लेडी पुलिस अफ़सर ने अपने 14 साल के नौकर में कुछ ऐसा देखा कि वह उसकी दीवानी बन गई।
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इंदौर शहर के किनारे एक पुरानी हवेली नुमा बंगले में 22 साल की खूबसूरत और निडर एसपी अनुपमा वर्मा अकेले रहती थीं। तीन साल पहले एक पुलिस ऑपरेशन के दौरान उनके पति डीसीपी आदित्य वर्मा शहीद हो गए थे। आदित्य की मौत ने अनुपमा की जिंदगी की रोशनी छीन ली थी, लेकिन उन्होंने अपने गम को दिल में छुपाकर ड्यूटी में खुद को झोंक दिया और जिले की सबसे कम उम्र की सख्तगीर एसपी बन गईं।
बंगले की हर दीवार, हर कोना आदित्य की याद से भरा था, इसलिए अनुपमा शहर के किसी आरामदायक फ्लैट में शिफ्ट होने को तैयार नहीं थीं। रोज सुबह वर्दी पहनकर दफ्तर जातीं, शाम तक केस और फाइलों में उलझी रहतीं, और रात को थकी-हारी लौटतीं। लेकिन बंगले में कदम रखते ही गहरा सन्नाटा उनके दिल पर बोझ डाल देता।
एक शाम जब वह खिड़की के पास खड़ी बारिश की बूंदें देख रही थीं, उनकी पुरानी दोस्त इंस्पेक्टर प्रिया नायर मिलने आईं। चाय पीते हुए प्रिया ने सलाह दी, “अनुपमा, तुम्हें कोई नौकर रख लेना चाहिए। घर के काम भी संभल जाएंगे और तुम्हें अकेलापन भी कम लगेगा।” शुरुआत में अनुपमा ने इंकार किया, लेकिन प्रिया के लगातार इसरार के आगे हार मान लीं।
कुछ दिन बाद प्रिया खुद एक 14 साल के लड़के को उनके बंगले तक लेकर आई। लड़का दुबला-पतला था, पर उसकी आंखों में मासूमियत और चेहरे पर भरोसेमंद मुस्कान थी। उसका नाम विवेक था। पांव में घिसे हुए चप्पल, हाथ में कपड़ों का छोटा थैला, और ऐसा सुकून कि मानो यह जगह उसका अपना हो।
विवेक को काम पर रख लिया गया। वह खाना बनाता, सफाई करता, बगीचे की देखरेख करता और घर के छोटे-मोटे काम संभालता। लेकिन एक बात अनुपमा को अजीब लगती—विवेक हर काम इतनी सफाई और तरीके से करता जैसे बरसों से यह घर उसका हो। खास बात यह कि जब वह चाय बनाता, उसकी खुशबू और स्वाद बिल्कुल वैसा ही होता जैसे आदित्य की पसंदीदा चाय का था।
शुरू में अनुपमा ने इसे महज संयोग समझा, लेकिन वक्त के साथ विवेक की छोटी-छोटी आदतें उन्हें चौंकाने लगीं। जैसे वह हमेशा अनुपमा की पसंदीदा किताबों को उसी तरह शेल्फ पर रखता जैसे आदित्य करते थे। एक रात अनुपमा ने अपनी डायरी में कुछ लिखा और अगली सुबह देखा कि डायरी उसी पन्ने पर खुली थी जैसे कोई रात में उसे पढ़कर गया हो। अब उनके दिल में सवाल उठने लगा—क्या यह लड़का सच में नौकर है या इसके पीछे कोई बड़ा राज छुपा है?
एक रात जब बारिश जोर से हो रही थी और अनुपमा दफ्तर से लौट रही थीं, बंगले की बिजली तेज आंधी और बारिश के कारण चली गई। टॉर्च जलाकर दरवाजा खोला तो देखा विवेक हाथ में मोमबत्तियां लिए खड़ा था, जैसे उसे पता हो कि अनुपमा इसी वक्त पहुंचेंगी। उसने धीमी आवाज में कहा, “मैम, आप तो पूरी भीग गई हैं। मैं आपके लिए चाय बना दूं।” अनुपमा ने उसकी आंखों में देखा—वही गहराई, वही चमक जो कभी आदित्य की आंखों में होती थी। उनका दिल जोर से धड़का, लेकिन वे सख्त लहजे में बोलीं, “विवेक, तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो, है ना? सच बताओ, क्या बात है?”
