अंतिम ख्वाहिश: जेल की दीवारों के पार

भाग 1: जेल की सर्द रातें और इंस्पेक्टर रागिनी

दिल्ली की उस पुरानी जेल की दीवारें, जिन पर वक्त की गर्द जमी थी, हर रात अपने भीतर हजारों कहानियां छुपाए रहती थीं। उन दीवारों के बीच, इंस्पेक्टर रागिनी कपूर की जिंदगी भी एक कहानी बन चुकी थी। रागिनी, 25 साल की युवा महिला इंस्पेक्टर, जिसने अपने करियर की शुरुआत ही मुश्किल केसों से की थी। अदालतों, थानों और जेल के गलियारों में उसका अधिकतर वक्त बीतता था।

पुलिस की नौकरी ने उसे सख्त बना दिया था। लेकिन कभी-कभी कोई चेहरा, कोई किस्सा दिल की कठोरता को पिघला देता था। ऐसा ही एक चेहरा था कैदी नंबर 719—अरुण वर्मा। वह महज 19 साल का था, लेकिन उसकी आंखों में एक गहरी उदासी थी। वह कम बोलता, उसके चेहरे पर सुकून था, जैसे वह सब कुछ जानता हो लेकिन कहता कुछ नहीं।

रागिनी ने कई बार सोचा, क्या यह लड़का वाकई मुजरिम है या हालात का शिकार? वह अकसर जेल के दस्तावेज़ पलटती, अरुण की फाइल पढ़ती, मगर उसमें कोई ऐसी बात नहीं थी जो उसे पूरी तरह मुजरिम साबित करती। अरुण की खामोशी में कोई राज छुपा था।

भाग 2: आखिरी इच्छा और जेल में सनसनी

एक दिन जेल के सुपरिंटेंडेंट ने रागिनी को बुलाया। “रागिनी, कैदी नंबर 719 को दो दिन बाद फांसी दी जाएगी। उसकी आखिरी ख्वाहिश पूछो।”

जेल के माहौल में सख्ती आम थी, मगर उस दिन एक अजीब सी उदासी थी। सजा-ए-मौत पाने वाले हर कैदी को आखिरी ख्वाहिश जाहिर करने का हक होता है—कोई खास खाना, मुलाकात या कोई और तमन्ना।

रागिनी ने अरुण से पूछा, “तुम्हारी कोई आखिरी ख्वाहिश है?” अरुण ने उसकी तरफ देखा, फिर बोला, “मैं जिंदगी में पहली और आखिरी बार शादी करना चाहता हूं। अपनी बीवी के साथ एक रात गुजारना चाहता हूं।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। सुपरिंटेंडेंट, एसपी साहब और बाकी अफसर हैरत से एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। एसपी साहब बोले, “शादी तो करवा सकते हैं, मगर कौन लड़की तुमसे शादी करेगी जब सब जानते हैं कि तुम्हें दो दिन बाद फांसी दी जाएगी?”

अरुण ने खामोशी से कहा, “मेरी यही ख्वाहिश है। आप अंबिक नगर के मंदिर में ऐलान करवा दें कि कैदी अरुण सिंह अपनी सजा-ए-मौत से पहले एक दिन के लिए शादी करना चाहता है। किसी ऐसी औरत से जो अपनी मर्जी से उसकी दुल्हन बने।”

हम सबको यकीन था—कोई नहीं आएगा। मगर ऐलान के एक घंटे बाद एक सिपाही हाफता हुआ रागिनी के ऑफिस में आया, “मैडम, जेल के दरवाजे पर एक लड़की दुल्हन के लिबास में खड़ी है। उसके साथ एक पुजारी जी भी हैं।”

भाग 3: प्रिया—दुल्हन की दास्तान

रागिनी, एसपी साहब और सुपरिंटेंडेंट बाहर निकले तो सामने एक नाजुक सी लड़की, उम्र करीब 17-18 साल, लाल जोड़े में खड़ी थी। चेहरे पर सुकून और अज्म। उसके साथ एक बुजुर्ग पुजारी हाथ में शादी का रजिस्टर लिए खड़े थे।

एसपी साहब ने पूछा, “यह लड़की कौन है?” पुजारी बोले, “यह खुद मेरे पास आई थी। कहती है कि अरुण सिंह से शादी करना चाहती है। मैंने लाख समझाया, मगर वह ना मानी। कहने लगी, यह मेरा फैसला है। मैं उसे सच्ची मोहब्बत करती हूं।”

जेल के आंगन में सन्नाटा छा गया। कानून के मुताबिक कैदी की आखिरी ख्वाहिश पूरी करनी थी। शादी की रस्में पूरी हुईं। अरुण ने मुस्कुराकर कहा, “अब आप वादे के मुताबिक मेरी दुल्हन को मेरे पास भेज दें। मैं उससे कुछ बातें करना चाहता हूं। बस एक रात की बात है।”

