इंसानियत का असली चेहरा

शाम का समय था। ऑफिस से लौटते हुए आर्या अपनी स्कूटी पर मोहल्ले की सड़क से गुजर रही थी। दिनभर की थकान उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। ट्रैफिक की आवाजें, गाड़ियों के हॉर्न और सड़क किनारे की भागदौड़ में उसका मन बस जल्दी से घर पहुंचने को कर रहा था। लेकिन तभी उसकी नजर फुटपाथ पर बैठे एक भिखारी पर पड़ी। फटे पुराने कपड़े, बिखरे बाल और हाथ में फैला हुआ कटोरा। धूलधूसित चेहरा ऐसा कि जैसे बरसों से ना नहाया हो।

आर्या की स्कूटी अपने आप धीमी हो गई। वह कई दिनों से उसी रास्ते से गुजरती थी और उसे रोज उसी जगह पर बैठे देखती थी। उसने सोचा, “यह आदमी हर रोज यहां बैठा होता है। जाने क्यों आज इसे देखकर मेरा दिल पसीज गया।” उसने स्कूटी रोकी, पर्स से कुछ सिक्के निकाले और उसके कटोरे में डालते हुए कहा, “अभी चेंज नहीं है, यही रख लो।” भिखारी ने बिना कुछ कहे उसकी ओर देखा और हल्की सी मुस्कान दी। पर उसकी आंखें जैसे चुपचाप बहुत कुछ कह रही थी। वो आंखें आर्या के चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी।

आर्या को एक अजीब सा एहसास हुआ। वो तुरंत स्कूटी स्टार्ट करके घर की ओर बढ़ गई। लेकिन रास्ते भर वही आंखें उसे परेशान करती रही। अगले दिन फिर वही हुआ। ऑफिस से लौटते ही जैसे ही वह अपने मोहल्ले के मोड़ पर पहुंची, भिखारी उठकर उसके पास आ गया। इस बार उसने मुस्कुराकर हाथ फैलाया। आर्या ने फिर जेब से कुछ सिक्के निकाले और उसे पकड़ा दिए। लेकिन उसके मन में सवाल उठ रहा था, “आखिर यह आदमी मुझे ऐसे क्यों देखता है? क्या सिर्फ पैसों की वजह से रोज इंतजार करता है? या इसके पीछे कुछ और है?”

दिन बीतते गए। अब तो यह रोज का सिलसिला हो गया। आर्या जैसे ही उस रास्ते में उस जगह पहुंचती, वह फुटपाथ वाला भिखारी उसके सामने आ खड़ा होता। वह पैसे देती और वह बिना कुछ कहे देर तक उसे देखता रहता। एक दिन आर्या ऑफिस से लौटकर खिड़की पर खड़ी थी। नीचे देखा तो वही भिखारी उसके घर के आसपास घूम रहा था। उसका दिल फिर पिघल गया। उसने आवाज लगाई, “रुको, खाना ले लो।” वह जल्दी से किचन में गई, मां से कहा कि कुछ खाना पैक कर दो। और फिर दरवाजे पर जाकर डिब्बा उसके हाथ में थमाया। लेकिन खाना लेते समय भी उसकी आंखें सिर्फ आर्या पर टिकी थी। जैसे उसमें कोई गहरी कहानी छिपी हो।

आर्या डर और दया के बीच उलझ गई। दरवाजा झटके से बंद कर लिया। मगर सारी रात करवटें बदलती रही। उसकी मां ने जब देखा कि वह रोज उस भिखारी को खाना देने लगी है तो मुस्कुराकर बोली, “बेटी, किसी भूखे को खाना खिलाना पुण्य का काम है। भगवान तुम्हें इसका फल जरूर देंगे।” आर्या ने सिर हिलाया लेकिन मन में तूफान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्यों हर रोज उस आदमी की आंखें उसका पीछा करती है।

अब हालात ऐसे हो गए कि जब भी आर्या ऑफिस से लौटती उसके कदम अपने आप उस फुटपाथ की ओर मुड़ जाते। उसका दिल कहता, “शायद आज भी वह यही होगा।” और सचमुच वो वहीं बैठा मिलता। धीरे-धीरे यह एक अजीब सा रिश्ता बनने लगा। बिना बोले, बिना कुछ कहे बस आंखों से बात करने वाला रिश्ता। आर्या खुद से सवाल करती, “क्या यह सिर्फ एक भिखारी है या इसके पीछे कोई और सच छुपा है?”

