बर्तन मांजने वाली बच्ची ने खिड़की से हल किया गणित का सवाल

कीचड़ में खिला कमल – काजल की कहान
भाग 1: संघर्ष की शुरुआत
कहते हैं कि कीचड़ में खिला हुआ कमल अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। लेकिन अगर उस कमल को ही बार-बार यह एहसास दिलाया जाए कि उसकी औकात केवल कीचड़ तक सीमित है, तो शायद वह कभी पूरी तरह खिल ही नहीं पाएगा। हुनर और गरीबी की जंग में अक्सर गरीबी जीत जाती है। लेकिन कभी-कभी हुनर इतना जिद्दी होता है कि वह पत्थरों को चीर कर भी अपना रास्ता बना ही लेता है। कुछ ऐसी ही कहानी थी 10 साल की अंगिक्स काजल भाबरेकस की।
जिस उम्र में बच्चों के हाथों में किताबें, पेंसिल और सुनहरे भविष्य के सपने होने चाहिए, उस नन्ही जान के हाथों में लोहे का जूना, गला देने वाला साबुन और दूसरों के झूठे बर्तन थे। काजल अपनी विधवा मां सुनीता के साथ शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल संस्कार वैली इंटरनेशनल की कैंटीन के पिछले हिस्से में काम करती थी। सुनीता रसोई की मदद करती थी और काजल का काम था नाश्ते और लंच के बाद बर्तनों के पहाड़ को मांझना। सुबह से शाम तक बर्तनों की खनखनाहट और नल से गिरते पानी की आवाज ही उसका संगीत था।
उसके कपड़े हमेशा मैले होते। फ्रॉक जगह-जगह से फटी होती और हाथों की त्वचा साबुन के कारण रूखी हो चुकी थी। लेकिन काजल के पास एक ऐसी दौलत थी जो स्कूल के बड़े-बड़े अमीर बच्चों के पास भी नहीं थी। एक अद्भुत दिमाग।
कैंटीन के पिछले हिस्से में जहां काजल बर्तन धोती थी, ठीक वहां से कक्षा पांचवी की एक खिड़की खुलती थी। वह खिड़की काजल के लिए केवल हवा आने का जरिया नहीं थी, बल्कि उसके सपनों का झरोखा थी। जब भी उस कक्षा में गणित का पीरियड शुरू होता, काजल के हाथ बर्तनों पर अपने आप धीमे हो जाते और उसके कान खिड़की की ओर लग जाते। वह संस्कार वैली की छात्रा नहीं थी। उसे अंदर जाने की इजाजत भी नहीं थी। लेकिन बाहर बैठकर बर्तनों की खनखनाहट के बीच उसने गणित के अनगिनत सूत्र सीख लिए थे।
भाग 2: हुनर की पहली पहचान
एक दिन गर्मी अपने चरम पर थी। स्कूल का एसी भी उस तपिश को कम नहीं कर पा रहा था। कक्षा में गणित के सबसे सख्त अध्यापक मिस्टर खन्ना कार्ड का दबाव पढ़ा रहे थे। मिस्टर खन्ना अपनी कड़क आवाज और मुश्किल सवालों के लिए मशहूर थे। अमीर घरों के बिगड़े बच्चे भी उनके सामने भीगी बिल्ली बन जाते थे।
आज मिस्टर खन्ना का मूड कुछ ज्यादा ही खराब था। उन्होंने ब्लैक बोर्ड पर एक बेहद पेचीदा समीकरण लिखा। यह सवाल पांचवी कक्षा के स्तर से थोड़ा ऊपर का था। जिसे उन्होंने जानबूझकर बच्चों की बुद्धिमत्ता परखने के लिए दिया था। मिस्टर खन्ना ने क्लास की ओर मुड़कर ललकारा, “इस सवाल को जो भी हल करेगा उसे मैं खुद प्रिंसिपल सर के सामने सम्मानित करूंगा। तुम्हारे पास 5 मिनट हैं।”
