शेरनी: एसडीएम अनन्या चौहान की रात

रात का अंधेरा घना होता जा रहा था। चारों ओर सन्नाटा था, केवल कहीं दूर भौंकते कुत्तों की आवाज उस खामोशी को और गहरा कर रही थी। आसमान पर बादल थे, चांद पूरी तरह छिपा हुआ था। जब-जब बिजली चमकती, पूरा इलाका पलभर के लिए उजागर हो उठता, जैसे किसी ने कैमरे की फ्लैश जलाई हो। इसी वीराने में एक काली जीप धीरे-धीरे रास्ता काटते हुए आगे बढ़ रही थी। गाड़ी के अंदर बैठी थी एसडीएम अनन्या चौहान – तीस वर्ष की उम्र, तेज निगाहें, कड़े फैसले लेने वाली और सबसे बड़ी बात, अपने काम से समझौता ना करने वाली अफसर।

आज की रात उसके लिए सामान्य नहीं थी। वह अपनी ड्यूटी के तौर पर नहीं, बल्कि एक गुप्त मिशन पर निकली थी। ऐसा मिशन, जिसके बारे में उसके ऑफिस में भी बस दो लोग जानते थे। मिशन था जिले में चल रहे अवैध खनन के खेल का पर्दाफाश करना। कई महीनों से शिकायतें मिल रही थीं कि रात के अंधेरे में बड़े-बड़े ट्रक और जेसीबी मशीनें नदी किनारे से रेत और पत्थर निकालकर बाहर भेज रहे हैं। इसमें सिर्फ स्थानीय माफिया ही नहीं, बल्कि कुछ नेता और पुलिस अफसर भी शामिल थे। सरकार को सबूत चाहिए थे। जब यह काम अनन्या को सौंपा गया, उसने बिना झिझक हामी भर दी।

गाड़ी उसका विश्वासपात्र ड्राइवर रवि चला रहा था। रवि भी जानता था कि यह रात आसान नहीं होगी। जैसे ही उन्होंने नदी किनारे बने पुराने खदान इलाके की ओर गाड़ी मोड़ी, सामने का दृश्य देखकर दोनों की सांसे थम गईं। दूर कहीं टिमटिमाती रोशनी और ट्रकों की परछाइयां दिख रही थीं। ऐसा लग रहा था, जैसे अभी भी वहां खनन का काम चल रहा हो। अनन्या ने रवि को गाड़ी थोड़ी दूर रोकने का इशारा किया और खुद धीरे से बाहर निकल आई। उसने काले रंग का कोट पहन रखा था, बालों को पीछे कसकर बांध रखा था ताकि अंधेरे में कोई पहचान न सके।

कुछ ही दूर जाकर उसने देखा कि तीन ट्रक खड़े हैं, करीब दर्जन भर आदमी उन पर कट्टे और रेत लाद रहे हैं। पास ही दो जेसीबी मशीनें भी खड़ी थीं, उनकी गड़गड़ाहट से साफ पता चल रहा था कि मशीनें अभी-अभी बंद की गई थीं। अनन्या का शक सही साबित हुआ। वह तुरंत सबूत जुटाने के लिए अपनी जेब से छोटा कैमरा निकालने लगी। तभी अचानक उसके पीछे से टॉर्च की तेज रोशनी पड़ी। पलट कर देखा तो दो वर्दीधारी पुलिस वाले खड़े थे। उनकी आंखों में हैरत थी, लेकिन अगले ही पल वह हैरत किसी और रंग में बदल गई। उनमें से एक बोला, “अरे यह तो मैडम हैं।”

उसके साथी ने धीमे स्वर में कुछ कहा और दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए। उस मुस्कान में अजीब सी खालिस मदानगी और नीचता झलक रही थी। अनन्या को तुरंत एहसास हुआ कि ये दोनों भी रैकेट में शामिल हैं। उसने संयमित आवाज में कहा, “तुम लोग यहां क्या कर रहे हो? तुम्हें पता है यह सब अवैध है?” लेकिन जवाब देने के बजाय उनमें से एक उसकी तरफ बढ़ा और बोला, “मैडम, रात बहुत अजीब होती है। कभी-कभी राज रखने पड़ते हैं। लेकिन आप जैसी सुंदर अफसर अगर हमारे साथ हैं, तो कोई राज छुपा कैसे रह सकता है?”

