जब एस.पी. मैडम दूधवाली बनीं, दरोगा ने वसूली की और फिर जो हुआ…

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सुबह का वक्त था। एक औरत दूध वाली का भैंस बनाकर अपनी पुरानी मोटरसाइकिल पर दूध के ड्रम बांधकर धीरे-धीरे रास्ते पर बढ़ रही थी। देखने वाला कोई भी उसे एक आम औरत ही समझता, लेकिन असलियत इससे बहुत अलग थी। वह दरअसल एक चालाक और ईमानदार पुलिस अफसर थी, जिसने अपनी पहचान छुपाकर इस रूप में आना चुना था। उसका नाम कविता सिंह था। कविता ने जानबूझकर उस इलाके में आने का फैसला किया था जहां पुलिस की चेकिंग चल रही थी। वहां तैनात थानादार साहब अपनी वर्दी के घमंड में हर गुजरती गाड़ी को रोक कर चालान काटने का डर दिखाकर रिश्वत वसूल रहे थे।

जैसे ही थानादार की नजर कविता पर पड़ी, उसने बाइक रोक ली और कड़क आवाज में बोला, “ओए रुक! यह कैसी बाइक चला रही हो? नंबर प्लेट टूटी हुई है, इंडिकेटर नहीं है, हेलमेट भी नहीं पहना। तुम्हारा चालान कटेगा।” कविता, जो दूधवाली के भेष में थी, बोली, “साहब, मैं बहुत गरीब औरत हूं। रोज दूध बेचकर जैसे-तैसे गुजारा करती हूं। मेरे पास चालान भरने के पैसे नहीं हैं।” यह सुनकर थानादार का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने चिल्लाकर कहा, “गरीब है तो क्या हुआ? अगर चालान नहीं कटवाना चाहती, तो एक काम कर जल्दी से कुछ खर्चा-पानी दे दे। हमारी जेब गर्म कर, नहीं तो तेरा चालान काटना पड़ेगा।” यह कहते हुए उसने औरत की बाइक की चाबी निकाल ली।

कविता ने फिर विनती की, “साहब, रहम कीजिए। मैं सचमुच गरीब हूं। दूध बेचकर ही अपने बच्चों का पेट पालती हूं।” लेकिन थानादार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। अब सवाल यह था कि आखिर एक औरत पुलिस अफसर को दूधवाली का भेष बनाकर वहां आने की क्या जरूरत पड़ गई थी? यहां ऐसा कौन सा बड़ा वाकया हुआ था जिसकी वजह से कविता सिंह ने यह रूप इख्तियार किया था? आगे जो होगा, वह बड़ा ही हैरतअंगेज होने वाला था।

शहर से लगभग पचास किलोमीटर दूर रामपुर नाम का एक छोटा सा गांव था। इस गांव की हवा में मेहनत की खुशबू और खेतों की मिट्टी की महक बसी रहती थी। उसी गांव में रामलाल नाम का एक बूढ़ा किसान रहता था। उसकी पूरी दुनिया उसकी छोटी सी जमीन और सब्जियों की खेती थी। इस साल कद्दू की फसल बहुत अच्छी हुई थी। रामलाल ने अपनी पूरी जमा पूंजी लगाकर एक पुराना सा खटारा टेमो खरीदा था ताकि अपनी सब्जियां सीधे शहर की मंडी में बेच सके और कुछ ज्यादा कमा सके। उसे अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे जोड़ने थे।

एक रात रामलाल ने अपने बेटे के साथ मिलकर टेमो में ताजा कद्दू भर दिए। उसके चेहरे पर उम्मीद की चमक थी। उसने बेटे से कहा, “देख बेटा, इस बार मंडी में अच्छा भाव मिलेगा। तेरी बहन के लिए एक सोने की बाली तो बन ही जाएगी।” बाप-बेटा रात के दो बजे घर से निकले ताकि सुबह-सुबह मंडी पहुंच सकें। गांव से शहर को जोड़ने वाला हाईवे सुनसान था। कुछ दूर चलने के बाद उन्हें दूर से बैरिकेड और पुलिस की बत्तियां जलती-बुझती नजर आईं। यह हाईवे पर बना एक अस्थाई चेक पोस्ट था।

"Jab SP Madam Doodh Wali Bani, Daroga Ne Vasooli Ki Aur Phir Jo Hua"

टेमो जैसे ही पास पहुंचा, एक हवलदार ने हाथ दिखाकर उसे किनारे लगाने का इशारा किया। टेमो से उतर कर रामलाल मोटे से दिखने वाले थानादार के पास पहुंचा। थानादार का नाम बलबीर सिंह था। वह अपनी कुर्सी पर ऐसे बैठा था जैसे किसी सल्तनत का बादशाह हो। बलबीर ने पान चबाते हुए पूछा, “हां भाई, कहां जा रहा है?” रामलाल ने हाथ जोड़कर कहा, “मालिक, मंडी जा रहा हूं, सब्जी ले जा रहा हूं बेचने।” बलबीर ने टेमो को ऊपर से नीचे तक देखा, उसकी नजरें ऐसी थीं जैसे एक्सरे मशीन हो जो सामने वाले की जेब का वजन तुरंत तौल लेती हो।

रामलाल ने कांपते हाथों से कागज दिखाए, कागज पूरे थे। फिर भी बलबीर का दिल नहीं भरा। “अरे तेरी गाड़ी की हेडलाइट ठीक से नहीं जल रही, पीछे का इंडिकेटर टूटा हुआ है, ऊपर से ओवरलोडिंग कर रखी है। इसका तो भारी चालान कटेगा।” रामलाल के पैरों तले जमीन खिसक गई। “साहब ऐसा मत कहो, मैं गरीब आदमी हूं। पहली बार अपनी गाड़ी लेकर शहर जा रहा हूं। बेटी की शादी करनी है। चालान भर दूंगा तो सब बर्बाद हो जाएगा।” वह लगभग गिड़गिड़ाने लगा।