पूरी क्लास में सन्नाटा पसर गया। क्लास का सबसे होशियार छात्र अमन भी सिर खुजला रहा था। बच्चे अपनी महंगी नोटबुक्स में रफ काम कर रहे थे। लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था। सन्नाटा इतना गहरा था कि घड़ी की टिक टिक भी सुनाई दे रही थी।
बाहर काजल पसीने से लथपथ थी। उसके सामने झूठे प्लेटों का ढेर लगा था। मैनेजर उसे घूर रहा था कि वह काम जल्दी खत्म करें। लेकिन काजल की निगाहें उन प्लेटों से हटकर लोहे की जाली वाली खिड़की के उस पार ब्लैक बोर्ड पर टिक गई। उसका दिमाग किसी सुपर कंप्यूटर की तरह चलने लगा। उसने अपने गीले हाथ अपनी फ्रॉक से पोंछे और जमीन की धूल पर अपनी उंगली से कुछ आकृतियां बनाने लगी। बिना पेन, बिना कॉपी, केवल दिमाग और धूल के सहारे वह उस सवाल से जूझ रही थी जिससे अंदर बैठे बच्चे हार मान चुके थे।
5 मिनट बीत गए। मिस्टर खन्ना ने डस्टर हाथ में लिया और गुस्से में बोले, “शर्म आनी चाहिए तुम सबको। इतनी महंगी फीस, इतनी सुविधाएं और एक साधारण सा सवाल हल नहीं कर सकते। लगता है मुझे ही इसे अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि खिड़की के बाहर से बर्तनों की खनखनाहट के बीच एक पतली और डरी हुई मगर स्पष्ट आवाज आई, “सर उत्तर 75 है।”
पूरी क्लास में ऐसा सन्नाटा छा गया जैसे किसी ने सांस लेना भी बंद कर दिया हो। वह आवाज कक्षा के अंदर से नहीं बल्कि उस लोहे की जाली वाली खिड़की के बाहर से आई थी। मिस्टर खन्ना गुस्से में खिड़की की ओर लपके। वहां बाहर भीषण गर्मी में कांपते हाथों के साथ काजल खड़ी थी। उसके हाथों में अभी भी साबुन का झाग लगा था और चेहरे पर डर की लकीरें साफ दिख रही थी।
उसने अनजाने में बोल तो दिया था लेकिन अब उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। उसे लगा कि बड़े लोगों के बीच बोलना उसके लिए अपराध है। तभी वहां कैंटीन का मैनेजर गोपाल दौड़ता हुआ आया। उसने देखा कि क्लास का माहौल बिगड़ रहा है और काजल खिड़की के पास खड़ी है। गोपाल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह काजल पर झपटा और उसका कान जोर से मरोड़ दिया।
“बदतमीज लड़की! तुझे बर्तन धोने के पैसे मिलते हैं या क्लास में ताक झांक करने के?” सर माफ करना यह गवार है। इसे अक्ल नहीं है। अभी इसे काम से निकालता हूं। काजल दर्द से बिलबिला उठी। उसकी आंखों में आंसू भर आए। “नहीं मालिक गलती हो गई। अब नहीं करूंगी।” वह गिड़गिड़ाने लगी। पास ही खड़ी उसकी मां सुनीता भी दौड़ कर आई और मैनेजर के पैरों में गिर पड़ी। “साहब बच्ची है माफ कर दो। इसकी नौकरी मत छीनो। हम भूखे मर जाएंगे।”
शोरगुल सुनकर मिस्टर खन्ना ने कड़क आवाज में कहा, “रुको।” गोपाल का हाथ हवा में ही रुक गया। मिस्टर खन्ना क्लास से बाहर निकले और तपती धूप में उस धोने वाली जगह पर आ गए। उनकी नजर काजल के सहमे हुए चेहरे और उसके मैले कपड़ों पर पड़ी। फिर उन्होंने ब्लैकबोर्ड की तरफ देखा और वापस काजल की ओर। “तुम्हें यह कैसे पता चला?” मिस्टर खन्ना ने अविश्वास के साथ पूछा। “क्या किसी ने तुम्हें बताया?”