विवेक ने नजरें झुका ली, फिर हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा, “मैम, मैं तो बस आपका नौकर हूं, आप फिक्र मत करें, मैं अभी चाय लाता हूं।”
अगले दिन अनुपमा ने प्रिया को बुलाया और कहा, “मुझे लगता है यह लड़का आम नौकर नहीं है। इसकी हरकतें, चाय बनाने का तरीका, बात करने का अंदाज मुझे बार-बार आदित्य की याद दिलाता है। क्या मैं पागल हो रही हूं?” प्रिया ने हंसकर बात टालने की कोशिश की, लेकिन अनुपमा के शक गहरे हो चुके थे। उन्होंने प्रिया से कहा, “तुम विवेक की पूरी बैकग्राउंड चेक करो, मैं सच जानना चाहती हूं।”
कुछ दिन बाद प्रिया रिपोर्ट लेकर आई। “अनुपमा, इसके बारे में कोई खास रिकॉर्ड नहीं मिला। आधार कार्ड और बाकी डिटेल्स तो सही हैं, मगर इससे पहले का कोई रिकॉर्ड नहीं। जैसे यह लड़का अचानक कहीं से आ गया हो।” प्रिया ने कहा, “हो सकता है यह वाकई एक आम बच्चा हो, लेकिन अगर तुम्हें शक है तो हम और गहराई से जांच कर सकते हैं।”
अनुपमा ने हां में सिर हिलाया, लेकिन उनके दिल की उलझन कम नहीं हुई। उस रात वे अपने बेडरूम में बैठी पुरानी तस्वीरें देख रही थीं। एक तस्वीर में वे और आदित्य शादी के दिन मुस्कुरा रहे थे, और आदित्य ने सभी करीबी लोगों को एक खास अंगूठी दी थी, जिस पर छोटे अक्षरों में ‘एस’ खुदा था। वह अंगूठी अनुपमा अपनी डायरी के एक खास हिस्से में रखती थीं। लेकिन जब उन्होंने डायरी खोली, तो अंगूठी वहां मौजूद नहीं थी।
उनका दिल जैसे एक लम्हे के लिए रुक गया। यह कैसे गायब हो सकती थी? क्या यह विवेक ने ली थी या कोई और इस घर में चुपके से आता-जाता था? अगले दिन शाम को अनुपमा ने विवेक को ड्राइंग रूम में बुलाया और सख्त लहजे में कहा, “विवेक, मेरी डायरी से एक अंगूठी गायब है। तुम्हें कुछ पता है?” विवेक ने पुरसकून आवाज में जवाब दिया, “मैम, मैंने कुछ नहीं लिया। लेकिन अगर आपकी कोई कीमती चीज गायब है तो बताइए, मैं ढूंढने में मदद करूंगा।”
उसकी आवाज में एक अजीब सी सच्चाई थी, लेकिन अनुपमा का शक कम नहीं हुआ। उसी रात अनुपमा के फोन पर एक अनजान नंबर से मैसेज आया, “अनुपमा, तुम बहुत सवाल पूछ रही हो। विवेक को छोड़ दो, वरना तुम्हारी कुर्सी और जान दोनों खतरे में आ जाएंगी।”
अनुपमा का चेहरा उड़ गया। यह धमकी थी, और इसमें विवेक का नाम साफ लिखा था। क्या विवेक वाकई कोई खतरा था या कोई और उन्हें डराने की कोशिश कर रहा था? उन्होंने तुरंत प्रिया को फोन किया और मैसेज के बारे में बताया। प्रिया ने कहा, “अनुपमा, मामला गंभीर है। मैं टीम भेजती हूं, तब तक तुम विवेक पर नजर रखो।”
लेकिन अनुपमा का ज़हन पूरी तरह उलझ चुका था। उनके सामने बार-बार आदित्य का चेहरा आ रहा था। क्या विवेक आदित्य ही तो नहीं? या यह उनका वहम था? अगले दिन अनुपमा ने बगीचे में विवेक को पौधों में पानी डालते देखा। उसके बाएं हाथ में एक पुरानी अंगूठी चमक रही थी, जिस पर कुछ खुदा था।