बलबीर सिंह हंसा। उसकी हंसी में दया नहीं बल्कि एक शिकारी की सख्ती थी। “देख बुड्ढे, हम भी यहां मच्छर मारने नहीं बैठे। कुछ खर्चा-पानी कर और निकल जा। नहीं तो गाड़ी यहीं खड़ी रहेगी सुबह तक।” खर्चा-पानी का मतलब रामलाल को अच्छे से मालूम था। उसने अपनी जेब में हाथ डाला। बेटी की बाली के लिए जोड़े हुए पाँच सौ रुपये के कुछ नोट थे। उसने डरते-डरते पाँच सौ का एक नोट निकालकर बलबीर की तरफ बढ़ाया। बलबीर ने नोट को ऐसे देखा जैसे कोई भिखारी का सिक्का देख रहा हो। फिर उसने जोर से हवलदार को आवाज लगाई, “ओए श्यामू, जरा इनकी गाड़ी को साइड में लगवा दे। लगता है इन्हें सुबह का सूरज यहीं से देखना है।”

रामलाल समझ गया। उसने हिम्मत जुटाकर दो हजार रुपये और निकालकर थानादार के हाथ में रख दिए। उसकी आंखों में आंसू थे या फिर बेटी के सपनों की कीमत। बलबीर ने पैसे जेब में रखते हुए कहा, “चल ठीक है, अब दफा हो जा और आइंदा याद रखना इस रास्ते का टैक्स वक्त पर पहुंचना चाहिए।” जब तक रामलाल मंडी पहुंचा, सुबह के आठ बज चुके थे। गर्मी और देर की वजह से आधे से ज्यादा कद्दू पीली पड़ चुकी थी, नरम हो गई थी। उन्हें ओने-पौने दामों में बेचना पड़ा। जहां हजारों का मुनाफा होना था, वहां घाटा हो गया।

रामलाल घर तो लौट आया, लेकिन उसकी रूह वहीं हाईवे पर मर चुकी थी। पहले से ही उस पर कर्ज था, यह नुकसान उसे तोड़ गया। कुछ दिन बाद गांव वालों को खबर मिली कि रामलाल ने अपने ही खेत में पेड़ से लटक कर जान दे दी। यह खबर अखबार के एक छोटे से कोने में छपी। शायद ही किसी ने ध्यान दिया, लेकिन यह फाइल एसपी ऑफिस की मेज पर पहुंच गई।

पुलिस अफसर कविता सिंह के पास। कविता सिंह अपने नाम की तरह नरम नहीं बल्कि फौलाद की तरह सख्त थी, खासकर जब बात वर्दी और फर्ज की आती थी। वह खुद भी एक छोटे से गांव से पढ़-लिखकर यहां तक पहुंची थी और गरीबी को बहुत करीब से देखा था। रामलाल की फाइल पढ़ते हुए उसकी आंखों में आंसू नहीं बल्कि अंगारे थे। उसने अपने सबसे भरोसेमंद इंस्पेक्टर राजेश शर्मा को बुलाया। “शर्मा, यह फाइल पढ़ो। यह सिर्फ एक किसान की खुदकुशी नहीं है। यह एक कत्ल है जिसे हमारे ही डिपार्टमेंट के कुछ कीड़ों ने अंजाम दिया है।” कविता की आवाज में गुस्सा और दर्द दोनों थे।

शर्मा ने फाइल पढ़ी, उसका भी खून खौल गया। “मैडम, यह तो रोज की कहानी है। इस हाईवे पर बलबीर सिंह और उसकी टीम ने लूटमार का धंधा चला रखा है। ट्रक वाले, सब्जी वाले, दूध वाले, कोई भी बिना टैक्स दिए गुजर नहीं सकता।” कविता ने पूछा, “शिकायत क्यों नहीं करता कोई?” “कौन करेगा मैडम? गरीब तो डरते हैं और बड़े ट्रक वाले सोचते हैं कि 500 से 1000 देकर झंझट से बचना ही ठीक है। बलबीर के ऊपर भी किसी बड़े अफसर का हाथ बताया जाता है।”

कविता कुछ देर सोचती रही। उसकी नजरें सामने दीवार पर लगे राष्ट्रीय चिन्ह पर टिक गईं। अगर सिस्टम के अंदर का कीड़ा सिस्टम से नहीं निकलता, तो हमें सिस्टम से बाहर जाकर उसे पकड़ना होगा। मतलब, मैडम, शर्मा चौंक गया। मतलब यह कि अब मैं खुद इस खेल में उतरूंगी। एक स्टिंग ऑपरेशन होगा, लेकिन कोई कैमरा नहीं, कोई माइक नहीं। मैं ही सबूत बनूंगी।

कविता ने पूरा प्लान बनाया। वह जानती थी कि अगर वह अफसर बनकर जाती तो बलबीर जैसे लोग तुरंत चौकन्ने हो जाते। उसे उनके जैसा ही बनना था, उनमें से एक-एक आम लाचार और आसान शिकार। अगले दो दिन बस तैयारी में निकल गए। एक बहुत ही पुरानी खटारा मोटरसाइकिल का इंतजाम किया गया। उसके पीछे वैसे ही बड़े-बड़े एलुमिनियम के ड्रम कस दिए गए जैसे दूध वाले इस्तेमाल करते हैं। कविता ने अपनी अलमारी से सबसे पुरानी और फीके रंग की साड़ी निकाली। बाल बिखरा लिए। चेहरे पर धूल और कालिख मल ली ताकि लगे जैसे वह धूप और चूल्हे के धुएं में काम करने वाली कोई साधारण देहाती औरत हो।

