धर्मेंद्र के आखिरी 24 घंटे: मशीनों की बीप, बेटों का हाथ और एक ‘अधूरी माफी’ की वह खामोश दास्तान!

मुंबई: भारतीय सिनेमा के एक स्वर्णिम युग का अंत हो गया। 24 नवंबर 2025 की वह रात, जब समय जैसे थम गया था। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल के एक शांत कमरे में, मशीनों की धीमी बीप के बीच, बॉलीवुड के सबसे प्रिय ‘ही-मैन’ धर्मेंद्र अपनी जिंदगी की आखिरी जंग लड़ रहे थे। यह जंग किसी फिल्मी पर्दे की नहीं, बल्कि सांसों की उस डोर की थी जो धीरे-धीरे कमजोर पड़ती जा रही थी।

रात 3:00 बजे: यादों का आखिरी झरोखा

नर्स के अनुसार, रात के करीब 3:00 बजे धर्मेंद्र ने अपनी आंखें खोलीं। उनकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वे किसी पुराने दृश्य में लौट गए हों। उन्होंने कमजोर आवाज में वक्त पूछा— “कितने बजे हैं?” जब उन्हें बताया गया कि साढ़े तीन बज रहे हैं, तो उन्होंने बस “ठीक है” कहा। शायद उन्हें आभास हो गया था कि अब वक्त बहुत कम बचा है। वे बार-बार एक ही बात बुदबुदा रहे थे— “सब ठीक हो जाए।” यह ‘सब’ क्या था? शायद वे उन दो परिवारों और दो दुनियाओं की बात कर रहे थे जिन्हें उन्होंने उम्र भर अपने कंधों पर संतुलित रखा था।

सुबह 6:30 बजे: सनी देओल का आगमन और पिता का सुकून

धर्मेंद्र बार-बार एक ही सवाल पूछ रहे थे— “सनी आया?” जैसे ही सुबह की पहली किरण फैली, सनी देओल कमरे में दाखिल हुए। एक फौलादी छवि वाले सनी उस पल केवल एक लाचार बेटे थे। उन्होंने जैसे ही अपने पिता का हाथ थामा, धर्मेंद्र की आंखों में एक सुकून दिखा। उन्होंने अपनी पूरी ताकत समेटकर सनी का हाथ दबाया। उस एक स्पर्श में एक ‘अधूरी माफी’ थी और एक ‘अनकहा प्यार’ था जो कह रहा था— “मैंने पूरी कोशिश की बेटा।”

थोड़ी देर बाद बॉबी देओल पहुंचे। उन्होंने पिता के पैर छुए और वहीं सिर रखकर रोने लगे। धर्मेंद्र ने कांपते हाथों से बॉबी के सिर पर हाथ रखा। वह पिता का आखिरी स्पर्श था।

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दोपहर का सन्नाटा: हेमा मालिनी की बेचेनी

अस्पताल के बाहर जूहू के दूसरे घर में हेमा मालिनी की रात भी जागते हुए गुजरी। वे जानती थीं कि दूरी केवल किलोमीटर की नहीं, बल्कि उन रिश्तों की मर्यादा की भी थी जिसे उन्होंने 45 साल तक निभाया था। वे खिड़की पर खड़ी होकर बस एक ही दुआ कर रही थीं कि सब ठीक हो जाए। वह दर्द, जिसे उन्होंने अपनी मुस्कान के पीछे छिपा रखा था, आज आंसुओं बनकर बह रहा था।

दोपहर 3:00 बजे: वह आखिरी वसीयत— “ख्याल रखना”

दोपहर के समय जब धर्मेंद्र की सांसें और भारी होने लगीं, तो उन्होंने सनी और बॉबी को अपने पास बुलाया। उन्होंने बहुत धीमी आवाज में बस दो शब्द कहे— “ख्याल रखना।” यह केवल एक वाक्य नहीं था, बल्कि उनकी पूरी जिंदगी की वसीयत थी। वे चाहते थे कि उनके जाने के बाद उनका बिखरा हुआ परिवार एकजुट रहे।

रात 11:47: एक महानायक की अंतिम सांस

जैसे-जैसे रात गहराती गई, मशीनों की संख्या गिरने लगी। रात 11:47 बजे वह मशीन शांत हो गई जो एक महानायक के दिल की धड़कन सुना रही थी। डॉक्टर ने धीमी आवाज में कहा— “ही इज गॉन (He is gone)।” सनी ने अपना सिर झुका लिया और बॉबी पैरों से लिपटकर रो पड़े। यह केवल एक अभिनेता की मृत्यु नहीं थी, बल्कि भारतीय सिनेमा के एक अध्याय का अंत था।

अंतिम यात्रा: बेटियों का साहस और अमित शाह की श्रद्धांजलि

सुबह होते ही धर्मेंद्र के घर के बाहर हजारों की भीड़ जमा हो गई। अंतिम संस्कार के समय एक ऐसा दृश्य दिखा जिसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया। धर्मेंद्र की अंतिम यात्रा में उनकी बेटियों— ईशा और अहाना ने भी अपनी जिम्मेदारी निभाई।

देश के गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि धर्मेंद्र केवल एक स्टार नहीं, बल्कि असली भारत की आत्मा थे। उनकी मुस्कान में पंजाब की मिट्टी की खुशबू थी और उनकी आंखों में वह सच्चाई थी जो अब दुर्लभ है।

निष्कर्ष: विरासत और दरारें

धर्मेंद्र की जिंदगी हमें सिखाती है कि रिश्ते कभी आसान नहीं होते। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दो परिवारों के बीच प्रेम और न्याय की लड़ाई लड़ी। चमकती दुनिया के पीछे वे एक ऐसे पिता थे जो अपने बच्चों के भविष्य और परिवार की एकता के लिए हमेशा चिंतित रहे।

उनके जाने के बाद घर में फैली खामोशी एक बड़े खालीपन का संकेत है। ही-मैन भले ही चले गए, लेकिन उनकी विरासत उनके बच्चों और करोड़ों प्रशंसकों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगी।

भगवान उनकी आत्मा को शांति दें।