चार धाम से घर लौटते समय बहू ने बूढ़े सास-ससुर को ढाबे पर अकेला छोड़ा… फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी

चारधाम यात्रा:
महेश जी और ममता जी ने अपने जीवन में पहली बार चारधाम यात्रा का निर्णय लिया था। यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था। महेश जी ने अपनी पत्नी ममता जी के साथ मिलकर कई सालों तक इस यात्रा की योजना बनाई थी। जब वे चारधाम पहुंचे, तो वहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक माहौल ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया।
महेश जी ने अपनी पत्नी को कहा, “ममता, देखो यह धरती कितनी पवित्र है। यहां आकर मन को सुकून मिलता है।” ममता जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां जी, यहां आकर ऐसा लगता है जैसे भगवान ने हमें अपने पास बुलाया है।”
उनके बेटे सुमित और बहू प्रिया भी इस यात्रा का आनंद ले रहे थे। लेकिन प्रिया का ध्यान बार-बार अपने मोबाइल पर था, वह अपने दोस्तों से बातें कर रही थी। महेश जी और ममता जी ने इसे नजरअंदाज किया, क्योंकि वे अपने सपनों की यात्रा का आनंद ले रहे थे।
वापसी का सफर:
जब यात्रा समाप्त हुई, तो सभी चारधाम से लौटने के लिए बस में बैठे। रास्ते में सभी लोग खुश थे, लेकिन प्रिया का मन कहीं और था। उसने अपने पति सुमित से कहा, “सुमित, मैं सोच रही हूं कि हम जल्दी होटल में रुकें और कुछ आराम करें। क्या तुम नहीं सोचते?”
सुमित ने कहा, “ठीक है, लेकिन पहले हमें अपने माता-पिता का ख्याल रखना चाहिए। वे थक गए हैं।” प्रिया ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, “मैं जानती हूं, लेकिन हमें अपने आराम का भी ध्यान रखना चाहिए।”
जब बस एक होटल पर रुकी, तो महेश जी ने कहा, “बेटा, तुम और प्रिया पहले चलो। हम थोड़ी देर में आते हैं।” प्रिया ने जबरन मुस्कुराते हुए कहा, “जी पिताजी, हम चलते हैं।”
होटल में खाने की व्यवस्था थी। महेश जी और ममता जी ने सोचा कि थोड़ी देर आराम करेंगे। लेकिन प्रिया ने एक बहाना बनाया कि वह खाने का पैकेट लेकर आएगी। महेश जी ने कहा, “बेटा, जल्दी आ जाना।”
वृद्धाश्रम की ओर:
कुछ देर बाद, जब महेश जी और ममता जी ने देखा कि प्रिया वापस नहीं आई, तो उन्होंने घड़ी देखी। 6:30 बज रहे थे। महेश जी ने कहा, “ममता, बहू कहां रह गई?” दोनों जल्दी से होटल के काउंटर की ओर बढ़े। काउंटर पर बैठे लड़के ने बताया कि प्रिया खाना पैक करवा कर चली गई।
महेश जी और ममता जी घबरा गए। उन्होंने होटल के बाहर जाकर देखा, लेकिन वहां कोई बस नहीं थी। सड़क सुनसान थी। महेश जी ने मोबाइल निकाला, लेकिन नेटवर्क नहीं था। ममता जी की आंखों में आंसू थे।
महेश जी ने कहा, “ममता, कई बार जिंदगी में जो हम सोच भी नहीं सकते वही हो जाता है। अब हमें खुद रास्ता बनाना होगा।” दोनों ने एक छोटे ढाबे की ओर बढ़ने का निर्णय लिया।
ढाबे पर रात:
ढाबे पर पहुंचकर उन्होंने राहत की सांस ली। ममता जी ने कहा, “अब हमें क्या करना चाहिए?” महेश जी ने कहा, “पहले थोड़ी देर बैठो। फिर सुबह होते ही किसी गाड़ी से आगे निकलेंगे।”
रात गहराने लगी और महेश जी ने सड़क की ओर देखना शुरू किया। तभी अचानक दूर से एक ट्रक की हेडलाइट दिखाई दी। महेश जी ने सोचा शायद इससे पूछ लूं। लेकिन जैसे ही ट्रक पास आया, महेश जी को एहसास हुआ कि ट्रक बहुत तेज रफ्तार में है।
महेश जी ने कदम पीछे खींच लिए, लेकिन ड्राइवर ने ना हॉर्न दिया, ना साइड लिया। एक पल में ट्रक उन पर चढ़ गया। ममता जी की आंखें खुल गईं, लेकिन उन्हें कुछ समझ नहीं आया।
डॉक्टर राजीव की मदद:
कुछ देर बाद, एक सफेद कार उधर से गुजरी। उसमें बैठे एक युवक ने अचानक ब्रेक मारा और बाहर भागा। वह डॉक्टर राजीव था। उसने महेश जी की नाड़ी देखने लगा और चिल्लाया, “राजू, जल्दी गाड़ी में स्ट्रेचर डालो। यह जिंदा है।”
राजीव ने महेश जी को अपनी जैकेट देकर स्ट्रेचर पर लिटाया और तेजी से नर्सिंग होम की ओर निकल गया। रास्ते में उसकी आंखों में चिंता थी, लेकिन चेहरे पर दृढ़ता थी।
ममता जी का इंतजार:
उधर, ममता जी ढाबे पर बैठी थीं। वह बार-बार सड़क की ओर देख रही थीं। उन्हें उम्मीद थी कि महेश जी वापस आएंगे। लेकिन रात बीतने के साथ उनकी चिंता बढ़ती गई।
अगली सुबह, ममता जी ने पुलिसकर्मी से मदद मांगी। पुलिसकर्मी ने कहा, “आप घबराइए मत, चलिए हमारे साथ थाने तक चलें।” थाने में ममता जी ने अपने पति का नाम बताया, लेकिन कोई खबर नहीं मिली।
महेश जी की यादें:
उधर, डॉक्टर राजीव ने महेश जी को अपने छोटे नर्सिंग होम में भर्ती कर दिया था। महेश जी को होश आया, लेकिन उन्हें कुछ याद नहीं आ रहा था। बस एक नाम बार-बार गूंजता रहा, “ममता।”
राजीव ने कहा, “बाबू जी, आप कौन हैं? कहां से आए हैं?” लेकिन महेश जी सिर पकड़कर बोले, “मुझे कुछ याद नहीं।”
ममता जी की चिंता:
ममता जी की हालत बिगड़ने लगी थी। दो दिन से कुछ नहीं खाया। वह बार-बार यही कहती रही, “मेरे महेश जी आएंगे।” इंस्पेक्टर ने वृद्धाश्रम की संचालिका को बुलाया। उन्होंने ममता जी को वृद्धाश्रम में भेज दिया।
वृद्धाश्रम में ममता जी:
वृद्धाश्रम में ममता जी की आंखें दरवाजे पर टिकी थीं। हर आने-जाने वाले चेहरे में वह अपने पति का चेहरा ढूंढती रही। वक्त धीरे-धीरे गुजरने लगा।
महेश जी की देखभाल:
इधर, डॉक्टर राजीव ने महेश जी को अपने घर ले आया। उसकी पत्नी सुमन ने भी उनकी सेवा शुरू कर दी थी। महेश जी कभी-कभी आसमान की ओर देखकर कहते, “ममता, तू कहां है?”
