“Zalim Betay Ne Apni Boorhi Maa Ko Maar Kar Ghar Se Nikal Diya

मां के कदमों में जन्नत
भाग 1: एक बेवा मां की ममता
एक छोटे से गांव में एक बेहद गरीब मगर बाइज्जत बेवा औरत रहती थी। उसका एकमात्र सहारा था – उसका इकलौता बेटा। इस मां ने अपनी पूरी जिंदगी की खुशियां, आराम और सुख-चैन बेटे की परवरिश और तालीम के लिए कुर्बान कर दिए थे।
चाहे धूप हो या बारिश, दिन हो या रात, वह मजदूरी करती, दूसरों के घरों में बर्तन मांझती, कपड़े धोती, खेतों में काम करती – बस एक ही मकसद था, उसका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने, वह सब पाए जो मां खुद कभी नहीं पा सकी।
जब बेटा स्कूल जाने लगा तो उसके कपड़े कई बार फटे होते, जूते घिसे होते। मगर मां के चेहरे पर फख्र की चमक होती। वो कहती, “मेरा बेटा पढ़ेगा, बड़ा आदमी बनेगा, मेरा सहारा बनेगा।”
वक्त गुजरता गया। बेटा पढ़ाई में दिन-दूनी, रात-चौगुनी तरक्की करता गया। गांव वाले भी उसकी मिसाल देने लगे कि बेवा का बेटा कितना समझदार और काबिल है।
कई सालों की मेहनत और कुर्बानियों के बाद आखिरकार बेटे ने आला तालीम हासिल कर ली। शहर जाकर उसने बड़ी मेहनत से डिग्री ली और एक दिन उसे एक अच्छी, इज्जतदार नौकरी भी मिल गई।
मां की आंखों में खुशी के आंसू थे। उसकी बरसों की दुआएं रंग लाई थीं।
भाग 2: मां की ख्वाहिश और बेटे की बेरुखी
एक शाम जब बेटा दफ्तर से लौटा तो मां ने प्यार भरी आवाज में कहा,
“बेटा, अब तू जवान हो गया है। मैंने तुझे अपनी जिंदगी के एक-एक लम्हे और एक-एक पैसे से पढ़ाया है। अब तेरी नौकरी लग गई है तो मेरी ख्वाहिश है कि मैं तेरी शादी कर दूं। तेरे मामा की बेटी है, उसे मैंने बहुत पहले वादा दिया था कि जब मेरा बेटा पढ़-लिखकर अच्छे मुकाम पर पहुंच जाएगा तो मैं उसे तेरी जिंदगी की साथी बना दूंगी। वो लड़की बरसों से तेरा इंतजार कर रही है बेटा। मैं चाहती हूं कि तू उससे शादी कर ले।”
यह सुनते ही बेटे के चेहरे पर नाखुशी के आसार उभर आए। उसने सख्त लहजे में कहा,
“मां, आप क्या बातें कर रही हैं? उस गरीब लड़की से मेरी शादी? आप जानती हैं ना कि मैं एक तालीमयाफ्ता इंसान हूं। मैंने बड़ी मेहनत से अच्छी डिग्री हासिल की है। मैं एक बड़े ओहदे पर हूं, इज्जतदार नौकरी करता हूं। मैं उस मामूली घराने की लड़की से कैसे शादी कर सकता हूं? मां, आपको अब यह पुरानी बातें सोचने छोड़ देनी चाहिए। दुनिया बदल गई है और मैं भी अब बड़ा आदमी हूं।”
मां की आंखों में खामोश आंसू तैरने लगे। वो आंसू जिनमें बरसों की मेहनत, कुर्बानी और उम्मीदों का समंदर छुपा हुआ था।
उसने कुछ नहीं कहा। बस दिल ही दिल में आह भरी और सोचा – मैंने शायद अपने रब से उसकी कामयाबी तो मांगी थी, मगर यह नहीं सोचा था कि कामयाबी के साथ उसके दिल से इंसानियत छीन ली जाएगी।
यह खबर जब उस लड़की तक पहुंची जिससे मां ने वादा किया था, तो उसके दिल पर भी कयामत गुजर गई। वो खामोशी से रातों को जागने लगी। उसके चेहरे की हंसी गायब हो गई। उसके ख्वाब जो बरसों से संभाले हुए थे, एक लम्हे में मिट्टी का ढेर बन गए।
भाग 3: नई जिंदगी, नया मोड़
कुछ महीनों बाद एक दिन बेटा खुशी-खुशी घर आया। उसने मां से कहा,
“मां, मेरा तबादला शहर में हो गया है। अब हम गांव में क्यों रहें? शहर में जाएंगे तो एक नया आगाज करेंगे। अपना घर बनाएंगे और बेहतर जिंदगी गुजारेंगे।”
