जब High Court जज ने अपने खोए हुए बेटे को रिक्शा चलाते देखा फिर जो हुआ.

रिक्शा वाला बेटा – इंसाफ की जीत
दिल्ली के चांदनी चौक की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर एक छोटा सा रिक्शा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसे चला रहा था केवल 10 साल का दुबला-पतला लड़का – आदित्य। उसके छोटे हाथ मुश्किल से भारी पैडल को संभाल पा रहे थे। शाम के 6 बजे थे, बारिश हो रही थी, आदित्य के फटे कपड़े भीग चुके थे, और उसकी टोकरी में बस ₹50 पड़े थे। वह हार मानने को तैयार नहीं था – क्योंकि उसकी दादी मां बीमार थी और उसे दवाई के लिए पैसे चाहिए थे।
रेड लाइट पर आदित्य का रिक्शा रुका, तभी तीन पुलिस वालों की नजर उस पर पड़ी। हेड कांस्टेबल विकास शर्मा, कांस्टेबल संजय और अनिल – तीनों ने मजाक उड़ाया, “चल छोटे, सवारी करवा।”
आदित्य ने विनम्रता से कहा, “साहब, ₹20 कि.मी.।”
तीनों बैठ गए, रिक्शा छोटा था, आदित्य को भारी वजन उठाना मुश्किल हो रहा था। “तेज चला रे!”
दो किलोमीटर बाद वे सुनसान गली में रुके।
आदित्य ने पैसे मांगे तो वे हंसने लगे, “हम पुलिस हैं, बच्चे पुलिस से पैसे नहीं मांगते।”
आदित्य रो पड़ा, “साहब, दादी बहुत बीमार है, कम से कम ₹60 दे दीजिए।”
विकास ने गुस्से में आकर आदित्य को लात मारी, संजय ने थप्पड़ मारा, अनिल ने धमकी दी – “थाने में बंद कर देंगे।”
आदित्य की जेब से ₹50 भी छीन लिए।
पास की चाय दुकान वाले अंकल ने विरोध किया तो उसे भी मार पड़ी।
आदित्य रोते हुए रिक्शा लेकर वहां से भाग गया।
एक खोया हुआ बेटा
आदित्य को क्या पता था – वह वही बच्चा है जिसे सुप्रीम कोर्ट के सबसे सम्मानित जज राहुल कुमार 8 साल से ढूंढ रहे हैं।
8 साल पहले, जब आदित्य सिर्फ 2 साल का था, दिल्ली के एक मॉल में अपने पिता से बिछड़ गया था।
राहुल कुमार और उनकी पत्नी प्रिया ने बेटे को ढूंढने के लिए हर कोशिश की – अखबार, टीवी, पुलिस, जासूस – लेकिन कोई सुराग नहीं मिला।
दूसरी ओर, आदित्य को मॉल में एक चाय की दुकान वाली बुजुर्ग महिला – सुमित्रा देवी – ने रोते हुए देखा, सहारा दिया और 8 साल से पाल रही थी।
सुमित्रा देवी के पास खुद कुछ नहीं था। पति की मृत्यु के बाद अकेली थी। लेकिन उस मासूम बच्चे को अपना पोता मान लिया।
आदित्य बड़ा हुआ, सुमित्रा देवी ने उसे पढ़ाने की कोशिश की, अच्छे संस्कार दिए।
जब आदित्य 8 साल का हुआ, सुमित्रा देवी की तबीयत खराब होने लगी – डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, दवाइयों का खर्च बढ़ गया।
10 साल का होते-होते आदित्य ने फैसला किया – “मैं दादी मां की मदद करूंगा।”
रिक्शा वाले भैया ने उसे अपना पुराना रिक्शा दिया – “जो कमाई होगी, आधी तू रख लेना।”
आदित्य रोज रिक्शा चलाने लगा, जो पैसे मिलते उससे दादी मां की दवाई लाता।
पुलिस की क्रूरता और पत्रकार की नजर
आज जो हुआ, वह आदित्य के लिए सबसे बुरा दिन था – पुलिस वालों ने उसे पीटा, पैसे छीन लिए।
वह लड़खड़ाते हुए घर पहुंचा, सुमित्रा देवी ने हालत देखी – “बेटा, यह क्या हाल है तेरा?”
आदित्य ने पूरी कहानी बता दी।
सुमित्रा देवी रो पड़ी, “मैं अपने बेटे की रक्षा नहीं कर सकी।”
उसी वक्त उस गली में एक पत्रकार अमित वर्मा पूरी घटना को रिकॉर्ड कर रहा था।
अमित ने वीडियो एडिट किया, सोशल मीडिया पर अपलोड किया –
“10 साल का बच्चा बीमार दादी की दवाई के लिए रिक्शा चलाता है, पुलिस वालों ने मुफ्त सवारी कर बेरहमी से पीटा।”
वीडियो वायरल हो गया – लाखों व्यूज, गुस्से की टिप्पणियां, मीडिया चैनलों पर बहस।
“यह कैसी पुलिस है?”