यह सुनकर अनन्या की आंखों में आग भर आई। उसने सख्त लहजे में कहा, “सावधान! अगर एक कदम और आगे बढ़े तो ड्यूटी पर रहते हुए छेड़छाड़ के आरोप में अभी गिरफ्तार कर लूंगी।” लेकिन पुलिस वाला हंसा, उसकी हंसी में वह बेपरवाही थी जो सिर्फ सत्ता और साजिश से उपजी थी।

तभी वहां तीन नेता आ गए। सोने की चैन, मोटा पेट, हाथ में महंगे फोन और आंखों में बेहयाई। उनमें से एक ने तंज कसा, “अरे यह तो हमारी नई एसडीएम साहिबा हैं। स्वागत है आपका हमारे इलाके में। अफसोस अकेले ही चली आईं, वरना ढोल-नगाड़े से स्वागत करते।”

अनन्या ने खुद को संभाला और बोली, “तुम लोग चाहे जितने ताकतवर हो, कानून से ऊपर नहीं हो। ये सबूत मैंने जुटा लिए हैं और कल सुबह तक ये सीधे मुख्यमंत्री के पास होंगे।” यह सुनते ही नेताओं के चेहरे बदल गए। उनमें से एक बोला, “अगर सबूत ऊपर पहुंच गए, तो हमारी कमाई बंद हो जाएगी। लेकिन चिंता मत करो। हम जानते हैं कि सबूत कैसे गायब किए जाते हैं।”

उसने पुलिस वालों को इशारा किया और दोनों धीरे-धीरे अनन्या के करीब आने लगे। एक पुलिस वाले ने धीमे स्वर में कहा, “मैडम, रात का राज रात में ही दफन हो जाना चाहिए।” यह सुनकर अनन्या ने तुरंत अपना हाथ पीछे किया और कोट के भीतर छुपाई पिस्तौल बाहर निकाल ली। उसकी ठंडी चमक ने पल भर को सबको चौंका दिया। उसने सख्ती से कहा, “रुको! अगर किसी ने भी एक कदम आगे बढ़ाया तो मैं बिना सोचे समझे ट्रिगर दबा दूंगी।”

लेकिन नेता लोग हंस पड़े। उनमें से एक बोला, “मैडम, यह जंगल है। यहां ना कोई सुनने वाला है ना देखने वाला। गोली चलाओगी, तुम ही फंसोगी।” अनन्या का गुस्सा बढ़ा, लेकिन उसने ठंडे दिमाग से सोचा क्योंकि वह जानती थी कि गलती की तो मिशन खतरे में पड़ जाएगा।

तभी अचानक पीछे से किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसने पूरी ताकत से झटका दिया और देखा कि एक और आदमी कप का चुपके से पीछे आ गया था। अब तक कुल सात-आठ लोग उसके चारों ओर थे। माहौल खतरनाक हो चुका था। अनन्या ने पिस्तौल सीधी करके हवा में फायर किया। गोली की आवाज ने रात का सन्नाटा चीर दिया। सब एक पल को सन्न रह गए।

“कान खोलकर सुन लो! मैं अनन्या चौहान हूं, इस जिले की एसडीएम। अगर अभी किसी ने भी मुझे हाथ लगाया, तो कसम खाती हूं यहां लाशें बिक जाएंगी।” लेकिन उसकी धमक थोड़ी ही देर टिक सकी। नेताओं में से सबसे चालाक ने तुरंत मोबाइल निकाला और किसी को फोन लगाया। अगले ही पल तीन गाड़ियां वहां आ पहुंची, जिनमें और भी हथियार बंद गुंडे थे। अब अनन्या और रवि पूरी तरह से घिर चुके थे।

मिशन फंस चुका था और उसके आसपास मौत का साया मंडरा रहा था। ट्रकों की हेडलाइट्स जल चुकी थीं। उनकी तेज रोशनी में नेताओं के चेहरे साफ दिख रहे थे। पुलिस वाले जो कानून के रक्षक होने चाहिए थे, वही उसकी इज्जत और जान के दुश्मन बन चुके थे। और पीछे से आई तीन गाड़ियों में से उतरे हथियार बंद गुंडे। अब चारों ओर फैल चुके थे। हाथ में लोहे की रड, डंडे और कुछ के पास बंदूकें भी थीं।

रवि ने फुसफुसाकर कहा, “मैडम, गाड़ी की तरफ भागते हैं।” लेकिन अनन्या ने उसे चुप रहने का इशारा किया। उसकी नजरें हर एक चेहरे पर घूम रही थीं। वह समझ चुकी थी कि यह कोई सामान्य स्थिति नहीं है। यह सब एक जाल था। सामने खड़ा नेता विक्रम सिंह, जिले का सबसे बड़ा ठेकेदार और राजनीतिक पहुंच वाला व्यक्ति था। उसने आगे बढ़कर कहा, “मैडम, हमने सुना था आप बहुत तेजतर्रार अफसर हैं। लेकिन इतनी बेवकूफी की उम्मीद नहीं थी। अकेली रात में हमारे इलाके में आना!”