लेकिन एक शाम जब उसने उसे खाना दिया तो अचानक भिखारी ने उसका हाथ पकड़ लिया। आर्या चौंक गई। आंखों में डर साफ छलकने लगा। उसने तुरंत हाथ छुड़ाने की कोशिश की। लेकिन वह आदमी धीमी आवाज में बोला, “डरिए मत मैडम। मैं आपसे सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं।” आर्या ने भौहे चढ़ाते हुए कहा, “क्या है? अगर पैसों की जरूरत है तो साफ-साफ कहो। लेकिन इस तरह हाथ पकड़ना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होगा।”

भिखारी ने सिर झुका लिया और धीरे से बोला, “मुझे आपके पैसों के नहीं, आपके दिल की जरूरत है। मैं आपको पसंद करने लगा हूं। जब भी आपका चेहरा देखता हूं, मेरी सारी भूख, मेरी सारी तकलीफ जैसे भूल जाती है।” आर्या के कानों को जैसे भरोसा ही नहीं हुआ। उसने गुस्से में डपटते हुए कहा, “तुम्हें शर्म नहीं आती? अपनी औकात देखी है? एक भिखारी होकर ऐसी बातें करता है। मैं सिर्फ इंसानियत के नाते तुम्हारी मदद करती हूं। और तुम इसे प्यार समझ बैठे।”

उसकी बात सुनकर भी भिखारी की आंखों में कोई डर नहीं आया। वो धीमी मगर दृढ़ आवाज में बोला, “प्यार औकात देखकर नहीं होता मैडम। जब दिल किसी पर आ जाए तो सामने वाला भिखारी हो या राजा फर्क नहीं पड़ता। मैं जानता हूं आप मुझसे बहुत ऊपर हैं। लेकिन दिल का क्या करूं? आपको चाहने से खुद को रोक नहीं पा रहा।”

आर्या गुस्से से कांप उठी। उसने खाना उसके हाथ में धकेला और दरवाजा जोर से बंद कर लिया। मगर सारी रात उसके कानों में वही शब्द गूंजते रहे, “प्यार औकात देखकर नहीं होता।” अगले दिन उसने अपनी सहेली को सब कुछ बताया। सहेली ने हंसते हुए कहा, “अरे पागल, यह सब एक चाल है। भिखारी समझ रहा है कि अगर तुम्हें फंसा लेगा तो तुम्हारी कमाई पर ऐश करेगा। वरना भिखारी को प्यार करने से क्या मतलब?”

आर्या को उसकी बात सही लगी। उसने तय किया कि आगे से अगर वह भिखारी ऐसी बातें करेगा तो उसे पुलिस में देने की धमकी दे देगी। और सचमुच अगले ही दिन जब उसने फिर वही बातें दोहराई तो आर्या ने सख्ती से कहा, “देखो, मैं तुम्हें सिर्फ भूख मिटाने के लिए खाना देती हूं। अगर दोबारा ऐसी बेहूदगी की तो पूरे मोहल्ले में शोर मचा दूंगी और पुलिस बुला लूंगी। समझे?”

पर उसकी उम्मीद के विपरीत भिखारी हंस पड़ा। आंखों में वही जिद, वही चाहत चमक रही थी। उसने कहा, “आप चाहे तो दुनिया से डरा दें। मगर मुझे नहीं। मुझे तो बस आप चाहिए। आप मुझसे साफ कह दीजिए कि आप मुझे चाहती हैं या नहीं।” आर्या ने ठंडी सांस भरी और कहा, “तुम्हारी हिम्मत बहुत है मगर जान लो मैं तुम्हारे जाल में नहीं फंसने वाली। तुम सोच रहे हो कि मैं तुम्हारी मोहब्बत के नाम पर अपनी कमाई तुम्हारे हाथ में रख दूंगी, मगर मैं सब जानती हूं।”

इतना सुनते ही भिखारी का चेहरा बदल गया। उसने डिब्बा लौटाते हुए कहा, “अगर आप यही समझती हैं तो ठीक है। मुझे अब आपके पैसों या खाने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन इतना जरूर जान लीजिए, मेरे दिल में आपके लिए जो है वह सच्चा है।” इतना कहकर वह चला गया।

