4 साल बाद पत्नी IAS बनकर लौटी , तो पति बस स्टॉप पर समोसे बनाता मिला , फिर आगे जो हुआ …

नमस्कार मेरे प्यारे दर्शकों, स्वागत है आप सभी का। यह कहानी है एक साधारण लेकिन मेहनती इंसान उदय प्रताप की, जो अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना करता है। एक दिन बस स्टॉप पर बहुत भीड़ थी। हर कोई अपने आने-जाने के लिए भागदौड़ कर रहा था। बस स्टॉप के बाहर एक ठेले पर समोसे तले जा रहे थे। उदय प्रताप, जो पहले एक साधारण लेकिन मेहनती इंसान था, अब समोसे बेचने पर मजबूर था। उसके कपड़े पसीनों से भीगे हुए थे और माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं।

जीवन की कठिनाइयाँ

उदय ने अपनी पत्नी संध्या की पढ़ाई के लिए अपनी पूरी जमा की हुई पूंजी खर्च कर दी थी। वह जानता था कि शिक्षा ही उनकी जिंदगी को बदल सकती है। संध्या ने कड़ी मेहनत की और अंततः उसने प्रशासनिक सेवा में सफलता प्राप्त की। लेकिन उदय की मेहनत और त्याग के बावजूद, उसकी जिंदगी में हालात ऐसे हो गए कि वह बस स्टॉप पर समोसे बेचने पर मजबूर था। फिर भी, वह अपनी स्थिति से खुश था। वह हमेशा मुस्कुराता रहता, क्योंकि उसे विश्वास था कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा।

एक अप्रत्याशित मोड़

उसी समय, एक वातानुकूलित बस आई। कुछ यात्री बस से उतरे और कुछ बस पर चढ़ गए। उदय प्रताप ने रोज की तरह आवाज लगाई, “गर्म समोसे लो!” लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ। अचानक बस स्टॉप पर हलचल मच गई। बस स्टाफ प्रबंधक दौड़ते हुए आए और गार्ड चौकन्ने हो गए। कुछ लोग हाथ जोड़कर एक लाइन में खड़े हो गए। तभी एक चमचमाती गाड़ी बस स्टॉप पर आकर रुकी। उसके पीछे तीन और गाड़ी थीं। चारों ओर सन्नाटा छा गया। उस गाड़ी से एक महिला उतरी, जिसने लाल और गोल्डन साड़ी पहनी थी। उसकी आंखों पर काला चश्मा था और चेहरे पर सख्त भाव थे। वह थी डीएम संध्या।

पहचान का क्षण

संध्या के साथ सुरक्षाकर्मी भी थे। उनकी चाल तेज थी और चेहरों पर अधिकारियों वाला तेज दिख रहा था। वह आगे बढ़ती रही, जैसे किसी को देखना या पहचानना उनके हैसियत के खिलाफ हो। लेकिन ठेले के पीछे खड़ा उदय प्रताप उन्हें देखता रह गया। कुछ पल के लिए उसका हाथ रुक गया। संध्या ने एक बार पीछे मुड़कर देखा और उसकी नजर उदय प्रताप से मिली। एक पल ऐसा लगा जैसे समय रुक गया हो। लेकिन संध्या बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई, जैसे उन्होंने उदय प्रताप को पहचाना ही न हो।

अपमान का सामना

उदय प्रताप वहीं खड़ा रह गया। वह कुछ कह नहीं सका, ना ही कुछ कर सका। उसे जैसे अंदर से बड़ा झटका लगा हो। वहां आसपास खड़े लोग उसकी तरफ देखने लगे। कोई हंस रहा था, तो कोई आपस में बातें कर रहा था। कोई बोला, “अरे, यह समोसे बनाने वाला डीएम मैडम का पति है क्या?” अब मैडम को कहां याद होगा ऐसे आदमी को? ऐसी बातें सुनकर उदय प्रताप को बहुत अपमान महसूस हुआ। तभी तीन पुलिस वाले वहां आए। एक ने पास आकर पूछा, “तू ही उदय प्रताप है?”

उदय प्रताप ने धीरे से हां बोला। तो पुलिस वाले बोले, “चुपचाप चल, तेरे खिलाफ शिकायत आई है। बस स्टॉप पर बिना अनुमति ठेले लगाना, गंदगी फैलाना, अफसर के सामने हंगामा करना।” उदय प्रताप कुछ समझ नहीं पाया, उसने कहा, “मैंने कुछ गलत नहीं किया,” लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। पुलिस वाले ने उसे पकड़ कर थाने ले गए।

थाने में अपमान

थाने में उसे बिठा दिया गया। फिर एक दरोगा चिल्लाया, “बहुत बना है डीएम का पति! मैडम ने खुद कहा है इसे सही करो!” उदय प्रताप की आंखों में आंसू भर आए। उसने कहा, “मैं संध्या का पति हूं, मैंने क्या किया है?” लेकिन उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं था। उसकी पीठ पर डंडा पड़ा। थाने में सब हंसने लगे। कोई बोला, “अरे सुनो, समोसे वाला कह रहा है वो डीएम का पति है।” अब सभी उसका मजाक उड़ाने लगे। किसी ने कहा, “अपनी शक्ल देखी है, तो डीएम का पति? यह तो हद हो गई!”