बाकी नेता और पुलिस वाले उसकी बात सुनकर हंसने लगे। वह हंसी किसी खतरनाक शिकारी जानवर की गुर्राहट जैसी थी। अनन्या ने अपनी पिस्तौल को कसकर पकड़ा और ठंडी आवाज में कहा, “तुम लोग चाहे जितनी भीड़ लेकर आ जाओ, याद रखना कानून के सामने किसी की नहीं चलती।”

एक पल को माहौल थम सा गया। लेकिन फिर अचानक पीछे से एक गुंडा तेजी से झपटा और उसके हाथ से पिस्तौल छीनने की कोशिश की। अनन्या ने पूरी ताकत से उसके पेट में घुटना मारा। लेकिन दो और गुंडे उसके ऊपर टूट पड़े। रवि ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया गया। इस झगड़े में अनन्या का कैमरा गिरकर टूट गया और पिस्तौल भी एक तरफ छिटक गई।

अब हालात और भी खतरनाक हो चुके थे। विक्रम सिंह ने ताली बजाकर अपने लोगों को रुकने का इशारा किया और बोला, “इतनी जल्दी क्या है? मजा धीरे-धीरे लेना चाहिए।” एक पुलिस वाला आगे बढ़ा, “मैडम, अब आपके पास कोई रास्ता नहीं है। या तो हमसे समझौता कर लो वरना ऐसी सजा मिलेगी कि जिंदगी भर याद रखोगी।”

अनन्या की आंखों में खून उतर आया। उसने जोर से चीख कर कहा, “तुम्हारी औकात क्या है मेरे सामने? मैं इस देश की प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हूं। कानून की रक्षा करने वाली और तुम जैसे गद्दार सोचते हो कि मुझे झुका दोगे। याद रखो औरत की ताकत को कभी कम मत समझना!”

गुंडों ने फिर से उस पर धावा बोल दिया। लेकिन अनन्या ने अपने जूते से दूसरे के घुटने पर वार किया। जितने को वहां गिरा रही थी, उतने और उसके चारों ओर मंडराने लगे थे। विक्रम सिंह भड़क गया। “कड़ो इसे!” तभी अनन्या के कानों में अपनी आत्मा की आवाज गूंजी, “अगर अब हिम्मत खो दी तो यह शैतान उसकी इज्जत और मिशन दोनों को रौंद देंगे।”

उसने पास पड़े पत्थर को उठा कर पुलिस वाले के सिर पर दे मारा। पुलिस वाला गिर पड़ा। बाकी सब कुछ देर को ठिठक गए। लेकिन फिर चीखते-चिल्लाते उसकी ओर दौड़े। अब लड़ाई खुलकर शुरू हो चुकी थी। रवि भी उठ खड़ा हुआ और एक गुंडे के हाथ से डंडा छीनकर ऊपर टूट पड़ा। चारों ओर अफरातफरी मच गई। आवाजें, चीखें, गालियां और धमकियां हवा में गूंजने लगीं।

लेकिन इसी कोराहम के बीच अनन्या की आंखों में ना डर था, ना हार का कोई भाव। उसकी आंखें अब किसी शेरनी की तरह चमक रही थीं। उसने दो और लोगों को घायल किया। लेकिन तभी किसी ने पीछे से उसके कंधे पर जोरदार वार किया और वह जमीन पर गिर पड़ी। गिरते ही उसने देखा कि चार-पांच लोग उसके ऊपर झुकने लगे हैं। वह तुरंत उठने की कोशिश करती है, लेकिन दो लोग उसके हाथ दबा देते हैं। विक्रम सिंह पास आकर झुकता है, “अब देखो मैडम, तुम्हारे सारे घमंड का क्या हाल होता है।”

लेकिन तभी पुलिस की गाड़ियों की आवाज सुनाई दी। सायरन की गूंज ने पूरे माहौल को हिला दिया। सबके चेहरे पर हैरानी थी। विक्रम सिंह ने तुरंत अपने लोगों को इशारा किया, “भागो लेकिन याद रखना यह औरत जिंदा नहीं बचनी चाहिए।” बाकी गुंडे और पुलिस वाले भी भागने लगे। लेकिन कुछ वहीं रह गए ताकि अनन्या को खत्म कर सकें।

