अरबपति ने देखा एक भिखारी खुद ढाल बनकर उसके अपाहिज बेटे को तेज बारिश से बचा रहा है

कहते हैं जब दौलत आसमान छूने लगती है, तो इंसान के पैर अक्सर जमीन से उठ जाते हैं। विक्रम सिंह राठौर की दुनिया भी कुछ ऐसी ही थी। वह एक सफल बिजनेसमैन थे, जिनकी जिंदगी कांच की दीवारों, करोड़ों के सौदों और घड़ी की सुइयों पर चलती थी। उनके लिए समय का मतलब पैसा था और इंसान का मतलब सिर्फ एक कर्मचारी या ग्राहक। उनकी दुनिया में भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं थी, सिवाय एक के—उनका बेटा, रोहन।

रोहन एक विशेष बच्चे थे, जो चल नहीं सकते थे। उनकी दुनिया एक व्हीलचेयर तक सीमित थी, लेकिन उनकी मुस्कान में इतनी मासूमियत थी कि विक्रम की पत्थर जैसी शख्सियत भी पिघल जाती थी। विक्रम हर शाम खुद रोहन को स्कूल से लेने जाते थे। यह उनका दिन का वह अकेला पल होता था जब वह सिर्फ एक पिता होते थे, न कि एक बिजनेसमैन।

भाग 2: एक अनजान हीरो

एक दिन, विक्रम ऑफिस में एक जरूरी मीटिंग में व्यस्त थे और थोड़ी देरी हो गई। जब वह स्कूल पहुंचे, तो उनका दिल एक पल के लिए बैठ गया। स्कूल का गेट बंद हो चुका था और रोहन अकेले बरामदे में अपनी व्हीलचेयर पर बैठे थे। बारिश की तेज बौछारें उन पर गिर रही थीं। विक्रम गुस्से में गाड़ी का दरवाजा खोलने ही वाले थे कि उनकी नजर एक और साए पर पड़ी।

वह एक लड़का था, जिसकी उम्र रोहन के बराबर थी। फटे पुराने कपड़ों में, नंगे पैर, वह रोहन के ऊपर झुका हुआ था। उसके हाथ में एक फटा हुआ प्लास्टिक का टुकड़ा था, जिससे वह बारिश की बूंदों से रोहन को बचा रहा था। विक्रम ने उस लड़के को देखा और उनकी अरबों की दौलत उस पल में बौनी लगने लगी। उन्होंने महसूस किया कि इंसानियत खरीदने की चीज नहीं है।

भाग 3: विक्रम का फैसला

विक्रम ने गाड़ी का दरवाजा खोला और बाहर निकले। बारिश की ठंडी बूंदें उनके महंगे सूट को भिगोने लगीं, लेकिन उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं थी। उन्होंने उस लड़के के पास जाकर कहा, “तुम्हारा नाम क्या है?” लड़के ने सहमकर जवाब दिया, “राजू।” रोहन ने कहा, “पापा, यह भैया बहुत अच्छे हैं।” विक्रम की आंखों में एक अजीब सी चुभन हुई।

उन्होंने अपनी जेब से पैसे निकालकर राजू की ओर बढ़ा दिए। “यह लो, तुमने मेरे बेटे की मदद की।” लेकिन राजू ने मुँह मोड़ लिया और कहा, “नहीं साहब, मैंने पैसों के लिए नहीं किया।” विक्रम के लिए यह एक नया अनुभव था। उन्होंने महसूस किया कि राजू ने इंसानियत का वो सबक सिखाया था, जो उन्होंने अपनी दौलत से नहीं सीखा था।

भाग 4: घर में स्वागत

विक्रम ने राजू को अपने घर आने का निमंत्रण दिया। “तुम इस हालत में कहीं नहीं जाओगे। तुम हमारे साथ चलोगे।” राजू हैरान रह गया। “मेरे कपड़े गंदे हैं,” उसने कहा। विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा, “गाड़ियां रोज साफ हो जाती हैं, लेकिन दिल पर लगे दाग साफ नहीं होते।”

राजू गाड़ी में बैठ गया। जब गाड़ी आलीशान बंगले के अंदर पहुंची, तो राजू की आंखें फटी की फटी रह गईं। उसने अपनी जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं देखा था। विक्रम ने उसे गर्म पानी से नहलाने और साफ कपड़े पहनाने के लिए कहा। राजू की दुनिया अब बदलने वाली थी।

