कहा, “बस गाड़ी देखनी थी।” लेकिन गार्ड ने उसे धक्का देकर बाहर निकाल दिया।
बुजुर्ग ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरा दर्द था। शोरूम के कर्मचारियों, कुणाल और प्रिया ने इस तमाशे को देखा। “देखो, आज असली वीआईपी ग्राहक आए हैं,” कुणाल ने मजाक उड़ाया। प्रिया ने कहा, “इन जैसे लोगों के पास जमीन नहीं होती, सिर्फ धूल होती है।” बुजुर्ग ने उनकी बातें अनसुनी की और सीधा सियान के पास पहुंच गया।
जब उसने सियान को छूने की कोशिश की, तो कुणाल चिल्लाया, “खबरदार! यह कोई खिलौना नहीं है!” बुजुर्ग ने कहा, “यह लिथियम आयन सुपर कैपेसिटर और V12 इंजन है।” कुणाल और प्रिया हैरान रह गए। “तुम्हें यह सब कैसे पता?” प्रिया ने पूछा।
“हम बस पढ़ लेते हैं,” बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा। तभी राकेश वर्मा, शोरूम का मैनेजर, वहां आया। उसने बुजुर्ग को सिर से पांव तक देखा और कहा, “तुम्हारी औकात इस कांच के बाहर खड़े होने की भी नहीं है। गजेंद्र, इन्हें बाहर फेंको।” गार्ड ने बुजुर्ग का हाथ पकड़कर उन्हें घसीट दिया।
बुजुर्ग का पुराना चमड़े का झोला गिर गया, जिसमें से कुछ पुराने इंजीनियरिंग के ब्लूप्रिंट निकले। कुणाल ने मजाक में कहा, “क्या बाबा इन नक्शों से 30 करोड़ की गाड़ी खरीदेंगे?” बुजुर्ग की आँखों में दर्द था, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
शोरूम के एक कोने से समीर, एक नया ट्रेनी, दौड़ता हुआ आया। उसने बुजुर्ग को उठाया और कहा, “आप ठीक हैं?” लेकिन राकेश ने उसे डांटा। “समीर, तुम क्या कर रहे हो? इसे बाहर फेंको!” बुजुर्ग ने समीर को आशीर्वाद दिया और बिना कुछ कहे शोरूम से बाहर चले गए। वह चिलचिलाती धूप में फुटपाथ पर बैठ गए और शोरूम को घूरने लगे।
एक घंटा बीत गया, लेकिन बुजुर्ग वहीं बैठे रहे। राकेश ने समीर को भेजा कि वह बुजुर्ग को बाहर जाने के लिए कहे। बुजुर्ग ने कहा, “यहां से जाने का कोई जल्दी नहीं है।” उन्होंने अपने झोले से एक लिफाफा और एक बिजनेस कार्ड निकाला और समीर को दिया। “यह अपने मैनेजर को देना और कहना नीव से संदेश आया है।”
समीर ने लिफाफा राकेश को दिया। राकेश ने लिफाफा खोला और उसमें एक शेयर सर्टिफिकेट पाया। उस पर लिखा था “एलट ऑटो गैलेरिया प्राइवेट लिमिटेड, 51% ओनरशिप, भवानी सिंह शेखावत।” राकेश का चेहरा सफेद पड़ गया। “वह बुजुर्ग भवानी सिंह है!” उसने चिल्लाया।
राकेश ने तुरंत एक योजना बनाई। “हम कह देंगे कि वह सठिया गए हैं और हमें डराने आए हैं।” समीर ने यह सब सुन लिया और उसका खून खौल गया। उसने तय किया कि वह राकेश और उसके साथियों को उनके किए की सजा देगा।
अगली सुबह, बुजुर्ग फिर से शोरूम के बाहर आए, लेकिन इस बार उनके पीछे काली मर्सिडीज थी। उसमें कंपनी का मौजूदा सीईओ और दो बोर्ड डायरेक्टर्स थे। गजेंद्र ने उन्हें देखकर सैल्यूट किया। राकेश और उसके साथी हाथ जोड़े खड़े थे।
भवानी सिंह ने शोरूम में प्रवेश किया। “कल मैंने तुम्हें अपनी नीव दिखाई थी,” उन्होंने कहा। “वह ब्लूप्रिंट, जिसे तुमने मरोड़कर फेंका था, वह मेरी विरासत थी।” राकेश ने कहा, “यह बचपना था, माफ कर दीजिए।”

“गलती तुमने की थी,” भवानी सिंह ने कहा। “तुमने सबूत मिटाने की कोशिश की।” तभी समीर ने आगे बढ़कर कहा, “सर, शायद आप यह देखना चाहेंगे।” उसने USB ड्राइव निकाली और उसे डिस्प्ले स्क्रीन पर लगाया।
शोरूम में सन्नाटा छा गया। सभी ने देखा कि कैसे राकेश, कुणाल और प्रिया ने बुजुर्ग का मजाक उड़ाया और फिर राकेश ने सबूत मिटाने की योजना बनाई। “तुम लोग सिर्फ बुरे सेल्समैन नहीं हो, तुम बुरे इंसान हो,” भवानी सिंह ने कहा।
सीईओ ने कहा, “आप तीनों को तत्काल प्रभाव से टर्मिनेट किया जाता है।” राकेश ने कहा, “मेरे परिवार का क्या होगा?” लेकिन भवानी सिंह ने कहा, “जब तुमने किसी की इज्जत उतारी, तब तुम्हारे परिवार का ख्याल क्यों नहीं आया?”
तीनों चुपचाप बाहर चले गए। भवानी सिंह ने समीर के पास जाकर कहा, “तूने सिर्फ मेरी विरासत नहीं बचाई, तूने इस कंपनी की इज्जत बचाई है।” समीर को हेड ऑफिस में काम करने का मौका मिला।
तीन हफ्ते बाद, एलट ऑटो गैलेरिया में एक नया माहौल था। अब वहां इंसानियत की महक थी। समीर ने भवानी सिंह के साथ काम करना शुरू किया। एक दिन भवानी सिंह ने उसे अपने स्टडी रूम में बुलाया।
वहां एक फ्रेम में वही मरोड़ा हुआ ब्लूप्रिंट था। “कभी मत भूलना, समीर,” भवानी सिंह ने कहा। “जिस दिन तुम इस चमकदार गाड़ियों से ज्यादा इस कागज को महत्व देने लगोगे, उस दिन समझ लेना कि तुम भी राकेश वर्मा बन गए हो।”
समीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं याद रखूंगा, बापू।” भवानी सिंह ने उसे Lamborghini सियान की चाबी दी। “आज इसे तुम चलाओगे।”
इस तरह, समीर ने न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि इंसानियत और ईमानदारी की नींव को भी मजबूत किया। वह जानता था कि असली सफलता सिर्फ पैसे में नहीं, बल्कि दूसरों की इज्जत करने में है।
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