अनुपमा का दिल जोर से धड़क उठा। क्या यह वही अंगूठी थी? उन्होंने विवेक को आवाज दी, “यह अंगूठी कहां से मिली तुम्हें?” विवेक ने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा, “मैम, यह मेरी मां की थी। पुरानी याद है।”
उसकी आंखों में एक अनोखी चमक थी, जो अनुपमा के दिल की धड़कन तेज कर रही थी। अब अनुपमा का दिमाग पूरी तरह विवेक का राज खोलने में लग चुका था। वह जानना चाहती थीं कि यह लड़का आखिर कौन है और क्या इसका आदित्य की मौत से कोई ताल्लुक है? लेकिन वे जानती थीं कि एक गलत कदम उनकी जान ले सकता है।
उनकी पुलिस ट्रेनिंग उन्हें बार-बार खबरदार कर रही थी, “सावधान रहो।” लेकिन दिल का एक कोना अब भी विवेक की आंखों में आदित्य का अक्स ढूंढ़ रहा था।
अगली सुबह प्रिया ने विवेक की बैकग्राउंड पर शुरुआती रिपोर्ट दी। “विवेक का रिकॉर्ड साफ है, लेकिन एक अजीब बात है—इसका आधार कार्ड और बाकी कागजात सिर्फ दो साल पुराने हैं। इससे पहले का कोई रिकॉर्ड नहीं, जैसे वह अचानक कहीं से नमूदार हुआ हो।”
अनुपमा ने चुपचाप रिपोर्ट सुनी, लेकिन नजर मेज पर रखी पुरानी फाइल पर थी, जिसमें आदित्य की मौत से जुड़ी फाइल थी। उन्होंने धीरे से कहा, “प्रिया, यह फाइल मुझे दो। शायद कोई पहलू अब तक मेरी नजर से बचा हो।”
रात को जब अनुपमा बंगले वापस आईं, तो विवेक किचन में मशगूल था। उसने मुस्कुराकर कहा, “मैम, आज आपकी पसंद का राजमा चावल बनाया है।” अनुपमा के दिल की धड़कन तेज हो गई। राजमा चावल आदित्य की फेवरेट डिश थी। उन्होंने विवेक को गौर से देखा, मगर कुछ कहा नहीं।
खाने के दौरान उनकी छोटी बहन शानवी ने विवेक से पूछा, “तुम पहले कहां रहते थे? तुम्हारे परिवार के बारे में कुछ बताओ।” विवेक ने चम्मच नीचे रखा और धीमी आवाज में कहा, “कहानी कुछ खास नहीं। मैं एक छोटे से गांव का हूं। मां-बाप बचपन में ही चल बसे। अब बस अकेला हूं।”
उसकी आवाज में दबा हुआ दर्द था, लेकिन अनुपमा को लगा वह कुछ छुपा रहा है। उन्होंने बात वहीं खत्म कर दी, लेकिन दिल ही दिल में फैसला कर लिया कि वह विवेक की असल हकीकत तक जरूर पहुंचेंगी।
उसी रात अनुपमा ने आदित्य के केस की फाइल दोबारा खोली। उसमें लिखा था कि आदित्य एक हाई प्रोफाइल ऑपरेशन का हिस्सा थे, लेकिन उनका शव कभी नहीं मिला। पुलिस ने मान लिया था कि वह मर चुके हैं, मगर अनुपमा को हमेशा शक था कि आदित्य की मौत इतनी साधारण नहीं थी।
फाइल में एक और चौंकाने वाली बात थी—ऑपरेशन की रात वहां एक और शख्स भी मौजूद था, लेकिन उसका बयान अधूरा था, नाम दर्ज नहीं था, बस एक कोड नेम ‘शैडो’। अनुपमा का दिमाग झनझना उठा। क्या ‘शैडो’ विवेक हो सकता है? या वह इससे भी बड़ा कोई राज छुपा रहा है?
