“70 साल की बुजुर्ग महिला को बैंक से भिखारी समझकर निकाला गया… फिर जो हुआ उसने सबको हिला दिया…
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सुबह के ग्यारह बजे का वक्त था। शहर की सबसे भीड़भाड़ वाली सड़क पर खड़ा था स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का भव्य भवन। बाहर पार्किंग में महंगी गाड़ियाँ चमचमा रही थीं, लोग सूट-बूट में, टाई बाँधे अंदर-बाहर आ-जा रहे थे। लेकिन उसी भीड़ के बीच एक 70 साल की कमजोर बुजुर्ग महिला धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई बैंक के दरवाजे की ओर बढ़ रही थी।
उस महिला का नाम था शकुंतला देवी।
साधारण सफ़ेद कॉटन की साड़ी, कंधे पर लटका पुराना थैला, एक हाथ में लकड़ी की छड़ी और चेहरे पर उम्र की लकीरें — लेकिन आँखों में एक ऐसी चमक थी जिसे कोई समझ नहीं पा रहा था।
जैसे ही वह बैंक में दाखिल हुई, पूरे हॉल की नज़रें उस पर टिक गईं।
कोई हँस रहा था, कोई उसे शक की नज़रों से देख रहा था, और कुछ तो आपस में फुसफुसा भी रहे थे —
“ये कौन भिखारन यहाँ चली आई? इस बैंक में तो सिर्फ़ अमीरों के खाते हैं…”
पहला अपमान
काउंटर पर बैठा विनय, जो खुद को बहुत तेज़-तर्रार और होशियार समझता था, शकुंतला देवी को आते देख भौंहें चढ़ा लेता है।
शकुंतला देवी धीमी आवाज़ में बोलीं —
“बेटा, मेरे अकाउंट में कुछ समस्या हो गई है। तुम ज़रा देख दोगे क्या?”
विनय ने बिना ढंग से देखे ही थैला धकेलते हुए कहा —
“दादी जी, आप ग़लत जगह आ गई हैं। यहाँ आपका कोई खाता नहीं हो सकता।”
उसकी बात सुनकर पास बैठे लोग खिलखिला कर हँस पड़े। किसी ने कहा,
“ये बुजुर्ग औरत तो पागल लगती है।”
दूसरा बोला,
“लगता है लाइन में खड़े होकर भिख माँगने आई है।”
लेकिन शकुंतला देवी ने कोई जवाब नहीं दिया। बस उतनी ही विनम्रता से कहा —
“बेटा, एक बार देख तो लो। शायद मेरा खाता यहीं हो।”
मैनेजर की बेरुख़ी
आख़िरकार मजबूरी में विनय ने मैनेजर रमेश को फोन मिलाया।
रमेश ने दूर से शकुंतला देवी को देखा और फोन पर ही कहा —
“मेरे पास समय नहीं है। इन्हें बिठा दो। थोड़ी देर बैठेंगी और फिर चली जाएँगी।”
वहां मौजूद हर कोई सोच रहा था —
“ये औरत आखिर यहाँ क्यों आई है?”
कुछ ने तो उसे “भिखारी” तक कह दिया।
एक रोशनी – अविनाश
इसी बीच बैंक का जूनियर कर्मचारी अविनाश अंदर आया। उसने माहौल देखा और समझ गया कि कुछ ग़लत हो रहा है।
वह शकुंतला देवी के पास गया और झुककर बोला —
“दादी जी, आप क्यों आई हैं? आपको किससे मिलना है?”
उसकी विनम्रता सुनकर शकुंतला देवी की आँखें थोड़ी नम हो गईं।
“बेटा, मुझे मैनेजर से कुछ ज़रूरी बात करनी है।”
अविनाश तुरंत मैनेजर के पास गया, लेकिन रमेश ने हँसते हुए कह दिया —
“ये बूढ़ी औरत बस यूँ ही आई है। इसे जाने दो।”
धैर्य की हद
शकुंतला देवी पूरे एक घंटे तक कोने में बैठी रहीं। कोई उन्हें पानी तक देने नहीं आया।
आखिरकार वह उठीं और सीधे मैनेजर के केबिन में चली गईं।
“बेटा, ये देखो। मेरे खाते की जानकारी है। क्यों मेरे लेन-देन बंद हैं?”
