आरव और समीरा की कहानी
सुबह के आठ बजे थे। “अमृता टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड” का विशाल गेट खुलते ही एक सफेद कार धीरे से भीतर आई। गेट पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड सीधा होकर सलाम ठोकता है – “गुड मॉर्निंग, मैडम।” कार रुकती है, ड्राइवर उतरकर पीछे का दरवाज़ा खोलता है, और बाहर निकलती है — समीरा मेहता, कंपनी की नई शाखा की मैनेजर। आत्मविश्वास से भरी चाल, चमकदार हील्स, हाथ में फाइल और चेहरे पर सधा हुआ तेज़।
लेकिन जैसे ही उसकी नज़र गार्ड के चेहरे पर पड़ती है, उसके कदम रुक जाते हैं। वह चेहरा… वो निगाहें… वो मुस्कान – आरव। वही आदमी जिससे उसने आठ साल पहले तलाक लिया था।
वह हकबका जाती है। आरव सिर झुकाकर कहता है, “गुड मॉर्निंग, मैडम।”
उस आवाज़ में आदर था, लेकिन अब कोई रिश्ता नहीं। समीरा अंदर चली जाती है, पर दिल में तूफान मच गया था। उसका अतीत आज उसी कंपनी के गेट पर खड़ा था।
अतीत की परछाई
आठ साल पहले दोनों की शादी प्यार से हुई थी। कॉलेज के दिनों से ही दोनों एक-दूसरे के करीब थे। आरव एक ईमानदार, सादगीभरा इंजीनियर था, और समीरा महत्वाकांक्षी, मेहनती युवती। शादी के शुरुआती सालों में सब अच्छा चला, पर वक्त ने करवट बदली। समीरा की नौकरी आगे बढ़ती गई, और आरव की कंपनी घाटे में चली गई। महीनों तक सैलरी नहीं मिली। घर का किराया, बिजली का बिल, रोज़मर्रा के खर्च — सब बढ़ते गए।
समीरा को आरव का संघर्ष अब बोझ लगने लगा।
“हर चीज़ के लिए पैसा चाहिए आरव, और तुम्हारे पास बस बहाने हैं!” वह झल्ला उठती।
आरव समझाने की कोशिश करता, “थोड़ा वक्त दो, सब ठीक हो जाएगा।”
लेकिन समीरा के लिए भविष्य का मतलब था सफलता, और सफलता का मतलब था पैसा।
एक रात झगड़ा इतना बढ़ा कि समीरा ने कहा —
“मुझे ऐसा पति नहीं चाहिए जो बस संघर्ष करे। मैं किसी गार्ड की बीवी बनकर नहीं रह सकती।”
वो शब्द आरव के दिल में पत्थर की तरह उतर गए। कुछ दिनों बाद उसने चुपचाप तलाक के कागज़ों पर हस्ताक्षर कर दिए और घर छोड़ दिया।
नया जीवन, नई राह
आरव ने वही किया जो उसके स्वभाव में था — चुप रहकर मेहनत करना।
उसने छोटी-छोटी कंपनियों में सिक्योरिटी सर्विस देना शुरू किया। दिन में काम करता, रात में अकाउंट्स और मैनेजमेंट की पढ़ाई। कई बार खाना नहीं खाया, लेकिन किसी से मदद नहीं मांगी। धीरे-धीरे उसने अपनी कंपनी “सेफ वॉच सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड” खड़ी की।
सालों की मेहनत के बाद अब वही शहर, वही लोग उसकी एजेंसी से सिक्योरिटी लेते थे। पर जब उसने उस दिन गेट पर समीरा को देखा, तो दिल में एक पुराना दर्द उठ गया — वो दर्द जो कभी शिकायत नहीं बना, बस मुस्कान में छिप गया।
सामना
कुछ दिनों बाद, कंपनी में सिक्योरिटी अपग्रेड की मीटिंग थी। डायरेक्टर मिस्टर कपूर ने कहा —
“हम सेफ वॉच सर्विसेज को पूरे ग्रुप की सिक्योरिटी सौंप रहे हैं। इसे मिस्टर आरव मेहता लीड करेंगे।”
समीरा का दिल जैसे रुक गया। मीटिंग हॉल में सब खड़े हुए, और अंदर आया वही आदमी — इस बार वर्दी में नहीं, बल्कि काले सूट और सफेद शर्ट में। आत्मविश्वास से भरा, शांत और सधा हुआ।
“गुड इवनिंग, मैडम,” आरव ने मुस्कुराकर कहा।
उस पल समीरा को लगा — वक़्त सच में पलट गया है।
बातें जो देर से हुईं
मीटिंग के बाद दोनों एक कैफे में मिले।
समीरा बोली, “आरव, मैंने सोचा था तुम टूट गए हो… पर तुम तो और मज़बूत बन गए।”
आरव मुस्कुराया, “टूटा तो था, पर जब कोई पूरी तरह टूट जाता है तो या तो खत्म हो जाता है, या नया बन जाता है। मैंने दूसरा रास्ता चुना।”
समीरा की आंखें भीग गईं — “मैंने तुम्हें गलत समझा। मैंने तुम्हारी मेहनत नहीं देखी।”
आरव ने कहा, “हम सब गलतियां करते हैं। फर्क बस इतना है कि कोई माफ कर देता है, और कोई उन गलतियों को ताकत बना लेता है।”
इंसानियत की जीत
अगले दिन ऑफिस में हादसा हुआ। पार्किंग में शॉर्ट सर्किट से आग लग गई। समीरा घबराई हुई बाहर दौड़ी। तभी किसी ने कहा —
“एक ड्राइवर अंदर फंसा है!”