अनन्या ने मौका पाते ही अपने हाथ छुड़ाए और जमीन पर पड़े डंडे से वार करते हुए उठ खड़ी हुई। तभी पुलिस की गाड़ियां वहां पहुंचीं। उनमें से कुछ वही पुलिस के लोग थे जिन पर पहले से शक था। अब अनन्या और रवि के लिए हालात और भी उलझ चुके थे। असली और नकली मददगारों की पहचान करना नामुमकिन हो गया था। लेकिन उसके दिल में अब सिर्फ एक ही आग जल रही थी – इन गद्दारों को उनकी औकात दिखानी है।

रात अब अपने सबसे गहरे अंधेरे में थी। बारूद और खून की गंध मिल चुकी थी। नदी किनारे का वह सुनसान खदान क्षेत्र अब युद्धभूमि बन चुका था। अनन्या चौहान का शरीर थका हुआ था, लेकिन उसकी आंखों में अब भी वही तेज और गुस्सा बरकरार था।

सामने पुलिस की गाड़ियों की लाल-नीली बत्तियां चमक रही थीं। सायरनों की आवाज अब धीरे-धीरे थम चुकी थी। वहां से उतरे पुलिस वाले दो हिस्सों में बंट गए थे। कुछ वाकई मदद के लिए दौड़ रहे थे, तो कुछ वही थे जो इस गंदे खेल का हिस्सा थे। यानी अब दुश्मन और दोस्त की पहचान करना और भी मुश्किल हो गया था।

विक्रम सिंह और उसके खास आदमी तो अंधेरे में निकल चुके थे। लेकिन जो लोग पीछे रह गए थे उनकी नजरें साफ बता रही थीं कि वे अनन्या को जिंदा नहीं छोड़ना चाहते। रवि उसके पास खड़ा था, हाथ में डंडा थामे और चेहरे पर डर और गुस्से का मिलाजुला भाव। उसने अनन्या से धीरे कहा, “मैडम, अब हमें कुछ बड़ा करना पड़ेगा। वरना यह सब हमें खत्म कर देंगे।”

अनन्या ने गहरी सांस ली और बोली, “डरने का वक्त चला गया रवि। अब सिर्फ लड़ने का वक्त है।” उसके शब्दों में ऐसी दृढ़ता थी कि खुद रवि के भीतर भी एक नई हिम्मत आ गई। तभी पीछे से एक पुलिस वाला चिल्लाया, “पकड़ो इन्हें!” और इसके साथ ही गोलियों की बौछार होने लगी। अनन्या ने झुककर एक पत्थर के पीछे पोजीशन ले ली और रवि भी उसी के साथ छिप गया।

गोलियां बरस रही थीं। लेकिन किसी तरह वे बचते हुए धीरे-धीरे पीछे की ओर खिसकने लगे। अनन्या के दिमाग में अब एक ही बात गूंज रही थी कि सबूत टूट चुके हैं, कैमरा नष्ट हो चुका है। लेकिन सच को उजागर करना ही उसका मिशन था।

रवि ने पास पड़े एक पत्थर को उठाकर आगे झांकते गुंडे पर फेंक मारा। वह आदमी गिर पड़ा और उसी मौके का फायदा उठाकर अनन्या ने उसका हथियार छीन लिया। अब उसके हाथ में बंदूक थी। उसने तुरंत निशाना साधकर गोली चलाई। एक और गद्दार पुलिस वाला गिर पड़ा। यह देखकर बाकी लोग थोड़ी देर के लिए पीछे हट गए। लेकिन फिर उनकी आंखों में खून उतर आया। अब वह पूरी ताकत से हमला करने को तैयार हो गए।

“औरत है इसे पकड़ लो, गोली मत चलाओ वरना ऊपर तक बात पहुंच जाएगी।” अनन्या ने ठंडी हंसी के साथ कहा, “आज गोली भी चलेगी और हिसाब भी होगा।” और उसने लगातार तीन फायर कर दिए। गोलियों की आवाज से बाकी भागने लगे। लेकिन कुछ डटे रहे। उनके पीछे से आवाज आई, “डरो मत, ऊपर से ऑर्डर है। इसे जिंदा मत छोड़ना।”

