छोटा सा बच्चा कोर्ट में चुप खड़ा था.. जैसे ही उंगली उठाई पूरा कोर्ट हिल गया – फिर जो हुआ

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“न्याय की उंगली”

भाग 1: मासूमियत की पुकार

दिल्ली के एक बड़े कोर्टरूम में आज हलचल थी। मीडिया, वकील, पुलिस और जज सभी एक अजीब केस को लेकर परेशान थे। केस था सात साल के आदित्य का, जो अपने ही पिता के खिलाफ गवाही देने आया था। आदित्य की मां, माया, कोर्ट के कोने में खड़ी थी। उसकी आंखों में डर और चिंता थी। आदित्य के पिता, समीर, एक नामी बिजनेसमैन थे और उनके पास देश के सबसे महंगे वकील थे।

आदित्य कोर्टरूम में चुपचाप खड़ा था। उसकी छोटी सी उंगली बार-बार कांप रही थी। जज साहब, जस्टिस अनिल शर्मा ने उसे अपने पास बुलाया। आदित्य धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसकी आंखों में मासूमियत थी लेकिन कहीं गहरा डर भी छुपा था।

भाग 2: सवालों की बौछार

जज ने प्यार से पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?”
आदित्य ने धीमे स्वर में कहा, “आदित्य शर्मा।”
“तुम यहां क्यों आए हो?”
आदित्य ने मां की तरफ देखा, फिर अपनी नजरें झुका ली।
“मां कहती हैं, भगवान सच देखता है।”
कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया। जज ने फिर पूछा, “बेटा, क्या तुम मुझे सच बताओगे?”
आदित्य ने सिर हिलाया, “हां, लेकिन… अगर मैं सच बताऊंगा तो पापा मुझे फिर से उस कमरे में बंद कर देंगे।”

पूरा कोर्ट हिल गया। मीडिया कैमरे संभालने लगे। समीर का चेहरा लाल हो गया। जज ने गुस्से में हथौड़ा बजाया, “शांति!”

भाग 3: दर्द की कहानी

जज ने आदित्य को भरोसा दिलाया, “यहां तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता।”
आदित्य ने गहरी सांस ली, “क्या मैं एक सवाल पूछ सकता हूं?”
“पूछो बेटा।”
“अगर भगवान सच में यहां हैं, तो मेरी बहन को क्यों नहीं बचा पाए?”
जज का दिल बैठ गया। “तुम्हारी बहन?”
“अंजलि… वह सिर्फ चार साल की थी।”

समीर के वकील ने तुरंत विरोध किया, “योर ऑनर, यह बच्चा झूठ बोल रहा है। मेरे मुवक्किल का सिर्फ एक ही बच्चा है।”
जज ने वकील को चुप कराया। “बेटा, अंजलि कहां है?”
आदित्य की आंखों में आंसू थे, “वह अब हमारे साथ नहीं है। पापा ने उसे बहुत मारा। एक दिन वह सोते-सोते चली गई। मां रोती रही, लेकिन पापा ने उसे किसी को बताने नहीं दिया।”

भाग 4: सबूत और सच्चाई

आदित्य ने अपनी शर्ट के बटन खोले और अपनी पीठ दिखाई। वहां पुराने घाव और जलने के निशान थे। कोर्टरूम में कई लोग रोने लगे।
“पापा हम पर एक्सपेरिमेंट करते थे। कहते थे, बच्चे कितना दर्द सह सकते हैं, यह देखना है।”

माया फूट-फूटकर रोने लगी। उसने आदित्य को गले लगाना चाहा, लेकिन आदित्य दूर हट गया।
“मां, तुमने मुझे बचाने की कोशिश की थी, लेकिन पापा बहुत ताकतवर हैं। पुलिस भी उनकी दोस्त है।”

भाग 5: कोर्टरूम का रहस्य

जज ने पूछा, “क्या किसी और को यह सब पता था?”
आदित्य ने कहा, “पापा के दोस्त डॉक्टर चौधरी भी आते थे। वह हमें दवाइयां देते थे। एक बार पापा ने अंजलि को इंजेक्शन लगाया, उसके बाद वह कभी नहीं उठी।”

