अर्जुन कपूर की कहानी: सुकून की तलाश

प्रस्तावना

मुंबई पुलिस के सीनियर इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर अर्जुन कपूर की जिंदगी अक्सर खुफिया रिपोर्टों, छापों और जुर्म के ताने-बाने में गुजरती थी। लेकिन उस दिन जो फाइल उसकी मेज पर रखी गई, उसके लहजे में एक अलग ही सनसनी थी। सुबह दफ्तर में बैठा जैसे ही उसने फाइल खोली, पहली लाइन पढ़ते ही उसके माथे पर बल पड़ गए: जकार्ता की एक मुसलमान बेवा, जैनब फातिमा, गरीबों में दिन रात करोड़ों रुपयों की दौलत बांट रही है।

पहला संदेह

पहली नजर में यह एक आम फलाही रिपोर्ट लगती, लेकिन अगली सतरों ने अर्जुन के दिल में शक के बीज बो दिए। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले छ महीनों में ज़ैनब ने अलग-अलग इलाकों में तकरीबन 500 करोड़ रुपये तकसीम किए थे। खाना, कपड़े, तालीमी स्कॉलरशिप्स, यतीम खानों की तामीर, यहां तक कि बीमार बच्चों के इलाज के लिए भी भारी रकम अता की जा रही थी।

मसला यह नहीं था कि एक औरत लोगों की मदद कर रही है, बल्कि मसला यह था कि इतना बड़ा सरमाया आखिर आ कहां से रहा है। दफ्तर की फजा में एक अजीब सा बोझ लटक रहा था। अर्जुन ने फाइल बंद करके कुर्सी पर टिक गया। जहन में सवालों का तूफान उठ रहा था।

जकार्ता की यात्रा

अर्जुन ने फैसला किया कि वह खुद जकार्ता जाएगा। रात के समय मुंबई के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर, अर्जुन अकेला खड़ा था। उसके कानों में न्यूज़ चैनल्स की शोर मचाती आवाजें गूंज रही थी। “मुसलमान बेवा के पास करोड़ों की दौलत का राज क्या है?” “क्या ज़ैनब फातिमा किसी गैरकानूनी फंडिंग नेटवर्क का हिस्सा है?”

फ्लाइट के दौरान नींद आंखों से कोसों दूर थी। बादलों के दरमियान बैठा अर्जुन खुद से सवाल करता रहा। अगर यह औरत वाकई मासूम है, तो यह दौलत कहां से आ रही है? और अगर इसके पीछे कोई ताकतवर नेटवर्क है, तो क्या वह अकेला उससे टकरा पाएगा?

जकार्ता में आगमन

अगली सुबह जब अर्जुन जकार्ता के हवाई अड्डे पर उतरा, तो मौसम बादलों से ढका हुआ था। जैसे शहर भी किसी राज में लिपटा हो। रास्ते भर टैक्सी के शीशे से बाहर देखते हुए वह हैरान था कि इस शहर में इतनी रोशनी के बावजूद किसी के दिल में इतनी दौलत का अंधेरा क्यों छुपा है।

दोपहर को उसने अपने होटल के कमरे में रिपोर्ट का हर सफा दोबारा पढ़ा। ज़ैनब का नाम बार-बार सामने आ रहा था। उसी वक्त अर्जुन के फोन पर एक खुफिया कॉल आई। दूसरी तरफ एक नामालूम शख्स की सरगोशी थी। “अर्जुन साहब, अगर आप जैनब के करीब गए, तो याद रखिए, यह खेल आम नहीं है। कुछ हाथ ऐसे हैं जो आपको देख रहे हैं।”

रहस्य का पर्दाफाश

अर्जुन ने खुद से कहा, “जो भी हो, अब पीछे नहीं हट सकता।” अगली सुबह उसका पहला निशाना ज़ैनब का पांच सितारा होटल था। होटल के सामने का मंजर हैरतंगेज़ था। एक आलीशान इमारत जिसके शीशे सूरज की रोशनी में ऐसे चमक रहे थे जैसे किसी खजाने के दरवाजे हो।

सैकड़ों लोग होटल के बाहर कतारों में खड़े थे। औरतें, बच्चे, बुजुर्ग हर चेहरे पर उम्मीद के रंग बिखरे हुए थे। होटल के गेट पर बड़े-बड़े थैलों में भरे नोटों के बंडल रखे थे। अर्जुन दूर खड़ा यह सब देख रहा था। उसके अंदर सवालों का तूफान था।

ज़ैनब का परिचय

अर्जुन की नजर पहली बार ज़ैनब फातिमा पर पड़ी। वह दरमियानी उम्र की परवखार और संजीदा शख्सियत की मालिक थी। ज़ैनब खामोशी से वहां खड़ी थी, उसकी निगाहें हर जरूरतमंद पर शफकत से झुक रही थी। यह मंजर किसी भी आम इंसान को मुतासिर कर देता। लेकिन अर्जुन के लिए सवाल और गहरा हो गया।