यह सुनकर अनन्या को साफ हो गया कि यह साजिश जिले से ऊपर तक पहुंच चुकी है। शायद बड़े नेताओं की भी इसमें भूमिका है। तभी अचानक उसके पैरों के पास गोली आकर लगी और मिट्टी उछल गई। वह तुरंत झुक गई लेकिन गोली उसके हाथ को छूती हुई निकल गई। हल्की चोट लगी, लेकिन खून निकल आया। दर्द से उसके चेहरे पर शिकन आई। लेकिन उसने होंठ भींच कर कहा, “मैं हारने के लिए पैदा नहीं हुई हूं।”

उसने फिर से फायर किया। इस बार गोली सीधे गुंडे के सीने में लगी और वह वहीं ढेर हो गया। यह दृश्य देखकर बाकी सब सक्ते में रह गए। तभी पुलिस की दूसरी गाड़ी से एक और अफसर उतरा – इंस्पेक्टर यादव। यह वही आदमी था, जिसके बारे में अनन्या को पहले से खबर थी कि वह दोहरा खेल खेल रहा है। उसकी आंखों में चालाकी साफ झलक रही थी।

उसने हाथ उठाकर कहा, “मैडम आप गलत समझ रही हैं। हम आपकी मदद के लिए आए हैं।” लेकिन अनन्या ने उसकी मुस्कान देखकर ही समझ गई कि वो झूठ बोल रहा है। उसने अपनी बंदूक उसकी ओर तानी और बोली, “अगर वाकई मदद करने आए हो तो अपने आदमियों को पीछे हटाओ और मुझे अभी यहीं बताओ कि विक्रम सिंह कहां गया है।”

यादव ने हंसते हुए कहा, “विक्रम सिंह तो अब बहुत दूर जा चुका है। लेकिन आपसे मिलकर खुशी हुई। देखेंगे आपकी सख्ती कितनी देर तक टिकती है।” और उसने हाथ उठाते ही अपने आदमियों को इशारा कर दिया। अचानक चारों ओर से गोलियों की बौछार फिर शुरू हो गई। अनन्या और रवि ने फिर से पोजीशन लेकर जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की आवाज से पूरी घाटी गूंज उठी।

अब लड़ाई किसी अंत की ओर बढ़ रही थी। अनन्या की आंखों में ना हार का डर था, ना मौत का खौफ। उसकी सांसें तेज थीं, लेकिन इरादे और भी मजबूत हो चुके थे। उसे पता था कि अगर वह आज जिंदा बच गई तो कल इस गंदी साजिश को उजागर करके इन सबको जेल के अंदर डालेगी। लेकिन अगर हार गई तो उसका नाम भी लोगों के लिए मिसाल बनेगा कि कैसे एक औरत अकेले ही दर्जनों दरिंदों का सामना कर सकती है।

वो खून से लथपथ जमीन पर खड़ी होकर चिल्लाई, “आओ, जो करना है कर लो। लेकिन याद रखना मेरी रूह भी तुम्हें चैन से जीने नहीं देगी।” उसके भीतर जैसे एक नई आग जरूर उठी। उसने लगातार फायरिंग शुरू कर दी। एक-एक करके दुश्मन गिरने लगे और धीरे-धीरे वह खून और मौत के बीच आगे बढ़ती चली गई।

उसकी चाल अब किसी इंसान की नहीं बल्कि एक शेरनी की लग रही थी। बाकी बचे दुश्मनों की रूह सचमुच कांप गई। रात की सर्द हवा अब और भी तेज हो चुकी थी। चारों तरफ खून की गंध, बारूद का धुआं और गिरती हुई लाशों का बोझ ऐसा माहौल बना चुका था कि जैसे वह इलाका नरक का रूप ले चुका हो।

अनन्या चौहान अपने पैरों पर किसी तरह खड़ी थी। उसके हाथ से खून बह रहा था। माथे पर चोट का निशान साफ दिखाई दे रहा था। लेकिन उसकी आंखों में ना थकान थी ना हार। वहां खड़े हर आदमी की रूह कांप रही थी क्योंकि उसने देख लिया था कि यह औरत ना डरती है ना हार मानती है।

इंस्पेक्टर यादव अभी भी वहीं खड़ा था। उसके चेहरे पर गुस्सा और बौखलाहट साफ झलक रही थी। उसने दांत पीसकर कहा, “औरत, तूने जितने भी लोगों को गिरा दिया, लेकिन अब तेरा खेल खत्म है। ऊपर से ऑर्डर आ चुका है कि तू जिंदा नहीं बचेगी।”