जब वह आईने के सामने खड़ी हुई तो खुद अपनी पहचान पर उसे शक हुआ। वह पुलिस अफसर कविता सिंह नहीं बल्कि गांव की कोई कमला लग रही थी जो रोज दूध बेचकर बच्चों का पेट पालती है। ऑपरेशन वाली सुबह उसने अपनी टीम को समझाया, “मैं अकेली जाऊंगी। तुम लोग मुझसे कम से कम दो किलोमीटर दूर अलग-अलग गाड़ियों में सिविल कपड़ों में रहना। जब तक मैं इशारा न दूं कोई आगे नहीं बढ़ेगा।”

शर्मा ने फिक्र जताई, “मैडम, यह बहुत रिस्की है।” कविता हल्की मुस्कुराई, “रिस्क तो सड़क पार करने में भी होता है, शर्मा। लेकिन जब वर्दी का मान दाम पर लगा हो तो हर रिस्क छोटा लगता है।” उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर शर्मा को पकड़ा दी। “इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। आज मेरा सबसे बड़ा हथियार मेरी लाचारी होगी।”

सुबह का समय था। सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था। सड़क पर हल्की ठंडक थी। कविता अपनी पुरानी मोटरसाइकिल पर दूध के ड्रम बांधकर धीरे-धीरे उसी हाईवे पर बढ़ रही थी। बाइक से आती खटरपटर की आवाज उसके किरदार को और असली बना रही थी। देखने वाला कोई भी उसे एक आम दूध वाली ही समझता। लेकिन उस साड़ी के पीछे छुपा था तेज दिमाग और फौलादी इरादा। दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, मगर चेहरे पर उसने थकान और गरीबी का नकाब डाल रखा था।

वह जानबूझकर उसी इलाके में पहुंची जहां पुलिस की चेकिंग चल रही थी। वही बैरिकेड, वही चेक पोस्ट और वही थानादार बलबीर सिंह कुर्सी पर अकड़ कर बैठा था। जैसे ही बलबीर की नजर उस दूध वाली औरत पर पड़ी, उसकी आंखों में वही शिकारी चमक आ गई। एक आसान शिकार। उसने हवलदार को इशारा किया। हवलदार ने डंडा बाइक के आगे कर दिया।

कविता ने धीरे से गाड़ी रोकी। बलबीर कुर्सी से उठा और अकड़ते हुए बाइक के पास पहुंचा। उसने ऊपर से नीचे तक कविता को घूरा। उसकी गंदी नजरें कविता के जिस्म पर रेंग रही थीं, जिससे कविता को घिन हो रही थी। गुस्सा काबू करना मुश्किल था, मगर उसने खुद को समझाया, “खामोश रह, कविता। तू यहां कमला है, एक बेबस औरत।”

“ओए रुक!” बलबीर की कड़क आवाज गूंजी, “यह कैसी गाड़ी चला रही है? नंबर प्लेट टूटी हुई है, इंडिकेटर नहीं जल रहा, हेलमेट भी नहीं पहना। कहां से आ रही है?” कविता बाइक से उतरी, दुपट्टा नीचे खींचा और डरी हुई आवाज में बोली, “साहब, पास के गांव से आ रही हूं, शहर में दूध देने जा रही हूं।” उसकी आवाज में कम कंपाहट थी, जानबूझकर पैदा की हुई।

बलबीर ने रब झाड़ते हुए कहा, “दूध देने जा रही है या लोगों को मारने? इस खटारा गाड़ी से अगर किसी को ठोकर लग गई तो सीधा 5000 का चालान कटेगा।” यह सुनकर कविता ने जैसे आसमान सिर पर उठा लिया। उसने हाथ जोड़ लिए, आंखों में बेबसी भर ली, “नहीं साहब, ऐसा जुल्म मत कीजिए। मैं बहुत गरीब औरत हूं। रोज दूध बेचकर जैसे-तैसे बच्चों का पेट पालती हूं। मेरे पास चालान भरने के पैसे कहां से आएंगे? घर का किराया देना है, बच्चों की फीस भरनी है। रहम करिए साहब।”

उसने अपने किरदार में रामलाल का दर्द घोल दिया था। वह हर उस गरीब की आवाज बन गई थी जिसे बलबीर जैसे लोग रोज लूटते थे। बलबीर का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसे लगा यह औरत उसकी ताकत को चुनौती दे रही है। वह गरज कर बोला, “गरीब है तो क्या हुआ? कानून सबके लिए बराबर है। हुकूमत ने नियम बनाए हैं तो क्या हम यहां मजाक करने बैठे हैं?” फिर उसने आवाज धीमी की और चालाक लहजे में बोला, “देख, मैं भी समझता हूं, तू भी परेशान है। अगर चालान नहीं कटवाना चाहती तो जल्दी से कुछ खर्चा-पानी दे दे, हमारी जेब गर्म कर। फिर हम भी तुझे जाने देंगे, नहीं तो तेरा चालान काटना पड़ेगा।”

