एक पिता ने अपनी चार बेटियों को मार डाला – और अल्लाह की कड़ी सज़ा आई।
.
💔 एक पिता ने अपनी चार बेटियों को मार डाला – और अल्लाह की कड़ी सज़ा आई।
I. रसूलपुर: सादगी के पीछे छिपी क्रूरता
यह कहानी उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले में बसे रसूलपुर गाँव की है। गाँव की गलियाँ कच्ची थीं, मगर इस सादगी के पीछे एक कड़वा सच छिपा था: रूढ़ियों, दहेज की प्रथा, और औरतों पर होने वाला ज़ुल्म। रसूलपुर में बेटियों को बोझ समझा जाता था, और दहेज की माँग हर परिवार को तोड़ देती थी।
गाँव के किनारे एक छोटे से मिट्टी के घर में रहता था अब्दुल रशीद (45 साल), एक मज़दूर जिसका चेहरा मेहनत की लकीरों से भरा था। अब्दुल की पत्नी खैरुन निसा को कई सालों से टीबी की बीमारी थी।
अब्दुल का परिवार छोटा था: पत्नी खैरुन निसा और चार बेटियाँ—ज़ैनब (20 साल, टीचर बनने का सपना), रुखसाना (18 साल, बेहतरीन कढ़ाई), फातिमा (16 साल, हसीन आवाज़ में नात पढ़ती), और नूरजहां (14 साल, बाबा की लाडली)।
गाँव वाले ताने मारते: “चार बेटियाँ, अब्दुल! तेरा क्या होगा? इनकी शादी कैसे करेगा?” मगर अब्दुल मुस्कुराकर जवाब देता: “मेरी बेटियाँ मेरी जन्नत हैं। अल्लाह ने मुझे यह अमानत दी है।“
अब्दुल का एक ही उसूल था: उसकी बेटियाँ इज़्ज़त और तालीम के साथ ज़िंदगी जीएँ। वह अक्सर कहता: “दुनिया चाहे जो कहे, तुम अपने सर को कभी झुकने मत देना। तुम अल्लाह की बनाई सबसे खूबसूरत तख़लीक़ हो।“
II. दहेज का बोझ और टूटता विश्वास
अब्दुल की जिंदगी आसान नहीं थी। खैरुन निसा की दवाइयों का खर्चा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा था। अब्दुल की कमाई दो वक़्त की रोटी और दवाइयों के लिए भी कम पड़ती।
ज़ैनब की शादी की बात पक्की हुई। लड़के वाले ₹50,000, गहने, और एक मोटरसाइकिल की माँग कर रहे थे। अब्दुल ने अपनी ज़मीन का एक टुकड़ा बेच दिया और साहूकार से ₹10,000 कर्ज लिए।
शादी के दिन, हामिद के घर वालों ने आखिरी वक़्त पर और ₹10,000 की माँग की। अब्दुल ने अपनी आखिरी जमापूँजी दे दी, मगर फिर भी वे नाख़ुश थे।
शादी के कुछ महीने बाद, ज़ैनब ससुराल से रोते हुए लौटी। उसने बताया कि हामिद और उसकी सास उसे हर दिन ताने मारते हैं और उसे थप्पड़ मारा गया। ज़ैनब ने रोते हुए कहा, “बाबा, मैं वहाँ नहीं रह सकती। वो मुझे इंसान नहीं, सामान समझते हैं।“
अब्दुल का खून खौल उठा। उसने ज़ैनब को गले लगाया और कहा, “बेटी, तू मेरे पास रह। मैं तुझे कभी दुख नहीं दूँगा।”
ज़ैनब की वापसी के बाद गाँव में बातें शुरू हो गईं: “देखो, इसकी बेटी ससुराल से लौट आई। अब बाकी बेटियों का क्या होगा?”