रमेश ने हँसते हुए कहा —
“दादी जी, जब खाते में पैसे नहीं होते तो यही होता है। मुझे लगता है आपके पास कुछ भी नहीं है। आप अब यहाँ से चली जाइए।”
पूरा बैंक हँसी में गूंज उठा।
लेकिन उस पल शकुंतला देवी की आँखें पहली बार लाल हुईं।
उन्होंने कहा —
“बेटा, तुमने मुझे कपड़ों से आँका है। लेकिन याद रखना, तुम्हें इसका परिणाम भुगतना होगा।”
सच का खुलासा
जैसे ही वह बाहर निकलीं, अविनाश ने उनका थैला खोला और रिकॉर्ड चेक करने लगा।
कंप्यूटर स्क्रीन पर देखते ही उसके होश उड़ गए।
वह हकबका कर कुर्सी से उठ पड़ा।
फाइल में साफ़ लिखा था —
“शकुंतला देवी – इस बैंक की 60% शेयर होल्डर, बैंक की संस्थापक।”
उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
“हे भगवान! ये तो हमारी मालिक हैं!”
वह दौड़ता हुआ रमेश के पास गया और फाइल रख दी।
“सर, कृपया एक बार देख लीजिए।”
लेकिन अहंकारी रमेश ने फाइल को आगे धकेलते हुए कहा —
“मुझे इस बुजुर्ग औरत में कोई दिलचस्पी नहीं है। निकालो इसे यहाँ से।”
अगला दिन – तूफ़ान
अगले दिन ठीक 11 बजे फिर वही बुजुर्ग महिला बैंक में दाखिल हुईं।
लेकिन आज वह अकेली नहीं थीं। उनके साथ एक सूट-बूट पहना हुआ आदमी था जिसके हाथ में ब्रीफ़केस था।
पूरा बैंक खड़ा हो गया।
सन्नाटा छा गया।
वह सीधे मैनेजर रमेश के पास गईं और बोलीं —
“रमेश, तुम्हें कल चेतावनी दी थी। अब सज़ा भुगतने का वक्त आ गया है।”
सभी के कान खड़े हो गए।
वह आदमी ब्रीफ़केस से काग़ज़ निकालता है और ज़ोर से पढ़ता है —
“आज से बैंक मैनेजर रमेश को उसके पद से हटाया जाता है। उसकी जगह अविनाश को मैनेजर बनाया जाता है।”
पूरा बैंक तालियों से गूंज उठा।
रमेश का चेहरा सफेद पड़ गया। पसीना बहने लगा।
वह गिड़गिड़ाकर बोला —
“मालकिन… मुझे माफ कर दीजिए। मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी।”
लेकिन शकुंतला देवी की आवाज़ ठंडी थी।
“माफी मांगने से ज़्यादा ज़रूरी है सबक लेना। तुम्हें फील्ड वर्क करना होगा। अब समझना कि कपड़ों से इंसान का सम्मान नहीं आँका जाता।”
विनय की डाँट
फिर उन्होंने विनय को बुलाया और कहा —
“बेटा, अगर तुम मुझे एक इंसान की तरह देखते तो आज यह अपमान नहीं होता। याद रखो, इस बैंक की नीति है कि हर ग्राहक बराबर है। अगर तुमने ये भेदभाव दोबारा किया तो अगली सज़ा तुम पर होगी।”
विनय हाथ जोड़कर रो पड़ा।
“दादी जी, मुझे माफ़ कर दीजिए। अब कभी ऐसा नहीं होगा।”
बदलाव की शुरुआत
उस दिन के बाद से बैंक का माहौल बदल गया।
हर कर्मचारी ग्राहकों को सम्मान देने लगा।
अमीर-गरीब का फ़र्क मिट गया।
लोग कहने लगे —
“ऐसी मालिक अगर हर जगह हो जाएं, तो कोई गरीब कभी अपमानित न हो।”
शकुंतला देवी ने अपने कर्मों से साबित कर दिया कि इंसान की ताक़त उसके कपड़ों या पैसे में नहीं, बल्कि उसके इरादों और सोच में होती है।
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