यह कहते हुए उसने एक बहुत घिनौनी हरकत की। वह आगे बढ़कर बाइक की चाबी निकाल लाया। “जब तक हिसाब नहीं होगा, चाबी नहीं मिलेगी।” अब खेल असली मोड़ पर आ गया था। कविता को यही चाहिए था। रिश्वत की सीधी मांग। कविता ने फिर से गिड़गिड़ाने का नाटक किया, “साहब कृपया मुझ पर रहम कीजिए। मैं सचमुच गरीब हूं। दूध बेचकर ही अपने बच्चों का पेट पालती हूं। आज जो भी कमाऊंगी वह भी आप ले लेंगे तो मेरे बच्चे क्या खाएंगे?” उसकी आंखों से दो बूंद आंसू भी टपक पड़े। यह आंसू सिर्फ अदाकारी नहीं थे, यह उस दर्द के आंसू थे जो उसे रामलाल और उसके जैसे हजारों लोगों के लिए महसूस हो रहा था।

लेकिन थानेदार बलबीर पर इसका कोई असर नहीं हुआ। वह अपनी जिद पर डटा रहा, “अरे यह रोने-धोने का ड्रामा मेरे सामने मत कर। बहुत देखे हैं तेरे जैसे। सीधी बात कर, पैसे दे रही है या तेरी गाड़ी को थाने में बंद करवा दूं।” कविता ने अपनी साड़ी के पल्लू में बंधी एक छोटी सी पोटली खोली। उसमें कुछ सौ के नोट और बहुत से सिक्के थे। उसने कांपते हाथों से ₹200 निकाले और बलबीर की ओर बढ़ाए, “साहब, आज की कमाई में से बस यही है मेरे पास। यह रख लो और मुझे जाने दो।”

बलबीर ने उन नोटों को ऐसे झटक दिया जैसे वे कागज के टुकड़े हों। “₹200? यह क्या भीख दे रही है मुझे? तेरी बाइक का चालान 5000 का है। कम से कम 1000 तो निकाल नहीं तो भूल जा अपनी गाड़ी।” कविता के भीतर का पुलिस अफसर अब जाग चुका था। उसे गुस्सा आ रहा था, लेकिन उसने खुद पर काबू रखा। उसने सोचा, उसका लालच ही उसे फंसाएगा। “बस थोड़ा और साहब, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं। आप चाहे तो यह दूध के ड्रम रख लीजिए, यही मेरी जमा पूंजी है।” उसने आखिरी दाम खेला।

बलबीर जोर से हंसा, “दूध का मैं क्या करूंगा? चल ठीक है, आखिरी मौका दे रहा हूं, ₹500 निकाल और दफा हो जा।” कविता ने सिर झुका लिया जैसे वह हार मान गई हो। उसने धीरे से कहा, “ठीक है साहब, देती हूं।” उसने अपनी पोटली फिर से खोली। पैसे निकालने का नाटक करते हुए उसने अपनी साड़ी का पल्लू अपने कंधे से एक खास अंदाज में सरकाया। यह एक इशारा था।

जैसे ही कविता ने सिग्नल दिया, हाईवे पर दूर खड़ी एक पुरानी वैन और एक कार के दरवाजे खुले। साधारण कपड़ों में इंस्पेक्टर शर्मा और उनकी टीम तेजी से बाहर निकले। उन्होंने पल झपकते ही चेक पोस्ट को चारों तरफ से घेर लिया। बलबीर सिंह और उसके हवलदार कुछ समझ पाते उससे पहले ही वे गिर चुके थे।

बलबीर ने जब अपनी ओर आते लोगों को देखा तो वह बौखला गया, “कौन हो तुम लोग? हटो यहां से, पुलिस के काम में दखल दे रहे हो।” तभी उसके सामने खड़ी दूध वाली औरत आहिस्ता से सीधी खड़ी हुई। उसने अपना दुपट्टा हटा दिया। उसकी झुकी हुई कमर सीधी हो गई। उसकी डरी हुई आंखों में अब फौलादी चमक थी और उसकी कांपती हुई आवाज अब किसी शेरनी की दहाड़ जैसी हो गई थी।

थानेदार बलबीर सिंह कविता की आवाज सुनकर होश उड़ गए। “यह वही आवाज नहीं थी जो गिड़गिड़ा रही थी। आप कौन?” बलबीर की जुबान लड़खड़ा गई। कविता ने अपनी साड़ी के अंदर से अपना आईडी कार्ड निकाला और उसके चेहरे के सामने कर दिया। “एसपी कविता सिंह, तुम्हारी जेब गर्म करने आई हूं। निकालो जितने भी पैसे आज तक गरीबों से लूटे हैं, सब निकालो।”

आईडी कार्ड पर उसका नाम और तस्वीर देखकर बलबीर सिंह के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उसका चेहरा जो गुस्से से लाल था, अब डर से पीला पड़ गया। उसके हाथ-पांव कांपने लगे। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस औरत को वह ₹200 के लिए जलील कर रहा था, वह खुद झिले की एसपी है।

“मैडम, वो वो तो मैं बस मजाक कर रहा था,” वह कुछ कहने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसके शब्द गले में अटक गए। “मजाक?” कविता गर्जी, “रामलाल नाम का किसान याद है तुझे? जिससे तूने हजारों रुपए लूटे थे? तेरी वजह से वह मर गया। यह मजाक था? हजारों गरीब लोग जिन्हें तुम रोज लूटते हो, जिनके बच्चों के मुंह से निवाला छीनते हो, वो मजाक है।”

इंस्पेक्टर शर्मा आगे बढ़ा और बलबीर की कलाई पकड़ कर हथकड़ी लगा दी। बलबीर की सारी अकड़ हवा हो गई थी। वह एक कांपते हुए पत्ते की तरह जमीन पर गिर पड़ा और कविता के पैरों में पड़ गया। “माफ कर दो मैडम, गलती हो गई, मेरे भी बच्चे हैं।” कविता ने नफरत से उसकी ओर देखा, “जब तुम रामलाल से पैसे छीन रहे थे तब तुम्हें उसके बच्चे याद नहीं आए। जब तुम मुझसे मेरे बच्चों का वास्ता छीन रहे थे तब तुम्हें अपने बच्चे याद नहीं आए। तुम्हारे जैसे लोग इस वर्दी पर एक दाग हैं।”