खैरुन निसा की तबीयत भी बिगड़ती गई। एक रात, उन्होंने अब्दुल का हाथ पकड़ा और कहा, “अब्दुल, मेरी बेटियों को इज़्ज़त की ज़िंदगी देना। मैं अब नहीं रहूँगी।” उस रात, खैरुन निसा ने आखिरी साँस ली।
⚔️ एक पिता ने अपनी चार बेटियों को मार डाला – और अल्लाह की कड़ी सज़ा आई। (भाग 2: सामाजिक प्रतिशोध)
V. रसूलपुर पर साए का न्याय
अब्दुल रशीद अपनी चार बेटियों को फाँसी पर लटकाने के बाद, जेल में शांत और परसुकून मौत मरा। उसके आखिरी क्षणों में उसके चेहरे पर जो शांति थी, वह इस बात का प्रमाण थी कि उसने अपने हिसाब से अपनी बेटियों को ‘आज़ाद’ कर दिया था। लेकिन रसूलपुर गाँव के लिए यह अंत नहीं था; यह उन लोगों के लिए एक धीमी, भयानक शुरुआत थी जिन्होंने अपने ताने, लालच और चुप्पी से अब्दुल को उस भयानक रास्ते पर धकेल दिया था।
गाँव में अब अजान की आवाज़ के साथ-साथ एक अजीब सा डर भी गूंजता था। नीम का वह पेड़, जहाँ चार मासूम जानें ली गई थीं, अब गाँव के लिए एक प्रेतवाधित प्रतीक बन गया था। कोई भी आदमी रात में उस गली से गुजरने की हिम्मत नहीं करता था। महिलाएं, जो पहले चुपके-चुपके दुख बांटती थीं, अब एक नए और गहरे संकल्प से एकजुट हो गई थीं। उन्हें महसूस हुआ कि अब्दुल ने भले ही अपनी बेटियों को मारा, लेकिन हत्यारा पूरा समाज था।
यह डर सिर्फ़ मानसिक नहीं था; यह सामाजिक प्रतिशोध (Societal Retribution) का आरंभ था।
दहेज के दरिंदों पर कयामत
अब्दुल की बेटियों के दुख के असली गुनहगारों पर सबसे पहले आफ़त आई।
1. ज़ैनब के ससुराल वाले (हामिद और उसकी माँ): हामिद की माँ, जिसने ज़ैनब को दहेज के लिए इतना ज़ुल्म दिया था कि वह घर लौट आई, पर सबसे पहले अल्लाह की सज़ा पड़ी।
व्यावसायिक पतन (Business Collapse): हामिद शहर में जिस मोटर मैकेनिक की दुकान पर काम करता था, उस दुकान में अचानक आग लग गई। दुकान का सारा सामान जलकर राख हो गया, और हामिद बेरोज़गार हो गया। उसे कोई दूसरा काम नहीं मिला, क्योंकि गाँव में अफवाह फैल गई थी कि ‘बेटियों को जलाने वाले परिवार’ पर अल्लाह का कहर टूटा है।
बीमारी और अपमान: हामिद की माँ, जो पहले बहुत घमंडी थी, अचानक एक ऐसी रहस्यमय बीमारी से ग्रस्त हो गई कि उसके शरीर में भयानक दर्द रहने लगा। गाँव के किसी भी वैद्य या डॉक्टर ने उसे ठीक नहीं कर पाया। उसका बेटा (हामिद) अब उसे ताने मारने लगा, बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह वह ज़ैनब को मारती थी। हामिद कहता, “तेरी जुल्म ने हमें बर्बाद कर दिया। तूने एक मासूम लड़की को सताया, और अब तू ख़ुद सज़ा भुगत रही है।”
2. रुखसाना के ससुराल वाले (सास): रुखसाना की सास, जिसने उसे सिर्फ़ माँ न बन पाने के लिए घर से निकाला था, उसका हाल और भी बुरा हुआ।
वंश का टूटना (Lineage Destruction): उसका इकलौता बेटा (रुखसाना का पति) एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया। डॉक्टरों ने कहा कि वह कभी पिता नहीं बन पाएगा। उस औरत का घमंड—कि वह अपने ख़ानदान का नाम मिट्टी में नहीं मिलने देगी—टूट गया। उसके बेटे को हमेशा के लिए नामर्द बना दिया गया, और वह अपनी बहू को घर से निकालने के गुनाह की सज़ा भुगतने लगी।
गाँव में हर जुल्मी ने यह महसूस किया कि उन्होंने सिर्फ़ अब्दुल को नहीं, बल्कि खुद अल्लाह की अमानत को सताया था।
VI. साहूकार का कहर: सूद का बोझ