भाग 5: दोस्ती का आरंभ

राजू ने विक्रम के घर में पहली बार इतना खाना देखा। उसने कांपते हाथों से पहला निवाला लिया, लेकिन उसकी आंखों में आंसू आ गए। विक्रम ने उसे समझाया, “डरो मत, यह तुम्हारा घर है।” राजू ने खाना शुरू किया। विक्रम ने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा। राजू ने बताया कि कैसे उसके मां-बाप एक सड़क हादसे में गुजर गए और उसके चाचा ने उसे शहर भेज दिया।

विक्रम का दिल भारी हो गया। उन्होंने राजू को वादा किया कि अब वह उनके परिवार का हिस्सा है। रोहन खुशी से ताली बजाने लगा। विक्रम ने अपने घर में एक नई खुशी का माहौल देखा।

भाग 6: लालच का सामना

लेकिन यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिकी। विक्रम का साला सुरेश बिना बताए घर आ गया। उसने राजू को देखकर विक्रम से सवाल किया। “जीजा जी, यह कौन है? आजकल आप सड़क से उठाए हुए बच्चों को घर में पनाह देने लगे हैं?” सुरेश के शब्दों ने माहौल को खराब कर दिया।

विक्रम ने दृढ़ता से कहा, “यह राजू है और यह अब हमारे परिवार का हिस्सा है।” सुरेश ने मन में ठान लिया कि वह राजू को घर से निकालकर ही दम लेगा।

भाग 7: झूठ का पर्दाफाश

कुछ महीने बाद, घर में पैसे का एक बंडल गायब हो गया। सुरेश ने चालाकी से शक की सुई राजू की तरफ मोड़ दी। शारदा जी ने राजू के कमरे की तलाशी ली और पैसों का बंडल राजू के बिस्तर के नीचे मिला। राजू ने कहा, “मैंने नहीं लिया,” लेकिन उसकी आवाज सुनाई नहीं दी।

विक्रम कमरे में पहुंचे और राजू के चेहरे पर आंसू देखे। सुरेश ने आग में घी डालने का काम किया। विक्रम ने राजू को देखा और उनकी आंखों में विश्वास का दुख था।

भाग 8: सच्चाई का सामना

रोहन ने विक्रम से कहा, “पापा, राजू भैया चोर नहीं हैं।” विक्रम ने सबको शांत किया। “जब तक असली चोर पकड़ा नहीं जाता, राजू कहीं नहीं जाएगा।” उन्होंने राजू को रोहन के कमरे में सोने की अनुमति दी।

रात को विक्रम ने सिक्योरिटी कैमरों की रिकॉर्डिंग देखी और सच्चाई सामने आई। सुरेश ने पैसे चुराए और राजू पर आरोप लगाया। विक्रम ने सुबह सभी को इकट्ठा किया और सबको सच्चाई दिखाई।

भाग 9: इंसानियत की जीत

सुरेश का चेहरा सफेद पड़ गया। विक्रम ने कहा, “तुमने सिर्फ पैसे नहीं चुराए, बल्कि एक मासूम बच्चे के सम्मान को चुराने की कोशिश की है।” उन्होंने सुरेश को घर से निकाल दिया।

राजू ने कहा, “आप सब मेरा परिवार हैं। कोई अपने परिवार से नाराज नहीं होता।” उसके शब्दों ने सबका दिल जीत लिया।

भाग 10: नई जिंदगी

सालों बाद, राजू ने मेहनत से पढ़ाई की और एक सफल इंजीनियर बन गया। उसने विक्रम और रोहन का साथ नहीं छोड़ा। विक्रम का घर अब प्यार और भरोसे का मंदिर बन चुका था।

विक्रम अक्सर अपने दोनों बेटों को हंसते हुए देखता और सोचता कि उस एक बारिश के दिन उन्होंने सिर्फ एक भिखारी को नहीं, बल्कि अपनी खोई हुई इंसानियत और अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी को बचाया था।

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि इंसानियत की असली पहचान हमेशा दिल से होती है, और प्यार और सच्चाई की ताकत किसी भी दौलत से बड़ी होती है।

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