पिता की आखिरी इच्छा के लिए बेटा 5 दिन के लिए किराए की बीवी लाया… फिर जो हुआ |
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किराए की दुल्हन – मजबूरी से मोहब्बत तक
1. मुंबई का व्यापारी और एक अधूरी ख्वाहिश
मुंबई के पॉश इलाके में श्याम गुप्ता का शानदार बंगला था। उनके पास सब कुछ था—बड़ा कारोबार, लाखों की संपत्ति, ऊंचा नाम और रुतबा। मगर उस दिन उनकी दुनिया बिखर रही थी। अस्पताल के बेड पर उनके पिताजी, रमेश गुप्ता, जिंदगी की आखिरी सांसें गिन रहे थे।
पिता की आंखों में चिंता थी, बेटे विनोद के सिर पर जिम्मेदारी का बोझ।
“बेटा, मैं चल बसूंगा तो एक चिंता लेकर नहीं जाना चाहता,” पिताजी ने कमजोर आवाज में कहा।
विनोद ने पिता का हाथ कसकर पकड़ा, “पापा, ऐसी बातें मत करिए। आप जल्दी ठीक हो जाएंगे।”
पिता की आंखों में पानी आ गया, “डॉक्टर साहब ने सब बता दिया है। बस एक बात कह रहा हूं… अगले पांच दिन में तू विवाह कर ले। नहीं तो मेरी सारी जायदाद धर्मशाला के नाम लिख दूंगा। मैं अपना वंश अधूरा नहीं छोड़ना चाहता। मेरी आंखें तभी शांति से बंद होंगी जब तेरी दुल्हन को देख लूंगा।”
विनोद का गला सूख गया। पांच दिन में शादी? यह कैसे संभव है?
“हां पापा, आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी,” विनोद ने धीरे से कहा। पिताजी मुस्कुराकर आंखें बंद कर लीं। विनोद को लगा जैसे उनकी सांसों में थोड़ी राहत आ गई है।
2. मंगेतर का इंकार और दिल का टूटना
अस्पताल से निकलते ही विनोद ने अपनी मंगेतर प्रिया को फोन मिलाया। कॉलेज के जमाने से दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे।
“प्रिया, जरूरी बात है। पापा जी की तबीयत बहुत खराब है। वे चाहते हैं कि हम 5 दिन में शादी कर लें।”
दूसरी तरफ खामोशी। फिर प्रिया बोली, “विनोद, मैं इतनी जल्दी तैयार नहीं हूं। अभी मेरी नई जॉब शुरू हुई है। कुछ महीने बाद बात करते हैं।”
“लेकिन प्रिया, यह पापा की आखिरी इच्छा है। समझो…”
“विनोद, मैं अभी फंस नहीं सकती,” कहकर प्रिया ने फोन काट दिया।
विनोद का दिल टूट गया। एक तरफ पिता की अंतिम इच्छा, दूसरी तरफ प्रिया का इंकार। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे।
3. दोस्त की सलाह और एक अजनबी लड़की
दो दिन बाद विनोद अपने वकील मित्र राजेश के पास पहुंचा।
“यार, मुझे एक अस्थायी विवाह करना है। सिर्फ कागजों पर, पांच दिन के लिए। पापा को दुल्हन दिखाना है। फिर वे चैन से आंखें बंद कर सकें।”
राजेश चौंक गया, “क्या बात कर रहा है? यह कैसी जरूरत है?”
विनोद ने सारी कहानी बताई।
राजेश ने सिर हिलाया, “देख भाई, यह गलत है। लेकिन तेरी और अंकल की मजबूरी समझ आ रही है। कोई लड़की मिल सकती है जो सिर्फ पैसों के लिए तैयार हो जाए?”