सच्चाई का संघर्ष

गालियां, मारपीट सब कुछ एक साथ चल रहा था। लेकिन उदय प्रताप चुप था। अब उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। बस एक चुप्पी थी जिसमें दर्द, अपमान और अंदर ही अंदर जलता हुआ गुस्सा था। दूसरे दिन सुबह बिना कोई केस दर्ज किए उसे छोड़ दिया गया। उदय प्रताप सीधा डीएम ऑफिस पहुंचा। गेट पर सुरक्षा गार्ड ने कहा, “मैं संध्या से मिलना चाहता हूं। वह मेरी पत्नी है।”

गार्ड हंसकर बोले, “फिर आ गया। अभी कल ही तुझे समझाया था। यहां मजाक नहीं चलता।” तभी एक अधिकारी बाहर आया। उसने उदय प्रताप की हालत देखी और गुस्से से बोला, “इसे यहां से भगा दो। इसकी हिम्मत तो देखो। कौन संध्या? कौन पति?” गार्ड ने उदय प्रताप को धक्का मारकर बाहर भगा दिया। लेकिन इस बार उदय प्रताप चुप नहीं बैठा। उसने एक आरटीआई का फॉर्म भरा।

आरटीआई का कदम

उसने पहला बिंदु लिखा, “क्या डीएम मैडम संध्या शादीशुदा हैं? अगर हां, तो उनके पति का नाम क्या है?” कुछ दिन में यह पत्र संध्या के ऑफिस पहुंच गया। एक अफसर उनके पास गया और बोला, “मैडम, यह आरटीआई आया है। इसका जवाब देना होगा।” संध्या ने फार्म देखा, पढ़ा और गुस्से में उसे फाड़ दिया। वह बोली, “जिसने यह भेजा है, उसे ठीक से सबक सिखाओ। यह बात बाहर नहीं जानी चाहिए।”

सच्चाई का सामना

अफसर डर कर बोला, “लेकिन मैडम, यह कानून के हिसाब से जरूरी है। आपको जवाब देना पड़ेगा। वरना मामला कोर्ट जा सकता है।” संध्या बोली, “तो क्या हुआ? जाने दो कोर्ट में। हम कोई जवाब नहीं देंगे। शांत रहो। मीडिया तक बात ना पहुंचे, उससे पहले इस बात को दबा दो।” लेकिन इस बार उदय प्रताप चुप नहीं रहा।

एक लोकल पत्रकार ने उदय प्रताप को खोज निकाला। उदय प्रताप ने मीडिया के कैमरे के सामने कहा, “मैं संध्या का पति हूं। मैंने ही उसे पढ़ाया है। अपनी जमीन बेचकर उसे दिल्ली भेजकर कोचिंग कराई। आज वह डीएम है। लेकिन वह मुझे पहचानने से इंकार कर रही है।” यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। टीवी पर हेडलाइन चली, “क्या बस स्टॉप पर समोसे बेचने वाला डीएम का पति है?”

जनता का समर्थन

डीएम ने बस स्टॉप पर अपने पति को नहीं पहचाना। अब यह मामला पुलिस थाने या ऑफिस तक सीमित नहीं रहा। यह जनता और मीडिया के बीच पहुंच चुका था। उदय प्रताप ने कोर्ट में केस किया। उसने कहा, “मैं डीएम संध्या का पति हूं। मेरे पास साक्ष्य है। शादी का प्रमाण पत्र, फोटो, गवाह सभी कागजात। अगर कोई अधिकारी इसे झूठा समझे तो यह मेरी इज्जत का अपमान है।”

कोर्ट ने सुनवाई की तारीख तय की। खबर मीडिया तक पहुंच गई। अब मामला और ज्यादा बड़ा हो गया। डीएम मैडम अब सवालों में थी। उदय प्रताप को कुछ लोगों से धमकियां मिलने लगीं। किसी ने उसे धमकाया भी। फिर भी उसने किसी थाने में कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। वह केवल कोर्ट की तारीख का इंतजार करता रहा। अब उसका चेहरा आम आदमी का नहीं था। वह सच और हक की आवाज बन चुका था जो किसी बड़े पद को हिला सकता था।