सबसे क्रूर सज़ा साहूकार पर आई, जिसने अब्दुल को धमकी दी थी: “तेरी बेटियों की इज़्ज़त को बेच दूँगा।“
साहूकार, जो अपने पैसे और रसूख के नशे में चूर था, अचानक एक ऐसी वित्तीय आपदा में फँस गया जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
1. कर्ज का अभिशाप (The Curse of Debt): साहूकार का सारा कारोबार अचानक ठप पड़ गया। गाँव के लोग, जो उससे कर्ज लेते थे, उन्होंने अचानक एक साथ कर्ज चुकाना बंद कर दिया। यह किसी संगठित योजना का हिस्सा नहीं था; यह सिर्फ़ ‘डर’ था। जिन लोगों ने उससे कर्ज लिया, उन सबके परिवारों में एक के बाद एक मुश्किलें आने लगीं—या तो फ़सल बर्बाद हो गई, या घर में बीमारी आ गई, या कोई दुर्घटना हो गई।
गाँव वालों ने फुसफुसाया: “साहूकार का पैसा अब अल्लाह की लानत बन गया है।”
किसी भी आदमी ने उसका कर्ज चुकाने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि उन्हें लगा कि साहूकार का पैसा ही मनहूसियत ला रहा है।
2. इज़्ज़त का छीना जाना (Honor Stripped Away): साहूकार की खुद की इज़्ज़त गाँव में मिट्टी में मिल गई। जो आदमी पहले सोने के आभूषण पहनकर घूमता था, अब लोगों के सामने गिड़गिड़ाने लगा कि उसका कर्ज वापस कर दिया जाए। कोई उसकी बात नहीं सुनता। उसका घर, जो पहले आलीशान था, अब वीरान हो गया। वह गाँव का सबसे अमीर आदमी था, पर अब वह सबसे अकेला और कंगाल हो गया।
अब्दुल की बेटियों के श्राप ने उस आदमी की नियति को पलट दिया था, जिसने पैसों के लिए इंसानियत का सौदा किया था।
VII. वर्दी की एंट्री: एसपी साहिबा की जाँच
गाँव में यह सब होने के दौरान, एक नई और ईमानदार पुलिस अधिकारी, एसपी रश्मि वर्मा, मिर्ज़ापुर ज़िले में तैनात हुईं। उन्होंने अब्दुल रशीद के सामूहिक हत्या के पुराने केस की फ़ाइल देखी। शुरू में उन्हें यह एक सामान्य ऑनर किलिंग का मामला लगा, लेकिन गाँव में हो रही लगातार ‘अप्राकृतिक’ विपदाओं और साहूकार के पतन की खबरें उन तक पहुँचीं।
एसपी रश्मि वर्मा ने फ़ैसला किया कि वह इस केस को सिर्फ़ हत्या के तौर पर नहीं, बल्कि सामाजिक दबाव और उत्पीड़न के तौर पर देखेंगी।
1. सच्चाई की तलाश: एसपी साहिबा ने खैरुन निसा की सहेलियों और ज़ैनब की उम्र की लड़कियों से गुप्त रूप से बात की। उन्हें पता चला कि अब्दुल अपनी बेटियों से कितना प्यार करता था, और कैसे दहेज, ताने और गुंडों के डर ने उसे उस भयानक रात के लिए मजबूर किया।
एक बुजुर्ग महिला ने गवाही दी: “अब्दुल ने अपनी बेटियों को मारा नहीं, साहिबा। उसने उन्हें ज़ुल्म के बाज़ार से बचाने की कोशिश की। हम सब गुनहगार हैं।”
2. कानूनी शिकंजा: एसपी रश्मि वर्मा ने कानूनी कार्रवाई शुरू की। उन्होंने साहूकार और हामिद की माँ के खिलाफ़ दो मुख्य आरोप लगाए:
साहूकार के ख़िलाफ़: गैरकानूनी तरीके से कर्ज वसूलना, धमकी देना और आत्मिक उत्पीड़न (Mental Harassment)।
हामिद की माँ के ख़िलाफ़: दहेज के लिए क्रूरता (Cruelty for Dowry) और ज़ैनब को तलाक के लिए उकसाना, जिससे उसके जीवन पर गंभीर खतरा पैदा हुआ।
VIII. ज़ैनब मेमोरियल: इज़्ज़त की जीत
कोर्ट में, जब साहूकार और हामिद की माँ पेश हुए, तो उनकी हालत बहुत ख़राब थी। कोर्ट ने सभी गवाहों और सबूतों को सुना।
जज ने अपने फ़ैसले में एक ऐतिहासिक बात कही: “अब्दुल रशीद का गुनाह, हत्या है, जिसकी सज़ा उसे मिल चुकी है। लेकिन इस गुनाह की जड़ें समाज की क्रूरता, दहेज और लालच में थीं। जो लोग अपनी लालच और जुल्म से किसी इंसान को इतना मजबूर कर दें कि वह अपनी औलाद को मारे, वे भी हत्या के दोषी हैं।”
