SP मैडम सादे कपड़े में पानी पूरी खा रही थी महिला दरोगा ने साधारण महिला समझ कर बाजार में मारा थप्पड़

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एसपी मैडम का थप्पड़ – जब वर्दी का असली रंग सामने आया

बरेली शहर की हलचल भरी शाम थी। किला बाजार में हर तरफ भीड़ थी, दुकानों की रौनक, ठेले वालों की आवाजें और लोगों का शोर। इसी भीड़ में एक साधारण सी महिला सलवार-सूट पहने, बालों को ढीला बांधे, सड़क किनारे पानी पूरी खाते हुए दिखाई दी। कोई नहीं जानता था कि यह आम सी दिखने वाली महिला असल में बरेली जिले की नई एसपी – नैना राठौर हैं। तीन दिन पहले ही उन्होंने चार्ज संभाला था, और तब से पुलिस महकमे में खलबली मची थी। अफसरों की मीटिंग, पुराने केसों की फाइलें, सब उनकी नजर से गुजर रही थीं, लेकिन नैना जानती थीं कि असली सच फाइलों में नहीं, गलियों में मिलता है।

उनके पिता एक ईमानदार हवलदार थे, जिन्होंने हमेशा सिखाया था – “बेटा, वर्दी की असली इज्जत कुर्सी पर नहीं, लोगों के बीच जाकर मिलती है।” इसी सीख को सच करने के लिए नैना ने अपनी वर्दी उतारी, सादा कपड़े पहने, और अकेले ही बाजार की भीड़ में शामिल हो गईं। किसी को शक तक नहीं हुआ कि ये वही अफसर हैं जिनका नाम सुनकर थानेदार भी सावधान हो जाते हैं।

किला बाजार के कोने में राम लहरिया का पानी पूरी का ठेला लगा था। नैना ने बचपन की यादों में खोते हुए एक प्लेट पानी पूरी मंगवाई। तभी अचानक पुलिस की जीप बाजार में आकर रुकी। लोगों में हलचल मच गई। जीप से चार पुलिसवाले उतरे, जिनमें एक महिला सब-इंस्पेक्टर अर्चना चौहान भी थी – इलाके में अपनी दबंगई के लिए मशहूर। उसने आते ही ठेले वाले से हफ्ता मांगा, और न देने पर उसके ठेले को लात मारकर सारा सामान सड़क पर बिखेर दिया।

राम लहरिया गिड़गिड़ाता रहा, “मैडम, आज कमाई नहीं हुई, बच्ची बीमार है, कल दे दूंगा।” लेकिन अर्चना नहीं मानी। नैना ये सब देख रही थीं। उनका खून खौल उठा। उन्होंने साहस के साथ आगे बढ़कर अर्चना से पूछा, “आप किस कानून के तहत गरीब से पैसे वसूल रही हैं? आपको क्या हक है उसकी रोजी-रोटी उजाड़ने का?” अर्चना चौहान गुस्से से तमतमा उठी, बोली, “तू कौन होती है सवाल करने वाली?” और भीड़ के सामने नैना को एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

पूरे बाजार में सन्नाटा छा गया। नैना के गाल पर पांच उंगलियों के लाल निशान उभर आए, लेकिन उनकी आंखों में डर नहीं, बल्कि एक अजीब सी ठंडक थी। उन्होंने सधे हुए हाथों से अपना पर्स निकाला, अंदर से नीले रंग का आईपीएस कार्ड निकाला और अर्चना के सामने लहराया। कार्ड पर लिखा था – नैना राठौर, पुलिस अधीक्षक, बरेली। अर्चना और उसके साथी सिपाही के चेहरे का रंग उड़ गया। भीड़ में खड़े लोग भी हैरान रह गए। जिसे सब एक आम महिला समझ रहे थे, वो जिले की सबसे बड़ी पुलिस अफसर थी।

नैना ने सख्त आवाज में कहा, “तुम्हारी वफादारी कानून से नहीं, पद से है। आज मुझे थप्पड़ मारा क्योंकि पहचान नहीं पाईं, अगर पहचान लेतीं तो सलाम करतीं। यही दिक्कत है तुम्हारी वर्दी से – तुम सिर्फ रैंक से डरती हो, इंसाफ से नहीं।” उन्होंने तुरंत कंट्रोल रूम को फोन किया, चारों पुलिसवालों को मौके पर ही सस्पेंड किया और अर्चना के खिलाफ विभागीय जांच और चार्जशीट के आदेश दे दिए।