उन्होंने तुरंत प्रिया को फोन किया, “प्रिया, आदित्य के केस में जो ‘शैडो’ नाम का गवाह है, उसका पता लगाओ। मुझे उसकी हर डिटेल चाहिए।”
अगले दिन ऑफिस में प्रिया ने एक पुरानी तस्वीर भेजी, जो आदित्य के पुलिस ट्रेनिंग के दिनों की थी, जिसमें वह अपने साथियों के साथ खड़े थे। तस्वीर में एक चेहरा अनुपमा को चौंका गया—वो विवेक से मिलता-जुलता था।
अनुपमा के दिल की धड़कन तेज हो गई। क्या यह वाकई विवेक था या आंखों का धोखा? शाम को घर लौटकर उन्होंने विवेक को बगीचे में पानी देते देखा। वह करीब गई और तस्वीर दिखाते हुए बोली, “यह तुम हो?”
एक पल के लिए विवेक का चेहरा सख्त पड़ गया, फिर हल्का सा हंसा, “मैम, यह मैं नहीं हूं। शायद कोई और हो जो मुझसे मिलता-जुलता है।” लेकिन उसकी आंखों में एक खौफ की झलक थी, जो अनुपमा से छुपी नहीं रह सकी।
उसी रात अनुपमा के फोन पर एक अनजान नंबर से पैगाम आया, “अनुपमा, तुम बहुत करीब पहुंच रही हो। शैडो को छोड़ दो, वरना तुम्हारा बंगला तुम्हारी कब्र बन जाएगा।”
अनुपमा के जिस्म में सनसनी दौड़ गई। ‘शैडो’ वही नाम था जो फाइल में दर्ज था। अब सवाल था—विवेक और शैडो का रिश्ता क्या है? क्या विवेक दरअसल आदित्य ही तो नहीं?
ममता ने फौरन मीरा को बुलाया और उसे धमकी भरा मैसेज दिखाया। मीरा ने संजीदगी से कहा, “ममता, ये लोग तुम्हें डराना चाहते हैं। लेकिन अगर गोपाल वाकई शैडो है, तो वह कोई बड़ा राज छुपा रहा है। हमें उस पर दबाव डालना होगा।”
ममता ने आहिस्ता से जवाब दिया, “नहीं मीरा, अगर गोपाल दरअसल राहुल है तो मैं उसे डराना नहीं चाहती, और अगर वह कोई और है तो हमें पहले पक्का सबूत चाहिए।”
अगली सुबह ममता ने गोपाल को बंगले के लिविंग रूम में बुलाया। उसका लहजा सख्त था, “गोपाल, अब और छुपाने की जरूरत नहीं। साफ बताओ, तुम शैडो हो, है ना? और तुम राहुल को कैसे जानते हो?”
गोपाल ने एक लम्हा उसकी आंखों में देखा, फिर सर झुका कर बोला, “मैडम, आप गलत समझ रही हैं। मैं कोई शैडो नहीं, मैं बस आपका नौकर हूं।” लेकिन उसकी आवाज में हल्की सी कपकपाहट थी।
तभी बंगले का दरवाजा जोर से बजा। ममता ने जाकर दरवाजा खोला। सामने मीरा खड़ी थी, हाथ में एक फाइल लिए। उसने फाइल ममता को थमाई, “यह शैडो का रिकॉर्ड है, तुम्हें यह देखना होगा।”
ममता ने फाइल खोली और पहली तस्वीर देखते ही उसका दिल बैठ गया। यह गोपाल की तस्वीर थी। वह खामोश खड़ा था, आंखों में उदासी के साथ। ममता ने गहरी सांस ली, “गोपाल, अब और झूठ नहीं, तुम कौन हो? और राहुल के साथ क्या हुआ?”