अर्जुन ने जेब से फोन निकाला और तस्वीरें खींचने लगा। उसका मातहत इंस्पेक्टर रोहित वर्मा आहिस्ता से बोला, “सर, देखिए ना, यह सब तो जाहिरन नेक काम लग रहे हैं। शायद हम गलत सोच रहे हैं।” अर्जुन ने निगाहें हटाए बगैर कहा, “रोहित, मैं अपनी आंखों पर यकीन रखता हूं।”

जांच का सिलसिला

अर्जुन ने खुद ज़ैनब का पीछा करने का फैसला किया। होटल के करीब एक पुरानी बेकरी के सामने गाड़ी खड़ी करके वह छुपकर निगरानी करने लगा। कुछ देर बाद ज़ैनब एक छोटे से मदरसे की तरफ जाती दिखाई दी।

मदरसे के अंदर का मंजर अर्जुन के लिए चौंका देने वाला था। ज़ैनब फर्श पर बैठी बच्चों को कुरान पढ़ा रही थी। उसके सामने एक दर्जन बच्चे सबकी आंखों में सीखने की प्यास। जैनब नरमी से हर आयत दोहराती। अर्जुन का दिल एक लम्हे के लिए रुक सा गया।

ज़ैनब की नेकदिली

ज़ैनब के चेहरे पर एक अद्भुत सुकून था। अर्जुन ने महसूस किया कि ज़ैनब की नियत दौलत जमा करने की नहीं बल्कि बांटने की थी। लेकिन जितना वह हकीकत के करीब पहुंच रहा था, उतनी ही एक नई उलझन पैदा हो रही थी।

अर्जुन ने यतीम खाने से बाहर निकला। बारिश थम चुकी थी मगर सड़कें भीगी हुई थी। उसके कदम आहिस्ता-आहिस्ता चल रहे थे और जहन में ज़ैनब के अल्फाज़ गूंज रहे थे। “सुकून खरीदने से नहीं मिलता।”

दिल की सुनना

अर्जुन ने खुद से सवाल किया, “अगर यह औरत बेगुनाह है, तो हम सब गलत सोच रहे हैं।” अगले दिन उसने ज़ैनब से मुलाकात के लिए फोन किया। उसके लहजे में अब कोई हिचकिचाहट नहीं थी।

ज़ैनब जब मिली तो उसकी आंखों में हैरत थी और दिल में सवालात। अर्जुन ने कहा, “मैं इस्लाम के बारे में सच जानना चाहता हूं। मैंने रात भर सोचा दिल के सारे दरवाजे खोल दिए और बस एक ही सवाल रहा। क्यों मुझे सुकून कहीं नहीं मिला? सिवाय यहां।”

सुकून की तलाश

ज़ैनब ने उसकी आंखों में देखा जैसे उसके दिल का हाल पढ़ लिया हो। “सुकून तब मिलता है जब इंसान खुद को खालिक के सुपुर्द कर देता है।” अर्जुन ने धीरे से कहा, “तो फिर मेरा दिल आज फैसला कर चुका है।”

अर्जुन ने मस्जिद के एक गोशे में बैठकर इमाम की रहनुमाई में कलमा पढ़ा। इस्लाम कबूल करने के बाद अर्जुन को महसूस हुआ कि उसकी रूह आजाद हो गई है।

नया जीवन

चंद माह बाद एक सादा सी महफिल में अर्जुन और ज़ैनब का निकाह हुआ। अर्जुन ने अपनी नौकरी छोड़कर ज़ैनब के साथ फलाही ट्रस्ट को संभाल लिया। अब वह फाइलों और तफ्तीश के बजाय गरीबों के लिए स्कूल बनवाता, अस्पताल खोलता और यतीम बच्चों की किफालत करता।

एक दिन जब वह दोनों मस्जिद के सहन में बैठे थे, अर्जुन ने ज़ैनब से कहा, “कभी सोचा नहीं था कि मैं अपनी जिंदगी यहां गुजारूंगा।” ज़ैनब ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया, “सच्चाई हमेशा रास्ता दिखा देती है।”

निष्कर्ष

अर्जुन ने जाना कि सुकून कहां है और शुक्र है कि उसने उसे ज़ैनब के रूप में पाया। यह कहानी न केवल अर्जुन की तफ्तीश की है, बल्कि यह उस सुकून की भी है जो इंसान को अपने रब पर भरोसा करने से मिलता है।

इस तरह, अर्जुन कपूर की जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया, जहां उसने न केवल अपने पेशेवर जीवन को बदला, बल्कि एक नई सोच और सुकून की तलाश भी की।

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