अनन्या ने बंदूक को कसकर पकड़ा और ठंडी आवाज में बोली, “याद रखो यादव, ऊपर चाहे किसी का भी ऑर्डर हो, कानून का ऑर्डर सबसे ऊपर होता है और मैं वही कानून हूं।” लेकिन उसकी यह चेतावनी बेअसर रही। यादव ने इशारा किया और चारों ओर से गोलियों की बारिश शुरू हो गई। रवि ने उसे खींचकर एक बड़े पत्थर के पीछे ढक लिया।

दोनों की सांसें तेज थीं, लेकिन अनन्या की आंखें अब और भी खतरनाक लग रही थीं। उसने धीमे स्वर में कहा, “रवि, हमें यहां से निकलना होगा। यह जगह अब मौत का जाल बन चुकी है। लेकिन हम बिना सच उजागर किए हार नहीं मान सकते।”

रवि ने कहा, “मैडम, कैमरा तो टूट चुका है। हमारे पास अब कोई सबूत नहीं है।” अनन्या ने आंखें बंद करके एक पल सोचा और फिर बोली, “सबूत सिर्फ कैमरे में नहीं होते रवि, सबूत इनकी लाशें भी बनेंगी। इनकी बातें, इनकी गोलियां और सबसे बढ़कर मेरे जिंदा बचने की गवाही।”

दोनों ने एक साथ जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की गूंज से माहौल और भी भयावह हो गया। चारों ओर से चीखें उठने लगीं। कई और गुंडे गिर पड़े। लेकिन भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी। यादव ने गुस्से में दहाड़ते हुए कहा, “कड़ लो इन्हें वरना हम सब खत्म हो जाएंगे।”

तभी अचानक दूर से गाड़ियों की रोशनी फिर दिखाई दी। इस बार यह आवाज अलग थी। यह सीआरपीएफ की गाड़ियां थीं जिन्हें अनन्या ने पहले से गुप्त संकेत भेज रखा था। रोशनी देखते ही यादव और उसके लोग सकते में आ गए। कई भागने लगे, लेकिन कुछ वहीं लड़ने को तैयार रहे।

अनन्या ने इस मौके का फायदा उठाकर खड़ी हो चिल्लाया, “अब खेल खत्म। अब असली कानून आ चुका है।” सीआरपीएफ के जवानों ने उतरते ही मोर्चा संभाल लिया। उनकी गोलियों की बौछार ने कई गुंडों को गिरा दिया। यादव ने पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन अनन्या ने तेजी से बढ़कर उसका कॉलर पकड़ लिया और बोली, “अब तू कानून से नहीं बच पाएगा। आज तू और तेरे जैसे सब गद्दार नंगे होकर जनता के सामने आएंगे।”

यादव ने छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन अनन्या ने उसे जोर से धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया और उसकी पिस्तौल उठाकर सीआरपीएफ को सौंप दी। अब हालात पलट चुके थे। गुंडों की भीड़ तितर-बितर हो चुकी थी। कई गिरफ्तार कर लिए गए और कई अंधेरे में भाग निकले। लेकिन विक्रम सिंह अभी भी हाथ नहीं आया था।

अनन्या ने जवानों से कहा, “वो शैतान भाग निकला है। उसका पीछा करो। वह कहीं दूर नहीं गया।” जवान तुरंत गाड़ियों में बैठकर उसका पीछा करने लगे। लेकिन अनन्या वहीं खड़ी रह गई। खून से सनी जमीन पर घायल शरीर के साथ लेकिन उसके चेहरे पर अजीब सी शांति थी। उसने आसमान की ओर देखा और धीरे से कहा, “हे भगवान, अगर आज मैं बची हूं तो सिर्फ इसलिए कि इन गद्दारों को उनके अंजाम तक पहुंचाऊं।”

रवि ने उसकी ओर देखा और उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने धीरे से कहा, “मैडम, आप सचमुच इंसान नहीं, किसी देवता जैसी ताकत लेकर आई हैं।” लेकिन अनन्या ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। उसकी आंखों में अब सिर्फ एक ही तस्वीर थी – विक्रम सिंह की। अब खेल सिर्फ गिरफ्तारी का नहीं था, बल्कि उसके साम्राज्य को जड़ से खत्म करने का था।

रात अब धीरे-धीरे ढल रही थी। पूर्व दिशा में हल्की सी लालिमा दिखाई देने लगी थी। पर इस लालिमा का अर्थ नया सवेरा नहीं, बल्कि खून से लथपथ एक और लंबा दिन था। एक ऐसा दिन जिसमें या तो सब खत्म हो जाएगा या सब नया शुरू होगा।