रागिनी ने दुल्हन को अरुण के सेल तक पहुंचाया। दरवाजा बंद किया और बाहर आ गई। सोचा, कुछ देर बाद वह खुद ही बाहर आ जाएगी। मगर वक्त गुजरता गया, अंदर से हल्की-हल्की सरगोशियों की आवाजें आती रहीं। रात गहरी होती गई। अचानक जेल की फिजा एक चीख से गूंज उठी।

रागिनी दौड़ती हुई अरुण के सेल की तरफ पहुंची। दरवाजा खोला—वह लड़की दुल्हन के लिबास में खड़ी थी, घूंघट नीचे, सांसे बेतरतीब, पूरा बदन कांप रहा था। रागिनी ने पूछा, “क्या हुआ? तुम तो अपनी मर्जी से शादी करके आई थी। अब क्या बदल गया?” वह बोली, “मुझे यहां से निकालो। मैं यहां नहीं रहना चाहती।”

वह बिना कुछ कहे बाहर निकल पड़ी। रागिनी ने सेल फिर बंद किया और वापस अपने दफ्तर आकर बैठ गई। सारी रात ख्यालों में खोई रही।

भाग 4: अरुण की फरारी और सच्चाई की तलाश

सुबह होते ही एसपी साहब गुस्से में रागिनी के दफ्तर में दाखिल हुए, “इंस्पेक्टर रागिनी, फौरन जाओ और देखो अरुण कहां है?”

रागिनी दौड़ती हुई अरुण के सेल की तरफ गई। दरवाजे पर जाकर आवाज दी, “अरुण बाहर आओ।” मगर अंदर से कोई जवाब ना आया। रागिनी ने खिड़की से झांका—अंदर एक शख्स मर्दाना कपड़ों में दीवार के पास लेटा हुआ था। दरवाजा खोला, आगे बढ़ी—यह वही लड़की थी जो कल दुल्हन बनकर आई थी। अब अरुण के कपड़ों में बेहोश पड़ी थी।

एसपी साहब भी वहां पहुंच गए। नजारा देखकर बोले, “यह क्या तमाशा है? अरुण कहां है?” हम सबको एहसास हुआ कि अरुण ने एक ऐसी चाल चली थी जिसने हमें अंधा बना दिया था। वह दुल्हन के कपड़ों में जेल से फरार हो चुका था। यह लड़की शायद उसकी साथी जानबूझकर उसके लिए कुर्बान बनी थी।

जब वह होश में आई, बोली, “आप लोगों ने अरुण के साथ नाइंसाफी की है। वह सजा-ए-मौत का हकदार नहीं था।” रागिनी ने कहा, “यह फैसला अदालत करेगी।” वह हल्की सी मुस्कान लाई, “फैसला वक्त करेगा और वक्त साबित करेगा कि वह बेगुनाह है।”

भाग 5: प्रिया की कहानी—सच्चाई का चेहरा

रागिनी ने सख्त लहजे में कहा, “अब तुमसे सवाल होंगे। अगर तुमने सच ना बताया तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।” वह बोली, “मैं अरुण के बारे में सब सच्चाई बताऊंगी।”

उसने बताना शुरू किया—”मेरा नाम प्रिया है और मेरी बड़ी बहन की मंगनी अरुण से हुई थी। अरुण बचपन से ही बहादुर और बेखौफ लड़का था। वह मेरे वालिद के चाचा भाई का बेटा था। अब्बू उसे बहुत चाहते थे। जब उन्होंने मेरी बड़ी बहन की मंगनी अरुण से की तो वह हमारे घर का हिस्सा बन गया।”

प्रिया के लहजे में दर्द भी था और फक्र भी। “हमारा गांव रत्नगढ़ छोटा था। एक रात अरुण भाई हमारी खालाजाद बहन से मिलने आए। उस रात अब्बू घर पर नहीं थे, हम दोनों बहनें अकेली थीं। मैं चाय बना रही थी, अरुण भाई और आपा दूसरे कमरे में बात कर रहे थे। अचानक दरवाजे पर जोर-जोर से दस्तक होने लगी। तीन-चार बदमाश खड़े थे। उनमें से एक ने कहा—अभी तुम्हारे घर में एक नौजवान आया है, उसे बाहर निकालो।”

अरुण बाहर आए, बदमाशों के सामने डटे। उन्होंने नरमियत से समझाया, किसी तरह वापस भगा दिया। उस रात वह देर तक दरवाजे के पास बैठे रहे, जैसे खतरे की पहरेदारी कर रहे हों।

