किस्मत का खेल: प्रिया और रोहन की भावनात्मक कहानी
किस्मत का खेल कितना अजीब होता है, यह हम सभी जानते हैं। कभी-कभी, जिन्हें हम अपनी जिंदगी से निकालकर फेंक देते हैं, वही एक दिन हमारी जिंदगी में ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं जहां नफरत और गुस्सा भी पिघलकर आंसू बन जाते हैं। यह कहानी है प्रिया और रोहन की, एक ऐसी कहानी जो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं।
आज का दिन प्रिया के लिए बहुत खास था। वर्षों की मेहनत और लगन के बाद, उसने अपने पैरों पर खड़े होकर जो शांति और सुकून पाया था, उसी का धन्यवाद करने के लिए उसने शहर के सबसे बड़े मंदिर में एक भंडारा करवाया था। सैकड़ों गरीब और जरूरतमंद लोग लाइन में लगे थे, और प्रिया अपने हाथों से उन्हें पूड़ी और सब्जी परोस रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी, एक ऐसी शांति जो बहुत कुछ खोने के बाद मिलती है।
लेकिन उसकी यह शांति बस कुछ ही पलों की मेहमान थी। जैसे ही उसने पूड़ी का अगला दोना बढ़ाने के लिए सिर उठाया, उसकी नजरें सामने खड़े एक शख्स पर पड़ीं। उसके हाथ हवा में ही जम गए। क्या यह सच था या उसकी आंखों का धोखा? सामने खड़ा शख्स फटे पुराने मैले कपड़ों में था, उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और आंखों में खालीपन था। यह चेहरा प्रिया कैसे भूल सकती थी? यह उसका पूर्व पति रोहन था।
प्रिया का दिमाग सुन्न हो गया। वह एक पल के लिए पीछे हटना चाहती थी, लेकिन उसके पैर जमीन में जम गए थे। उसे याद आया वो दिन जब रोहन ने उसे घर से निकालते हुए कहा था, “तुम जैसी साधारण औरत मेरे स्टेटस से मेल नहीं खाती।” प्रिया की दुनिया उस दिन उजड़ गई थी। 5 साल पहले, रोहन शहर का एक उगता हुआ बिजनेसमैन था, लेकिन जैसे-जैसे उसका कारोबार बढ़ा, उसकी आंखों पर अहंकार की पट्टी बंधती चली गई।
रोहन ने प्रिया को तलाक के कागज थमा दिए। वजह? एक मॉडर्न हाई प्रोफाइल लड़की, जो उसके बिजनेस सर्कल में उसकी शान बढ़ा सकती थी। प्रिया ने बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन रोहन ने एक नहीं सुनी। उसे बस थोड़ा सा गुजारा भत्ता देकर घर से निकाल दिया। आज उसी रोहन को इस हालत में देखकर प्रिया के मन में नफरत का एक भी कतरा नहीं उठा, बल्कि उसकी आंखों में आंसू आ गए।
क्या हुआ कि अर्श पर रहने वाला इंसान फर्श पर आ गया? प्रिया ने कांपते हाथों से पूरी सब्जी की प्लेट उठाई और रोहन के कटोरे की तरफ बढ़ाई। जैसे ही रोहन ने नजरें उठाकर उसे देखा, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उसकी आंखों में हैरानी, शर्म और पश्चाताप के हजार भाव एक साथ तैर गए। प्रिया कुछ कहना चाहती थी, लेकिन उसके हलक में अल्फाज़ अटक गए।
रोहन बिना कुछ कहे अपना कटोरा लेकर चुपचाप भीड़ में एक कोने में जाकर बैठ गया। प्रिया उसे देखती रही। वह जिस तरह हर निवाले को खा रहा था, उससे साफ पता चल रहा था कि वह कई दिनों से भूखा था। भंडारा खत्म होने तक प्रिया का मन बेचैन रहा। जब सब लोग चले गए, उसने देखा रोहन अभी भी मंदिर की सीढ़ियों पर चुपचाप बैठा हुआ था।
प्रिया ने हिम्मत करके उसके पास जाकर पूछा, “तुम यहां इस हालत में?” रोहन की झुकी नजरें उठीं और उनमें आंसुओं का सैलाब था। उसने रोते हुए सब कुछ बता दिया: कैसे तलाक के बाद उसने उस मॉडर्न लड़की से शादी की, कैसे उसने अपने बिजनेस पार्टनर्स पर अंधा विश्वास किया और कैसे सब कुछ खो दिया।
प्रिया चुपचाप सब सुनती रही। आज उसके मन का सारा बोझ उतर गया था। उसने रोहन को माफ तो पहले ही कर दिया था, लेकिन आज उसे महसूस हुआ कि असली शांति बदला लेने में नहीं, बल्कि माफ कर देने में है। उसने अपने पर्स से कुछ पैसे निकाले और रोहन की तरफ बढ़ाए।
रोहन ने हाथ जोड़कर कहा, “नहीं प्रिया, मुझे शर्मिंदा मत करो। तुम्हारा दिया हुआ खाना खा लिया, यही मेरे लिए बहुत है।” प्रिया ने एक गहरी सांस ली और पैसे वापस रख लिए। फिर उसने कहा, “ठीक है, भीख मत लो। मैंने एक छोटा सा एनजीओ शुरू किया है बेघर और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए। मुझे एक भरोसेमंद मैनेजर की जरूरत है।”
रोहन ने हैरानी से उसकी तरफ देखा। उसकी आंखों में एक उम्मीद की किरण जगी। प्रिया ने उसे सहारा दिया, क्योंकि वह मानती थी कि हर इंसान एक दूसरा मौका डिफ़ाइन करता है।
इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि माफी, इंसानियत और दूसरा मौका देना सबसे महत्वपूर्ण है। प्रिया ने रोहन को नौकरी दी, लेकिन अपने दिल में वापस जगह नहीं। उसने उसे अपने पैरों पर फिर से खड़े होने का मौका दिया।
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