एक होटल मालिक जैसे ही होटल पहुंचा तो उसने एक सफाई कर्मी महिला को रोते हुए देखा, फिर जो हुआ जानकर
एक आलीशान होटल, एक गरीब मां और बिछड़े रिश्तों की कहानी
मुंबई की चमक-धमक में, बांद्रा के समंदर को चुनौती देती ऊँची इमारत—द ग्रैंड ओरिएंटल होटल, जिसमें दौलत, शान और सफलता के पहाड़ खड़े थे। इसी होटल का मालिक था आरव खन्ना, 35 साल का युवा, जिसके पास वो सब कुछ था जो पैसे से खरीदा जा सकता था। लेकिन उसकी दुनिया में एक अजीब सा अकेलापन था, जिसकी दीवारें उसके पेंटहाउस की तरह ठंडी और खामोश थीं। बिजनेस की विरासत उसे उसके पिता राजेश्वर खन्ना से मिली थी, लेकिन परिवार से एक अनकहा फासला सालों से उसकी जिंदगी में था।
पंद्रह साल पहले, आरव का बड़ा भाई समीर, जो कला और संगीत में खुशियां ढूंढता था, अपने घर में काम करने वाली गरीब लेकिन संस्कारी लड़की शांति से प्यार कर बैठा। जब उसने उससे शादी की जिद की, तो पिता ने उसे घर और जायदाद छोड़ने की शर्त दी। समीर ने प्यार चुना, परिवार छोड़ दिया और शांति के साथ गुमनाम जिंदगी शुरू कर दी। आरव उस वक्त सिर्फ 20 साल का था। भाई के जाने का जख्म कभी नहीं भरा, और आरव ने खुद को बिजनेस में डुबो दिया ताकि पिता को बड़े बेटे की कमी महसूस न हो।
इसी मुंबई के दूसरे छोर, धारावी की तंग गलियों में शांति अपने बेटे रोहन के साथ एक छोटी सी खोली में रहती थी। समीर के साथ बिताए दस साल गरीबी में थे, लेकिन प्यार और सम्मान से भरे। पांच साल पहले एक हादसे में समीर की मौत हो गई, और शांति के लिए दुनिया उजड़ गई। लेकिन बेटे की खातिर उसने जीने का फैसला किया। वह लोगों के घरों में काम करती, कपड़े सिलती, बस किसी तरह बेटे को पढ़ा सके।
एक दिन रोहन अचानक बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने बताया कि उसके दिल में छेद है, और ऑपरेशन के लिए पांच लाख रुपये चाहिए। शांति के पास इतने पैसे नहीं थे, लेकिन नौकरी पर जाना जरूरी था। वह भारी मन से होटल पहुंची, जहां उसे वाशरूम की सफाई का काम मिला। वहां, अपनी साड़ी का पल्लू मुंह में ठूंसकर वह फूट-फूटकर रोने लगी।
ठीक उसी वक्त, आरव एक अंतरराष्ट्रीय मीटिंग के बाद लॉबी से गुजर रहा था। उसकी नजर वाशरूम से आती सिसकियों पर गई। उसे लगा, यह उसकी अनुशासित दुनिया में अव्यवस्था है। गुस्से में उसने मैनेजर को बुलाया, लेकिन जब शांति बाहर निकली, उसकी लाल आंखों में दर्द देख आरव का गुस्सा पिघल गया। उसे अपनी मां की आंखों का दर्द याद आ गया—वही बेबसी जब समीर घर छोड़ गया था।
आरव ने शांति से उसकी परेशानी पूछी। शांति ने रोते-रोते अपनी पूरी कहानी, बेटे की बीमारी और पैसों की जरूरत बता दी। आरव ने कोई वादा नहीं किया, बस पूछा—बेटे का नाम और पता। उसने शांति से कहा, आज काम मत करो, घर जाओ। शांति को लगा, बस सहानुभूति मिली है।
लेकिन आरव ने अपने पुराने दोस्त, शहर के सबसे बड़े हार्ट हॉस्पिटल के चीफ सर्जन को फोन किया। फिर अपनी गाड़ी निकालकर धारावी की गलियों में शांति की खोली तक पहुंच गया। वहां उसने देखा—शांति अपने बेटे को गोद में लिए बैठी थी, गरीबी और लाचारी हर कोने में थी, लेकिन मां-बेटे का प्यार असीम था।
तभी हॉस्पिटल की एडवांस्ड एंबुलेंस आई। डॉक्टरों ने रोहन को स्ट्रेचर पर लिटाकर अस्पताल ले जाना शुरू किया। शांति घबराई, “मेरे पास पैसे नहीं हैं।” आरव ने कहा, “चिंता मत करो, इलाज की जिम्मेदारी मेरी है।” शांति अविश्वास में थी, लेकिन अगले कुछ दिन उसके लिए सपने जैसे थे। रोहन को सबसे अच्छे डॉक्टर मिले, और आरव एक पल के लिए भी उन्हें अकेला नहीं छोड़ता था।
ऑपरेशन के दिन, शांति मंदिर में दुआ कर रही थी, और आरव भी उसके साथ हाथ जोड़कर खड़ा था। ऑपरेशन सफल रहा। जब रोहन को होश आया, उसने आरव की कलाई पर बंधी पुरानी चांदी की राखी देखी और पूछा, “अंकल, यह राखी मेरे पापा जैसी है।” शांति ने एक पुरानी तस्वीर दिखाई—समीर और शांति की शादी की तस्वीर। आरव ने देखा, और पहचान गया—यह उसका अपना खोया हुआ बड़ा भाई समीर था। उसकी आंखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला। वह शांति के पैर छूने झुका, “मैं आपका देवर हूं, भाभी। मैं आरव हूं, समीर भैया का छोटा भाई।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। शांति पत्थर की हो गई। आरव ने सब कुछ बता दिया—अपने परिवार की कहानी, भाई के जाने का दर्द, सालों का इंतजार। उस दिन अस्पताल के कमरे में दो बिछड़े रिश्ते, दो टूटे दिल, आंसुओं में फिर से एक हो गए।
आरव, शांति और रोहन को लेकर अपनी प्राइवेट जेट से दिल्ली गया। जब वे खन्ना मेंशन पहुंचे, राजेश्वर और गायत्री खन्ना हैरान रह गए। उन्होंने शांति और रोहन को देखा, तो सब समझ गए। पत्थर बना बाप का दिल पिघल गया। राजेश्वर ने पोते को सीने से लगा लिया, गायत्री अपनी बहू से लिपटकर रोने लगी।
उस रात, खन्ना मेंशन की दीवारों ने सालों बाद एक परिवार को फिर से एक होते देखा। आरव ने शांति को उसका खोया हुआ सम्मान, अधिकार और बिजनेस में बराबर की हिस्सेदारी दी। रोहन को दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा मिली, और वह बड़े होकर अपने ताऊ आरव की तरह बिजनेसमैन बना। आरव को मिल गया—एक परिवार, भाभी का प्यार, भतीजे की हंसी। उसका अकेलापन हमेशा के लिए खत्म हो गया।
यह कहानी हमें सिखाती है कि किस्मत का खेल निराला है। खून के रिश्ते कभी नहीं मरते, नेकी कभी बेकार नहीं जाती। एक दिन लौटकर आपकी जिंदगी को ऐसी खुशियों से भर देती है, जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होती।
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