काजल ने सिर झुका लिया और अपनी मैली फ्रॉक को मुट्ठी में भीते हुए बोली, “नहीं सर। जब आप रोज पढ़ाते हैं तो मैं सुनती हूं। कल आपने बी ओ डी एम ए एस का नियम समझाया था। पहले भाग फिर गुणा। मैंने बस वही किया। मैंने जमीन पर उंगली से गुणा भाग किया था।”
मिस्टर खन्ना ने जमीन पर देखा। वहां धूल में सचमुच कुछ टेढ़े-मेढ़े अंक लिखे थे जो एक सही गणना का सबूत दे रहे थे। एक हीरा कीचड़ में पड़ा था और किसी को खबर तक नहीं थी।
भाग 3: परीक्षा की चुनौती
मिस्टर खन्ना ने काजल का साबुन से भरा हाथ अपने हाथ में लिया। जिसे देखकर गोपाल और क्लास के बच्चे हैरान रह गए। एक शिक्षक एक बर्तन वाली का हाथ पकड़ कर स्कूल के मुख्य गलियारे की ओर चल पड़ा। काजल के दिल की धड़कनें तेज थी। उसे नहीं पता था कि यह रास्ता उसे किस मंजिल की ओर ले जाएगा।
स्कूल के गलियारे में चलते हुए काजल के पुराने घिसे हुए सैंडल संगमरमर की ठंडी जमीन से टकरा रहे थे। जिस संस्कार वैली स्कूल को वह हमेशा दूर से देखा करती थी, आज वह पहली बार उसके अंदर थी। चारों तरफ चमचमाती कांच की दीवारें, प्रेरणात्मक सुविचारों से सजी दीवारें और वातावरण में फैली हल्की सी खुशबू यह सब उसकी दुनिया से बिल्कुल अलग था।
आते-जाते छात्र और शिक्षक उसे हैरानी से देख रहे थे। कोई उसकी शादी वर्दी को देखकर फुसफुसाया तो किसी ने बस रास्ता थोड़ा बदल लिया। मानो उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह लड़की यहां कैसे पहुंची। काजल ने अपना सिर झुका लिया। वह चाहती थी कि किसी तरह खुद को और छोटा बना सके ताकि नजरें उस पर ना टिके। लेकिन मिस्टर खन्ना ने उसके हाथ पर आश्वस्त करने वाला हल्का सा पकड़ रखा था।
वे प्रिंसिपल के केबिन के सामने रुके। दरवाजे पर लिखा था मिस्टर आर के वर्मा प्रिंसिपल। मिस्टर खन्ना ने धीरे से दरवाजा खटखटाया और भीतर चले गए। अंदर का नजारा और भी भव्य था। मिस्टर वर्मा अपनी बड़ी सी घूमने वाली कुर्सी पर बैठे थे और फोन पर किसी रईस डोनर से बात कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने एक गंदी मैली बच्ची को अपने साफ सुथरे केबिन में देखा, उनकी भिकुटी तन गई।
उन्होंने जल्दी से फोन रखा और गुस्से में बोले, “मिस्टर खन्ना, यह क्या मजाक है? यह बच्ची कौन है और इसे यहां अंदर क्यों लाए हैं? पूरा ऑफिस गंदा हो जाएगा।” मिस्टर खन्ना ने काजल को आगे करते हुए बेहद शांत स्वर में कहा, “सर, माफ कीजिएगा। लेकिन आज मुझे आपको कुछ ऐसा दिखाना है जो शायद इस स्कूल के इतिहास में कभी नहीं हुआ। यह काजल है। हमारी कैंटीन में बर्तन धोती है।”
मिस्टर वर्मा ने घृणा से नाक सिकोड़ी। “तो क्या अब कैंटीन की शिकायतें लेकर आप मेरे पास आएंगे? इसे बाहर निकालिए।”
“सर, शिकायत नहीं। चमत्कार लेकर आया हूं।” मिस्टर खन्ना की आवाज में एक अजीब सा जोश था। “इस बच्ची ने खिड़की के बाहर से सुनकर बिना किताब और कॉपी के पांचवी कक्षा का वह सवाल हल कर दिया जिसे अमन जैसा होनहार छात्र भी नहीं कर पाया। इसका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है।”
मिस्टर वर्मा अविश्वास से हंसे। “खन्ना जी आप भी ना… जरूर किसी बच्चे ने इसे इशारा कर दिया होगा या तुक्का लग गया होगा। यह सड़क के बच्चे हैं। इनका ध्यान पढ़ाई में नहीं, सिर्फ पेट भरने में होता है। आप बेकार में भावुक हो रहे हैं।”
मिस्टर खन्ना को यह बात चुभ गई। उन्होंने प्रिंसिपल की मेज पर रखा एक नोटपैड उठाया और काजल की ओर देखा। “सर, अगर यह तुक्का था तो अभी पता चल जाएगा। मैं इसे अभी आपके सामने एक और सवाल दूंगा। अगर इसने हल नहीं किया तो मैं अपनी जुबान वापस ले लूंगा और जो सजा आप देंगे मुझे मंजूर होगी। लेकिन अगर इसने हल कर दिया तो आपको मेरी एक बात माननी होगी।”
मिस्टर वर्मा ने अपनी चश्मा ठीक किया और कुर्सी पर पीछे की ओर झुक गए। उन्हें मिस्टर खन्ना का यह आत्मविश्वास दिलचस्प लगा। “ठीक है।” उन्होंने चुनौती स्वीकार करते हुए कहा। “लेकिन सवाल गणित का नहीं होगा। गणित रटा भी जा सकता है। मैं इसे एक तार्किक पहेली दूंगा। देखें इसका कंप्यूटर दिमाग कितना चलता है।”
काजल का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। अब बात सिर्फ उसकी नहीं उस मास्टर जी की इज्जत की भी थी जिन्होंने उसका हाथ थामा था। वह मन ही मन भगवान को याद करने लगी। मिस्टर वर्मा ने काजल की आंखों में आंखें डालकर एक सख्त सवाल पूछा।
“सुनो लड़की, अगर एक तालाब में कमल के फूल हर दिन दो गुने हो जाते हैं और तालाब को पूरा भरने में 30 दिन लगते हैं, तो तालाब को आधा भरने में कितने दिन लगेंगे?”