गोपाल ने लंबी सांस ली और कहा, “मैडम, मैं आपको सब कुछ बताऊंगा, लेकिन पहले आपको मेरे साथ आना होगा।” उसने बंगले के पीछे स्थित पुराने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया।
ममता का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। क्या गोपाल वाकई राहुल था या यह सब एक जाल था? उसकी बातों में ऐसा राज छुपा था जो डर भी पैदा कर रहा था और राहुल की सच्चाई जानने की चाहत भी बढ़ा रहा था।
मीरा ने सख्त लहजे में कहा, “ममता, तुम अकेली मत जाना, मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।” लेकिन ममता ने हल्के से सर हिलाया, “नहीं मीरा, मुझे गोपाल पर भरोसा करना होगा। अगर वह सचमुच शैडो है तो शायद वह मुझे राहुल की सच्चाई बता सके।”
मीरा ने दिल ही दिल में ना चाहते हुए भी हामी भरी, लेकिन जाते-जाते अपनी पिस्तौल पर हाथ रखा और गोपाल को देखा, जिसके चेहरे पर अब खौफ नहीं बल्कि अजीब सा दर्द था।
ममता ने कहा, “चलो,” और गोपाल के पीछे-पीछे बंगले के पिछले हिस्से में स्थित पुराने स्टोर रूम की तरफ बढ़ी। स्टोर रूम की पुरानी लकड़ी की दीवारें और टूटी-फूटी खिड़कियां बरसों की वीरानी और इंतजार की कहानी सुनाती थीं।
गोपाल ने जंक खाया, ताला खोला और दरवाजा धकेलकर खोला। अंदर धूल, मिट्टी और सड़ांध की बदबू फैली हुई थी। उसने जेब से टॉर्च निकाली और अंदर की तरफ इशारा किया।
“मैडम, यहां एक पुराने लकड़ी के बक्से में आपकी सारी सच्चाई है।” ममता ने एहतियात से कदम बढ़ाए, एक हाथ अपनी सर्विस रिवाल्वर पर रखा हुआ था।
गोपाल ने बक्सा खोला। उसमें कुछ पुराने कागज, एक पुराना लैपटॉप और एक छोटा लॉक बॉक्स था। उसने लॉक बॉक्स ममता की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “यह खोलिए, इसमें आपकी सारी सच्चाई है।”
ममता ने हिचकिचाते हुए बॉक्स लिया। ताला पासवर्ड से बंद था। “पासवर्ड क्या है?” ममता ने पूछा।
गोपाल ने धीमी आवाज में कहा, “आप और राहुल की शादी की तारीख।” ममता का दिल जोर से धड़क उठा। कांपते हाथों से पासवर्ड डाला—15621। ताला खुल गया।
अंदर एक डायरी थी जिस पर राहुल का नाम लिखा था। ममता ने डायरी खोली। यह राहुल की अपनी हैंडराइटिंग थी। उसमें लिखा था कि वह एक बड़े ड्रग और हथियारों के रैकेट की जांच कर रहा था, जिसमें बड़े पुलिस अफसर और बिजनेस्मैन शामिल थे।
आखिरी पन्ने पर लिखा था, “अगर मुझे कुछ हुआ तो श्याम भवी को बताना कि मैंने हमेशा उससे प्यार किया। शैडो मेरी सच्चाई को बचाएगा।”
ममता की आंखें नम हो गईं। उसने गोपाल की तरफ देखा, जो चुपचाप खड़ा था। “गोपाल, तुम शैडो हो, है ना? और तुम राहुल को जानते थे, मगर यह सब पहले क्यों नहीं बताया?”