कुछ ही देर में पुलिस की गाड़ियां आ गईं। एसएचओ ने कांपते हुए सैल्यूट किया। चारों दोषी पुलिसवालों को जीप में बैठा लिया गया। नैना ने सबके सामने ऐलान किया, “अगर कोई भी वर्दी वाला आपसे अवैध वसूली करे, तो डरिए मत, आवाज उठाइए – मैं आपके साथ हूं।”

राम लहरिया की आंखों में आंसू थे – इस बार बेबसी के नहीं, कृतज्ञता के। नैना ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “आपका नुकसान सरकार भरेगी, और आज के बाद कोई पुलिस वाला आपको तंग करे तो सीधा मेरे ऑफिस आइए।” भीड़ में पहली बार पुलिस के लिए सम्मान की फुसफुसाहट थी।

यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। अगले दिन पुलिस लाइन में सन्नाटा था। भ्रष्ट पुलिसवालों के चेहरे पर डर और ईमानदार अफसरों के चेहरे पर उम्मीद थी। विधायक रामनारायण तिवारी ने फोन कर दबाव डालने की कोशिश की, “मैडम, छोटी सी गलती थी, माफ कर दीजिए।” नैना ने साफ कहा, “गलती और गुनाह में फर्क होता है, कानून सबके लिए बराबर है।”

इसी बीच राम लहरिया को धमकी मिलने लगी – “अगर गवाही दी तो अंजाम बुरा होगा।” डर के बावजूद वह एसपी ऑफिस पहुंचा, नैना ने उसकी सुरक्षा के लिए सादे कपड़ों में दो सिपाही तैनात कर दिए। उन्होंने ईमानदार इंस्पेक्टर शमशेर सिंह को जांच की जिम्मेदारी दी। शमशेर सिंह ने सालों से सिस्टम से हारे हुए अफसर की तरह खुद को साइडलाइन कर रखा था, लेकिन नैना की ईमानदारी ने उसमें फिर से हौसला भर दिया।

नैना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर जनता को भरोसा दिलाया – “अब पुलिस आपकी सुरक्षा के लिए है, कोई भी पुलिस वाला रिश्वत मांगे तो हेल्पलाइन नंबर पर शिकायत करें, दस मिनट में कार्रवाई होगी।” यह ऐलान बरेली में बदलाव की शुरुआत थी। भ्रष्ट पुलिसवालों में हड़कंप मच गया, और जनता में हिम्मत लौटने लगी।

कुछ ही दिनों में नैना और शमशेर सिंह ने बदनाम थानों पर छापे मारे। हाईवे पर ट्रकों से अवैध वसूली करते दो हवलदार रंगे हाथ पकड़े गए, पूरी चौकी सस्पेंड कर दी गई। विधायक तिवारी ने भी अब हाथ खींच लिए। विभागीय जांच में अर्चना चौहान और उसके साथी दोषी पाए गए, अर्चना को सर्विस से बर्खास्त कर दिया गया।

शहर में एक नया माहौल बन गया था। राम लहरिया का ठेला अब भी उसी कोने पर था, लेकिन उसके चेहरे पर सुकून था। लोग अब पुलिस से डरते नहीं, भरोसा करते थे। नैना जानती थीं कि यह लड़ाई लंबी है, लेकिन एक सही कदम हजारों लोगों की जिंदगी बदल सकता है।

एक शाम उनके पिता का फोन आया, “बेटी, यह लड़ाई अभी शुरू हुई है। सिस्टम में गंदगी गहरी है, लेकिन तू हारना मत।” नैना ने मुस्कुरा कर कहा, “पापा, मैंने वर्दी पहनी ही इसलिए है।”

अब बरेली की गलियों में सिर्फ डर नहीं, उम्मीद और भरोसे की हवा थी। लोग जानते थे कि उनकी सुरक्षा के लिए एक ईमानदार अफसर है, जो जरूरत पड़े तो खुद भीड़ में उतरकर अन्याय के खिलाफ खड़ी हो सकती है। नैना अब सिर्फ एक अफसर नहीं, पूरे शहर के लिए मिसाल बन चुकी थी।

क्योंकि जब सच्चाई की लौ जलती है, अंधेरा खुद-ब-खुद पीछे हट जाता है।

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