आर्या वही दरवाजे पर खड़ी रह गई। हाथ में डिब्बा पकड़े, आंखों में सवाल लिए। “अगर यह मुझे सिर्फ धोखा देना चाहता तो खाना क्यों लौटाता? फिर क्यों बिना डरे मेरी आंखों में आंखें डालकर सच बोलता?” कई दिन तक वह भिखारी उसके दरवाजे पर नहीं आया। अब आर्या जब ऑफिस से लौटती तो उसकी आंखें अनजाने ही उसे तलाशने लगती। लेकिन ना वह फुटपाथ पर दिखता, ना दरवाजे पर।

मां ने भी पूछा, “बेटी, वो आदमी अब क्यों नहीं आता?” आर्या ने अनमने ढंग से जवाब दिया, “पता नहीं मां। शायद कहीं और चला गया होगा।” लेकिन दिल के अंदर कहीं ना कहीं उसे उसकी कमी खल रही थी। जो आंखें रोज उसका इंतजार करती थी, अब वे गायब थी। जो खामोशी उसके दिल को विचलित कर देती थी, अब वही खामोशी उसे और बेचैन कर रही थी।

कई हफ्ते बीत गए। फुटपाथ पर बैठने वाला वह भिखारी अब कहीं दिखाई नहीं देता था। पहले तो आर्या को चैन मिला कि चलो अब वह अजीब-अजीब बातें नहीं करेगा। लेकिन धीरे-धीरे उसकी आदत जैसे बन चुकी थी। ऑफिस से लौटते ही उसकी नजरें उसी जगह टिक जाती जहां वह बैठा करता था। मगर खाली फुटपाथ देखकर उसका दिल खाली-खाली सा लगने लगा।

एक रात बिस्तर पर लेटी हुई आर्या सोच रही थी, “अगर वह मुझे धोखा देना चाहता तो मेरे इंकार के बाद भी मेरा पीछा करता। मगर उसने तो खाना भी लौटा कर जाना ठीक समझा। क्या सचमुच उसकी नियत साफ थी? क्या उसकी आंखों में जो मोहब्बत मैंने देखी वह असली थी?” वह बेचैन होकर करवटें बदलती रही। कहीं ना कहीं उसके दिल में अब उस आदमी के लिए कोमलता घर करने लगी थी।

फिर एक दिन हफ्तों बाद अचानक वह उसे सड़क पर दिखाई दिया। आर्या अपनी स्कूटी पर थी और भिखारी फुटपाथ से उठकर उसकी ओर बढ़ा। लेकिन इस बार उसने ना हाथ फैलाया, ना पैसे मांगे। बस उसकी ओर देखता रहा और धीमी आवाज में बोला, “आप कैसी हैं?” आर्या कुछ पल के लिए ठिटक गई। यह पहली बार था जब उसने उससे सीधे शब्दों में सवाल किया था। वो बोली, “ठीक हूं। तुम कहां थे इतने दिनों से?”

भिखारी ने मुस्कुराकर कहा, “थोड़ा बीमार हो गया था। अब ठीक हूं।” उसकी आवाज में सच्चाई थी। आर्या का दिल और भी पसीज गया। उसने पर्स से पैसे निकाल कर देने चाहे, मगर उसने सिर हिलाकर मना कर दिया। “नहीं, अब मुझे आपकी भीख नहीं चाहिए। अगर आप देना ही चाहती हैं तो अपने चेहरे की मुस्कान दे दीजिए।” आर्या का चेहरा लाल पड़ गया। उसने जल्दी से स्कूटी स्टार्ट की और आगे बढ़ गई। मगर कानों में उसके शब्द गूंजते रहे, “आपकी मुस्कान।”

अब तो हालात यह हो गए कि जब भी वह उसे कहीं दिख जाता, आर्या खुद भी उसे मुस्कुरा कर देख लेती। दोनों के बीच खामोश निगाहों का रिश्ता गहराने लगा। धीरे-धीरे आर्या की सोच बदलने लगी। उसे लगने लगा कि शायद इस भिखारी के दिल में वाकई उसके लिए सच्चा प्यार है। और अगर प्यार सच्चा हो तो इंसान का हुलिया या हालात कोई मायने नहीं रखते।