गोपाल ने गहरी सांस ली, “मैडम, मैं ही शैडो हूं। मैं राहुल का जूनियर था। उस रात जब गोदाम में धमाका हुआ, मैं वहां मौजूद था। राहुल ने मुझे अपने प्लान के बारे में बताया था। कहा था कि अगर उसे कुछ हो जाए तो मैं उसकी सच्चाई बचाऊं। लेकिन मैं उसे बचा ना सका।”
उसकी आवाज लरज रही थी। ममता ने डायरी को सीने से लगा लिया। “तो राहुल मर चुका है।” उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। गोपाल ने सर झुका लिया।
“मैडम, मुझे पता नहीं, उस रात के बाद राहुल का कोई निशान नहीं मिला। लेकिन मैंने सुना है कि रैकेट के लोग आज भी डरते हैं कि वह जिंदा हो सकता है। इसलिए मैं आपके पास आया, आपके बंगले में काम करने लगा ताकि आपकी हिफाजत कर सकूं।”
ममता का ज़हन उलझ गया। अगर गोपाल शैडो था तो शायद सच बोल रहा था, लेकिन उसकी आंखों में राहुल की परछाई और उस अंगूठी का राज अब भी अनसुलझा था।
तभी स्टोर रूम के बाहर से कांच टूटने की तेज आवाज आई। ममता और गोपाल ने फौरन अपनी रिवाल्वर निकाली। ममता ने गोपाल को पीछे रहने का इशारा किया।
बंगले के बगीचे में एक शख्स काले हुड में खड़ा था, हाथ में चमकता हुआ चाकू। मीरा ने अपनी पिस्तौल तानी, लेकिन वह शख्स अचानक धुएं के बादल में गायब हो गया।
ममता ने गुस्से से गोपाल की तरफ देखा, “यह क्या था? तुमने मुझे जाल में फंसाया है।”
गोपाल ने कहा, “मैडम, मुझ पर भरोसा करें। यह वही लोग हैं जिन्होंने राहुल को मारा। अब वे आपके पीछे हैं क्योंकि आपको डायरी मिल गई है।”
मीरा ने ममता का हाथ पकड़कर कहा, “ममता, अब रिस्क मत लो। यह डायरी मेरे पास रहेगी। मैं इसे हेडक्वार्टर ले जाऊंगी। तुम और गोपाल मेरे साथ चलो।”
ममता ने सख्त लहजे में जवाब दिया, “नहीं, अगर गोपाल सच बोल रहा है तो मुझे इस रैकेट का पर्दाफाश करना होगा।”
राहुल के लिए उसी रात ममता के फोन पर एक और अनजान मैसेज आया, “ममता, तुमने डायरी देख ली। अब तुम्हारा वक्त खत्म हो रहा है। कल रात 1 बजे पुराने गोदाम के पास अकेले आना।”
ममता का दिल गुस्से और दर्द से भर गया। यह वही गोदाम था जहां राहुल की मौत हुई थी। क्या यह सच का आखिरी मौका था या एक और जाल?
उसने मैसेज गोपाल को दिखाया। गोपाल ने गंभीर आवाज में कहा, “मैडम, यह लोग आपको खत्म करना चाहते हैं। लेकिन अगर आप जाना चाहती हैं, तो मैं आपके साथ चलूंगा।”
ममता ने उसकी आंखों में देखा, उनमें राहुल जैसा ही जुनून था। उसने सर हिलाया, “ठीक है, गोपाल। लेकिन अगर तुमने मुझे धोखा दिया तो…”
उसने जुमला अधूरा छोड़कर आगे बढ़ गई।
उस रात, पुराने गोदाम के पास, बारिश की हल्की बूंदें चेहरे पर पड़ रही थीं, और फिजा में खामोश डरावनी सनसनी थी। गोदाम का सन्नाटा सांस-सांस गूंज रहा था।
ममता ने अपनी सर्विस रिवाल्वर कमर में अड़ा रखी थी, और गोपाल के पास छोटा चाकू था। टूटे-फूटे गेट के करीब पहुंचते ही ममता ने धीमी आवाज में कहा, “अगर यह जाल है, तो तुम्हें इसका हिसाब देना होगा।”
गोपाल ने गंभीर नजरों से कहा, “मैडम, मैं आपके साथ हूं। चाहे जो हो जाए, मैं आपको कुछ नहीं होने दूंगा।”
गोदाम के अंदर पूरा अंधेरा था, बस एक कोने में टिमटिमाती लालटेन की मध्यम रोशनी थी। ममता और गोपाल धीरे-धीरे उस तरफ बढ़े।
अचानक एक ठंडी, भारी आवाज गूंजी, “ममता चौहान, तुम बहुत जिद्दी हो।” साए में से एक लंबा आदमी निकला, चेहरे पर काला मास्क, उसके पीछे दो और आदमी बंदूकें लिए।
ममता ने रिवाल्वर निकाली, “तुम कौन हो और राहुल के साथ क्या हुआ?”