मां ने बेटे के चेहरे पर खुशी देखी तो अपने दुख भूल गई। उसने नरम लहजे में कहा,
“बेटा, जहां तेरी खुशी वही मेरी खुशी। मैंने हमेशा तेरी रजा में अपनी रजा देखी है।”
चंद दिनों में उसने अपना छोटा सा घर समेटा – पुराने बर्तन, कुछ यादें और अपनी टूटी हुई तमन्नाएं संदूक में बंद की। बेटा उसे साथ लेकर शहर चला गया।
पहले-पहल वो किराए के छोटे से मकान में रहे। मां ने दिन-रात उस घर को संवारने में लगा दी। कुछ अरसे बाद बेटे ने वहां एक खूबसूरत सा घर बना लिया – ईंटों, रंगों और ख्वाबों से सजा हुआ।
उसी गली में उनका एक पड़ोसी था, खुशहाल घराना। वहां एक हसीन और नाजुक मिजाज लड़की रहती थी। बेटे की नजर अक्सर उस पर पड़ जाती।
पहले बेधियानी में, फिर चाहत के साथ। धीरे-धीरे सलाम-दुआ होने लगी। मुस्कुराहटों का तबादला हुआ, बातों का सिलसिला बढ़ने लगा।
चंद दिनों में यह रोजमर्रा की गुफ्तगू एक खामोश मगर गहरी मोहब्बत में बदल गई।
भाग 4: बेटे की नई चाहत, मां का समझौता
एक दिन शाम के वक्त बेटा ऑफिस से थका हुआ आया। उसके चेहरे पर एक अजीब सी संजीदगी थी। जैसे किसी फैसले के बोझ ने उसे घेर रखा हो।
मां ने मुस्कुरा कर कहा,
“बेटा, आज देर हो गई, थक गया होगा। आजा, खाना तैयार है।”
मगर बेटा खामोश था। कुछ लम्हे बाद उसने आहिस्ता से कहा,
“मां, मैं एक बात कहना चाहता हूं।”
मां ने प्यार से कहा,
“कहो बेटा, दिल की बात मांओं से छुपाई जाती है क्या?”
बेटा बोला,
“मां, जो हमारे पड़ोस में लोग रहते हैं ना, वो बहुत शरीफ और नेकदिल हैं। उनकी बेटी भी बहुत अच्छी, पढ़ी-लिखी और अखलाक वाली है। मैं चाहता हूं कि आप उनके घर रिश्ता लेकर जाएं और उससे मेरी शादी कर दें।”
यह सुनते ही मां के दिल में जैसे किसी ने पुरानी चोट ताजा कर दी। यही तो वह बेटा था जिसने उसकी पसंद ठुकरा दी थी, उस गरीब लड़की को अपनी जिंदगी से निकाल दिया था।
मगर अगले ही लम्हे उसने खुद को तसल्ली दी – चलो बेटा ही तो है, मां का दिल हमेशा बेटे के आगे झुक जाता है। उसकी खुशी इसी में है तो ठीक है।
मां दूसरे ही दिन पड़ोसी के घर चली गई। बड़ी नरमी, इज्जत और उम्मीद के साथ रिश्ता पेश किया। अब उसका बेटा बड़ा ओहदा, मालदार और इज्जतदार था – तो उन लोगों ने भी खुशी-खुशी रिश्ता मंजूर कर लिया।
कुछ ही दिनों में शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। घर में रौनकें लग गईं। मां की आंखों में फिर से वही चमक लौट आई जो बरसों पहले बुझ गई थी।
आखिरकार शादी हो गई। दुल्हन घर में आई – हसीन, नाजुक और शहरी अदाओं में पली-बढ़ी लड़की। मां ने उसे बेटियों की तरह गले लगाया, खाने बनाए, कमरा सजाया और दिल से दुआ की कि अल्लाह करे मेरा बेटा और बहू हमेशा खुश रहें।
भाग 5: बहू का बदलता रंग, मां की तकलीफ
कुछ दिन बड़े सुकून से गुजरे। मां जब भी अपने बेटे को खुश देखती, उसके चेहरे पर सुकून आ जाता।
फिर एक दिन अल्लाह ने उन्हें एक बेटे की नेमत दी – एक नन्हा सा मुस्कुराता हुआ पोता।
मां की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। उसने अपने पोते को गोद में लिया, चूम-चूम कर आंखों से लगाया।
वो कहती, “अल्लाह का शुक्र है, मेरा घर मुकम्मल हो गया। अब मेरा बेटा बाप बन गया और मैं दादी कहलाने के काबिल हो गई।”
मगर वक्त के साथ कुछ बदलने लगा। बहू जो पहले बहुत नरम मिजाज थी, अब बदलने लगी।
एक दिन उसने अपने शौहर से कहा,
