कहानी: एक टैक्सी यात्रा, अधूरी मोहब्बत और नई शुरुआत

मुंबई की भीड़-भाड़ वाली शाम थी। रिया शर्मा, एक सफल और आत्मनिर्भर महिला, ऑफिस के बाहर अपने छोटे से सूटकेस के साथ खड़ी थी। उसके चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें थीं, क्योंकि उसे डर था कि कहीं उसकी दिल्ली की फ्लाइट छूट न जाए। अगली सुबह उसका बहुत बड़ा प्रेजेंटेशन था, जिस पर उसकी प्रमोशन और पूरे करियर की उम्मीदें टिकी थीं।

समय कम था, रिया ने मोबाइल से टैक्सी बुक की और बेसब्री से इंतजार करने लगी। दिल की धड़कनें इतनी तेज थीं कि लगता था जैसे छाती फट जाएगी। यह सफर सिर्फ एयरपोर्ट तक का नहीं था, बल्कि उसकी मेहनत और सपनों का था। लेकिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था।

कुछ ही मिनटों में एक सफेद टैक्सी उसके सामने आकर रुकी। रिया जल्दी से पिछली सीट पर बैठ गई, गहरी सांस ली और खुद को शांत करने की कोशिश की। तभी उसकी नजर ड्राइवर के हाथ पर पड़ी—वही मोटी चांदी की अंगूठी, जो उसने कभी अपने हाथों से पहनाई थी। उसका दिल जोर से धड़का। रियर व्यू मिरर में देखा तो सामने वही चेहरा था—विक्रम सिंह, उसका तलाकशुदा पति।

एक पल के लिए रिया की दुनिया रुक गई। बाहर का शोर धीमा पड़ गया, टैक्सी के अंदर की हवा भारी हो गई। यादें वापस लौट आईं—शादी के सात फेरे, साथ निभाने का वादा, छोटी बहसें, बड़े झगड़े और आखिरकार तलाक। लेकिन आज भी दिल के किसी कोने में वह प्यार जिंदा था।

विक्रम भी रिया को पहचान गया। दोनों की नजरें मिलीं, फिर अनजाने में नजरें फेर लीं। टैक्सी में सन्नाटा था, बाहर मुंबई की सड़कों पर शोर था। रिया की आंखें भर आईं, लेकिन उसने खुद को संभाला। आखिरकार उसने धीमे स्वर में पूछा, “कब से चला रहे हो टैक्सी?” विक्रम ने जवाब दिया, “दो साल से। जब कोई और रास्ता नहीं बचा, तो यही चुनना पड़ा। काम छोटा-बड़ा नहीं होता, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी मुझे यहां तक ले आएगी।”

रिया की आंखें नम हो गईं। विक्रम ने आगे कहा, “तुम्हें मुझे इस हालत में देखकर अच्छा नहीं लग रहा ना? लेकिन यही मेरी हकीकत है। जिंदगी ने मुझे इतना छोटा कर दिया कि खुद से भी शर्मिंदा हूं।” रिया बोली, “अगर तुम उस वक्त कह देते तो शायद मैं तुम्हारे साथ सब कुछ सह लेती। तुम्हारी चुप्पी ने मुझे अंदर से तोड़ दिया।”

टैक्सी ट्रैफिक सिग्नल पर रुकी। दोनों के दिलों में सालों का बोझ था, जो अब फूटने को तैयार था। विक्रम ने कहा, “मैंने तुम्हें बोझ से बचाना चाहा था। नौकरी छूट गई, कर सिर पर चढ़ गया। सोचा तुम मुझसे दूर रहोगी तो संभल जाओगी। लेकिन यही मेरी सबसे बड़ी गलती थी।”

रिया के आंसू बह निकले। बोली, “तुमने सोचा मैं तुम्हारे बिना संभल जाऊंगी, लेकिन क्या तुमने कभी सोचा कि तुम्हारे बिना मैं जी पाऊंगी?” बाहर लोग भाग रहे थे, लेकिन टैक्सी में बस दर्द और भावनाएं थीं।

एयरपोर्ट पहुंचने पर रिया ने कहा, “मैं दिल्ली से लौटकर आऊंगी। हमें बात करनी होगी।” विक्रम की आंखों में उम्मीद की हल्की सी चमक आ गई। रिया एयरपोर्ट में भीड़ के बीच खो गई, लेकिन उसका मन अब भी उसी टैक्सी के पास था, जहां विक्रम खड़ा था।

दिल्ली पहुंचकर रिया ने प्रेजेंटेशन दिया। तालियां मिलीं, लेकिन असली खुशी तो विक्रम के साथ थी। उसने ठान लिया कि काम खत्म होते ही मुंबई लौटेगी। दूसरी ओर, विक्रम भी बेचैन था। हर बार टैक्सी स्टार्ट करता, तो रिया की यादें सामने आ जातीं।

रिया मुंबई लौटी। एयरपोर्ट पर टैक्सियों के बीच विक्रम को ढूंढती रही। आखिरकार दोनों आमने-सामने खड़े हो गए। रिया ने कांपते स्वर में कहा, “तुमसे मिलकर ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने अधूरे हिस्से से मिल रही हूं।” विक्रम ने जवाब दिया, “अगर तुम चाहो तो मैं फिर से सब संभालने की कोशिश कर सकता हूं। लेकिन इस बार बिना कुछ छुपाए।”

रिया बोली, “प्यार किसी शर्त पर नहीं टिकता। ना तुम्हारी सफलता पर, ना मेरी महत्वाकांक्षा पर। प्यार तो सिर्फ साथ मांगता है।” विक्रम ने उसका हाथ थाम लिया। भीड़, शोर सब कुछ उस पल गुम हो गया। दोनों ने वादा किया कि अब चुप्पी को रिश्ते का दुश्मन नहीं बनने देंगे।

रात गहराती गई, दोनों ने अपनी गलतियां स्वीकार कीं, अधूरी बातें पूरी कीं और तय किया कि अब जिंदगी की गाड़ी चाहे कैसी भी चले, दोनों साथ होंगे। मुंबई की ठंडी हवा में एक टूटा रिश्ता फिर से जुड़ गया।

रिया और विक्रम की कहानी सिखाती है कि रिश्ते जीत-हार से नहीं, साथ निभाने से चलते हैं। जब हम एक-दूसरे की कमजोरियों को अपनाते हैं, तो वही रिश्ता सबसे बड़ी ताकत बन जाता है। सच्चा प्यार कभी मरता नहीं।

दोस्तों, अगर आप उनकी जगह होते, क्या अपने रिश्ते को दूसरा मौका देते?
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