राजेश ने सोचा, “हां, एक लड़की जानता हूं। मेघा शर्मा। उसकी मां बहुत बीमार है। इलाज के लिए पैसे नहीं हैं, कर्जा भी बहुत है। शायद वह मान जाए।”
4. समझौते की शुरुआत
अगले दिन मेघा राजेश के दफ्तर आई। सफेद सूती साड़ी, सीधे सादे बाल और थकी हुई आंखें।
विनोद ने सीधी बात कही, “यह शादी केवल नाम की होगी। पांच दिन बाद तलाक हो जाएगा। मेरे पिताजी बहुत बीमार हैं। उन्होंने मेरी शादी देखने की इच्छा जताई है। बदले में आपकी मां का पूरा इलाज और आपके घर का कर्जा सब मैं कर दूंगा।”
मेघा कुछ देर चुप रही। फिर धीमी आवाज में बोली, “अगर इससे मेरी मां की जान बच सकती है, तो मैं तैयार हूं। लेकिन एक शर्त है—मेरी इज्जत में कोई आंच नहीं आनी चाहिए।”
“बिल्कुल,” विनोद ने वादा किया, “कोई गलत बात नहीं होगी।”
उसी दिन शाम को दोनों ने कोर्ट में जाकर निकाह के कागजों पर दस्तखत कर दिए।
कोई बारात नहीं, कोई मंडप नहीं, कोई रीतिरिवाज नहीं। बस दो अनजान लोग मजबूरी में एक समझौते में बंध गए।
कोर्ट से निकलने के बाद विनोद ने मेघा को अपने घर ले जाकर गेस्ट रूम में ठहराया, “यह आपका कमरा है। जो भी जरूरत हो बताइएगा। पांच दिन बाद सब खत्म हो जाएगा। कल सुबह हम अस्पताल जाएंगे, पापा को दिखाना है।”
मेघा ने सिर हिलाया और अपना छोटा सा बैग रख दिया। घर में कोई शादी की रौनक नहीं थी। कोई सजावट नहीं, कोई खुशी का माहौल नहीं।
5. पहली मुलाकातें और अनकहे एहसास
पहले दिन दोनों के बीच सिर्फ औपचारिक बातें हुईं।
“खाना हो गया है। पानी चाहिए?”
बस इतना ही।
रात को विनोद अपने कमरे में बैठा सोच रहा था—यह लड़की बिना कोई सवाल किए कैसे मान गई? क्या इसके अपने कोई सपने नहीं थे? किसी से प्यार नहीं था?
दूसरे दिन सुबह जब विनोद नाश्ते के लिए आया तो टेबल पर एक छोटा सा कागज मिला। उसमें लिखा था—
“आपने मेरी मां की जिंदगी बचाई है। यह एहसान मैं कभी नहीं भूल सकती। आपके पिताजी की आखिरी इच्छा पूरी करने में मैं आपकी मदद कर सकूं, यह मेरा सौभाग्य है।”
विनोद ने उस चिट्ठी को अपनी जेब में रख लिया। पहली बार उसे लगा कि यह लड़की सचमुच अलग है।
6. अस्पताल में बहू की पहली झलक
दूसरे दिन सुबह विनोद और मेघा अस्पताल गए। पिताजी कमजोर थे लेकिन होश में थे।
जब उन्होंने मेघा को देखा तो चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई।
“यह है मेरी बहू!”
पिताजी ने कांपते हाथों से मेघा का हाथ पकड़ा।
“जी पापा जी,” मेघा ने सिर झुकाकर उनके पैर छुए।
“बहुत सुंदर है बेटी। भगवान तुम्हें खुश रखे।”
पिताजी की आवाज़ में संतुष्टि थी, “अब मैं चैन से जा सकूंगा। मेरे बेटे का घर बस गया।”
विनोद ने देखा कि पिताजी की सांस में कितनी राहत आ गई है। उनकी आंखों में शांति थी।
“पापा, अब आप ठीक हो जाइएगा,” मेघा ने धीमे से कहा, “मैं रोज आकर आपसे मिलूंगी।”
पिताजी मुस्कुराए, “हां बेटी, अब तो जी भर कर जिऊंगा। मेरे बेटे को अच्छी लड़की मिली है।”
अस्पताल से लौटते समय विनोद ने देखा कि मेघा की आंखों में आंसू हैं।
“क्या हुआ?”
“आपके पापा जी कितने अच्छे हैं। काश ये सब सच होता,” मेघा बोली।
विनोद कुछ नहीं बोला, लेकिन उसके मन में हलचल हो रही थी।
7. बारिश की शाम और दिल की बातें
तीसरे दिन शाम को बारिश हो रही थी। मेघा बरामदे में खड़ी बारिश को निहार रही थी। उसके चेहरे पर एक अजीब सी उदासी थी।
“बारिश आपको पसंद है?” विनोद ने पूछा।
“हां,” मेघा मुस्कुराई, “बारिश सब धो देती है। दुख भी, गलतियां भी। कुछ रिश्ते भी इसी तरह आते हैं।”
“अचानक बिना बुलाए,” विनोद बोला।
“लेकिन जाना भी तो पड़ता है,” मेघा का स्वर दुखी था।
दोनों कुछ देर खामोशी में खड़े रहे।
8. उम्मीद की किरण
चौथे दिन अस्पताल से अच्छी खबर आई। डॉक्टर ने बताया कि पिताजी की हालत में सुधार हो रहा है।
“लगता है उन्हें कोई खुशी मिली है। मानसिक राहत से शारीरिक स्थिति भी बेहतर हो रही है।”
विनोद समझ गया कि यह खुशी मेघा को देखकर मिली है।
उसने घर आकर मेघा को यह बात बताई।
“सच में?”
