लड़के ने एक अनजान महिला को दवाई देकर जान बचाई थी , फिर उस महिला का राज सामने आया जिसने चौंका दिया

पटना के गंगा किनारे की कहानी: रामू की एक नेकी का चमत्कार

पटना के गंगा किनारे बसे गांवों और धूल भरी पगडंडियों के बीच, जहां खेतों की हरियाली और मेहनत की खुशबू हवा में घुलती थी, वहीं एक साधारण किसान रामू अपनी जिंदगी को मेहनत और सच्चाई से जोड़ रहा था। रामू का दिल गांव वालों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता। दिन-रात खेतों में मेहनत करता और अपने छोटे से परिवार का पेट पालता। उसका सपना था अपनी मां लक्ष्मी की बीमारी का इलाज करवाना और अपने बच्चों बिटू और गुड़िया को शहर में पढ़ाना।

रामू का परिवार मझौली गांव के एक मिट्टी के घर में रहता था। मां लक्ष्मी, पत्नी गीता, आठ साल का बेटा बिटू और छह साल की बेटी गुड़िया। लक्ष्मी को कई सालों से जोड़ो का दर्द था और दवाइयां इतनी महंगी थीं कि रामू की सारी कमाई उसमें चली जाती। गीता घर संभालती और खेतों में भी रामू का हाथ बंटाती। रामू का सपना था कि उसके बच्चे शहर के स्कूल में पढ़ें ताकि वे उसकी तरह खेतों में न फंसे। पर खेती की कमाई इतनी कम थी कि बच्चों की फीस का खर्च उठाना मुश्किल था। फिर भी रामू हमेशा कहता, “जब तक मेरे पास खेत हैं, मेरे बच्चे भूखे नहीं रहेंगे।”

बारिश भरी एक शाम की शुरुआत

अगस्त की एक बारिश भरी शाम थी। मझौली की पगडंडियां कीचड़ से सनी थीं और गंगा की लहरें तेजी से बह रही थीं। रामू अपने खेत से लौट रहा था, तभी उसने अपने घर के पास एक बूढ़ी औरत को देखा। उम्र करीब सत्तर साल, साड़ी भीगी हुई, दर्द से कराहती, एक पेड़ के नीचे बैठी थी। उसके हाथ में एक पुराना थैला था और चेहरा पीड़ा से सिकुड़ा हुआ।

“माई, आप ठीक हैं? क्या हुआ?” रामू ने पास जाकर पूछा।

बूढ़ी औरत ने कमजोर आवाज में कहा, “बेटा, मेरा घुटना बहुत दर्द कर रहा है। मैं गांव जा रही थी, मगर रास्ते में गिर गई।”

रामू का दिल पसीज गया, “माई, आप चल नहीं पाएंगी, मेरे घर चलिए। मैं आपको चाय पिलाता हूं।”

बूढ़ी औरत ने हिचकते हुए कहा, “बेटा, मैं अनजान हूं, तुझे तकलीफ होगी।”

रामू ने मुस्कुराकर कहा, “माई, गांव में कोई अनजान नहीं होता। चलिए।”

रामू ने बूढ़ी औरत को सहारा दिया और अपने घर ले गया। गीता ने उसे सूखी साड़ी दी और चाय बनाई। रामू ने मां की दवाइयों का डिब्बा निकाला, उसमें कुछ गोलियां थीं जो लक्ष्मी के जोड़ो के दर्द के लिए थीं। उसने दो गोलियां बूढ़ी को दी, “माई, यह मेरी मां की दवा है, इसे खा लीजिए, दर्द कम होगा।”

बूढ़ी ने गोलियां ली, चाय पी, आंखें नम हो गईं, “बेटा, तूने अपनी मां की दवा दे दी, यह तो कीमती होगी।”

रामू ने हंसकर कहा, “माई, आपका दर्द कम हो, यही मेरे लिए कीमती है।”

गीता ने कहा, “माई, आप आज रात यहीं रुक जाइए, बारिश तेज है।”
रात को लक्ष्मी ने बूढ़ी के साथ अपनी चारपाई बांटी, बिटू-गुड़िया ने उसे कहानियां सुनाईं। बूढ़ी ने रामू की ओर देखकर कहा, “बेटा, तेरा दिल सोने का है, मेरा आशीर्वाद तुझ पर हमेशा रहेगा।”