“सुनो, मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूं। यह जो तुम्हारी मां है ना, अब यह घर में रहने के काबिल नहीं रही। हर वक्त कुछ ना कुछ करती रहती है – कभी खांसना, कभी बोलना, कभी इधर-उधर जाना। मुझे यह सब बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता। तुम इन्हें कहीं और भेज दो, वरना मैं अब यहां नहीं रहूंगी।”
बेटे का दिल दहल गया। उसने कहा,
“क्या बात कर रही हो? यह मेरी मां है। मैं अपनी मां को घर से बाहर कैसे निकाल सकता हूं? वही मां जिसने मुझे परवान चढ़ाया, अपनी नींदें कुर्बान की, जिसके आंसुओं ने मुझे बड़ा किया।”
बहू ने सर्द लहजे में कहा,
“अगर तुम निकाल नहीं सकते, तो कम-अज-कम उन्हें समझा दो कि वह खामोश रहा करें। घर में ज्यादा बोलचाल ना करें। हमें सुकून चाहिए। उनके बगैर भी घर चल सकता है, मगर अगर वह यूं ही रहे तो घर का सुकून खत्म हो जाएगा।”
बेटा चंद लम्हे खामोश रहा, फिर बोझिल दिल के साथ बोला,
“ठीक है, मैं मां से कह दूंगा कि वो ज्यादा बात ना किया करें, आराम से रहा करें।”
यह सुनकर जैसे जमीन मां के कदमों तले से निकल गई। वही बेटा जो कभी उसकी उंगली पकड़ कर चलना सीखता था, आज वही मां को समझाने की बात कर रहा था।
भाग 6: मां की बेबसी और बेटे की मजबूरी
मां के दिल ने बस इतना कहा – शायद यही जिंदगी है, जहां मां की कुर्बानियां भुला दी जाती हैं और बेटे की खुशियां उसकी खामोशी में छुपी रहती हैं।
बेटा अपनी मां के बारे में अपनी बीवी से बात कर रहा था, मगर लहजे में वह नरमी नहीं थी जो कभी मां के जिक्र पर आती थी।
बीवी जाहिर में बड़ी हसीन, नाजुक और दिलकश थी। बातों में नरमी थी, लेकिन दिल के अंदर एक अजीब सा गुरूर, एक जहरीली अना छिपी थी। उसकी खूबसूरती के पीछे खुदगर्जी का साया छिपा था, जो आहिस्ता-आहिस्ता पूरे घर पर छा गया।
चंद दिन यूं ही गुजर गए। मां खामोश थी, बेटा बीवी के इशारों पर चलने लगा। मां के दिल में दुख था, मगर जुबान पर शिकवा ना आया।
फिर एक दिन वही हुआ जिसका डर था। बीवी ने गुस्से में कहा,
“सुनो, अब फैसला करो – या तो तुम्हारी मां रहेगी या मैं। मैं अब इस घर में उसके साथ नहीं रह सकती।”
यह अल्फाज़ जैसे कड़कदार बिजली बनकर बेटे के कानों में गिरे।
बेटा बेबसी से बोला,
“ऐसा क्यों कह रही हो? वो मेरी मां है, उसने मेरी खातिर सब कुछ कुर्बान किया है।”
बीवी ने सख्त लहजे में जवाब दिया,
“मुझे कुछ नहीं मालूम। अगर मुझसे मोहब्बत करते हो तो उन्हें यहां से भेज दो, वरना मैं चली जाऊंगी।”
मोहब्बत और फर्ज के बीच बेटा कमजोर पड़ गया। आखिर उसने एक फैसला किया –
“ठीक है, मैं मां को कुछ दिनों के लिए अपने रिश्तेदारों के यहां भेज देता हूं।”
यूं उस मां को, जिसने सारी उम्र बेटे के कदमों में राहत बिछाई थी, खुद बेटे के कदमों से अलग कर दिया गया।
भाग 7: मां की तन्हाई और बेटे की बेरुखी
मां जब रिश्तेदार के घर पहुंची तो उसके दिल में एक ही ख्याल था – चंद दिन की बात है, मेरा बेटा जरूर लेने आएगा।
मगर दिन महीनों में बदल गए, ना कोई पैगाम, ना कोई सलाम।
वो बेटे की याद में अक्सर रातों को चुपके-चुपके रोती, पोते की हंसी को याद करके दिल थाम लेती।
मां का दिल चाहे कितना भी टूट जाए, बेटे के लिए धड़कना नहीं छोड़ता।
वो सोचती, मेरा बच्चा कैसा होगा, खाता-पीता भी है या नहीं? उसका बच्चा, मेरा पोता, अब कितना बड़ा हो गया होगा?