टीम ने बाकी हवलदारों को भी पकड़ लिया। बलबीर की जेब से रिश्वत के पैसे बरामद हुए, जिनमें वह ₹200 भी थे जो कविता ने उसे दिए थे। वे नोट पहले ही माफ थे। बलबीर सिंह की गिरफ्तारी बस एक शुरुआत थी। जब उससे सख्ती से पूछताछ की गई तो उसने पूरे रैकेट का पर्दाफाश कर दिया। उसने बताया कि इस लूटमार का मास्टरमाइंड डीएसपी राठौर है और लूटी हुई रकम का बड़ा हिस्सा उसी के पास जाता है।

अगले ही दिन कविता सिंह ने अपनी टीम के साथ डीएसपी राठौर के घर और दफ्तर पर छापा मारा। राठौर को उसके घर से गिरफ्तार किया गया। उसके घर से बेहिसाब नकदी और जमीन-जायदाद के कागजात मिले जो उसकी तनख्वाह से कहीं ज्यादा थे। यह खबर आग की तरह फैल गई। पूरे पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया। जो लोग कल तक बलबीर और राठौर को सलाम करते थे, आज उनकी ओर देखना भी गवारा नहीं कर रहे थे।

कुछ दिन बाद कविता सिंह रामपुर गांव गई। वह सीधे रामलाल के घर पहुंची। एक टूटी-फूटी झोपड़ी के बाहर रामलाल की बूढ़ी बीवी और उसका जवान बेटा बैठे थे। उनकी आंखों में अब भी वही खालीपन था। कविता ने अपनी अवसर वाली गाड़ी जरा दूर ही रुकवाई और पैदल चलकर उनके पास गई। उसने बहुत नरमी से कहा, “मैं एसपी कविता सिंह हूं। आपके पति के साथ जो हुआ, उसके गुनहगारों को सजा मिल चुकी है।”

रामलाल की बीवी रोते हुए उसके हाथ पकड़ कर बोली, “क्या इससे मेरा आदमी वापस आ जाएगा, मैडम?” कविता के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था। उसकी आंखें भी नम हो गईं। उसने कहा, “नहीं मां जी, मैं आपके पति को वापस तो नहीं ला सकती, लेकिन मैं यह वादा कर सकती हूं कि अब इस हाईवे पर कोई दूसरा रामलाल नहीं बनेगा। आपके बेटे की जिम्मेदारी अब हमारी है। अगर वह चाहे तो मैं उसे पुलिस फोर्स में भर्ती करवाने की प्रक्रिया शुरू कराऊंगी।”

उस दिन उस छोटे से गांव में सिर्फ इंसाफ नहीं हुआ था, बल्कि भरोसे की एक नई किरण भी जगी थी। रात में जब कविता अपने दफ्तर में बैठी थी तो उसकी नजर अपनी वर्दी पर पड़ी। उसी वर्दी को पहनकर बलबीर और राठौर जैसे लोग जुल्म करते थे और उसी वर्दी को पहनकर उसने उन जालिमों को सजा दी थी। उसने सोचा, “वर्दी बुरी नहीं होती, बुरे होते हैं उसे पहनने वाले कुछ लोग। और जब तक हम जैसे अफसर मौजूद हैं, हम इन दागों को धोते रहेंगे, चाहे इसके लिए हमें दूध वाली बनना पड़े या कुछ और।”

उसके चेहरे पर एक गहरी शांति और सुकून था। फर्ज निभाने का सुकून। थानेदार बलबीर सिंह और डीएसपी राठौर की गिरफ्तारी को कुछ महीने गुजर चुके थे। पूरे जिले में पुलिस अफसर कविता सिंह के नाम की धूम थी। लोग उसे अब सिर्फ एक पुलिस अफसर नहीं बल्कि एक मसीहा की तरह देखने लगे थे। गरीबों के लिए उसके दफ्तर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। “मैडम है तो इंसाफ मिलेगा,” यह बात लोगों के दिलों में बैठ चुकी थी।

रामलाल का बेटा मोहन अब पुलिस ट्रेनिंग के लिए जा चुका था। जब भी वह छुट्टियों में आता तो कविता से जरूर मिलता। उसकी आंखों में एक नया आत्मविश्वास और वर्दी पहनने का जुनून देखकर कविता को बहुत सुकून मिलता। उसे लगता कि उसने रामलाल को दिया हुआ वादा पूरा कर दिया है।

लेकिन यह सुकून एक तूफान से पहले की खामोशी थी। एक सुबह इंस्पेक्टर शर्मा, जो अब कविता का सबसे भरोसेमंद हाथ बन चुका था, परेशान चेहरा लिए उसके केबिन में दाखिल हुआ। “मैडम, एक बुरी खबर है। डीएसपी राठौर के खिलाफ जो सबसे अहम गवाह था, हवलदार श्यामू, उसकी जेल में मौत हो गई है।” कविता चौंक गई। श्यामू वही हवलदार था जिसने बलबीर के कहने पर रामलाल का टेमो रोका था और बाद में सरकारी गवाह बन गया था।