अगली सुबह का चमत्कार

अगली सुबह बूढ़ी ने अपना थैला उठाया और सुल्तानपुर की ओर चल दी। रामू ने उसे कुछ रोटियां और सब्जी दीं, “माई, यह रख लीजिए, रास्ते में भूख लगेगी।”
बूढ़ी ने उसका माथा चूमा, “बेटा, तूने मुझे जिंदगी दी, मैं तेरा एहसान नहीं भूलूंगी।”
रामू ने मुस्कुराकर कहा, “माई, आप ठीक रहें, यही मेरे लिए काफी है।”

उस दिन रामू खेत पर चला गया। गीता ने चिंता जताई, “रामू, तूने मां की दवाइयां दे दीं, अब मां को दवा कहां से लाएंगे?”
रामू ने हंसकर कहा, “गीता, भगवान ने देखा है, वो सब ठीक करेगा।”

रहस्यमयी चिट्ठी

अगले दिन दोपहर को रामू के घर एक साइकिल सवार आया, “रामू भाई, यह चिट्ठी सुल्तानपुर से आई है, कोई बूढ़ी माई ने भेजी है।”
रामू ने चिट्ठी खोली, उसमें लिखा था—

“रामू, मैं सुल्तानपुर की विमला माई हूं। तूने मेरी जान बचाई। मगर मेरी सच्चाई तुझसे छिपी है। कृपया मेरे घर आ, तेरा इंतजार है।”

रामू का मन बेचैन हो गया। विमला माई की सच्चाई क्या थी और उसका आशीर्वाद उसकी जिंदगी को कैसे बदलने वाला था? रामू ने गीता से कहा, “मुझे जाना होगा।”

अगली सुबह रामू सुल्तानपुर के लिए निकला। बारिश रुक चुकी थी, मगर हवा में ठंडक थी। सुल्तानपुर मंजौली से कुछ मील दूर गंगा के दूसरे किनारे बसा था। रामू ने अपनी पुरानी साइकिल उठाई और पगडंडियों पर चल पड़ा।

सुल्तानपुर में विमला माई का सच

सुल्तानपुर पहुंचते-पहुंचते दोपहर हो गई। गांव के बाहर पुराने बरगद के पास एक मिट्टी का घर था। रामू ने दरवाजा खटखटाया। विमला माई बाहर आई। उसका चेहरा अब शांत था, मगर आंखों में गहरी उदासी थी।

“रामू, तू आ गया।”
रामू अंदर गया। घर सादा था, एक चारपाई, कुछ बर्तन और दीवार पर एक पुरानी तस्वीर—एक जवान औरत और एक छोटा लड़का।

विमला माई ने कहना शुरू किया, “रामू, तूने मेरी जान बचाई, उस रात अगर तू मुझे दवा न देता तो मैं शायद न बचती। मगर मैंने तुझसे अपनी सच्चाई छिपाई।”

“क्या सच्चाई, माई?”
“बेटा, बीस साल पहले मैंने अपने बेटे को खो दिया। वह सिर्फ दस साल का था, नाम था श्याम। वह बीमार था, मेरे पास दवा के पैसे नहीं थे। एक रात वह दर्द से तड़प रहा था, गांव वालों से मदद मांगी, किसी ने नहीं सुनी। सुबह तक वह मुझे छोड़ गया। उसके बाद मैंने गांव छोड़ दिया, अकेली रहने लगी। मगर उस रात जब तूने मुझे अपनी मां की दवा दी, मुझे लगा कि श्याम ने मुझे माफ कर दिया। तूने मुझे जिंदगी दी।”

रामू की आंखें भर आईं, “माई, मैंने तो बस वही किया जो सही था।”

विमला माई ने एक पुराना संदूक खोला, उसमें कुछ कागज और एक छोटा सा पोटली थी, “रामू, मेरे पास थोड़ी सी जमीन थी जो मैंने श्याम के लिए बचाई थी। मैं चाहती हूं कि तू उसे ले ले, उस पर अपने बच्चों के लिए स्कूल बना।”

रामू का गला रुंध गया, “माई, यह मैं कैसे ले सकता हूं?”