मेघा की आंखों में चमक आ गई।
“हां, डॉक्टर कह रहे थे कि शायद अब वे कुछ दिन और जी सकते हैं।”
मेघा ने हाथ जोड़े, “भगवान का शुक्र है।”
उस शाम खाना खाते समय विनोद ने महसूस किया कि घर में कितने दिनों बाद गर्मजशी आई है। मेघा चुप रहती थी, लेकिन उसकी उपस्थिति घर को जीवंत बना रही थी।
9. पुराने रिश्ते की दस्तक
पांचवें दिन सुबह घर में हलचल मच गई। अचानक दरवाजे की घंटी बजी और प्रिया अंदर आई। उसके चेहरे पर गुस्सा था।
“यह क्या है विनोद?” प्रिया तेज आवाज में बोली, “तुमने किसी और से शादी कर ली? मैंने सिर्फ कुछ दिन मांगे थे!”
विनोद शांत रहा, “तुमने साफ मना कर दिया था प्रिया और मेरे पास वक्त नहीं था। पापा की हालत…”
“तो यह कौन है?” प्रिया ने मेघा की तरफ इशारा किया जो दूर खड़ी थी।
“मेरी पत्नी,” विनोद का जवाब था।
“कितने दिनों के लिए? यह कोई खेल है?”
“यह मेरा निजी मामला है,” विनोद ने कहा।
प्रिया मेघा के पास गई, “तुम जानती हो यह सब क्या है? यह लड़का तुम्हें बेवकूफ बना रहा है।”
मेघा ने बिना किसी भाव के कहा, “मैं जानती हूं। और मेरी मर्जी से यहां हूं।”
प्रिया हैरान रह गई। फिर विनोद की तरफ मुड़ी, “यह नाटक यहीं खत्म नहीं होगा। देखती हूं तुम कितने दिन इसे चला पाते हो।”
कहकर वह वहां से चली गई।
प्रिया के जाने के बाद घर में सन्नाटा छा गया। मेघा ने कुछ नहीं कहा। कोई सवाल नहीं किया।
शाम को खाना खाते समय विनोद ने कहा, “प्रिया जो कह रही थी…”
“आपको सफाई देने की जरूरत नहीं,” मेघा बोली, “मैं सब समझती हूं। कल पांच दिन पूरे हो जाएंगे। मैं चली जाऊंगी।”
लेकिन विनोद के दिल में कहीं कसक हुई। क्या सच में वह चाहता है कि मेघा चली जाए?
10. समझौते का आखिरी दिन
पांचवा दिन आ गया था—समझौते का आखिरी दिन। सुबह-सुबह मेघा अपना छोटा सा बैग पैक कर रही थी। उसके चेहरे पर वही शांति थी, लेकिन आंखों में हल्का सा दुख छुपा था।
“एक बार पापा जी से मिलकर जाऊंगी,” मेघा ने कहा।
अस्पताल पहुंचकर दोनों ने देखा कि पिताजी की तबीयत और भी बेहतर हो गई है। वे बिस्तर पर बैठे हुए थे।
“अरे बहू आ गई,” पिताजी मुस्कुराए, “बेटा तू रोज आती है। मुझे बहुत अच्छा लगता है।”
मेघा की आंखें भर आईं, “पापा जी, मुझे कुछ दिन अपनी मां के पास जाना है।”
“अरे हां बेटी, जा अपनी मां की सेवा करना, लेकिन जल्दी वापस आ जाना। अब तो तू मेरी बेटी है।”
मेघा ने उनके पैर छुए। पिताजी ने सिर पर हाथ रखा, “खुश रह बेटी। भगवान हमेशा तेरा भला करे।”
अस्पताल से निकलते समय विनोद बेचैन हो रहा था। वह कुछ कहना चाहता था लेकिन शब्द नहीं मिल रहे थे।
घर पहुंचकर मेघा ने अपना बैग उठाया और दरवाजे की तरफ चल दी। विनोद से आंख मिलाए बिना धीमे से बोली, “आपकी मां का इलाज अब ठीक से चल जाएगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।”
“मेघा!” विनोद की आवाज निकली।
“जी?” वह रुक गई।
विनोद कुछ कहना चाहता था लेकिन शब्द नहीं मिले। बस इतना बोला, “खुश रहना।”
मेघा ने सिर हिलाया और घर से निकल गई।
11. दिल की कसक और सच्चा रिश्ता
दोपहर तक विनोद बेचैनी महसूस कर रहा था। घर सूना लग रहा था। वो बार-बार मेघा के कमरे की तरफ देख रहा था। शाम को अस्पताल गया तो पिताजी ने पूछा, “बहू कहां है?”