यह सवाल सीधा गणित का नहीं बल्कि तर्क शक्ति का था। अक्सर बड़े-बड़े पढ़े लिखे लोग भी इसमें 15 दिन बोलने की गलती कर देते हैं। कमरे में सन्नाटा छा गया।
काजल ने अपनी उंगलियों को आपस में फंसाया, उसने एक पल सोचा फिर अपनी धीमी लेकिन साफ आवाज में बोली, “सर जवाब 29 दिन है। क्योंकि अगर फूल हर दिन दोगुने होते हैं तो 30वें दिन पूरा भरने से ठीक एक दिन पहले यानी 29वें दिन तालाब आधा भरा होगा।”
कमरे में एक भारी सन्नाटा पसर गया। मिस्टर वर्मा का मुंह खुला का खुला रह गया। जिस पहेली में बड़े-बड़े डिग्रीधारी उलझ जाते थे, उसे इस 10 साल की बर्तन धोने वाली बच्ची ने पल भर में सुलझा दिया था। यह रटा रटाया ज्ञान नहीं था। यह शुद्ध बुद्धिमत्ता थी।
भाग 4: असंभव शर्त
मिस्टर खन्ना के चेहरे पर विजय की मुस्कान तैर गई। उन्होंने अपनी पीठ सीधी की और प्रिंसिपल की आंखों में देखा। “सर शर्त के मुताबिक अब आपको मेरी बात माननी होगी।” मिस्टर वर्मा ने अपनी कुर्सी सीधी की और असहज होकर बोले, “हां, ठीक है। बताओ क्या चाहते हो? इसे कुछ पैसे दे दूं या इसके लिए नए कपड़े मंगवा दूं?”
“नहीं सर। मुझे इसके लिए भीख नहीं चाहिए। मुझे इसका हक चाहिए। मैं चाहता हूं कि काजल का एडमिशन इसी स्कूल में कक्षा पांचवी में हो और इसकी पूरी फीस माफ की जाए।”
मिस्टर वर्मा अपनी कुर्सी से उछल पड़े। “क्या खन्ना? क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? यह संस्कार वैली है। शहर का सबसे महंगा स्कूल। यहां मंत्रियों और उद्योगपतियों के बच्चे पढ़ते हैं। अगर उनके साथ यह बर्तन वाली बैठेगी तो पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लेंगे। हमारी साख मिट्टी में मिल जाएगी।”
“सर साख कपड़ों से नहीं काबिलियत से बनती है। अगर सरस्वती के मंदिर में भी भेदभाव होगा तो हम शिक्षक कहलाने के लायक नहीं है।”
दोनों के बीच बहस तेज हो गई। मिस्टर वर्मा अपनी जिद पर अड़े थे कि वे गंदी मछली को तालाब में नहीं आने देंगे और मिस्टर खन्ना अड़े थे कि वे इस हीरे को खोने नहीं देंगे।
आखिर में मिस्टर वर्मा ने एक गहरी सांस ली और एक कुटिल मुस्कान के साथ बोले, “ठीक है खन्ना तुम बहुत जिद कर रहे हो तो सुनो अगले हफ्ते पूरे शहर के स्कूलों के लिए हमारा वार्षिक स्कॉलरशिप एग्जाम होने वाला है। उसमें शहर के सबसे तेज बच्चे बैठेंगे। अगर यह लड़की उस परीक्षा में ना सिर्फ पास होती है बल्कि पहला स्थान लाती है तो मैं इसे फ्री एडमिशन दूंगा। लेकिन अगर यह दूसरे नंबर पर भी आई तो इसे वापस बर्तन ही धोने पड़ेंगे।”
मंजूर है। यह एक असंभव शर्त थी। एक तरफ वह बच्चे थे जो सालों से ट्यूशन और कोचिंग ले रहे थे और दूसरी तरफ काजल जिसके पास ना किताब थी, ना वक्त और ना ही कोई सुविधा।
काजल डर गई। उसने मिस्टर खन्ना का हाथ पकड़ लिया। उसे लगा कि यह नामुमकिन है। लेकिन मिस्टर खन्ना ने उसका हाथ थामकर उसे हिम्मत दी और प्रिंसिपल की ओर देखकर बोले, “हमें मंजूर है सर। एक हफ्ते बाद इसी ऑफिस में एक नई टॉपर खड़ी होगी।”
भाग 5: साजिश और संघर्ष
मिस्टर खन्ना काजल को लेकर बाहर आ गए। बाहर आते ही उन्होंने देखा कि सुनीता काजल की मां दरवाजे के पास रो रही थी। उसे लगा कि उसकी बेटी ने कोई अपराध कर दिया है। मिस्टर खन्ना ने सुनीता के सामने झुककर कहा, “मांजी, रोना बंद कीजिए। अब काजल बर्तन नहीं धोएगी। अब यह इतिहास लिखेगी। बस मुझे एक हफ्ता दीजिए।”