बिना एक पल सोचे, आरव धुएं में घुस गया।
कुछ देर बाद वह घायल ड्राइवर को बाहर लाया। चेहरा धुएं से सना, सांसें भारी — लेकिन मुस्कान वही शांत थी।
समीरा चीख उठी, “तुम पागल हो क्या? अंदर क्यों गए थे?”
आरव बोला, “ड्यूटी थी, मैडम। गार्ड सिर्फ दरवाजे नहीं, ज़िंदगियां भी संभालते हैं।”
भीड़ तालियां बजा रही थी। मिस्टर कपूर बोले — “आरव, आज तुमने साबित किया कि यूनिफॉर्म सिर्फ नौकरी नहीं, जिम्मेदारी का प्रतीक है।”
समीरा की आंखों से आंसू बह निकले। उस पल उसने महसूस किया कि जिसे उसने कभी नाकाम कहा था, वही आज सबसे बड़ा विजेता था।
अंतिम मुलाक़ात
अगले दिन उसने आरव से कहा, “क्या हम फिर से शुरू कर सकते हैं?”
आरव ने शांत स्वर में कहा —
“समीरा, मैं तुम्हें माफ करता हूं। लेकिन लौट नहीं सकता।
क्योंकि जब मैं टूटा था, तुम कहीं और थीं।
और जब मैं संभला, तब सीखा कि कुछ रिश्ते सम्मान के मुकाम तक ही ठीक लगते हैं।”
समीरा चुप रही। बस इतना बोली —
“तुम जीत गए, आरव… और मैं हार गई।”
आरव मुस्कुराया — “हम दोनों ने अपने हिस्से की सज़ा पा ली।”
फिर वह चला गया, पीछे बस सन्नाटा रह गया।
पछतावे की रात
उस रात समीरा घर लौटी। दीवारों पर सजे अवॉर्ड्स, ट्रॉफियां, सर्टिफिकेट — सब कुछ था, लेकिन कोई सुकून नहीं।
उसने वो पुरानी डायरी निकाली, जो आरव ने शादी के वक्त दी थी।
पहले पन्ने पर लिखा था —
“सपने छोटे हों या बड़े, अगर भरोसा सच्चा हो तो दुनिया झुक जाती है।”
आंसू पन्नों पर गिर गए।
वह फुसफुसाई — “तुम सही थे आरव, मैंने सपने तो देखे पर भरोसा खो दिया।”
अब उसके पास सब था — नाम, पद, पैसा —
पर दिल खाली था।
आरव चला गया था, लेकिन उसके भीतर जो खालीपन था, वो कभी नहीं भरा।
सीख
ज़िंदगी में पैसा, पद, शोहरत — सब मिल सकता है।
लेकिन एक बार खोया हुआ भरोसा और रिश्तों की गर्माहट कभी वापस नहीं आती।
अहंकार जब प्यार पर हावी हो जाए, तो इंसान सब कुछ पाकर भी खाली रह जाता है।
कभी-कभी ज़िंदगी की सबसे बड़ी सज़ा यही होती है —
माफ़ी तो मिलती है, लेकिन दूसरा मौका नहीं।
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