किराए की बीवी से सच्चा रिश्ता: आर्यन और श्रुति की कहानी
दिल्ली के करोड़पति आर्यन राठौर की ज़िंदगी दौलत, शोहरत और बड़े कारोबार में डूबी थी, लेकिन उसकी सबसे बड़ी पूंजी था उसका पिता, जो अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से लड़ रहे थे।
एक दिन बिस्तर पर पड़े पिता ने कांपते हाथों से बेटे का हाथ पकड़ा और कहा,
“बेटा, मैं एक आखिरी इच्छा लेकर मरना नहीं चाहता। अगले सात दिन में शादी कर ले, तभी मेरी आंखें चैन से बंद होंगी। वरना सारी संपत्ति अनाथ बच्चों के नाम कर दूंगा।”
आर्यन पत्थर सा हो गया। शादी—वो भी सात दिन में? लेकिन पिता की हालत देखकर उसके पास ना कहने की ताकत नहीं थी। उसने सिर झुका लिया—”ठीक है, पापा। जैसा आप चाहें।”
सबसे पहले उसे अपनी पुरानी मंगेतर रिया मल्होत्रा की याद आई। कॉलेज के दिनों से दोनों शादी का सपना देख रहे थे। आर्यन ने तुरंत रिया को फोन किया और पूरी बात बताई।
रिया चुप रही, फिर बोली, “मैं अभी शादी के लिए तैयार नहीं हूं। दो दिन बाद मुझे कॉन्फ्रेंस के लिए जाना है। बाद में बात करते हैं।”
आर्यन ने समझाया, “रिया, ये मेरे पापा की आखिरी ख्वाहिश है। बस एक सिंपल सी शादी कर लो।”
लेकिन रिया झुंझला गई, “इतनी जल्दी इतना बड़ा फैसला कैसे ले सकते हो? मैं तैयार नहीं हूं।” और फोन काट दिया।
अब आर्यन टूट चुका था। एक तरफ पिता की आखिरी इच्छा, दूसरी तरफ रिया का इंकार। उसने तय किया, किसी भी हाल में शादी करनी ही होगी—चाहे किसी से भी।
तभी उसके मन में ख्याल आया—अगर कोई लड़की सिर्फ कागज पर शादी के लिए मान जाए, कुछ दिनों के लिए।
उसने वकील को बुलाया, “मुझे एक कॉन्ट्रैक्ट शादी करनी है, सिर्फ सात दिन के लिए। लड़की को कोई नुकसान नहीं होगा, मैं पूरा खर्च उठाऊंगा।”
वकील हैरान था, लेकिन आर्यन की मजबूरी समझ गया।
एक सामाजिक संस्था से पता चला कि एक लड़की श्रुति वर्मा की मां बहुत बीमार है, इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। श्रुति अपनी मां के लिए कुछ भी कर सकती है।
आर्यन ने श्रुति से साफ कहा, “यह शादी बस सात दिन की होगी, सिर्फ कागजों पर। बदले में तुम्हारी मां का पूरा इलाज मैं करवाऊंगा।”
श्रुति की आंखों में आंसू थे, लेकिन बोली, “अगर इससे मेरी मां की जान बच सकती है, तो मैं तैयार हूं।”
आर्यन ने वादा किया, “तुम्हारी इज्जत और मर्यादा का पूरा ध्यान रखूंगा।”
और उसी दिन दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली।
ना कोई बारात, ना दुल्हन का लाल जोड़ा, ना शादी की रस्में। बस दो अनजान लोग मजबूरी में एक समझौते में बंध गए।
शादी के बाद आर्यन ने श्रुति को अपने घर के गेस्ट रूम में ठहराया। कोई शादी की सजावट नहीं, ना ढोल-नगाड़े। बस एक हल्का गुलाबी सूट जिसे खुद आर्यन ने खरीदकर दिया था।