“शर्म की बात है।”
“इस बच्चे को न्याय चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट जज की पहचान
सुप्रीम कोर्ट के जज राहुल कुमार अपने चेंबर में केस की फाइल पढ़ रहे थे।
स्टाफ ने उन्हें वीडियो दिखाया।
वीडियो देखकर राहुल कुमार का खून खौल गया।
लेकिन जब उन्होंने देखा कि सुमित्रा देवी बता रही हैं – “यह मेरा पोता नहीं है, यह तो मॉल में मिला था,”
तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई।
राहुल कुमार ने तुरंत अपनी टीम को आदेश दिया – “उस बच्चे और उसकी दादी तक पहुंचो, जो भी मदद चाहिए करो।”
उन्हें यकीन हो गया – शायद यह उनका खोया हुआ बेटा है।
सच्चाई का खुलासा
अगली सुबह जज की टीम आदित्य के घर पहुंची।
टीम लीडर अभिषेक सिंह ने सुमित्रा देवी की हालत देखी – तुरंत अस्पताल ले गए।
राहुल कुमार ने आदेश दिया – “अस्पताल का सारा खर्चा मैं उठाऊंगा।”
पुलिस वालों के खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई – सस्पेंड, मुकदमा दर्ज।
अभिषेक ने आदित्य की तस्वीर राहुल कुमार को भेजी।
राहुल कुमार ने देखा – वही चेहरा, वही आंखें, वही तिल, वही निशान।
“यह मेरा बेटा है, मेरा आदित्य है।”
राहुल कुमार और उनकी पत्नी प्रिया अस्पताल पहुंचे।
रूम के दरवाजे पर रुक गए – अंदर आदित्य दादी मां से कह रहा था, “अब आपको दवाई की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।”
राहुल कुमार ने दरवाजा खोला, आदित्य ने पूछा, “अंकल जी, आप कौन हैं?”
राहुल कुमार रो पड़े, “बेटा, मैं तुम्हारा पापा हूं।”
सुमित्रा देवी भी रो पड़ी।
राहुल कुमार ने कहा, “आपने मेरे बेटे को 8 साल तक पाला है, अब हम सब एक साथ रहेंगे।”
इंसाफ की जीत
कोर्ट में पुलिस वालों के खिलाफ सुनवाई हुई।
वीडियो सबूत, गवाह – मजिस्ट्रेट ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से पुलिस की क्रूरता है।”
हेड कांस्टेबल विकास शर्मा को 2 साल की जेल, बाकी दोनों को 1-1 साल की जेल, ₹50,000 जुर्माना – जो आदित्य और सुमित्रा देवी को देने का आदेश।
राहुल कुमार ने आदित्य और सुमित्रा देवी को अपने घर ले जाने का फैसला किया।
आदित्य बोला, “मैं दादी मां को छोड़कर नहीं जाऊंगा।”
राहुल कुमार ने कहा, “दादी मां भी हमारे साथ आएंगी।”
सुमित्रा देवी को अस्पताल से छुट्टी मिली, उनका इलाज हुआ, घर में सबसे अच्छा कमरा दिया गया।
आदित्य का दाखिला दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूल में हुआ।
प्रिया कुमार ने आदित्य को गले लगाया – “मेरा बेटा, मेरा आदित्य।”
नई शुरुआत
आदित्य अब अपने असली माता-पिता के साथ था, लेकिन दादी मां उसकी जिंदगी का हिस्सा थीं।
राहुल कुमार ने सुमित्रा देवी के नाम बैंक अकाउंट खुलवाया, उसमें अच्छी रकम जमा की।
आदित्य रोज दादी मां की सेवा करता, पढ़ाई करता, नए दोस्तों से मिलता।
मीडिया में यह खबर छा गई –
“सुप्रीम कोर्ट के जज को 8 साल बाद मिला खोया हुआ बेटा, जिसने रिक्शा चलाकर दादी मां की सेवा की।”
पुलिस वालों को सजा मिली, समाज में संदेश गया –
“हर मेहनतकश बच्चे का हक है सम्मान, हर बुजुर्ग का हक है इज्जत।”
सीख
यह कहानी सिर्फ एक रिक्शा वाले बच्चे की नहीं,
यह इंसानियत, संघर्ष और सच्चे प्यार की कहानी है।
कभी-कभी एक वीडियो, एक आवाज, एक हिम्मत पूरे सिस्टम को बदल देती है।
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जय हिंद। वंदे मातरम।
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