एक दिन उसने हिम्मत जुटाकर उससे पूछ ही लिया, “तुम्हें मुझसे मोहब्बत क्यों हुई? तुमने मुझ में ऐसा क्या देखा?” भिखारी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, “मैडम, मैंने सुना है कि आप अपने भाई बहनों की खातिर अपनी शादी टालती रही हैं। आप खुद की खुशियां कुर्बान कर रही हैं। ऐसे लोग इस दुनिया में बहुत कम होते हैं। जब पहली बार मैंने आपकी आंखों में देखा तो मुझे एहसास हुआ कि आप सिर्फ सुंदर नहीं हैं बल्कि बहुत बड़ी इंसान भी हैं। और मैं, मैं तो एक गरीब हूं। मगर दिल से आपको चाहने लगा।”

उसकी बातें सुनकर आर्या की आंखें भर आई। उसने सोचा, “मेरी पूरी जिंदगी मां और भाई-बहनों के लिए ही गुजरी। कभी किसी ने मेरी फिक्र नहीं की और यह आदमी भले ही भिखारी है मगर मेरी तकलीफ समझता है। मेरी कुर्बानी की कदर करता है।” धीरे-धीरे वह भी उसके प्यार में डूबने लगी। अब वह रोज ऑफिस से लौटकर उसके लिए खाना पैक करती और दरवाजे पर खड़ी उसका इंतजार करती। बातें ज्यादा नहीं होती मगर आंखें सब कुछ कह देती थीं।

आर्या ने अपने दिल में एक फैसला कर लिया था। “अगर यह वाकई मुझे सच्चा चाहता है तो मैं इसे अपना लूंगी। चाहे यह भिखारी ही क्यों ना हो। मुझे पैसों की नहीं प्यार की जरूरत है।”

लेकिन तभी किस्मत ने जैसे कोई और खेल खेलना शुरू कर दिया। एक दिन से दो दिन, दो दिन से तीन दिन और फिर हफ्ते बीत गए। वो भिखारी फिर से अचानक गायब हो गया। ना फुटपाथ पर, ना मोहल्ले में, ना कहीं और। आर्या बेचैन हो उठी। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे। कहीं बीमार होकर अस्पताल में तो नहीं, कहीं किसी हादसे का शिकार तो नहीं हो गया या फिर क्या वाकई उसने मुझे धोखा दिया और चला गया?

दिन-रात उसकी आंखें उसी की तलाश में रहती। ऑफिस में बैठी होती तो भी खिड़की से बाहर झांकती, शायद कहीं दिख जाए। रास्ते बदल कर भी जाती कि शायद कहीं मिल जाए। मगर नतीजा वही – खाली सड़कें और खाली इंतजार। धीरे-धीरे महीनों गुजर गए मगर उसके दिल से उसकी याद नहीं गई। उसकी मुस्कान, उसकी आंखों की सच्चाई और उसका “आपकी मुस्कान चाहिए” कहना। सब जैसे दिल में बस गया था।

उसके दिल में कहीं ना कहीं उम्मीद अब भी बाकी थी कि शायद वह लौट आए। मगर महीनों गुजर गए और कोई खबर नहीं आई। इसी बीच घर की जिम्मेदारियां और बढ़ गई। छोटी बहन की पढ़ाई पूरी हुई और उसे जॉब भी मिल गई। मां की आंखों में अब एक ही चिंता थी – आर्या की शादी। एक दिन मां ने साफ कहा, “बेटी, अब मैं तुम्हारी जिद और नहीं मानूंगी। तुमने भाई-बहनों के लिए बहुत कुर्बानी दी है। अब तुम्हें अपना घर बसाना ही होगा।”

आर्या ने सिर झुका लिया। उसका दिल तो अब भी उस गुमनाम भिखारी से जुड़ा हुआ था। मगर मां के सामने कुछ कह ना सकी। वह जानती थी कि मां उसकी कुर्बानियों को समझती है। मगर मां का भी हक है कि बेटी को खुशहाल देखें।

कुछ ही हफ्तों में मां ने रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया। एक संडे को लड़के वाले घर पर आने वाले थे। मां ने कहा, “अच्छे से तैयार हो जाना। अब तुम्हारी उम्र निकलती जा रही है।” आर्या के दिल में जैसे तूफान उमड़ पड़ा। उसे लगा कि वह अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा राज मां को बता दे कि वह पहले से ही किसी को चाहती है। मगर वह खुद उलझन में थी। वह तो महीनों से लापता था। कहीं कोई खबर नहीं। क्या वाकई उसका इंतजार करना ठीक है?

