बेघर बूढ़ी औरत ने कचरे से दो बच्चियों को उठाकर पाला – 15 साल बाद पूरे गाँव को झटका लगा

एक ठंडी बरसाती रात में, रामगढ़ गांव के बाहर, लक्ष्मी नाम की एक गरीब बुढ़िया अपनी पुरानी ठेला गाड़ी लेकर कचरे के ढेर पर बोतलें और लोहे के टुकड़े बीनने गई थी। बारिश की तेज बूंदें उसके फटे हुए रेनकोट पर पड़ रही थीं। अंधेरी रात में, जब वह कचरे के ढेर तक पहुंची, तो उसे अचानक एक कमजोर सी रोने की आवाज सुनाई दी। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, लेकिन आवाज इतनी दर्द भरी थी कि उसका दिल पसीज गया।

.

.

.

उसने टॉर्च की रोशनी में कचरे के ढेर को देखा। वहां, पानी से भीगी हुई एक बांस की टोकरी में दो नन्ही बच्चियां पड़ी थीं। बड़ी बच्ची लगभग तीन साल की थी, जो अपनी छोटी बहन को कसकर पकड़े हुए थी। छोटी बच्ची, जो मुश्किल से एक साल की थी, ठंड और भूख से कांप रही थी। उनके कपड़े पूरी तरह से भीगे हुए थे, और उनके होठ ठंड से नीले पड़ गए थे। टोकरी के पास एक गीला कागज पड़ा था, जिस पर लिखा था: “कृपया मेरी बच्चियों को बचा लीजिए।”

लक्ष्मी का दिल दर्द और ममता से भर गया। उसने सोचा, “कोई अपनी बच्चियों को ऐसे कैसे छोड़ सकता है?” उसने दोनों बच्चियों को अपनी ठेला गाड़ी में रखा। उन्हें बारिश से बचाने के लिए एक सूखा गत्ता ऊपर से ढंक दिया और उन्हें अपनी फूस की झोपड़ी में ले आई।

नई जिम्मेदारी: आशा और तारा

लक्ष्मी ने बड़ी बच्ची को आशा नाम दिया, क्योंकि उसकी आंखों में उम्मीद की चमक थी। छोटी बच्ची को उसने तारा नाम दिया, जो एक चमकते तारे की तरह थी। लक्ष्मी ने उन्हें अपनी पोतियां मान लिया और उनकी देखभाल करने का फैसला किया।

हालांकि, गांव वाले लक्ष्मी के इस फैसले से खुश नहीं थे। वे उसे ताने देते थे। मीना, चाय की दुकान वाली, कहती थी, “लक्ष्मी ने बच्चियों को किसी फायदे के लिए उठाया है।” लेकिन लक्ष्मी ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी पूरी ताकत से आशा और तारा की देखभाल की।

गांव वालों का विरोध

गांव में अफवाहें फैलने लगीं। लोग कहते थे कि लक्ष्मी ने बच्चियों को पुलिस को नहीं बताया और उन्हें अपने पास रख लिया। हरपाल, जो गांव का बढ़ई था, लक्ष्मी को चेतावनी देता था कि अगर उसने बच्चियों को पुलिस को नहीं सौंपा, तो उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

लक्ष्मी डर गई, लेकिन उसने ठान लिया कि वह किसी भी कीमत पर आशा और तारा को अपने पास रखेगी। वह दिन-रात मेहनत करती थी, कबाड़ बीनती थी, ताकि बच्चियों को खाना और दवा दे सके।

पुलिस का हस्तक्षेप

एक दिन, इंस्पेक्टर विक्रम और कांस्टेबल शर्मा लक्ष्मी के घर आए। उन्होंने कहा, “लक्ष्मी जी, आपको बच्चियों को बाल संरक्षण केंद्र में भेजना होगा। आप उनकी देखभाल के लिए उपयुक्त नहीं हैं।” लक्ष्मी ने उन्हें विनती की, “साहब, ये बच्चियां मेरी जिंदगी हैं। मैंने इन्हें ठंड और भूख से बचाया है। कृपया इन्हें मुझसे दूर मत कीजिए।”

लेकिन कानून के अनुसार, लक्ष्मी को बच्चियों को रखने का अधिकार नहीं था। पुलिस ने उसे चेतावनी दी कि अगर वह बच्चियों के परिवार वालों को नहीं ढूंढ पाई, तो आशा और तारा को बाल संरक्षण केंद्र भेज दिया जाएगा।

असली मां की वापसी

एक दिन, जब लक्ष्मी अपनी झोपड़ी में बैठी थी, दरवाजे पर दस्तक हुई। बाहर एक जवान औरत खड़ी थी। उसने हिचकिचाते हुए कहा, “मैं पूजा हूं, आशा और तारा की मां।” लक्ष्मी चौंक गई। पूजा ने बताया कि उसने बच्चियों को कचरे के ढेर पर इसलिए छोड़ा था क्योंकि वह कर्ज में डूबी हुई थी और उसके ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया था।

पूजा ने कहा, “अब मेरे पास नौकरी है। मैं अपनी बच्चियों को वापस ले जाना चाहती हूं।”

यह सुनकर आशा चिल्लाई, “नहीं! मैं अपनी दादी के साथ रहना चाहती हूं। दादी ने हमें पाला है। दादी ही हमारी मां हैं।” तारा भी रोने लगी और लक्ष्मी से लिपट गई।

कस्टडी की लड़ाई

पूजा ने पंचायत में बच्चियों की कस्टडी के लिए आवेदन दिया। लेकिन लक्ष्मी ने भी अपनी बात रखी। उसने कहा, “मैंने इन बच्चियों को ठंड और भूख से बचाया है। वे मेरी जिंदगी हैं। कृपया मुझे उनसे दूर मत कीजिए।”

गांव वालों ने लक्ष्मी का समर्थन किया। उन्होंने एक याचिका तैयार की, जिसमें 100 से ज्यादा लोगों ने हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा, “लक्ष्मी ने इन बच्चियों को एक घर और परिवार दिया है। वह उनकी असली मां है।”

एक अनोखा फैसला

पूजा ने अंत में फैसला किया कि वह लक्ष्मी और बच्चियों के साथ रहकर उन्हें एक परिवार देगी। उसने कहा, “लक्ष्मी अम्मा, आप इन बच्चियों की मां हैं। मैं आपके साथ रहूंगी और उन्हें पालने में आपकी मदद करूंगी।”

लक्ष्मी, आशा, तारा और पूजा अब एक परिवार बन गए। गांव वालों ने उनके लिए एक नया घर बनाया। आशा ने पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और जापान में छात्रवृत्ति पर गई। तारा एक एथलीट बन गई और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीता।

प्रेरणा की कहानी

लक्ष्मी की कहानी पूरे देश में फैल गई। उसकी मेहनत, प्यार और बलिदान ने हजारों लोगों को प्रेरित किया। बांस की टोकरी प्रेम छात्रवृत्ति शुरू की गई, जो मुश्किल में पड़े बच्चों की मदद करती थी।

लक्ष्मी ने अपने जीवन में जो प्यार और बलिदान दिया, वह यह सिखाता है कि एक परिवार बनाने के लिए खून का रिश्ता जरूरी नहीं है, बस प्यार और विश्वास चाहिए।