लेकिन राह इतनी आसान नहीं थी। खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। कैंटीन के मैनेजर गोपाल को जब पता चला तो वह आग बबूला हो गया। उसे डर था कि अगर काजल पड़ने लगी तो उसके बर्तनों का ढेर कौन साफ करेगा। उसने एक घिनौनी चाल चलने की सोची।
परीक्षा से ठीक दो दिन पहले जब काजल रात में अपनी झोपड़ी में मोमबत्ती की रोशनी में मिस्टर खन्ना द्वारा दी गई पुरानी किताबों से पढ़ाई कर रही थी। तभी अचानक उनकी झोपड़ी का दरवाजा जोर से खटखटाया गया। बाहर गोपाल खड़ा था और उसके साथ दो पुलिस वाले थे।
“यही है साहब।” गोपाल ने काजल की ओर इशारा करते हुए पुलिस से कहा, “यही है वह लड़की जिसने कैंटीन के गल्ले से ₹5,000 चुराए हैं। मैंने इसे खुद देखा है।”
काजल और उसकी मां के पैरों तले जमीन खिसक गई। पुलिस वाले ने बिना किसी दया के उस छोटी सी झोपड़ी का कोना-कोना छान मारा। तभी एक सिपाही ने काजल की फटी हुई गद्दे के नीचे हाथ डाला और कुछ नोटों की गड्डी बाहर निकाली। “यह रहे पैसे।” सिपाही ने चिल्लाते हुए कहा, “साहब, पूरे 5,000 हैं। मैनेजर सही कह रहा था।”
सुनीता की चीख निकल गई। “नहीं सरकार, यह झूठ है। हमने एक पैसा नहीं देखा। मेरी बच्ची चोर नहीं है।” वह सिपाही के पैरों से लिपट गई। लेकिन सिपाही ने उसे झटक दिया। गोपाल दरवाजे पर खड़ा होकर कुटिलता से मुस्कुरा रहा था। उसने बनावटी दुख के साथ कहा, “देखा दरोगा जी, जिसका नमक खाया उसी की थाली में छेद किया। ऊपर से पढ़ने का नाटक करती है ताकि शक ना हो। ले जाइए इसे। जेल में चक्की पीसेगी तो अकल ठिकाने आएगी।”
काजल पत्थर की मूरत बनी खड़ी थी। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। लेकिन आवाज गले में ही घुट गई थी। जिन हाथों में कल कलम होनी चाहिए थी, आज उन हाथों में हथकड़ी लगने वाली थी।
पुलिस वाले ने काजल और सुनीता को जीप में बैठाया। पूरा मोहल्ला तमाशबीन बना देख रहा था। जिस इज्जत के लिए सुनीता दिन रात मेहनत करती थी, वह पल भर में धूल में मिल गई थी। थाने के हवालात में रात भर मच्छरों और डर के बीच काजल सिहरती रही। उसे स्कॉलरशिप, स्कूल और गणित के सवाल सब धुंधले दिखाई देने लगे। अब उसे सिर्फ सलाखें और अंधकार दिख रहा था।
भाग 6: उम्मीद की किरण
अगली सुबह जब उम्मीद की कोई किरण नहीं बची थी। थाने में एक आंधी की तरह मिस्टर खन्ना दाखिल हुए। उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। पसीने से लथपथ थे। उन्हें जैसे ही पता चला वे सीधे यहां भागे चले आए थे।
“इंस्पेक्टर साहब,” मिस्टर खन्ना ने थानेदार की मेज पर हाथ पटकते हुए कहा, “आप एक मासूम बच्ची को बिना जांच के कैसे बंद कर सकते हैं?”
इंस्पेक्टर ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “मास्टर जी, जांच हो गई। उसके बिस्तर से चोरी का माल बरामद हुआ है। कानून सबके लिए बराबर है।”
“कानून अंधा हो सकता है लेकिन आप नहीं।” मिस्टर खन्ना ने गरजते हुए कहा, “वह बच्ची कल शहर की सबसे बड़ी परीक्षा में बैठने वाली है। यह उस मैनेजर की साजिश है ताकि वह एग्जाम ना दे सके। सोचिए जो लड़की अपनी मेहनत से स्कूल में दाखिला लेने की जिद कर रही है वह चंद रुपयों के लिए अपना भविष्य क्यों ना पर लगाएगी?”