मास्क वाले ने कर्कश हंसी के साथ कहा, “राहुल एक गलती था जो हमारे रास्ते में आ गया। अब तुम वही गलती दोहरा रही हो।” उसने जेब से एक छोटा डिवाइस निकाला, “इसमें वह सारा डाटा है जो राहुल ने चुराया था—ड्रग्स, हथियार और हमारे सारे इंपेशंस। अब यह डाटा वापस हमारे पास है, और तुम बस एक कहानी बनकर रह जाओगी।”
ममता का खून खौल उठा। उसने गोपाल की तरफ देखा, जो चुपचाप मास्क वाले को घूर रहा था। अचानक गोपाल ने चाकू पूरी ताकत से फेंका। चाकू मास्क वाले के हाथ में जा लगा, डिवाइस जमीन पर गिर गया।
मास्क वाला दर्द से चीखा, उसके दोनों साथी बंदूक ताने ममता की तरफ बढ़े। लेकिन इससे पहले कि वे कुछ कर पाते, बाहर से गोदाम पर छापा पड़ा। गोलियां चलीं। शोर और धमाकों के बीच चंद मिनटों में मास्क वाले के दोनों साथी गिर चुके थे।
मास्क वाला भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन गोपाल ने लपक कर उसे दबोच लिया। ममता ने आगे बढ़कर उसका मास्क उतारा।
सामने था विक्रम सिंह, एक रिटायर्ड डीआईजी और राहुल का पूर्व सीनियर। ममता के चेहरे पर हैरत और गुस्सा था। विक्रम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “ममता, तुम और राहुल दोनों बहुत जिद्दी थे। मैंने उसे चेतावनी दी थी, अली ने भी दी, लेकिन तुम दोनों बाज़ नहीं आए।”
विक्रम जमीन पर पड़ा डिवाइस उठाने के लिए झुका, लेकिन ममता ने तुरंत लात मारकर उसे दूर फेंक दिया।
गोपाल ने सबकी तरफ देखा, “मैडम, अब वक्त आ गया है।” उसने जेब से छोटा पेंडेंट निकाला।
ममता की सांस थम गई। यह वही पेंडेंट था जो उसने राहुल को उनकी पहली सालगिरह पर तोहफे में दिया था।
ममता की आंखें फैल गईं, “गोपाल, तुम राहुल हो?”
गोपाल यानी राहुल की मां ने धीरे से सिर हिलाया, “हां, मैं राहुल हूं। उस रात गोदाम में मैं बच गया था, लेकिन जानता था कि अगर मैं सामने आया तो वे तुम्हें निशाना बनाएंगे। इसलिए मैंने अपनी मौत का नाटक रचा और शैडो बनकर उस रैकेट को ट्रैक करता रहा। गोपाल के रूप में मैं तुम्हारे पास आया ताकि तुम सुरक्षित रहो।”
ममता की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने कांपते हाथों से राहुल को गले लगाया, “तुमने मुझे अकेला क्यों छोड़ा? मैंने हर दिन तुम्हें मरता हुआ देखा।”
राहुल ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता था, ममता।”
अब वे साथ थे।
टीम ने विक्रम को हथकड़ियां पहना दीं। डिवाइस में मौजूद डाटा ने पूरे रैकेट का पर्दाफाश कर दिया। विक्रम के साथ कई बड़े बिजनेसमैन और पुलिस अफसर गिरफ्तार हुए।
राहुल और टीम ने मिलकर डाटा जनता के सामने लाया और रैकेट पूरी तरह तबाह हो गया।
कुछ महीनों बाद ममता और राहुल एक पुराने बंगले में फिर साथ थे। ममता ने एसपी की कुर्सी छोड़ दी थी और दोनों ने मिलकर एक एनजीओ बना ली थी जो भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ जागरूकता फैलाती थी।
एक सुबह बंगले के बगीचे में बैठे ममता ने राहुल को एक कप चाय थमाई और हंसते हुए कहा, “तुम्हारी चाय अब भी मेरे दिल को छू जाती है।”
यह कहानी है साहस, सच्चाई और प्यार की, जो अंधकार में भी उजाला फैलाती है।
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