मुंबई एयरपोर्ट के हैंगर में एक जंगी मोर्चे जैसा माहौल था। एक बड़ा प्राइवेट जेट खड़ा था, जिसका इंजन बार-बार फेल हो रहा था। दर्जनों इंजीनियर अपने औजारों के साथ उसके चारों तरफ जमा थे, माथे पर पसीना, कपड़ों पर ग्रीस के दाग और चेहरों पर मायूसी। छह घंटे बीत चुके थे लेकिन समस्या हल नहीं हो रही थी।
अरबपति बिजनेसमैन मिस्टर वर्मा, जिसकी यह जेट थी, बार-बार अपनी घड़ी देख रहा था। उसे उसी शाम दिल्ली के अहम मीटिंग में जाना था। सब जानते थे कि यह जेट सिर्फ आम विमान नहीं, देश की अर्थव्यवस्था और बिजनेस फैसलों से जुड़ा था। मगर इंजन के टेस्ट बार-बार फेल हो रहे थे। कभी लाल बत्ती, कभी अलार्म, कभी इंजन की अजीब आवाज।
इसी तनाव भरे माहौल में अचानक हैंगर के दरवाजे पर एक दुबली पतली लड़की दिखाई दी। पुराने कपड़े, फटा दुपट्टा, उलझे बाल, चेहरे पर थकान लेकिन आंखों में आत्मविश्वास। उसका नाम था **समीना फातिमा**। वह धीरे-धीरे अंदर आई। सब हैरान थे – यह कौन है? एक गार्ड ने ऊंची आवाज में कहा, “यह कौन है? किसने इसे अंदर आने दिया? बाहर निकालो इसे!”
मगर समीना ने शांत लहजे में कहा, “अगर इजाजत दें तो मैं देख सकती हूं?” उसकी आवाज में ऐसा यकीन था कि सब एक पल के लिए चुप हो गए। एक इंजीनियर ने तंज किया, “छह घंटे से हम हल नहीं कर पाए, यह लड़की क्या कर लेगी?” बाकी इंजीनियर भी हंसने लगे।
तभी मिस्टर वर्मा ने सख्त लहजे में कहा, “रुक जाओ। इसे देखने दो।” सबकी निगाहें समीना पर थीं। समीना आगे बढ़ी, पुराने दस्ताने उतारे, साफ दस्ताने पहने और इंजन के पास झुक गई। उसने इंजन के पार्ट्स को छुआ, क्लैंप पर हल्की चोट दी, सेंसर वायर को गौर से देखा। समीना ने कहा, “यह क्लैंप गलत नाली में है, हवा लीक हो रही है। सेंसर वायर की इंसुलेशन फटी है, ब्रैकेट से टकरा रही है। जब गर्म होती है तो इंजन को गलत सिग्नल देती है।”
इंजीनियर हैरान थे। चीफ इंजीनियर बोला, “हमसे यह कैसे छूट गया?” समीना ने जवाब दिया, “क्योंकि दोनों खराबियां एक-दूसरे को छुपा रही थी। असली हल दोनों को एक साथ ठीक करना है।”
मिस्टर वर्मा ने पूछा, “क्या तुम ठीक कर सकती हो?” समीना ने कहा, “जी, इजाजत हो तो अभी कर दूंगी।” सब जानते थे कि यह इंजन लाखों का है, एक गलती सब बर्बाद कर सकती है। मगर उस लड़की की आंखों में यकीन था।
मिस्टर वर्मा ने कहा, “करो।” समीना ने क्लैंप खोला, सही नाली में सेट किया, सेंसर वायर की इंसुलेशन टेप से ठीक की, ब्रैकेट से हटाकर सुरक्षित बांधा। सबकी सांसें थम गई थीं। समीना ने दस्ताने उतारे और बोली, “हो गया।”
मिस्टर वर्मा ने टेस्ट कराया। इंजन स्टैंड पर फिट हुआ, केबल्स जोड़े गए। मिस्टर वर्मा ने बटन दबाया। एक हल्की आवाज आई, फिर इंजन की गड़गड़ाहट तेज हुई। अचानक लाल बत्ती जली। इंजीनियर घबरा गए। समीना ने बुलंद आवाज में कहा, “रुको, सेंसर नए सिग्नल ले रहा है। वक्त दो।” कुछ देर बाद हरी बत्ती जल उठी। इंजन की आवाज अब एकदम सही थी। पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा।

चीफ इंजीनियर समीना के पास आया, “तुमने हमें बचा लिया।” मिस्टर वर्मा मुस्कुराए, “यह सिर्फ इंजन की कामयाबी नहीं, उम्मीद की शुरुआत है।” उन्होंने ऐलान किया, “यह लड़की अब उम्मीद की निशानी है।”
इंजीनियरों में खुसरफुसर हुई, “क्या तुम वही हो? दिल्ली एयरोस्पेस इंस्टिट्यूट की टॉपर?” समीना ने सिर झुका लिया। सब हैरान थे – वही लड़की जो अखबारों की सुर्खियों में थी, मर्दों के बीच सबसे आगे, मगर अचानक गायब हो गई थी।
मिस्टर वर्मा ने पूछा, “तुम गायब क्यों हो गई?” समीना बोली, “दो साल पहले मेरी दुनिया टूट गई। पिता ने दूसरी शादी की, मां ने जहर मिला खाना बनाया, दोनों चल बसे। मैं इकलौती औलाद थी। सब टूट गया, नौकरी छोड़ दी, दोस्तों से रिश्ता खत्म। कभी भूखी रही, कभी मांग कर खाया।”
