करोड़पति पिता ने विधवा बेटी की शादी रिक्शावाले से करवाई, अगले दिन जो हुआ उसने सबको हैरान कर दिया!
कोलकाता के एक छोटे से मोहल्ले में रहने वाले लाल सिंह मेहनती रिक्शा चालक थे। उनकी जिंदगी का एक ही मकसद था—अपने बेटे मनीष को पढ़ा-लिखाकर एक बेहतर जिंदगी देना। लाल सिंह सुबह से लेकर रात तक रिक्शा खींचते और अपनी कमाई से घर का खर्च चलाते। उनके बेटे मनीष को भी यह एहसास था कि उसके पिता उसके लिए कितनी मेहनत करते हैं। वह पढ़ाई में होशियार था और अपने पिता का सपना पूरा करना चाहता था।
लाल सिंह का काम केवल रिक्शा चलाने तक सीमित नहीं था। वह कोलकाता के एक बड़े बंगले में रहने वाली निशा नाम की लड़की को स्कूल छोड़ने और लाने का काम भी करते थे। निशा के पिता, राजेश अग्रवाल, शहर के एक बड़े उद्योगपति थे। उन्होंने लाल सिंह को अपनी बेटी के लिए चुना था क्योंकि वे उसकी ईमानदारी और मेहनत से बहुत प्रभावित थे। निशा भी लाल सिंह को बहुत सम्मान देती थी और उन्हें अंकल कहकर बुलाती थी।
निशा की शादी और उसकी जिंदगी का बदलाव
निशा के पिता ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े और प्रतिष्ठित परिवार में की थी। शादी के बाद निशा अपने ससुराल में खुश थी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। शादी के दो साल बाद एक सड़क दुर्घटना में निशा के पति की मृत्यु हो गई। इस हादसे ने निशा की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया। ससुराल वालों ने उसे अपने घर में रखने से मना कर दिया, और निशा को अपने माता-पिता के घर वापस आना पड़ा।
राजेश अग्रवाल ने अपनी बेटी को संभालने की पूरी कोशिश की, लेकिन निशा का दिल टूट चुका था। वह गुमसुम रहने लगी और किसी से बात नहीं करती थी। इसी दौरान राजेश अग्रवाल को दिल का दौरा पड़ा और उनका भी निधन हो गया। अब निशा और उसकी मां शारदा अकेले रह गए। निशा के भाई अभिषेक ने परिवार की संपत्ति अपने नाम कर ली और अपनी बहन और मां को नजरअंदाज करने लगा।
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लाल सिंह और मनीष की जिंदगी में बदलाव
इधर, लाल सिंह का बेटा मनीष अपनी पढ़ाई पूरी करके अच्छी नौकरी की तलाश में था। निशा के पिता की मदद से मनीष ने एक अच्छे स्कूल में पढ़ाई की थी, और अब वह अपने पिता का सहारा बनना चाहता था। एक दिन मनीष अपनी पहली सैलरी लेकर निशा के घर मिठाई देने गया। शारदा ने मनीष को पहचान लिया और उसे घर के अंदर बुलाया।
मनीष ने शारदा को बताया कि वह अब नौकरी कर रहा है और अपने पिता को रिक्शा चलाने से मुक्त कर दिया है। शारदा ने मनीष की तारीफ की और उसे आशीर्वाद दिया। फिर उन्होंने मनीष से पूछा, “बेटा, क्या तुम शादी के बारे में सोच रहे हो?” मनीष ने कहा, “मां जी, मैं शादी तभी करूंगा जब मैं पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा।”

शारदा ने कुछ देर सोचने के बाद मनीष से कहा, “बेटा, अगर तुम्हें बुरा न लगे तो मैं तुमसे कुछ पूछ सकती हूं। क्या तुम मेरी बेटी निशा से शादी करोगे?” यह सुनकर मनीष हैरान रह गया। उसने कहा, “मां जी, आप इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकती हैं? मैं एक साधारण लड़का हूं, आपकी बेटी इस बड़े घर की मालकिन है। क्या वह मेरे साथ खुश रह पाएगी?”
शारदा ने कहा, “बेटा, खुशी पैसे से नहीं मिलती। खुशी सच्चे रिश्तों और प्यार से मिलती है। मुझे यकीन है कि तुम मेरी बेटी को खुश रखोगे।” मनीष ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “अगर आप मुझ पर इतना भरोसा करती हैं, तो मैं निशा को अपनाने के लिए तैयार हूं।”
शादी और नई शुरुआत
शारदा ने मनीष और निशा की शादी मंदिर में करवा दी। निशा शुरुआत में चुपचाप थी, लेकिन मनीष और उसके परिवार ने उसे बहुत प्यार और सम्मान दिया। धीरे-धीरे निशा का खोया हुआ आत्मविश्वास वापस आने लगा। मनीष और निशा ने मिलकर एक छोटी सी दुकान शुरू की, जो धीरे-धीरे एक बड़ी फैक्ट्री में बदल गई।
निशा ने अपने भाई अभिषेक के खिलाफ प्रॉपर्टी के लिए केस किया और कोर्ट ने उसे संपत्ति का आधा हिस्सा देने का आदेश दिया। निशा ने उस पैसे से मनीष के बिजनेस को और बढ़ावा दिया। उनका बिजनेस तेजी से बढ़ने लगा और वे एक सफल दंपति बन गए।
सच्चाई और मेहनत की जीत
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चे रिश्ते और मेहनत कभी बेकार नहीं जाते। मनीष और निशा ने अपने जीवन में आए हर मुश्किल को पार किया और एक-दूसरे का सहारा बनकर जिंदगी को बेहतर बनाया। उन्होंने साबित किया कि सच्चा प्यार और सम्मान ही असली खुशी का आधार है।
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