गोपाल भी वहीं मौजूद था। उसने बीच में बोलने की कोशिश की। “अरे मास्टर जी आप तो…”
“तुम चुप रहो।” मिस्टर खन्ना ने गोपाल की ओर उंगली उठाई। “अगर उस कैंटीन के गल्ले की फिंगरप्रिंट जांच हुई और उस पर काजल के निशान नहीं मिले तो याद रखना गोपाल, झूठी एफआईआर लिखवाने के जुर्म में तुम अंदर जाओगे और मैं यह जांच करवा कर रहूंगा चाहे मुझे कोर्ट जाना पड़े।”
मिस्टर खन्ना का आत्मविश्वास और उनका रुतबा देखकर इंस्पेक्टर थोड़ा सहम गया। उसे भी दाल में कुछ काला लग रहा था। और सबसे बड़ी बात एक शिक्षक का यह रूप उसने पहले कभी नहीं देखा था।
इंस्पेक्टर ने कुछ देर सोचा और फिर चाबी सिपाही की ओर फेंकी। “ठीक है मास्टर जी, आपकी गारंटी पर इसे छोड़ रहा हूं। लेकिन अगर यह दोषी निकली तो जिम्मेदारी आपकी होगी।”
हवालात का ताला खुला। काजल बाहर आई लेकिन वह टूट चुकी थी। उसकी आत्मा घायल थी। बाहर आते ही वह मिस्टर खन्ना के गले लगकर फूट-फूट कर रोने लगी। “सर मैं एग्जाम नहीं दूंगी। मुझे डर लग रहा है। सब मुझे चोर कहेंगे। मैं वापस बर्तन मांझ लूंगी सर, लेकिन स्कूल नहीं जाऊंगी।”
मिस्टर खन्ना ने उसके कंधों को पकड़ कर उसे सीधा खड़ा किया। उन्होंने अपनी जेब से एक नया पेन निकाला और काजल के सामने किया। “काजल मेरी आंखों में देखो।” उन्होंने सख्ती से कहा, “गोपाल और उस प्रिंसिपल ने यही तो चाहा था कि तुम टूट जाओ। अगर आज तुम पीछे हट गई तो तुम सच में चोर साबित हो जाओगी। अपने सपनों की चोर यह इल्जाम आंसुओं से नहीं धुलेगा बेटा। यह इल्जाम सिर्फ तुम्हारी कामयाबी से धुलेगा। कल का एग्जाम सिर्फ एक पेपर नहीं है। वह तुम्हारा स्वाभिमान है।”
काजल ने अपनी आंसुओं से धुंधली आंखों से उस पेन को देखा।
“जाओ।” मिस्टर खन्ना ने कहा, “कल दिखा दो इस दुनिया को कि कीचड़ का दाग पानी से नहीं सूरज की रोशनी से मिटता है।”
भाग 7: जीत की सुबह
अगले दिन सुबह हुई। संस्कार वैली स्कूल का ऑडिटोरियम खचाखच भरा था। शहर के सबसे महंगे स्कूलों के बच्चे अपनी प्रेस की हुई वर्दियों और महंगे जूतों में वहां मौजूद थे। उनके माता-पिता उन्हें गुड लक कह रहे थे। उसी भीड़ में एक कोने में काजल खड़ी थी। वही पुरानी फ्रॉक लेकिन धुली हुई। बाल तेल से चिपके हुए। आंखों में रात भर के रोने की सूजन थी। लेकिन मुट्ठी में मिस्टर खन्ना का दिया हुआ पेन कसकर भी हुआ था।
प्रिंसिपल वर्मा ने मंच से घोषणा की। “परीक्षा शुरू होती है। आपके पास 2 घंटे हैं।”
पेपर काजल के सामने आया। उसने पहला पन्ना पलटा। सवाल मुश्किल थे। बहुत मुश्किल। लेकिन जैसे ही उसने सवालों को पढ़ा, उसे लगा जैसे वह सवाल उससे बातें कर रहे हो। बर्तनों की खनखनाहट गायब हो गई। पुलिस का डर गायब हो गया। अब वहां सिर्फ काजल थी और गणित के अंक।
समय बीतता गया। एक-एक करके बच्चे सिर खुजलाने लगे। लेकिन काजल का पेन कागज पर ऐसे दौड़ रहा था जैसे कोई चित्रकार कैनवास पर रंग भर रहा हो।
तभी आखिरी के 15 मिनट में कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। परीक्षा हॉल में घड़ी की सुई टिक टिक कर रही थी। आखिरी के 15 मिनट बचे थे। जहां बाकी बच्चे पसीने से तर-बतर होकर अपने बालों को नोच रहे थे, वहीं काजल की कलम अचानक रुक गई। उसकी नजर प्रश्न पत्र के सबसे आखिरी और सबसे कठिन सवाल पर टिकी थी। यह 10 नंबर का सवाल था जो मेरिट लिस्ट तय करने वाला था।