सज़ा: साहूकार को भारी जुर्माना और जेल की सज़ा सुनाई गई। हामिद की माँ को भी दहेज उत्पीड़न और क्रूरता के लिए सज़ा दी गई।
रसूलपुर बदल गया। औरतों ने दहेज और जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद की। ज़ैनब मेमोरियल स्कूल फला-फूला। गाँव के मर्द, जो कभी ताने मारते थे, अब शर्म से सिर झुकाते थे।
नीम के पेड़ का सबक
वह नीम का पेड़, जो कभी उस भयानक रात का गवाह था, अब गाँव के लिए एक नया प्रतीक बन गया। औरतें अब वहाँ फूल चढ़ातीं और दुआ मांगतीं। वह कहतीं: “यह जुल्म अब और नहीं चलेगा।”
अब्दुल की कहानी एक सवाल छोड़ गई: क्या कसूरवार वो बाप था, या हम सब। लेकिन अल्लाह की कड़ी सज़ा उन लोगों पर आई, जिन्होंने समाज के नाम पर इंसानियत को रौंदा था। अब्दुल ने अपनी बेटियों को जन्नत भेजा, पर अल्लाह ने इस दुनिया में उन लोगों को सज़ा दी, जिन्होंने इस जन्नत को छीना था। यह सज़ा सिर्फ़ इंसाफ़ नहीं थी, बल्कि ज़ुल्म के अंत का ऐलान थी।

III. बर्बादी का साया और ज़ुल्म की इन्तहा
खैरुन निसा की मौत ने अब्दुल और उसकी बेटियों को तोड़ दिया। अब अब्दुल पर कर्ज का बोझ और बढ़ गया। साहूकार अब्दुल को धमकाने लगा: “अब्दुल, अगर तूने कर्ज न चुकाया, तो तेरी बेटियों की इज़्ज़त को बेच दूँगा।” यह सुनकर अब्दुल का दिल दहल गया।
रुखसाना की शादी भी कर्ज लेकर की, मगर उसकी सास ने उसे घर से निकाल दिया, क्योंकि वह माँ नहीं बन सकी।
फातिमा की खूबसूरती अब गाँव में चर्चा का विषय बन चुकी थी, और कुछ गुंडे उस पर गलत नज़र रखने लगे। एक शाम, जब फातिमा मस्जिद से लौट रही थी, दो लड़कों ने उससे छेड़खानी की कोशिश की। फातिमा डर के मारे घर पहुँचकर रोने लगी।
फातिमा ने कहा, “बाबा, मैं मर जाऊँगी, मगर ऐसी ज़िंदगी नहीं जी सकती।“
गाँव के कुछ लोग अब्दुल की बेटियों को गलत नज़रों से देखने लगे। लोग फुसफुसाते: “चार जवान बेटियाँ, बाप अकेला। क्या पता क्या करती होंगी।” अब्दुल का दिल जैसे जलने लगा।
अब्दुल अब पूरी तरह टूट चुका था। उसकी बेटियाँ, जिन्हें उसने अपने खून-पसीने से पाला, अब हर दिन ज़ुल्म का शिकार हो रही थीं। उसका दिमाग एक अजीब से अंधेरे में डूब गया। वह सोचने लगा कि शायद उसकी बेटियों को इस दुनिया से आज़ाद करने में ही उनकी भलाई है।
IV. पिता का गुनाह और समाज की सज़ा
एक रात जब गाँव गहरी नींद में सो रहा था, अब्दुल ने अपनी बेटियों को बुलाया। उसकी आँखें लाल थीं और चेहरा पीला पड़ चुका था। उसने अपनी बेटियों से कहा, “मेरी बेटियों, इस दुनिया ने तुम्हारी इज़्ज़त को ठेस पहुँचाई। मैं तुम्हें इस ज़ुल्म से आज़ाद करना चाहता हूँ।“
बेटियों ने अपने बाबा को गले लगाया। वे नहीं जानती थीं कि अब्दुल के दिमाग में क्या चल रहा था।
अब्दुल ने अपनी बेटियों को दूध में नींद की गोलियाँ मिलाकर दी। उसने कहा, “यह दूध पियो, तुम्हें सुकून मिलेगा।” बेटियाँ अपने बाबा पर पूरा भरोसा करती थीं, इसलिए उन्होंने दूध पी लिया और एक-एक करके बेहोश हो गईं।
अब्दुल ने अपनी बेटियों को देखा। उनकी मासूम चेहरे जो अब शांत थे। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने एक रस्सी ली और अपने घर के आँगन में बने नीम के पेड़ पर बाँध दी। उसने अपनी बेटियों को एक-एक करके फाँसी पर लटकाया—पहले ज़ैनब, फिर रुखसाना, फिर फातिमा, और आखिर में नूरजहां। हर बार जब वह रस्सी बाँधता, उसका दिल चीखता, मगर उसका दिमाग कहता: “मैं अपनी बेटियों को जन्नत भेज रहा हूँ।”