“कैसे? क्या हुआ उसे?” प्रशासन कह रहा है कि उसने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली, डिप्रेशन में था। शर्मा ने बताया, लेकिन उसकी आवाज में शक साफ झलक रहा था। कविता अपनी कुर्सी से खड़ी हो गई। उसकी नजरें तेज हो गईं। “खुदकुशी? एक ऐसा आदमी जो अपनी सजा कम करवाने के लिए सब कुछ सच-सच बताने को तैयार था, वो खुदकुशी क्यों करेगा?” शर्मा बोला, “यह खुदकुशी नहीं कत्ल है। किसी ने उसे चुप करा दिया है। मुझे भी यही लगता है, मैडम। राठौर कोई छोटा-मोटा खिलाड़ी नहीं था। उसके तार बहुत ऊपर तक जुड़े हैं। लगता है हमने सिर्फ मकड़ी को पकड़ा है, पूरा जाल अभी बाकी है।”

कविता को एहसास हो गया कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। असल में यह तो अब शुरू हुई है। राठौर और बलबीर तो सिर्फ इस मकड़ी जाल की छोटी-छोटी मछलियां थे। असली शिकारी तो अभी भी आजाद घूम रहा था और अपने सुराख मिटा रहा था। कविता ने पुर्ज़ोर आवाज में कहा, “शर्मा, श्यामू की मौत की फाइल मंगवाओ। हम इस केस की दोबारा खामोशी से तफ्तीश करेंगे। किसी को कानों कान खबर नहीं होनी चाहिए।”

इस बार हमारा सामना किसी थानेदार या डीएसपी से नहीं बल्कि किसी बहुत बड़ी और खतरनाक ताकत से है। तफ्तीश शुरू हुई लेकिन हर तरफ अंधेरा था। जेल के अंदर से कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था। सब डरे हुए थे। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सारे सबूतों पर पानी फेर दिया हो। एक हफ्ता गुजर गया। कविता और शर्मा के हाथ खाली थे।

एक रात शर्मा कविता के घर पहुंचा। उसके हाथ में एक पुराना फटा हुआ पैकेट था। “मैडम, यह श्यामू के घर से मिला है। उसकी बीवी ने बताया कि श्यामू ने मरने से कुछ दिन पहले यह उसे दिया था और कहा था कि अगर मुझे कुछ हो जाए तो यह पैकेट किसी ईमानदार अफसर को दे देना।” कविता ने पैकेट खोला। अंदर एक छोटी सी डायरी थी। उस डायरी में तारीखों के साथ कुछ अजीब से अल्फाज और नंबर लिखे थे, जैसे “15 मार्च एमएलएल 50 पेटी सीमेंट ट्रक”, “22 मार्च हाईवे कंस्ट्रक्शन 10% सिन्हा सर”, “2 अप्रैल एमएलएल ट्रांसफर नीली बत्ती”।

यह कोड किसी को भी समझ नहीं आते थे, लेकिन कविता की तेज नजर कुछ पकड़ चुकी थी। एमएलएल यह नाम बार-बार आ रहा था और यह सिन्हा सर कौन है? शर्मा पता लगाओ, हमारे सूबे में सिन्हा नाम का कोई सीनियर अफसर है क्या? अगले दिन शर्मा जो मालूमात लाया वह चौंकाने वाली थी। आईजी पुलिस, पुलिस हेड क्वार्टर का नाम इंद्रजीत सिन्हा था। वह रियासत के सबसे ताकतवर अफसरों में से एक था।

“मैडम, आईजी सिन्हा आप सोच भी कैसे सकती हैं?” शर्मा की बात बीच में ही रह गई। “क्यों? क्या बड़े अफसरों पर शक नहीं किया जा सकता?” कविता ने कहा। “और यह एमएलएल मुझे लगता है यह किसी का नाम है। शहर के बड़े बिजनेसमैन और ट्रांसपोर्टरों की लिस्ट निकालो जिनके नाम एएम और एल से शुरू होते हैं।” घंटों की मेहनत के बाद एक नाम सामने आया — मदन लाल। मदन लाल शहर का सबसे बड़ा ट्रांसपोर्ट और कंस्ट्रक्शन का ताजिर था। उसकी पहुंच बड़े-बड़े लीडरों और अफसरों तक थी।

बाहर से वह एक इज्जतदार बिजनेसमैन था, लेकिन अंदर की कहानी कुछ और ही थी। डायरी के कोड अब जुड़ने लगे थे। सीमेंट के ट्रक, 50 पेटी, हाईवे कंस्ट्रक्शन का 10% सब कुछ मदन लाल के बिजनेस से जुड़ा हुआ था। कविता समझ गई कि यह सिर्फ लूटमार का मामला नहीं है, यह एक बहुत बड़ा सिंडिकेट है जो सरकारी ठेकों, ट्रांसपोर्ट और पुलिस की मदद से गैरकानूनी धंधे चला रहा है। और इस सिंडिकेट का सरगना शायद आईजी सिन्हा ही था जो मदन लाल जैसे लोगों के जरिए अपना काम करता था।

राठौर और बलबीर इसी सिंडिकेट के छोटे से हिस्से थे। लेकिन एक आईजी और शहर के सबसे अमीर आदमी के खिलाफ सबूत कहां से लाए? डायरी के कोड अदालत में साबित नहीं किए जा सकते थे। उन्हें एक पुख्ता सबूत चाहिए था। कविता ने फैसला किया, “शर्मा, मुझे मदन लाल के सिंडिकेट के अंदर वर्दी का फर्ज पूरा करते हुए जान दे दूंगी।” शर्मा ने उसकी बात काट दी, “लेकिन चुप नहीं बैठूंगी। इस बार भेष बदलना और भी मुश्किल होगा। मुझे एक ऐसी पहचान चाहिए होगी जिससे मैं मदन लाल के दफ्तर या उसके काम करने की जगह तक पहुंच सकूं।”