एक नई सुबह:
एक दिन सुमन ने कहा, “इस रविवार हम वृद्धाश्रम चलेंगे। शायद माहौल बदलने से आपको अच्छा लगे।” राजीव ने कहा, “हां, और इस बार बाबू जी को भी साथ ले चलेंगे।”
वृद्धाश्रम की यात्रा:
रविवार की सुबह, डॉक्टर राजीव, महेश जी और सुमन वृद्धाश्रम पहुंचे। महेश जी ने धीरे-धीरे गाड़ी से उतरते हुए कहा, “यहां का माहौल कितना अच्छा है।”
ममता जी का मिलन:
जैसे ही महेश जी ने कदम बढ़ाया, सामने से ममता जी आ रही थीं। दोनों की चाल एक पल को थम गई। ममता जी की आंखें महेश जी पर टिक गईं।
“आप आप कहां चले गए थे?” ममता जी की आवाज कांप रही थी। महेश जी ने कहा, “ममता, बस इतना सुनना था कि दोनों एक दूसरे की ओर बढ़े और लिपट कर रो पड़े।
एक नई शुरुआत:
राजीव और सुमन ने दोनों के मिलन को देखकर खुशी महसूस की। महेश जी ने कहा, “आपने मेरे लिए जो किया, वह कोई अपना बेटा भी नहीं कर सकता था।”
घर की ओर लौटना:
कुछ दिनों बाद महेश जी ने कहा, “राजीव बेटा, अब हमें लौटना होगा। हमारा बेटा सुमित होगा।” राजीव ने कहा, “मैं आपको छोड़ देता हूं, बाबू जी।”
महेश जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं बेटा, अब यह सफर हमें खुद तय करना होगा।”
सुमित का पछतावा:
जब महेश जी और ममता जी घर पहुंचे, तो सुमित दरवाजे पर खड़ा था। उसने जैसे ही दरवाजा खोला, उसके चेहरे पर खुशी थी। “मां, पिताजी, आप आ गए!”
महेश जी ने कांपते हाथों से उसे उठाया और गले लगा लिया। “बेटा, सब भगवान की मर्जी थी।”
प्रिया का सामना:
तभी पीछे से प्रिया की आवाज आई। “सुमित, कौन आया है?” वह बाहर आई और अपने सास-ससुर को देखकर पत्थर हो गई।
महेश जी ने कहा, “बस अब और झूठ मत बोलो। हमें किस्मत ने नहीं, तुम्हारी चाल ने हमारे बेटे से दूर किया था।”
सुमित का निर्णय:
सुमित की आंखों में आग भर गई। उसने प्रिया की तरफ देखा। “क्या यह सच है?” प्रिया रो पड़ी। “सुमित, मुझसे गलती हो गई। मैं डर गई थी।”
सुमित ने कहा, “गलती तुमने मेरे मां-बाप को सड़क पर छोड़ दिया। तुम्हें अपने किए की सजा अब मिलेगी।”
अंतिम निष्कर्ष:
महेश जी ने बेटे के सिर पर हाथ रखा और कहा, “याद रखो बेटा, मां-बाप वो नींव होते हैं जिन पर जीवन की पूरी इमारत खड़ी होती है।”
इस तरह, महेश जी और ममता जी ने अपने बेटे से फिर से एक नई शुरुआत की। उन्होंने अपने रिश्ते को फिर से मजबूत किया और सुमित ने अपने माता-पिता का सम्मान करना सीखा।
सीख:
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि मां-बाप को छोड़ देना सिर्फ एक गलती नहीं है। वह उस ईश्वर को भूल जाना है जिसने हमें चलना सिखाया, बोलना सिखाया और हर ठोकर पर हमें संभाला।
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समापन:
अब आप बताइए, अगर आपकी जिंदगी में भी ऐसा पल आए जहां आपको अपने मां-बाप और रिश्तों में से किसी एक को चुनना पड़े, तो आप क्या करेंगे? क्या आप भी सुमित की तरह अपनी गलती सुधारेंगे या प्रिया की तरह सब खो देंगे?
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