“उसके बाद हर रोज वही बदमाश हमारे घर के बाहर आ खड़े होते। जैसे ही अब्बू काम पर जाते, वे हमें तंग करने लगते। हम दरवाजे बंद कर लेते, मगर खौफ दिल से नहीं जाता था। फिर एक रात वह वाक्या हुआ जिसने सब कुछ बदल दिया। रात के अंधेरे में खिड़की के शीशे टूटने की आवाज आई, कोई जबरदस्ती अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था। अरुण भाई भी उसी वक्त घर पहुंच चुके थे। उन्होंने देखा, एक बदमाश खिड़की फांदने वाला है। वह बाहर निकले और उनसे उलझ पड़े।”

“लड़ाई बहुत खौफनाक थी। मेरी बड़ी बहन उनके बीच आ गई और उसी झड़प में मारी गई। अरुण भाई के हाथों एक शख्स हलाक हो गया। मगर वह कत्ल नहीं था, वह हमारी इज्जत बचाने की लड़ाई थी। असल मुजरिम वह बदमाश थे, मगर सजा अरुण भाई को मिली। अगर हम अमीर होते, हमारी बात सुनने वाला कोई होता, तो शायद यह सब ना होता। इस दुनिया में कमजोर के लिए कोई इंसाफ नहीं मैडम।”

भाग 6: बलिदान और सच्चाई का उजाला

प्रिया ने आंसू पोंछे, “यह सब अरुण की मां की मंसूबाबंदी थी। उसने कहा था, मैं अपनी दूसरी बेटी कुर्बान कर दूंगी, मगर अपने बेटे को फांसी नहीं दूंगी। मैंने खुद को उस मंसूबे के लिए पेश किया ताकि अरुण बच सके। उसकी मां ने उसे दिल्ली के एक बड़े वकील के पास भेजा। वही वकील जिसकी जान अरुण ने बरसों पहले बचाई थी। वह वकील अदालत में पहुंचा और सच्चाई सामने आ गई। साबित हो गया कि अरुण ने अपनी इज्जत की हिफाजत में लड़ाई की थी, गुनाह नहीं किया था। अदालत ने उसे बाइज्जत बरी कर दिया।”

रागिनी देर तक खामोश बैठी रही। प्रिया जा चुकी थी, मगर उसकी कहानी रागिनी के दिल में रह गई। उसने खिड़की से बाहर देखा। आसमान पर हल्की सुबह की रोशनी फैल रही थी। दिल में सोचा—कुछ कहानियां वक्त के साथ मिट नहीं पातीं, वह हमेशा दिल के किसी कोने में जिंदा रहती हैं।

भाग 7: इंसाफ और समाज का आईना

अरुण की कहानी सिर्फ एक कैदी की आखिरी ख्वाहिश नहीं थी, बल्कि समाज के उस चेहरे की कहानी थी, जहां गरीब और कमजोर को अक्सर गुनहगार बना दिया जाता है। जहां इज्जत बचाने की लड़ाई भी जुर्म बन जाती है। जहां अदालतें, कानून, पुलिस—सब कुछ होते हुए भी सच्चाई दब जाती है।

प्रिया का बलिदान, अरुण की बहादुरी, उसकी मां की ममता—ये सब मिलकर एक ऐसी कहानी बनाते हैं, जो समाज को आईना दिखाती है। इंसानियत, मोहब्बत, बलिदान और सच्चाई—इन सबका मेल ही असल जीवन है।

भाग 8: जेल के पार नई सुबह

अरुण रिहा हो चुका था। प्रिया ने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा बलिदान दिया था। गांव में लोग अब भी बातें करते थे, मगर प्रिया और अरुण की कहानी अब मिसाल बन चुकी थी। रागिनी इंस्पेक्टर ने भी इस कहानी से सीख ली थी—कभी-कभी कानून से परे जाकर इंसानियत की रोशनी देखनी चाहिए।

अरुण और प्रिया ने नई जिंदगी शुरू की। समाज ने धीरे-धीरे उन्हें अपनाया। उनकी कहानी गांव के बच्चों को सुनाई जाती, ताकि वे समझ सकें कि सच्चाई, बहादुरी और बलिदान ही असल इंसानियत है।

सीख

यह कहानी हमें सिखाती है कि हर आखिरी ख्वाहिश के पीछे कोई गहरा दर्द, कोई बड़ी सच्चाई छुपी हो सकती है। कभी-कभी कानून, समाज, और जिंदगी के नियमों से परे जाकर इंसानियत की आवाज सुननी चाहिए। अरुण और प्रिया की तरह, अगर हम सच्चाई के लिए लड़ें, तो वक्त जरूर इंसाफ करता है।

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(यह कहानी आपके मूल विचार पर आधारित है, उपन्यासिक विस्तार, भावनात्मक संवाद और सामाजिक संदेश के साथ। अगर आपको और विस्तार, या किसी पात्र की मनोस्थिति और गहराई चाहिए, तो कृपया बताएं।)