कोर्ट की पहली सुनवाई

पहली सुनवाई के दिन कोर्ट के अंदर बहुत भीड़ थी। संध्या की ओर से चार वकील आए थे। सभी सूट बूट में, मोटी-मोटी फाइल लेकर। उदय प्रताप अकेला था। उसके पास एक फाइल थी जिसमें शादी की कुछ फोटो थीं। जज ने पूछा, “तुम किस हक से कह रहे हो कि तुम संध्या डीएम के पति हो?” उदय प्रताप ने जज के सामने शादी की तस्वीर रख दी। फिर उसने दिखाया एक शादी का रजिस्ट्रेशन पेपर, गांव के सरपंच का सर्टिफिकेट।

सत्य की गवाही

एक चिट्ठी जो संध्या ने दिल्ली से कोचिंग के समय लिखी थी। “उदय प्रताप, अगर मैं कुछ बन पाई तो वह सिर्फ तुम्हारी वजह से,” संध्या के वकीलों ने इन सबूतों को गलत साबित करने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “यह सब नकली हो सकते हैं। अगर शादी हुई भी थी तो यह आदमी संध्या का पति नहीं, कोई जान पहचान वाला होगा।”

कोर्ट ने जब गवाह बुलाए, गवाह का सरपंच, उदय प्रताप के स्कूल टीचर, कोचिंग सेंटर के डायरेक्टर, सभी ने एक ही बात कही। “संध्या और उदय प्रताप की शादी सच में हुई थी। पूरा गांव इसका गवाह है। उदय प्रताप वह आदमी है जिसने संध्या की पढ़ाई के लिए अपना सब कुछ कुर्बान किया था।”

न्याय का फैसला

जज ने कुछ नहीं कहा, लेकिन उनके चेहरे पर परेशानी साफ नजर आई। उन्होंने सिर्फ अगली सुनवाई की तारीख तय की। अगली सुनवाई के दिन कोर्ट के बाहर मीडिया की भीड़ थी। जब संध्या सरकारी गाड़ी से उतरी, तो मीडिया के कैमरे उन्हीं की तरफ घूम गए। उनके चेहरे पर उदासी साफ नजर आ रही थी। दूसरी ओर, उदय प्रताप एक पुरानी शर्ट और घिसी हुई चप्पलों में कोर्ट के अंदर आया। उसके चेहरे पर कोई डर नहीं था। उसके कदम मजबूत थे।

संध्या का इनकार

कोर्ट ने दोनों पक्षों से सवाल पूछे। संध्या ने फिर वही कहा, “मैं उदय प्रताप को नहीं जानती।” तभी उदय प्रताप ने अपनी जेब से एक पुरानी डायरी निकाली। उसमें संध्या की लिखी एक पत्र था। “उदय प्रताप, मैं आज इंटरव्यू देने जा रही हूं। आपने ही मुझे यहां तक पहुंचाया है। बस दुआ करो कि मैं पास हो जाऊं।” पूरे कोर्ट में सन्नाटा छा गया। संध्या की नजर नीचे झुक गई।

निर्णय का दिन

जज ने उस समय कुछ नहीं कहा, लेकिन फैसला सुरक्षित रख लिया। फैसले वाले दिन कोर्ट में बहुत भीड़ थी। जज ने फैसला सुनाया। “यह बात सच है कि संध्या और उदय प्रताप की शादी हुई थी। संध्या ने जानबूझकर अपने पति की पहचान छिपाई।”

इस फैसले के बाद शाम को उदय प्रताप अपने समोसे के ठेले पर लौट आया। वह पहले जैसे समोसे बना रहा था। इस बार उसके चेहरे पर कोई दुख नहीं था। ना कोई गार्ड, ना सरकारी गाड़ी, ना कोई अफसर, बस वही पुराना ठेला, वही सामान, वही बस स्टॉप। लेकिन अब अंतर था। हर कोई आने-जाने वाला व्यक्ति उदय प्रताप को इज्जत से देखता।

समाज की नजर में बदलाव

उसी बस स्टॉप पर एक आदमी उसके पास आया और बोला, “उदय प्रताप भैया, आप जैसे लोग ही इस सिस्टम से लड़ सकते हैं।” उदय प्रताप ने कुछ नहीं कहा। बस मुस्कुराते हुए एक समोसा थाली में रखा और बोला, “गर्म है, ध्यान से खाना।”

सच्चाई का महत्व

दोस्तों, क्या आप भी मानते हैं कि सच्चाई, चाहे कितनी भी दबा दी जाए, एक दिन सामने आ ही जाती है? उदय प्रताप की कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष, त्याग और सच्चाई के साथ खड़े रहना कितना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

तो दर्शकों, यह थी हमारी आज की कहानी। आप सभी को कैसी लगी, कमेंट बॉक्स के माध्यम से हमें जरूर बताएं। दर्शकों, साथ ही हमारे चैनल स्माइल वॉइस को सब्सक्राइब करना ना भूलें। मिलते हैं ऐसी ही इंटरेस्टिंग और खतरनाक कहानी के साथ। तब तक के लिए आप सभी का तहे दिल से धन्यवाद। जय श्री राम!

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