रविवार का दिन आ गया। लड़के वाले घर आए। मां ने आर्या को अच्छे कपड़े पहनने के लिए कहा। मगर उसने साधारण सलवार सूट ही पहन लिया। चेहरा भी बिना मेकअप का। वह चुपचाप जाकर बैठक में बैठ गई। लड़के की मां तरह-तरह के सवाल कर रही थी। पढ़ाई कहां तक की है? जॉब कहां करती हो? खाना बनाना आता है? आर्या सिर झुका कर हां या ना में जवाब देती रही। उसका मन तो किसी और ख्यालों में डूबा था। आंखों में नमी थी। मगर उसने किसी तरह आंसू रोक रखे थे।

तभी अचानक दरवाजा जोर से खुला। सबकी नजरें उसी ओर मुड़ी। वहां खड़ा था एक नौजवान साफ-सुथरे कपड़ों में। आंखों में अजीब सी बेचैनी। उसने तेज आवाज में पुकारा, “आर्या!” आर्या जैसे कुर्सी से चौंक कर उठ गई। आवाज जानी-पहचानी थी। उसने गौर से देखा और उसके होश उड़ गए। “सुमित!” उसके होठों से अनायास ही निकला।

कमरे में सन्नाटा छा गया। लड़के वालों की मां गुस्से से उठ खड़ी हुई और बोली, “यह कौन है? क्या पहले से इसका कोई आशिक है?” मां घबराकर बोली, “न, नन्ही बहन जी, हम इस लड़के को नहीं जानते।” लेकिन वो युवक आगे बढ़ा और सबके सामने बोला, “मेरा नाम सुमित है। मैं आर्या से मोहब्बत करता हूं। मैं इसे किसी और का होते हुए नहीं देख सकता।”

उसकी बात सुनते ही घर में खलबली मच गई। लड़के वाले नाराज होकर तुरंत वहां से चले गए। मां शर्म से पसीने-पसीने हो गई। भाई ने गुस्से में सुमित का कॉलर पकड़ लिया। “कौन हो तुम? मेरी बहन का नाम लेकर यहां तमाशा क्यों कर रहे हो?” सुमित ने उसका हाथ पकड़ कर हटाया और बोला, “मैं कोई गुंडा नहीं हूं। मैं आपसे इज्जत से बात करना चाहता हूं। लेकिन सच यही है कि मैं आर्या से मोहब्बत करता हूं।”

आर्या की आंखें नम थी। उसका दिल धड़क रहा था। महीनों बाद सामने खड़ा वही इंसान, जिसे उसने भिखारी समझा था। मगर आज वो भिखारी जैसे बदल चुका था। साफ कपड़े, आत्मविश्वास से भरा चेहरा और आंखों में वही पुरानी चाहत। आर्या ने कांपती आवाज में कहा, “तुम… तुम सुमित हो? लेकिन तुम तो भिखारी थे। फिर यह सब कैसे?”

सुमित ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “नहीं आर्या, मैं भिखारी नहीं हूं। मैं एक पुलिस ऑफिसर हूं। भिखारी का भेष सिर्फ एक मिशन के लिए धारण किया था।” कमरे में सन्नाटा था। सबकी नजरें सुमित पर टिक गई थीं। आर्या की आंखों से आंसू बह निकले। उसने कांपते होठों से कहा, “तुम पुलिस ऑफिसर? लेकिन इतने महीनों तक तुम कहां थे? मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया था?”

सुमित ने गहरी सांस ली और धीरे से बोला, “आर्या, सच बताने का वक्त आ गया है। मैं दरअसल एक अंडरकवर पुलिस ऑफिसर हूं। शहर में बच्चों की चोरी करने वाली एक खतरनाक गैंग सक्रिय थी। मुझे उन्हें पकड़ने का जिम्मा दिया गया था। और उन तक पहुंचने का एक ही तरीका था – भिखारी का वेश बनाना। क्योंकि वही लोग भिखारी बनकर मोहल्लों में घूमते थे और बच्चों को बहला-फुसला कर ले जाते थे।”

सब लोग हैरान होकर उसकी बातें सुन रहे थे। सुमित ने आगे कहा, “कई महीनों तक मैं उन्हीं की तरह फुटपाथों पर बैठा। गलियों में भीख मांगता रहा। तुम्हारे मोहल्ले के पास ही वे लोग छिपे रहते थे। तभी मेरी मुलाकात तुमसे हुई। पहले तो मैंने सोचा कि तुम भी मुझे देखकर नजर फेर लोगी। मगर जब तुमने मुझे पैसे दिए, खाना दिया, उस दिन मुझे पहली बार एहसास हुआ कि इंसानियत अभी जिंदा है। और सच कहूं उसी दिन मैंने तुम्हें अपने दिल में बसा लिया।”