“बेटा, यह मेरा आशीर्वाद है। और एक बात, मैं चाहती हूं कि तू मेरा बेटा बन जा। मेरा कोई नहीं है।”

संकट और संघर्ष

तभी बाहर से आवाज आई, “विमला माई, तूने मुझे बुलाया?”
एक अधेड़ उम्र का आदमी अंदर आया, “रामू, तूने मेरी बहन की जान बचाई, मगर तुझे एक बात बतानी है। विमला की जमीन पर गांव के कुछ लोग नजर लगाए हैं, अगर तूने इसे लिया तो मुसीबत आ सकती है।”

विमला माई ने सख्ती से कहा, “हरी, मैंने फैसला कर लिया, यह जमीन रामू की है और मैं चाहती हूं कि वह इसे स्कूल बनाए।”

रामू का मन उलझ गया—वह जमीन ले या न ले? विमला माई ने उसका कंधा थपथपाया, “बेटा, तू डर मत, श्याम का आशीर्वाद तुझ पर है।”

सपनों की शुरुआत

अगले कुछ हफ्तों में रामू ने विमला माई की जमीन पर गांव वालों की मदद से एक छोटा सा स्कूल बनाना शुरू किया। लक्ष्मी का इलाज भी शुरू हो गया और डॉक्टरों ने कहा कि वह जल्द ठीक हो जाएगी। बिटू और गुड़िया अब पटना के एक स्कूल में पढ़ने लगे, जिसका खर्च हरी ने उठाया।

मगर गांव के कुछ लोग जो जमीन पर नजर रखे थे, रामू को धमकियां देने लगे। एक रात स्कूल की दीवार पर किसी ने लिख दिया, “जमीन छोड़ दो वरना अंजाम बुरा होगा।” रामू डगमगाया, मगर विमला माई ने हिम्मत दी, “यह जमीन श्याम की अमानत है, तू हार मत मान।”

एक दिन हरी ने रामू को एक पुराना कागज दिखाया, “यह विमला की मां का वसीयतनामा है, इसमें लिखा है कि यह जमीन सिर्फ उस इंसान को मिलेगी जो नेकी का काम करेगा। तूने विमला की जान बचाई, यह जमीन तेरा हक है।”

रामू ने साहस जुटाया, सरपंच को बुलाया, वसीयतनामा दिखाया। धीरे-धीरे धमकियां कम हो गईं। स्कूल बनकर तैयार हुआ और उसका नाम रखा गया—श्याम का आलोक

आखिरी मोड़ और संदेश

उद्घाटन के दिन विमला माई ने मंच पर रामू को बुलाया, “यह रामू है जिसने एक अनजान औरत को दवा दी और आज सैकड़ों बच्चों को नया भविष्य दे रहा है।”
रामू ने माइक पकड़ा, “मैंने सिर्फ एक दवा दी थी, मगर विमला माई का आशीर्वाद मेरे लिए चमत्कार बन गया। यह मेरी नहीं, मेरे बिटू, गुड़िया और श्याम की जीत है।”
विमला माई ने उसे गले लगाया, “बेटा, तूने मुझे मेरा श्याम लौटा दिया।”

रामू की नेकी ने न सिर्फ उसका सपना पूरा किया, बल्कि विमला माई के टूटे दिल को भी जोड़ा। स्कूल में बच्चे पढ़ने लगे और रामू का परिवार अब विमला माई के साथ रहने लगा।

एक बारिश भरी शाम, जब रामू स्कूल बंद कर रहा था, एक और बूढ़ा आदमी उसके पास आया, “बेटा, मेरी बेटी बीमार है, क्या तू मेरे साथ चल सकता है?”
रामू ने मुस्कुरा कर अपनी साइकिल उठाई, “चलो बाबा, मैं तुम्हें अस्पताल पहुंचा दूं।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि एक छोटी सी नेकी, एक दवा का दान, न सिर्फ जिंदगी बचा सकता है, बल्कि एक चमत्कार बनकर सपनों को हकीकत में बदल सकता है। रामू ने सिर्फ एक बूढ़ी औरत को दवा दी, मगर उसका आशीर्वाद मझौली की पगडंडियों से होते हुए सैकड़ों बच्चों के भविष्य तक पहुंच गया।

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समाप्त।