काजल ने एक बार पढ़ा, दो बार पढ़ा। फिर उसने अपना हाथ ऊपर उठाया। पूरी क्लास का ध्यान उसकी तरफ गया। मंच पर बैठे प्रिंसिपल वर्मा के चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कान आ गई। उन्हें लगा कि इस लड़की ने हार मान ली है। वे माइक लेकर बोले, “क्या हुआ? हार मान ली। मैंने कहा था ना बर्तन मांझना और समीकरण सुलझाना दो अलग बातें हैं। जाओ पेपर जमा करो और बाहर जाओ।”
काजल अपनी जगह पर खड़ी हो गई। उसकी आवाज में कंपन था लेकिन आंखों में सच्चाई की चमक। “नहीं सर,” उसने पूरी क्लास के सामने कहा, “मैंने हार नहीं मानी लेकिन सर प्रश्न संख्या 50 गलत है।”
ऑडिटोरियम में सन्नाटा छा गया। फुसफुसाहट शुरू हो गई। एक बर्तन वाली लड़की शहर के सबसे बड़े शिक्षाविदों द्वारा बनाए गए पेपर को गलत बता रही थी। प्रिंसिपल वर्मा गुस्से से लाल हो गए। “जुबान लड़ाती है। यह पेपर एक्सपर्ट्स ने सेट किया है। चुपचाप बैठ जाओ वरना पेपर छीन लिया जाएगा।”
तभी वहां मौजूद मुख्य परीक्षक हेड एग्जामिनर जो एक बुजुर्ग गणितज्ञ थे अपनी सीट से उठे। उन्होंने अपना चश्मा ठीक किया और प्रश्न पत्र को गौर से देखा। दो मिनट तक गहरा सन्नाटा रहा। फिर उन्होंने प्रिंसिपल के कान में कुछ फुसफुसाया। प्रिंसिपल के चेहरे का रंग उड़ गया।
बुजुर्ग परीक्षक ने माइक लिया और भारी आवाज में कहा, “बच्ची सही कह रही है। इस सवाल के डाटा में एक टाइपिंग की गलती है। जिस वजह से इसे हल करना नामुमकिन है। माफ कीजिएगा बच्चों।”
फिर उन्होंने काजल की ओर देखा। “बेटा तुम इसे छोड़ दो। तुम्हें इसके पूरे नंबर मिलेंगे।”
“सर,” काजल ने विनम्रता से कहा, “मैंने गलती सुधार कर सही सवाल बना लिया है और उसका जवाब भी लिख दिया है। क्या मैं कॉपी जमा कर सकती हूं?”
परीक्षक हैरान रह गए। उन्होंने इशारा किया। काजल ने अपनी कॉपी जमा की और हॉल से बाहर चली गई। मिस्टर खन्ना दरवाजे पर ही खड़े थे। उन्होंने सब कुछ सुना था। उनकी आंखों में गर्व के आंसू थे।
भाग 8: काजल की जीत
दो दिन बाद परिणाम घोषित होने का दिन था। स्कूल का बड़ा हॉल अभिभावकों, पत्रकारों और शहर के गणमान्य लोगों से भरा हुआ था। स्टेज पर चमचमाती ट्रॉफी रखी थी। गोपाल मैनेजर भी एक कोने में खड़ा था। मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि काजल फेल हो जाए।
प्रिंसिपल वर्मा पोडियम पर आए। उनका चेहरा भाव शून्य था। उनके हाथ में रिजल्ट का लिफाफा था।
“देवियों और सज्जनों,” उन्होंने बोलना शुरू किया, “इस साल का स्कॉलरशिप एग्जाम इतिहास का सबसे कठिन एग्जाम था। हमें बहुत से प्रतिभाशाली बच्चे मिले।”
भीड़ में बैठी सुनीता अपनी साड़ी के पल्लू को मरोड़ रही थी। काजल ने अपनी मां का हाथ कसकर पकड़ा हुआ था।
“मैं सबसे पहले दूसरे स्थान की घोषणा करूंगा।” प्रिंसिपल ने कहा, “दूसरा स्थान प्राप्त किया है हमारे स्कूल के होनहार छात्र अमन मल्होत्रा ने 99% मार्क्स के साथ।”
तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। अमन मंच पर गया लेकिन उसके चेहरे पर खुशी नहीं थी। वह जानता था कि कोई और है जिसने उससे बेहतर किया है।
अब बारी थी पहले स्थान की। हॉल में सन्नाटा छा गया। प्रिंसिपल वर्मा ने एक लंबी सांस ली। उन्होंने लिफाफा खोला और भीड़ की ओर देखा। उनकी नजर सबसे पीछे खड़ी साधारण कपड़ों वाली काजल पर टिकी और प्रथम स्थान इस्ताने सन 100 में से 100 नंबर और आखिरी सवाल को सुधार कर हल करने के लिए विशेष योग्यता के साथ शहर की नई टॉपर है… “काजल!”