आर्यन ने साफ कहा, “यह रिश्ता सिर्फ नाम का है। सात दिन बाद सब खत्म हो जाएगा।”
श्रुति ने सिर झुका लिया। उसके लिए यह शादी वाकई एक समझौता थी। लेकिन उस समझौते में भी उसने अपने भगवान को साक्षी मान लिया था।
शुरुआती दिन खामोशी में बीते। दोनों के बीच सिर्फ जरूरत भर की बातें होतीं—खाना खा लिया, कुछ चाहिए तो बताना।
लेकिन उसी खामोशी में एक अनकहा जुड़ाव पनप रहा था।
एक दिन श्रुति ने एक चिट्ठी लिखी—”हमारी शादी सिर्फ कागजों की बात नहीं रही। अब यह रिश्ता मेरे भगवान के सामने भी है। आपने मेरी मां को सहारा दिया, इसके लिए मैं आभारी हूं।”
आर्यन ने उस चिट्ठी को अपनी जेब में रख लिया।
तीसरे दिन आर्यन अस्पताल गया। श्रुति अपनी मां के पास बैठी थी। आर्यन के आने पर बस हल्की मुस्कान दी। ना कोई शिकायत, ना कोई सवाल।
शाम को बारिश हो रही थी। आर्यन बालकनी में खड़ा था, श्रुति अपने कमरे में पूजा कर रही थी। उसके चेहरे पर शांति थी।
चौथे दिन अचानक बिजली चली गई। घर में अंधेरा फैल गया।
आर्यन ने देखा श्रुति खिड़की के पास बैठी है, चांदनी उसके चेहरे पर पड़ रही है। उस पल में कुछ ऐसा था जिसे आर्यन चाहकर भी नजरअंदाज नहीं कर सका।
अगली शाम बारिश थम चुकी थी। श्रुति आंगन में आई, बोली, “बारिश के बाद की हवा कितनी साफ लगती है ना।”
आर्यन मुस्कुराया, “कुछ रिश्ते भी बारिश की तरह होते हैं। जब-जब आते हैं, कुछ ना कुछ बहा ले जाते हैं।”
श्रुति ने हल्की मुस्कान दी, “कभी-कभी नया भी छोड़ जाते हैं।”
अब दोनों की चुप्पी में अजनबीपन नहीं था, अपनापन था।
आर्यन ने अपनी डायरी में लिखा—”यह लड़की खामोश रहती है, मगर उसकी खामोशी बहुत कुछ कहती है। यह रिश्ता जितना कागजों पर लिखा गया था, उससे कहीं ज्यादा अब दिल में उतर चुका है।”
फिर एक दिन रिया अचानक आ गई।
वो गुस्से में थी—”आर्यन, तुमने मुझसे बिना बताए शादी कर ली? यह लड़की कौन है?”
आर्यन ने कहा, “रिया, तुम लेट हो गईं, वो वक्त पर आ गई। यह शादी मजबूरी में सात दिन के लिए हुई है।”
रिया तिलमिला उठी—”मजबूरी? और अब तुम उसे पत्नी कह रहे हो। कितने दिनों के लिए? सात दिन?”
आर्यन चुप रहा।
रिया चली गई, जाते-जाते बोली, “यह कहानी यहीं खत्म नहीं होगी। आर्यन, यह जंग अभी बाकी है।”
घर में सन्नाटा पसर गया।
श्रुति ने कुछ नहीं पूछा, बस खाने की ट्रे में एक छोटा सा कागज रखा—”क्या आपके मेहमान खुश थे?”
आर्यन ने नोट पढ़ा, जवाब नहीं दिया, उसे आग में डाल दिया। लेकिन उस जलते हुए कागज की खुशबू जैसे सीधे दिल में उतर गई।
अगली सुबह अस्पताल से फोन आया—श्रुति की मां की हालत बेहतर है।
शाम को श्रुति आंगन में आर्यन की मां के साथ बैठी थी।
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