लोगों की बातें कानों में पड़ने लगी – “बेचारी लगता है बेटा घर से निकाल चुका है।”
यह जुमले उसके दिल को तीर की तरह चुभने लगे।
एक दिन उसने सोचा, आखिर कब तक दूसरों के सहारे रहूं?
वो मेरा अपना घर है, मेरा बेटा है, मेरा पोता है। चलो देख आऊं सबको, शायद वो लोग याद कर रहे हों।
यूं वो चुपचाप घर से निकली।
जब अपने घर के दरवाजे पर पहुंची तो दरवाजा बंद था, ऊपर से कुंडी लगी हुई थी। दिल जोर से धड़का – क्या मेरा अपना घर है यह, या मैं अजनबी हो गई हूं?
उसने आहिस्ता से दरवाजा खटखटाया। कोई जवाब ना आया। फिर थोड़ा जोर से दस्तक दी, फिर भी कोई आवाज नहीं।
अब उसने कांपते हाथों से तीसरी बार दरवाजा पीटा। दरवाजा खुला। सामने बहू खड़ी थी – चेहरे पर गुरूर, आंखों में नागवारी।
बहू बोली,
“अच्छा, तुम हो? मैं समझ रही थी कोई मांगने वाला है। अब फिर आ गई हो?”
मां ने लरजती आवाज में कहा,
“बेटी, मैं किसी को कुछ कहने नहीं आई। बस अपने पोते की याद आ रही थी, तुम सबकी याद आ रही थी। मां हूं ना, दिल नहीं माना। सोचा, आकर देख लूं कि मेरा बेटा कैसा है। अपने ही घर में आने की इजाजत मांगने आई हूं।”
यह कहते हुए उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। इतने में बेटा भी आ गया।
मगर फौरन लहजा संभालते हुए बोला,
“मां, अब आ ही गई हो तो आ जाओ अंदर।”
यह जुमला सादा था, मगर मां के दिल में झलझला ले आया।
वही बेटा, जिसके लिए उसने अपनी नींदें कुर्बान की, जिसके बचपन में पेशाब करने पर वो खुद उस भीगी जगह पर लेट गई ताकि बेटे को तकलीफ ना हो – वही बेटा आज कह रहा था,
“मां, अगर आ ही गई हो तो आ जाओ।”
मां की आंखें आसमान की तरफ उठ गईं, लबों से बस एक लफ्ज़ निकला –
“अल्लाहू अकबर, यह जमाना भी दिखा दिया।”
भाग 8: मां की आखिरी विदाई
कुछ दिन यूं ही चलता रहा। मां अकेले में सिसकियां ले-लेकर रोती थी।
एक दिन उसकी बीवी ने कहा,
“आज मैं आखिरी बार तुम्हें वार्निंग दे रही हूं। अगर तुमने अपनी मां को यहां से नहीं निकाला, तो जिंदगी भर के लिए मुझे भूल जाना।”
उसके शौहर ने कहा,
“ठीक है, तुम तसल्ली रखो, मैं कुछ करता हूं।”
उसने अपनी मां को बुलाया और कहने लगा,
“मां, आज हम एक रिश्तेदार के यहां जा रहे हैं। आप तैयार हो जाओ। बहुत दिनों से वह बुला रहे हैं।”
मां खुशी-खुशी तैयार हो गई। बोली,
“ठीक है, अगर जा रहे हो तो चलो, मुझे कोई ऐतराज नहीं है।”
मां तैयार हुई, बेटा, बहू, पोता – सब गाड़ी में बैठ गए।
गाड़ी चलती रही, चलती रही… और एकदम गाड़ी ओल्ड हाउस (वृद्धाश्रम) पर रुक गई।
मां ने देखा, पहचान लिया कि यहां छोड़ने आए हैं। लेकिन मां ने अपनी जुबान से कुछ नहीं कहा।
बेटे ने कहा,
“मां, आज से तुम यहीं रहोगी। आज से यही तुम्हारा घर है।”
मां ने कहा,