जब सब कुछ खत्म हो गया, अब्दुल अपने घर के आँगन में बैठ गया। उसने कुरान शरीफ़ खोला और पढ़ने लगा। उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं। वह सोच रहा था: “मेरी बेटियाँ अब आज़ाद हैं।”
अब्दुल का अंजाम
सुबह जब गाँव वालों ने अब्दुल के घर का दरवाज़ा खुला देखा, तो वे अंदर गए। वहाँ का मंज़र देखकर सबके होश उड़ गए। मौलवी साहब ने अब्दुल का कॉलर पकड़ा और कहा, “अब्दुल! तूने यह क्या किया? यह गुनाह है।“
अब्दुल ने धीमी आवाज़ में कहा, “मैंने अपनी बेटियों को ज़ुल्म से बचाया है। मुझे कोई पछतावा नहीं।“
पुलिस ने अब्दुल को गिरफ़्तार कर लिया। कोर्ट में अब्दुल ने अपने गुनाह को कबूल किया। उसने कहा, “मैंने अपनी बेटियों को जन्नत भेजा, ताकि वह इस दुनिया के जुल्म से आज़ाद रहे।” जज ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा दी।
जेल में अब्दुल हर दिन कुरान पढ़ता और अपनी बेटियों के लिए दुआ मांगता। एक दिन, जब वह जेल के आँगन में बैठा था, उसे अपनी बेटियों के चेहरे दिखाई दिए। ज़ैनब, रुखसाना, फातिमा और नूरजहां। अब्दुल ने मुस्कुराकर कहा, “मेरी बेटियों, मैं आ रहा हूँ।” उस रात अब्दुल ने अपनी आखिरी साँस ली।
अब्दुल की कहानी गांव की सीमाओं को तोड़कर बाहर फैल गई। इस कहानी ने दहेज, औरतों पर ज़ुल्म, और सामाजिक रूढ़ियों पर सवाल उठाए। अब्दुल गुनहगार था, मगर गुनहगार पूरा समाज था, जिसने उस पर यह क्रूर फैसला लेने का दबाव बनाया था।
ज़ैनब मेमोरियल स्कूल गाँव में खुला, और दहेज की प्रथा के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद होने लगी। अब्दुल की बेटियों की कब्रें आज भी रसूलपुर के कब्रिस्तान में हैं—गवाह हैं उस ज़ुल्म की, जो समाज की सोच में छुपा था।
.
.
News
पुलिसवाली ने कैदी की आखिरी इच्छा क्यों पूरी की? हिंदी कहानी
पुलिसवाली ने कैदी की आखिरी इच्छा क्यों पूरी की? हिंदी कहानी . . 💔 आखिरी ख्वाहिश ने पूरी जेल को…
लड़की रो पड़ी जब पता चला सफाई करने वाला लड़का करोड़पति है | फिर आगे जो हुआ |
लड़की रो पड़ी जब पता चला सफाई करने वाला लड़का करोड़पति है | फिर आगे जो हुआ | . ….
इस हेलिकॉप्टर में ब*म है, गरीब बच्चे ने चीखकर करोड़पति को कहा… ‘साहब, मत जाइए! ये साज़िश है | Story
इस हेलिकॉप्टर में ब*म है, गरीब बच्चे ने चीखकर करोड़पति को कहा… ‘साहब, मत जाइए! ये साज़िश है | Story…
क़ैदी की आखिरी वसीयत ने सबको हैरान कर दिया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि आगे क्या होगा। कहानी
क़ैदी की आखिरी वसीयत ने सबको हैरान कर दिया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि आगे क्या होगा। कहानी….
Yönetmen, siyahi bir kadını tutuklamak için FBI’ı arar. Sonrasında olanlar onu tamamen mahveder.
Yönetmen, siyahi bir kadını tutuklamak için FBI’ı arar. Sonrasında olanlar onu tamamen mahveder. . . 🚨 Yönetmen, Siyahi Bir Kadını…
“Artık dayanamıyorum,” diye soludu. Çiftçi tereddüt etti… Sonra korkunç bir şey yaptı.
“Artık dayanamıyorum,” diye soludu. Çiftçi tereddüt etti… Sonra korkunç bir şey yaptı. . . 🔥 “Soyun Onu ve Şişman Kızı…
End of content
No more pages to load