प्रिंसिपल वर्मा के मुंह से यह नाम निकलते ही पूरे हॉल में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया। किसी को यकीन नहीं हुआ कि कैंटीन के पिछले हिस्से में झूठे बर्तन धोने वाली वह छोटी सी लड़की आज इस शहर की सबसे बड़ी टॉपर बन गई थी।
सन्नाटे को तोड़ते हुए सबसे पहले दूसरी रैंक लाने वाले अमन ने ताली बजाई। उसके बाद मिस्टर खन्ना अपनी जगह से खड़े हुए और जोर-जोर से तालियां बजाने लगे। देखते ही देखते पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अमीर माता-पिता, शिक्षक और बच्चे सब खड़े होकर उस नन्ही प्रतिभा का सम्मान कर रहे थे।
सुनीता का रो-रो कर बुरा हाल था। लेकिन आज यह आंसू दुख के नहीं बल्कि एक मां के गर्व के थे। काजल धीरे-धीरे कदमों से मंच की ओर बढ़ी। आज उसके कदम लड़खड़ा नहीं रहे थे। आज उसकी मैली फ्रॉक उसे शर्मिंदा नहीं कर रही थी बल्कि उसकी संघर्ष की कहानी कह रही थी।
मंच पर पहुंचकर जब उसने ट्रॉफी थामी तो प्रिंसिपल वर्मा ने माइक पर कहा, “मुझे हमेशा लगता था कि हीरे केवल शोरूम में सजाए जाते हैं। लेकिन मिस्टर खन्ना ने मुझे एहसास दिलाया कि असली हीरे तो कोयले की खान और धूल में ही मिलते हैं। मैं अपनी संकीर्ण सोच के लिए इस बच्ची और इसके गुरु मिस्टर खन्ना से माफी मांगता हूं।”
इसके बाद प्रिंसिपल का चेहरा सख्त हो गया। उन्होंने हॉल के कोने में छिपे गोपाल मैनेजर की ओर इशारा किया और एक बात प्रिंसिपल ने कड़क आवाज में कहा, “पुलिस की फॉरेंसिक रिपोर्ट आज सुबह ही आई है। उन नोटों पर काजल के नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ गोपाल के फिंगरप्रिंट्स मिले हैं। एक मासूम बच्ची के भविष्य को बर्बाद करने की कोशिश करने के लिए स्कूल मैनेजमेंट गोपाल को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करता है और उसे पुलिस के हवाले करता है।”
पुलिस वाले जो बाहर ही खड़े थे अंदर आए और गोपाल को हथकड़ी लगाकर ले गए। काजल ने गोपाल की ओर देखा लेकिन उसकी आंखों में गुस्सा नहीं था। केवल एक विजेता की शांति थी। बुराई पर अच्छाई की और झूठ पर सच की जीत हो चुकी थी।
मिस्टर खन्ना मंच पर आए। उन्होंने अपनी जेब से स्कूल का एक नया आईडी कार्ड और यूनिफार्म निकाली। उन्होंने काजल के सामने झुककर कहा, “बेटा अब तुम्हें खिड़की के बाहर खड़े होने की जरूरत नहीं है। तुम्हारा स्वागत है।”
भाग 9: नई शुरुआत
एक हफ्ते बाद गणित की क्लास चल रही थी। मिस्टर खन्ना ब्लैक बोर्ड पर वही पुराना सवाल समझा रहे थे। लेकिन आज नजारा बदला हुआ था। खिड़की के बाहर बर्तनों का ढेर तो था लेकिन वहां काजल नहीं थी। काजल अब खिड़की के उस पार नहीं बल्कि इस पार थी। साफ सुथरी स्त्री की हुई नीली यूनिफार्म में पहली बेंच पर बैठी। वह पूरे ध्यान से पढ़ाई कर रही थी। उसकी आंखों में अब बर्तन धोने की थकान नहीं बल्कि एक आईएएस अफसर बनने का सपना चमक रहा था।
जब क्लास खत्म हुई तो काजल ने एक पल के लिए खिड़की से बाहर देखा। वहां एक नई काम वाली बर्तन धो रही थी। काजल मन ही मन मुस्कुराई और अपनी नोटबुक पर एक नया समीकरण लिखा।
“मेहनत + हिम्मत = जीत”
सच है। हुनर किसी की दया का मोहताज नहीं होता। वह कीचड़ से भी उठता है और आसमान का सबसे चमकता सितारा बन जाता है।
समाप्त
(The End)
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