हॉल में सन्नाटा था। मिस्टर वर्मा ने कहा, “तुमने मेरा इंजन नहीं, मेरा यकीन भी ठीक कर दिया। इज्जत कपड़ों या नाम की मोहताज नहीं, दिल, हुनर और सच्चाई में है। आज से दुनिया तुम्हें समीना फातिमा के नाम से पहचानेगी।”
अगली सुबह दिल्ली की उड़ान ने समीना की जिंदगी का नया सफर शुरू किया। मिस्टर वर्मा के साथ वह कंपनी के बोर्ड रूम पहुंची। बड़े-बड़े एग्जीक्यूटिव्स बैठे थे। मिस्टर वर्मा ने कहा, “यह है समीना फातिमा, जिसने मेरा जेट ठीक किया।” एक एग्जीक्यूटिव ने तंज किया, “इस पर भरोसा करें?” समीना ने कहा, “मौका दीजिए, फैसला मेरा काम करेगा।”
एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “ठीक है, मौका दो।” स्क्रीन पर इंजन का डिजिटल मॉडल खोला गया। समीना ने डाटा देखा, फॉल्ट की निशानदेही की। लाल बत्ती बुझ गई, हरी बत्ती जल उठी। सब हैरान थे। मिस्टर वर्मा ने ऐलान किया, “इसे मुंबई ब्रांच की हेड बनाओ।” समीना अब सबसे बड़ी एवीएशन कंपनी की हेड थी।
कुछ ही दिन में पहला बड़ा इम्तिहान आया। एक हाई प्रोफाइल बिजनेसमैन का जेट खराब था। सब परेशान थे। रीजनल डायरेक्टर मोहन नायर ने तंज किया, “देखते हैं नई हेड क्या कर सकती है।” समीना ने इंजन का मुआयना किया, “ब्लेड वाल्व में खराबी है।” टेस्ट हुआ, इंजन ठीक चला। सब तालियां बजाने लगे।
मगर मोहन नायर के दिल में साजिश थी। वह सोच रहा था, “यह लड़की ज्यादा दिन टिकेगी नहीं।”
एक दिन मिस्टर वर्मा का बेटा अर्जुन वर्मा, लंदन से पढ़ाई करके आया। बिजनेस मैनेजमेंट में माहिर, कंपनी संभालने आया था। वह समीना से मिला। मीटिंग में समीना की लीडरशिप देखकर अर्जुन हैरान था।
समय बीतता गया। दोनों अक्सर साथ नजर आने लगे। अर्जुन ने महसूस किया कि समीना सिर्फ इंजन नहीं, दिल भी ठीक कर सकती है। समीना जानती थी रास्ता आसान नहीं। वह मुसलमान, अर्जुन हिंदू। मगर दिल की आवाज सिर्फ दिल सुनता है।
एक दिन अर्जुन ने पिता से कहा, “मैं समीना से शादी करना चाहता हूं।” राजीव वर्मा बोले, “वह मुसलमान है, क्या तुम तैयार हो?” अर्जुन ने कहा, “मैं सब कीमत देने को तैयार हूं।” अर्जुन ने सच्चाई की तलाश में मस्जिद गया, इस्लाम कबूल किया, नाम रखा **इमरान वर्मा**।
शाम को दफ्तर आया, समीना को बताया, “मैंने इस्लाम कबूल कर लिया है।” समीना के आंसू बह निकले, “क्या यह फैसला सिर्फ मेरे लिए?” इमरान बोला, “नहीं, यह दिल के सुकून के लिए है।” दोनों ने वादा किया, हर मुश्किल में साथ रहेंगे।
निकाह का दिन आया। हॉल रोशन था। समीना दुल्हन बनी, इमरान ने कबूल है कहा, समीना ने भी। राजीव वर्मा ने बेटे-बहू के सर पर हाथ रखकर कहा, “आज मेरा खानदान कमजोर नहीं, मजबूत हुआ है।” मगर सब खुश नहीं थे। मोहन नायर कोने में जल रहा था।
कुछ महीने बाद समीना ने बेटे को जन्म दिया, नाम रखा **यूसुफ**। कंपनी में जश्न हुआ। मीडिया ने सुर्खियां बनाई—सड़कों पर भटकने वाली इंजीनियर आज अरबपति खानदान की बहू है।
मगर साजिशें जारी रहीं। मगर समीना और इमरान ने हर मुश्किल का सामना किया। उनकी मेहनत और ईमान ने सब बदल दिया। कंपनी भारत ही नहीं, एशिया की सबसे बड़ी एवीएशन कंपनियों में शुमार हो गई। यूनिवर्सिटियों में समीना की कहानी सुनाई जाने लगी।
एक समारोह में पूछा गया, “आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा सबक क्या है?” समीना ने मुस्कुराकर जवाब दिया,
**”सबसे बड़ा सबक यह है कि कभी हिम्मत ना हारो। हालात कितने भी मुश्किल हों, अगर आप अपने रब पर भरोसा रखें और मेहनत जारी रखें, तो कोई ताकत आपके ख्वाब दफन नहीं कर सकती।”**
तालियां बजने लगीं। समीना ने दिल ही दिल में दुआ की कि उसकी कहानी दूसरों के लिए उम्मीद का चिराग बने।
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