दो हफ्तों की प्लानिंग के बाद एक नया किरदार तैयार किया गया। प्रिया शर्मा। प्रिया एक छोटे शहर की पढ़ी-लिखी बेवा थी, जिसके शौहर की हाल ही में एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। उसे अकाउंट्स का थोड़ा बहुत काम आता था और उसे नौकरी की सख्त जरूरत थी। कविता ने अपना लुक पूरी तरह बदल लिया। इस बार वह साड़ी वाली देहाती औरत नहीं बल्कि सलवार-कमीज पहनने वाली एक आम सहमी हुई लोअर मिडिल क्लास औरत बनी। उसने चश्मा लगा लिया और अपने बात करने के तरीके को भी बदल दिया। उसकी चाल-ढाल में एक बेबसी और घबराहट भर दी गई।

पता चला कि मदन लाल के शहर के बाहर बने एक बड़े से गोदाम में एक असिस्टेंट अकाउंटेंट की जगह खाली थी। कविता प्रिया शर्मा बनकर वहां इंटरव्यू देने पहुंच गई। गोदाम का मैनेजर एक चालाक आदमी था। उसने प्रिया यानी कविता से कई सवाल पूछे। कविता ने इतनी सच्चाई और बेबसी से अपनी झूठी कहानी सुनाई कि मैनेजर को उस पर तरस आ गया। मैनेजर ने कहा, “ठीक है, कल से काम पर आ जाऊं, लेकिन याद रखना यहां गलती की कोई माफी नहीं है।”

कविता का पहला कदम कामयाब रहा। वह शेर की गुफा में दाखिल हो चुकी थी। गोदाम में काम करते हुए कविता ने आहिस्ता-आहिस्ता वहां का माहौल समझना शुरू किया। कहने को तो वह सीमेंट और सरिए का गोदाम था, लेकिन रात के अंधेरे में वहां कुछ और ही खेल होता था। जिन ट्रकों में दिन में सीमेंट जाता था, उन्हीं में रात को किसी और सामान की पेटियां लाद दी जातीं। खातों में भी बड़ी गड़बड़ थी। कई ट्रकों की एंट्री तो होती थी, लेकिन उनका माल कहां जाता था, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं था।

कविता रोज रात को रुक कर छुपकर इन सरगर्मियों पर नजर रखती। वह अपने दिमाग में सब कुछ रिकॉर्ड कर रही थी। उसने अपनी एक्टिंग इतनी शानदार रखी थी कि किसी को भी उस पर शक न हुआ। सब उसे एक बेचारी डरी-सहमी औरत ही समझते थे। एक रात उसने अपनी जान पर खेलकर मैनेजर के केबिन से एक पेन ड्राइव कॉपी कर ली जब वह चाय पीने बाहर गया हुआ था। उसे पता था कि इस पेन ड्राइव में गोदाम के असली हिसाब किताब का पूरा कच्चा चिट्ठा हो सकता है।

पेन ड्राइव हाथ लगते ही कविता ने आधी रात को इंस्पेक्टर शर्मा को एक सुनसान जगह पर मिलने के लिए बुलाया। शर्मा ने जब पेन ड्राइव का डाटा लैपटॉप पर खोला तो दोनों की आंखें फटी की फटी रह गईं। उसमें सिर्फ हिसाब किताब नहीं बल्कि हर गैरकानूनी डिलीवरी, हर अफसर को दी गई रिश्वत और हर महीने आईजी सिन्हा को पहुंचाए जाने वाले हिस्से का पूरा रिकॉर्ड था। यह एक ऐसा सबूत था जो पूरे सिंडिकेट को तबाह कर सकता था।

“शर्मा, कल सुबह हम मदन लाल और उसके पूरे गैंग को उठाएंगे। पूरी टीम तैयार रखना। यह ऑन ऑपरेशन अब और नहीं टाला जा सकता।” कविता ने हुक्म दिया। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। अगले दिन जब कविता प्रिया के रूप में गोदाम पहुंची तो माहौल कुछ बदला हुआ था। मैनेजर उसे घूर-घूर कर देख रहा था। शायद किसी ने उन्हें खबर कर दी थी या मैनेजर को पेन ड्राइव के गायब होने का शक हो गया था।

कविता अपना काम कर रही थी कि अचानक गोदाम में चार काली गाड़ियां आकर रुकीं। उनमें से खुद मदन लाल उतरा। उसके साथ उसके खूंखार गुंडे थे। मदन लाल सीधा कविता के पास आया, “प्रिया शर्मा, बहुत अच्छा काम कर रही हो तुम। इतना अच्छा कि मेरे सिस्टम में सेंध लगा दी।” कविता का दिल धड़क उठा। वह समझ गई कि उसका राज खुल चुका है। उसने कांपती हुई आवाज में कहा, “मैं… मैं… कुछ समझ ही नहीं पा रही, मालिक।”

मदन लाल हंसा, “समझ जाओगी, सब समझ जाओगी। हमें खबर मिली है कि शहर में एक नई आईपीएस आई है जो भेष बदलने में माहिर है और तुम्हारी आंखों में एक पुलिस वाले की ही चमक है।” इससे पहले कि कविता कुछ कर पाती, दो गुंडों ने उसे पकड़ लिया। उसका फोन छीन लिया गया। वह अब अकेली थी और दुश्मनों से घिरी हुई थी।

मदन लाल ने उसकी गर्दन पकड़ते हुए पूछा, “बताओ, कौन हो तुम? और तुम्हारे साथ कौन-कौन मिला हुआ है?” कविता खामोश रही। उसने अपनी ट्रेनिंग को याद किया, “डरना नहीं है, हिम्मत नहीं हारनी है।” “नहीं बताओगी?” मदन लाल ने अपने आदमी को इशारा किया, “इसे पीछे वाले कमरे में ले जाओ। इसे प्यार से पूछो। यह सब उगल देगी।”