आर्या की आंखें और भी भर आई। सुमित ने बोलना जारी रखा, “मगर मिशन आसान नहीं था। जब हमने उस गैंग को पकड़ने की कोशिश की तो उन्होंने मुझ पर हमला कर दिया। मेरी टांग में गोली लगी और महीनों तक मैं अस्पताल में पड़ा रहा। तबीयत इतनी खराब थी कि खुद उठकर बैठना भी मुश्किल था। मेरे पास तुम्हारा कोई मोबाइल नंबर नहीं था। इसलिए मैं तुम्हें कुछ बता भी नहीं सका। मगर यकीन मानो आर्या, हर दिन हर रात मैं तुम्हें याद करता रहा।”

यह कहते हुए सुमित ने अपनी पट्टी ऊपर करके टांग का जख्म सबको दिखाया। कमरे में खामोशी छा गई। मां के चेहरे पर भी अब चिंता की जगह विश्वास झलकने लगा। भाई ने धीरे से कॉलर छोड़ दिया और कहा, “तो यह सच है?” सुमित ने सिर हिलाया। “हां, और आज मैं यहां सिर्फ एक पुलिस ऑफिसर के तौर पर नहीं बल्कि एक इंसान के तौर पर आया हूं। मैं आर्या से मोहब्बत करता हूं। मैं वादा करता हूं कि इसे अपनी रानी बनाकर रखूंगा और इसके परिवार की सारी जिम्मेदारियां आपके बेटे की तरह निभाऊंगा।”

मां की आंखों से आंसू गिरने लगे। उन्होंने आर्या की ओर देखा और पूछा, “बेटी, क्या तू भी इसे चाहती है?” आर्या रोते हुए बोली, “हां मां, मैं इसे दिल से चाहती हूं। मैंने इसे भिखारी समझकर भी अपना लिया था। अब जब यह अपनी असली पहचान बता चुका है, तो मैं इसे कैसे ठुकरा दूं?”

मां ने सुमित की ओर देखा, “अगर तुम्हारी नियत सच में साफ है तो मैं तुम्हें अपनी बेटी सौंपने के लिए तैयार हूं। मगर याद रखना, इसे कभी दुख मत देना।” सुमित ने मां के पैर छू लिए और कहा, “आप निश्चिंत रहिए, यह अब सिर्फ आपकी बेटी नहीं बल्कि मेरी जिंदगी है।”

कुछ ही दिनों बाद दोनों परिवारों की सहमति से आर्या और सुमित की शादी हो गई। शादी के बाद सुमित ने ना सिर्फ आर्या को रानी की तरह रखा बल्कि उसकी मां और भाई-बहनों को भी अपने परिवार जैसा अपनाया। वो सचमुच उनके घर का बेटा बन गया। आर्या की मां अक्सर कहती, “बेटी, मैंने तुझसे कहा था ना भगवान तुझे तेरी कुर्बानियों का फल जरूर देंगे। देख, आज तुझे ऐसा पति मिला है जो तुझे रानी बनाकर रख रहा है।”

और सचमुच सुमित ने वह साबित भी कर दिया। आर्या अब नौकरी भी नहीं करती थी। सुमित की जिद थी कि वह घर और परिवार संभाले, बाकी सबकी जिम्मेदारी वह खुद उठाएगा। धीरे-धीरे घर में खुशियां लौट आई। मां का चेहरा खिल उठा। भाई-बहन भी अपने-अपने करियर में आगे बढ़ गए। और आर्या, जिसने अपनी जवानी अपने परिवार के लिए कुर्बान कर दी थी, उसे आखिरकार सच्चा प्यार मिल गया था।

दोस्तों, इंसान को कभी उसके हुलिए से मत परखिए। फटे पुराने कपड़े पहने एक भिखारी भी असल में सोने का दिल रख सकता है और कभी-कभी वही इंसान आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा सहारा बन जाता है।

अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो, तो ज़रूर बताइए कि क्या आप मानते हैं कि इंसान की असली पहचान उसके कर्म और दिल में होती है, ना कि उसके कपड़ों या हालात में?