सुबह की पहली किरणें आसमान पर फैल चुकी थीं, लेकिन वह रोशनी भी नदी किनारे के खदान इलाके पर छाए अंधेरे को खत्म नहीं कर पा रही थी। जगह-जगह गिरे पड़े घायल और मरे हुए लोग, टूटी हुई मशीनें और जली हुई गाड़ियां यह सबूत थीं कि पिछली रात यहां सिर्फ खदान का नहीं, बल्कि इंसानियत का भी कत्ल हुआ है।

सीआरपीएफ के जवानों ने कई गुंडों को पकड़ लिया था। कई पुलिस वालों को हथकड़ी लग चुकी थी और कुछ को अस्पताल भेजा गया था। लेकिन विक्रम सिंह का कोई सुराग नहीं मिला था। अनन्या खून से सने कपड़ों में चोटों से भरे शरीर के साथ सीधी खड़ी थी। उसकी आंखों के नीचे काले घेरे थे। लेकिन उनमें अब भी वही आग जल रही थी जो किसी को भी राख बना सकती थी।

उसने आसपास खड़े अधिकारियों से कहा, “यह लड़ाई यहीं खत्म नहीं होगी। यह तो बस पहला पड़ाव था। विक्रम सिंह को जिंदा पकड़ना होगा। वरना यह सारा खेल फिर से शुरू हो जाएगा।” सीआरपीएफ के कमांडर ने सिर हिलाकर हामी भरी और अपनी टीम को आदेश दिया कि पूरे इलाके की नाकाबंदी की जाए।

लेकिन अनन्या जानती थी कि आदमी चालाक है। उसके पास राजनीतिक ताकत है और वह अपने पैसों से किसी को भी खरीद सकता है। उसने तय कर लिया कि वह खुद इस जाल को तोड़ेगी। वह सीधे उस जगह पहुंची जहां पुलिस वालों को गिरफ्तार कर रखा गया था। उनमें इंस्पेक्टर यादव भी था। उसके चेहरे पर अब डर साफ झलक रहा था। हथकड़ी पहने वह जमीन पर बैठा था और उसकी आंखों में नींद और थकान की लाली थी।

अनन्या उसके सामने खड़ी हुई और ठंडी आवाज में बोली, “यादव, तूने सोचा था कि तेरा गुनाह छिप जाएगा। तूने अपनी वर्दी को दागदार किया। तूने औरत की इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की और तूने कानून का गला घोटा। अब सच उगल वरना तेरी सांसे भी ज्यादा देर तक नहीं चलेंगी।”

यादव ने कांपते हुए कहा, “मैडम, मुझसे गलती हुई, लेकिन मैं अकेला नहीं था। इसके पीछे सिर्फ विक्रम सिंह नहीं है। उसके ऊपर भी लोग हैं। बड़े-बड़े नेता, बड़े अफसर जो इस धंधे से करोड़ों कमा रहे हैं।” अनन्या की आंखें सिकुड़ गईं। उसने झुककर उसका कॉलर पकड़ते हुए कहा, “नाम बता वरना तेरी हड्डी की एक-एक नस तोड़ दूंगी।”

यादव का शरीर कांपने लगा। उसने धीरे से कहा, “मैडम, नाम लूंगा तो मेरी जान जाएगी। मेरा परिवार मिट जाएगा।” अनन्या ने उसकी आंखों में झांका और ठंडी हंसी के साथ कहा, “तेरी जान तो अब भी जाएगी। फर्क बस इतना है कि अगर सच बताया तो शायद तेरे परिवार को बचा लूं वरना तेरा नाम इतिहास में गद्दार के रूप में ही रहेगा।”

यह सुनकर यादव का चेहरा उतर गया। उसने धीमी आवाज में दो बड़े नेताओं के नाम लिए। एक राज्य स्तर का मंत्री और दूसरा राजधानी में बैठा बड़ा अधिकारी। यह सुनकर अनन्या का दिल दहल गया, लेकिन उसकी आंखों में दृढ़ता और भी बढ़ गई। उसने तुरंत यह जानकारी कमांडर को दी और कहा, “अब हमें सिर्फ विक्रम सिंह नहीं पकड़ना बल्कि उस पूरी जड़ को उजागर करना है जो इस भ्रष्टाचार और गंदगी को पाल रही है।”

इसी बीच एक जवान दौड़ता हुआ आया और बोला, “मैडम, हमें खबर मिली है कि विक्रम सिंह पहाड़ों की तरफ भागा है। उसने जंगल के रास्ते से निकलने की कोशिश की है और उसके साथ लगभग 50 लोग हैं। सब हथियारों से लैस हैं।”