“ठीक है बेटा, जैसी तुम्हारी मर्जी।”
मां को ओल्ड हाउस में छोड़कर बेटा वापस आ रहा था।
रास्ते भर यही ख्याल आ रहा था कि मां को छोड़ आया, बीवी के कहने पर ऐसा कर दिया।
भाग 9: अंजाम – बेटे की सजा, मां की माफी
रास्ते में बीवी ने कहा,
“रुको, गाड़ी रोको, देखो सामने ट्रक है।”
जैसे ही बेटे ने ब्रेक लगाई, गाड़ी ट्रक के सामने आ गई।
एक जोरदार आवाज हुई – गाड़ी ट्रक से जा टकराई।
गाड़ी चकनाचूर हो गई। उसकी बीवी वहीं मर गई।
उसके बच्चे को कुछ नहीं हुआ, लेकिन बेटे के दोनों पैर कट गए। वह अपाहिज हो गया।
अस्पताल में इलाज के दौरान बेटा अपनी मां को याद करता रहा –
“मां, तू कहां है? ओल्ड हाउस से जल्दी आजा। मां, तेरी बहुत याद आ रही है। मां, मैंने तेरे साथ बहुत बुरा किया। मां, मुझे माफ कर दे।”
जब लोगों ने उसकी मां को बताया कि बेटे के साथ हादसा हो गया है, मां का कलेजा फट गया।
मां ने फौरन अल्लाह की बारगाह में हाथ उठा दिए और बेटे के लिए दुआ की।
मां अपने बेटे के पास गई। बेटे से कहने लगी,
“बेटा, तूने मेरे साथ बुरा किया। अल्लाह को यह पसंद नहीं आया। जो मां को नाराज करता है ना खुदा भी उससे नाराज हो जाता है। और जब खुदा नाराज हो जाता है तो जरूर उसका कहर आता है।”
“बेटा, अब मैं तुझसे नाराज नहीं हूं। लेकिन याद रख, मां को कभी तकलीफ ना देना, बाप को कभी दुख ना देना। मां-बाप की उम्मीदों पर हमेशा पूरा उतरना। मां-बाप की यह तमन्ना होती है कि मेरे बच्चे जब जवान होंगे तो मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे। मां-बाप के बुढ़ापे का सहारा बनकर भी दिखाओ। मां-बाप को सुकून दो, उनकी खिदमत करो, उनकी दुआ लो।”
“अगर तुम मां-बाप की खिदमत करोगे ना तो जन्नत तुम्हें मिलेगी। क्योंकि जन्नत मां के कदमों में है और बाप जन्नत का दरवाजा है।”
भाग 10: कहानी का संदेश
तो कभी मां को नाराज मत करना, कभी बाप को नाराज मत करना।
अगर अभी भी तुम अपने मां-बाप से नाराज हो ना, तो आज ही उन रूठों को मना लो।
अल्लाह तुमसे राजी हो जाएगा।
अगर तुमने अपने मां-बाप को ना मनाया और वह इस दुनिया से रुखसत हो गए तो फिर अल्लाह ही जाने तुम्हारे साथ क्या बर्ताव होगा।
अल्लाह रब्बुल इज्जत की बारगाह में दुआ है –
अल्लाह नेक अमल करने की तौफीक अता फरमाए।
अल्लाह गुनाहों से बचने की तौफीक अता फरमाए।
अल्लाह वालिदैन की खिदमत करने की तौफीक अता फरमाए।
बहुत बड़ा मकाम होता है मां-बाप का।
तो मां-बाप की इज्जत करो, उनकी खिदमत करो।
जब यह दुनिया से चले जाते हैं ना, तो फिर रेशम के तकिए पर भी नींद नहीं आती।
सीख:
मां-बाप की इज्जत करो, उनकी खिदमत करो।
क्योंकि असली जन्नत उनके कदमों में है।
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