डॉक्टर चौधरी कोर्ट में मौजूद थे। उनका चेहरा सफेद पड़ गया।
“योर ऑनर, यह बच्चा मानसिक रूप से बीमार है।”
जज ने डॉक्टर को चुप कराया। “आदित्य, तुम्हारे पास कोई सबूत है?”
आदित्य ने अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी निकाली।
“यह अंजलि की डायरी है। इसमें सब लिखा है—कब क्या हुआ, किसने क्या किया।”

जज ने डायरी खोली। पहले पेज पर लिखा था, “मुझे डर लगता है। पापा बहुत गुस्सा करते हैं। मुझे बचा लो।”
अगले पेजों पर तारीखें, दवाओं के नाम और बच्चों के नाम थे।

भाग 6: मासूमियत की ताकत

जज साहब ने आदित्य को गले लगाया। “बेटा, अब कोई तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा।”
आदित्य ने कहा, “मुझे डर नहीं लगता अब। मैं बस चाहता हूं कि मेरी बहन को न्याय मिले।”

मीडिया में यह मामला फैल गया। पुलिस ने समीर शर्मा और डॉक्टर चौधरी को गिरफ्तार कर लिया। माया को काउंसलिंग मिली और आदित्य को सुरक्षित जगह भेजा गया।

भाग 7: फैसले की घड़ी

तीन महीने बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया। समीर शर्मा को उम्रकैद की सजा मिली। डॉक्टर चौधरी को मेडिकल लाइसेंस रद्द कर दिया गया और दस साल की सजा मिली। माया को कोर्ट ने निर्दोष माना, क्योंकि वह भी एक तरह से पीड़ित थी।

आदित्य को एक अच्छे फोस्टर होम में भेजा गया। वहां उसे प्यार मिला, सुरक्षा मिली और पढ़ाई का मौका मिला। लेकिन रात को उसे अब भी अंजलि की याद आती थी। उसकी मासूम आवाज गूंजती थी, “भैया, मुझे बचा लो।”

भाग 8: नई शुरुआत

समय बीता। आदित्य ने पढ़ाई में ध्यान लगाया। काउंसलिंग से उसके घाव भरने लगे, लेकिन निशान हमेशा के लिए रह गए। जज अनिल शर्मा ने आदित्य से मिलने का वादा किया।
“कैसे हो बेटा?”
“ठीक हूं, जज साहब।”
“तुमने बहुत बहादुरी दिखाई।”
“मैं हीरो नहीं हूं, जज साहब। अगर होता तो अंजलि को बचा लेता।”
“बेटा, तुमसे जितना हो सकता था, तुमने किया। भगवान सच्चाई के साथ होते हैं।”

आदित्य ने पहली बार मुस्कुराने की कोशिश की।
“जज साहब, मैं बड़ा होकर जज बनूंगा। ताकि कोई और बच्चा यह सब ना झेले। ताकि अंजलि को न्याय मिल सके।”

जज साहब ने आदित्य को गले लगा लिया।
“तुम जरूर बनोगे बेटा। और सबसे अच्छे जज बनोगे।”

भाग 9: न्याय की जीत

15 साल बाद, आदित्य शर्मा ने लॉ की डिग्री पूरी की। आज वह उसी कोर्ट में जज है, जहां उसने अपनी बहन के लिए न्याय मांगा था। हर दिन वह बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ता है, सच्चाई की रक्षा करता है।

निष्कर्ष:
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई की लड़ाई मुश्किल जरूर है, लेकिन अगर हिम्मत और मासूमियत साथ हो, तो न्याय जरूर मिलता है। भगवान वहां होते हैं, जहां सच्चाई होती है। हर बच्चा सुरक्षा और प्यार का हकदार है। आदित्य की तरह हर किसी को आवाज उठानी चाहिए, ताकि कोई और बच्चा दर्द में ना रहे।