अनन्या ने तुरंत आदेश दिया, “गाड़ियां तैयार करो। हमें अभी निकलना होगा।” रवि भी उसके साथ खड़ा था। उसने कहा, “मैडम, आप बहुत घायल हैं। आपको आराम करना चाहिए, नहीं तो आप गिर पड़ेंगी।” लेकिन अनन्या ने उसकी ओर देखते हुए कहा, “रवि, अगर मैं अभी रुकी तो यह लड़ाई हार जाऊंगी और यह औरतें सिर्फ किताबों में बहादुर दिखती रह जाएंगी। मुझे यह दुनिया को दिखाना है कि औरत सिर्फ आदेश देने वाली अफसर नहीं, बल्कि खुद जंग लड़ने वाली योद्धा भी है।”

यह कहते ही वह जीप में बैठ गई और काफिला जंगल की ओर निकल पड़ा। रास्ता कठिन था। पेड़, झाड़ियां और कच्चे रास्ते गाड़ियों के पहियों के नीचे चरमराते जा रहे थे। दूर से पहाड़ की चोटी पर धुआं उठता दिख रहा था। शायद वहीं विक्रम सिंह और उसके लोग छिपे हुए थे।

अनन्या ने अपने दिमाग में योजना बनाना शुरू कर दिया। उसने तय किया कि वह सीधी टक्कर लेगी, लेकिन इस बार वह सिर्फ गोलीबारी पर भरोसा नहीं करेगी। उसे इन शैतानों को डराना होगा, उन्हें उनके ही हथियार से हराना होगा।

तभी अचानक रास्ते में गाड़ियों पर गोलियां चलनी शुरू हो गई। पेड़ों के पीछे से दर्जनों हथियार बंद लोग निकल आए और घेराबंदी करने लगे। सीआरपीएफ के जवानों ने तुरंत मोर्चा संभाला और दोनों ओर से गोलियों की बौछार होने लगी। जंगल में गूंजती गोलियों की आवाज और बारूद की गंध से माहौल और भी भयानक हो गया।

अनन्या जीप से उतर गई और सामने खड़े दुश्मनों पर फायर करने लगी। उसकी आंखों में अब कोई दया नहीं थी। वह हर गोली ऐसे चला रही थी जैसे किसी राक्षस का वध कर रही हो। कई दुश्मन गिर पड़े, लेकिन उनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। विक्रम सिंह अब भी सामने नहीं आया था। शायद वह अंदर किसी गुफा या छिपे अड्डे में छिपा हुआ था।

तभी अचानक एक गोली अनन्या के कंधे को छूती हुई निकल गई। दर्द से उसका चेहरा तमतमा उठा। लेकिन उसने उसे नजरअंदाज कर दिया। वो गरजते हुए बोली, “विक्रम, निकल अगर मर्द है तो सामने आ, वरना यह जंगल तेरी लाश से लाल कर दूंगी।” उसकी दहाड़ इतनी भयानक थी कि कई गुंडे सचमुच कांप उठे।

तभी पहाड़ की चोटी से आवाज आई, “मैडम शेरनी, क्या तुम सोचती हो कि अकेली मुझे खत्म कर दोगी? यह जंगल मेरा है, यहां का कानून मेरा है। और तू चाहे जितनी गोली चला ले, तू मेरे सामने टिक नहीं पाएगी।” यह आवाज विक्रम सिंह की थी और अब खेल अपने चरम की ओर बढ़ रहा था।

जंगल की गहराई में पहाड़ की उस ऊंची चोटी से गूंजती हुई विक्रम सिंह की आवाज ने पूरे माहौल को और भी खौफनाक बना दिया था। उसकी हंसी गोलियों की आवाज से भी ज्यादा डरावनी लग रही थी। पेड़ों के बीच से छनकर आती धूप उस जगह को किसी काली गुफा जैसा बना रही थी। हवा में धुएं और बारूद की गंध भर चुकी थी।

चारों तरफ करहते हुए घायल जवान पड़े थे। और दूसरी तरफ अब भी हथियारबंद गुंडे अनन्या और उसकी टीम को घेरने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन अनन्या की आंखों में अब सिर्फ एक ही तस्वीर थी – विक्रम सिंह की, जिसने उसे अपमानित करने की कोशिश की थी। जिसने कानून और वर्दी की मर्यादा को लांघकर औरत को एक वस्तु समझा था और जिसने इस पूरे भ्रष्ट