“वो अपनी मां के पास गई है।”
“अच्छा किया। लेकिन बेटा, जल्दी वापस बुला लेना। मुझे उसकी बहुत याद आएगी।”
विनोद का गला भर आया। पिताजी कितना प्यार करने लगे हैं मेघा से।
रात को घर लौट कर वो बेचैनी महसूस कर रहा था। उससे रहा नहीं गया। वो कार लेकर निकला और मेघा के घर पहुंचा।
घर के बाहर गाड़ी रोकते ही उसे समझ नहीं आ रहा था कि अंदर जाएं या वापस लौट जाए। लेकिन उसने हिम्मत की और गाड़ी से बाहर उतरा।
जैसे ही उसकी नजर मेघा के घर के आंगन में पड़ी, तो मेघा वहां अकेली बैठी एक गहरी सोच में डूबी हुई थी।
“मेघा!” वो दौड़ा।
मेघा चौंक गई, “आप यहां?”
“तुम्हें ढूंढ रहा था,” विनोद ने सांस लेते हुए कहा।
“लेकिन क्यों? हमारा समझौता तो पूरा हो गया।”
विनोद ने जेब से एक कागज निकाला, “यह देखो। यह वही कागज है जिस पर हमारे समझौते की शर्तें लिखी थी। आज सुबह मैंने इसे फाड़ दिया।”
मेघा हैरानी से उसे देख रही थी।
“क्योंकि अब यह रिश्ता कागज पर नहीं, मेरे दिल में लिखा है,” विनोद की आवाज में सच्चाई थी।
“मेघा, पापा को तुमसे कितना लगाव हो गया है। वे तुम्हें सच में अपनी बेटी मानने लगे हैं। और मैं…”
मेघा की आंखें भर आईं, “मैं भी पापा जी को छोड़कर जाना नहीं चाहती थी। वे कितने प्यार से मुझसे बात करते हैं।”
“तो फिर क्यों जा रही हो?” विनोद ने उसका हाथ थामा।
“मेघा, मुझे एहसास हुआ है कि तुम मेरी जिंदगी की जरूरत हो। पापा को भी तुमसे सच्चा लगाव हो गया है। क्या तुम हमें छोड़कर जाओगी?”
मेघा रोने लगी, “लेकिन यह तो सिर्फ एक डील थी…”
“शायद शुरुआत में थी। लेकिन अब नहीं,” विनोद ने उसकी आंखों में देखा, “यह सच्चा प्रेम है। पापा का तुमसे और मेरा भी। क्या तुम हमें एक मौका दोगी?”
मेघा ने आंसू पोंछे और हां में सिर हिलाया।
12. परिवार की मंजूरी और नई शुरुआत
दोनों अस्पताल गए। पिताजी मेघा को देखकर खुश हो गए।
“अरे बहू, तू वापस आ गई! बहुत अच्छा किया।”
“पापा जी,” मेघा ने उनका हाथ पकड़ा, “अब मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।”
पिताजी की आंखों में खुशी के आंसू आ गए, “सच कह रही है बेटी?”
“जी पापा जी, अब मैं हमेशा आपकी बेटी हूं।”
पिताजी ने विनोद और मेघा दोनों को आशीर्वाद दिया, “भगवान तुम दोनों को खुश रखे। मेरी सारी इच्छाएं पूरी हो गई।”
उस दिन के बाद से मेघा रोज अस्पताल जाकर पिताजी की देखभाल करने लगी। पिताजी की तबीयत में और भी सुधार होने लगा।
एक महीने बाद विनोद ने सभी रिश्तेदारों को बुलाया और घोषणा की, “आज से मेघा सिर्फ कागज पर नहीं बल्कि दिल से मेरी पत्नी है।”
सबने तालियां बजाई। मेघा की आंखों में खुशी के आंसू थे। पिताजी ने कमजोर आवाज में कहा, “अब मैं चैन से जा सकूंगा। मेरे बेटे को अच्छी बहू मिली है और मेरी बहू को प्यार करने वाला पति।”
13. कहानी की सीख
दोस्तों, यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे रिश्ते कभी-कभी मजबूरी में जन्म लेते हैं। लेकिन प्रेम और समझ से वे जिंदगी भर के लिए मजबूत हो जाते हैं। विनोद के पिताजी की आखिरी इच्छा ने एक ऐसा रिश्ता बनाया जो सबके लिए खुशी लेकर आया।
आपकी सोच क्या कहती है? क्या विनोद और मेघा का यह निर्णय सही था?
क्या इंसानियत और प्रेम मजबूरी से भी जन्म ले सकते हैं?
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