गुंडे उसे घसीटते हुए एक अंधेरे कमरे में ले गए। कविता जानती थी कि अब उसके पास ज्यादा वक्त नहीं है। शर्मा और उसकी टीम बाहर सिग्नल का इंतजार कर रही होगी, लेकिन सिग्नल देने का कोई रास्ता नहीं था। तभी उसे एक तरकीब सूझी। जिस कमरे में उसे बंद किया गया था, वहां एक छोटी सी खिड़की थी जो बाहर की तरफ खुलती थी। उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर कमरे में पड़े एक लोहे के डिब्बे को उस खिड़की पर दे मारा।

खड़ाक की जोरदार आवाज हुई। यह आवाज सिग्नल नहीं थी, लेकिन गोदाम के बाहर इंतजार कर रहे इंस्पेक्टर शर्मा को कुछ गड़बड़ होने का अंदाजा हो गया। “टीम तैयार हो जाओ, लगता है मैडम मुश्किल में है, हमें अंदर जाना होगा।” और फिर वही हुआ जिसकी मदन लाल ने कभी सोच भी नहीं थी। पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाते हुए गोदाम को चारों तरफ से घेर लिया। कमांडोस ने दरवाजे तोड़कर अंदर धावा बोल दिया।

मदन लाल और उसके गुंडे जब तक कुछ समझ पाते वे पुलिस की गिरफ्त में थे। शर्मा दौड़ता हुआ उस कमरे में पहुंचा जहां कविता को बंद किया गया था। दो गुंडे उसे धमका रहे थे, लेकिन कविता ने भी एक को कुर्सी मारकर गिरा दिया था। उसके चेहरे पर खरोचे थीं, मगर आंखों में जीत की चमक थी। कविता ने मुस्कुराते हुए कहा, “देर कर दी, शर्मा आते-आते।”

मदन लाल की गिरफ्तारी और उस पेन ड्राइव के सबूत ने रियासत की सियासत और पुलिस डिपार्टमेंट में भूचाल ला दिया। मीडिया में यह खबर आग की तरह फैल गई। आईजी सिन्हा को मुअत्तल कर दिया गया और उसके खिलाफ इंक्वायरी के हुक्म दिए गए। पूरा सिंडिकेट जड़ से उखड़ गया। इस बार कविता सिंह का नाम सिर्फ जिले में नहीं बल्कि पूरे मुल्क में मशहूर हो गया था।

कुछ महीने बाद पुलिस ट्रेनिंग एकेडमी में पासिंग आउट परेड थी। मोहन, रामलाल का बेटा, आज एक ट्रेंड कांस्टेबल बनकर मुल्क की खिदमत की कसम खा रहा था। कविता को चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया था। जब मोहन परेड करते हुए कविता के सामने से गुजरा और उसे सल्यूट किया तो दोनों की आंखों में एक अलग ही चमक थी। मोहन की आंखों में फखर था और कविता की आंखों में एक मां जैसा सुकून।

उस दिन परेड के बाद कविता ने जवानों को खिताब करते हुए कहा, “यह वर्दी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है। यह एक जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी है रामलाल जैसे हर बेबस इंसान की हिफाजत करने की। याद रखना, जब सिस्टम में बैठे लोग जुल्म करते हैं तो इसी वर्दी को पहनकर कुछ लोग इंसाफ के लिए लड़ते भी हैं। हमेशा वह लड़ने वाले सिपाही बनना, जुल्म करने वाले नहीं।” उसकी आवाज पूरे मैदान में गूंज रही थी और हर नया जवान इस आवाज को अपने दिल में उतार रहा था।

लड़ाई अभी लंबी थी, लेकिन आज एक नई और ईमानदार नस्ल इस लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार खड़ी थी, और यही कविता सिंह की असली जीत थी।

यह कहानी सिर्फ एक पुलिस अफसर की नहीं बल्कि एक यकीन की कहानी थी। यह उस यकीन की कहानी है कि जब नाइंसाफी और बदमाशी का अंधेरा कितना ही गहरा क्यों न हो, सच्चाई और हिम्मत का एक छोटा सा दिया भी उसे खत्म करने की ताकत रखता है। हमने देखा कि कैसे एक अकेली औरत अपनी वर्दी की ताकत से नहीं बल्कि अपने नेक इरादों से समाज में बैठे जड़ को जड़ से उखाड़ फेंकती है।

रामलाल की लाचारी से लेकर मोहन के एजाज तक यह कहानी हमें उस सफर पर ले गई जहां इंसाफ सिर्फ एक लफ्ज नहीं बल्कि एक हकीकत बनकर सामने आया। कविता सिंह के किरदार ने हमें सिखाया कि वर्दी का असल रंग खाकी नहीं बल्कि ईमानदारी है। कभी दूध वाली बनकर तो कभी एक आम नौकरी करने वाली औरत बनकर उसने यह साबित कर दिया कि जब इरादे नेक हों तो कोई भी रूप धरकर बुराई को हराया जा सकता है।

यह कहानी उन सब गुमनाम और ईमानदार अफसरों को सलाम है जो हर दिन खामोशी से, बिना किसी दिखावे के इस मुल्क और समाज को बेहतर बनाने के लिए अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। अगर इस कहानी ने आपके दिल में भी सच्चाई, हिम्मत और ईमानदारी के लिए एक छोटी सी उम्मीद जगाई है, तो हमें आपका साथ चाहिए। इस कहानी को अपना प्यार देने के लिए इसे लाइक जरूर करें, अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करें ताकि अच्छाई और हौसले की यह कहानी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके।

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