नेता ने गरीब को मारी लात, फिर रिपोर्टर ने किया ऐसा खुलासा कि सब हैरान रह गए
शहर की गर्म दोपहर, ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ियों की लंबी लाइन लगी थी। धूप में सड़क चमक रही थी, लोग बेचैन थे और लगातार हॉर्न बज रहे थे। इसी शोरगुल के बीच फुटपाथ से एक दुबला-पतला आदमी सड़क पर उतरा। उसके कपड़े फटे हुए थे, पांव नंगे, हाथ में जंग लगा कटोरा। लोग उसे देखकर नजरें फेर लेते थे, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी।
वह लड़खड़ाते कदमों से एक चमचमाती काली एसयूवी के पास पहुंचा। गाड़ी में सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, माथे पर तिलक और काले चश्मे में शहर का सबसे ताकतवर नेता बैठा था। भिखारी ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब भूखा हूं, कुछ मदद कर दीजिए।” नेता ने शीशा नीचे किया, जेब से ₹100 का नोट निकाला और कटोरे में डाल दिया। भीड़ की ओर देखकर मुस्कुराया, “गरीबों की मदद करना ही मेरा धर्म है।”
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पास खड़े लोग तालियां बजाने लगे, समर्थक नारे लगाने लगे। लेकिन तभी भिखारी ने धीमी मगर साफ आवाज में कहा, “साहब, ₹100 से क्या होगा? आप बड़े आदमी हैं, 500 दीजिए। मेरे बच्चे भी भूखे हैं।” भीड़ अचानक चुप हो गई, ट्रैफिक का शोर भी जैसे ठहर गया। नेता का चेहरा गुस्से से लाल पड़ गया। उसने चीखते हुए कहा, “नालायक! ₹100 भी बहुत हैं तेरे जैसे कंगाल के लिए। एहसान मानना चाहिए और तू मुझसे और मांगेगा?” नेता ने खिड़की से हाथ बाहर निकालकर भिखारी को जोर से धक्का दिया। आदमी सड़क पर गिर पड़ा।
नेता गाड़ी से उतरा और पैर से ठोकर मारते हुए चिल्लाया, “दफा हो जा वरना कुचल दूंगा!” भीड़ खामोश रही, कुछ के चेहरे पर डर था, कुछ ने निगाहें फेर ली। यही नेता चुनाव के वक्त गरीबों की बस्ती में जाकर खाना खिलाता था, कैमरे के सामने बूढ़ी औरतों के पांव छूता, बच्चों को स्कूल बैग बांटता और खुद को गरीबों का मसीहा कहता। लेकिन सड़क पर उसका असली चेहरा सामने आया।
नेता को यकीन था कि कोई उसकी असलियत सामने नहीं ला पाएगा। लेकिन किस्मत ने उस दिन उसका खेल पलट दिया। सड़क पर गिरा आदमी धीरे-धीरे उठा, अपने कपड़ों से धूल झाड़ी और जेब से माइक निकाल लिया। भीड़ दंग रह गई। तभी भीड़ में से एक और आदमी निकला, उसके हाथ में कैमरा था। कैमरा ऑन होते ही भिखारी ने नकली दाढ़ी उतारी, मेकअप हटाया और असली चेहरा सामने आया। लोग फुसफुसाने लगे, “अरे, यह तो वही टीवी चैनल वाला रिपोर्टर है!”
रिपोर्टर ने कैमरे की ओर देखा और ऊंची आवाज में बोला, “आप सब ने देखा, यही है हमारे नेता का असली चेहरा। मंच पर गरीबों की सेवा का ढोंग और सड़क पर गरीब को इंसान समझने की भी इज्जत नहीं।” भीड़ से आवाजें उठीं, “शर्म करो नेता जी, हमें ऐसे नेता नहीं चाहिए!” नेता घबरा गया, गार्ड्स को इशारा किया, हकलाते हुए बोला, “यह सब साजिश है, मैंने तो दया करके पैसे दिए थे।”
लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। हर कोई मोबाइल निकालकर वीडियो रिकॉर्ड कर रहा था। कुछ ही घंटों में वह क्लिप सोशल मीडिया पर फैल गई। Twitter, Facebook, YouTube पर हैशटग ट्रेंड करने लगा—’गरीब का अपमान, नेता बेनकाब’। टीवी चैनल ने रात को स्पेशल रिपोर्ट चलाई। अगली सुबह अखबारों की हेडलाइन थी—’भिखारी बनकर रिपोर्टर ने खोला राज, गरीब का अपमान करने वाला नेता बेनकाब’।
पार्टी में हड़कंप मच गया। विरोधी नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उसे घेर लिया। जनता उसके घर के बाहर नारे लगाने लगी। रिपोर्टर ने कैमरे के सामने खड़े होकर कहा, “झूठ का नकाब चाहे कितना भी चमकदार क्यों ना हो, सच एक दिन सामने आ ही जाता है।” नेता का सिर झुक गया, भीड़ का गुस्सा बढ़ता गया। जो आदमी कल तक मंचों पर ताली बटोर रहा था, वह आज सड़कों पर लोगों के तानों से बचने की कोशिश कर रहा था।
यह कहानी बताती है कि असली इंसानियत दिखावे में नहीं, व्यवहार में होती है। अगर आपको यह लेख पसंद आया, तो शेयर जरूर करें।
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