कबीर शर्मा — इंसानियत की सबसे ऊँची उड़ान

कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है,
जहाँ लोग हमारे कपड़ों से हमारी कीमत तय कर देते हैं।
मगर जब किस्मत पलटती है, तो वही लोग हमारे आगे सिर झुका लेते हैं।
यह कहानी है कबीर शर्मा नाम के उस व्यक्ति की,
जिसने अपनी सादगी और सच्चाई से अहंकार को तोड़कर इंसानियत को जीत लिया।
दिल्ली की ठंडी सुबह थी।
सूरज की किरणें ग्लास की ऊँची इमारतों पर पड़ रही थीं,
जहाँ शहर की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी — स्काइविंग एयरलाइंस — का मुख्यालय चमक रहा था।
बाहर महंगी कारें कतार में खड़ी थीं,
लोग ब्लूटूथ लगाकर तेज़ी से भाग रहे थे,
हर चेहरे पर रौब था, हर आवाज़ में जल्दी थी।
उसी भीड़ के बीच, एक साधारण कपड़ों में बुजुर्ग आदमी धीरे-धीरे चलता हुआ आया।
उसके कंधे पर एक पुराना बैग था, हाथ में झोला, और चेहरे पर शांति की एक गहरी रेखा।
उसकी चाल में विनम्रता थी, मगर आँखों में एक चमक थी — जैसे किसी ने बहुत कुछ देखा हो, पर शिकायत न की हो।
वो सीधे रिसेप्शन पर गया और बोला,
“मुझे सीईओ से मिलना है।”
रिसेप्शनिस्ट ने सिर उठाया, फिर नीचे देख लिया।
“सर, क्या आपके पास अपॉइंटमेंट है?”
कबीर मुस्कुराया, “हाँ, सुबह 11 बजे की मीटिंग है।”
पास खड़ा सिक्योरिटी गार्ड हँस पड़ा —
“भाई साहब, यहाँ ऐसे ही मीटिंग नहीं मिलती। यह कोई सरकारी दफ्तर नहीं, कंपनी का हेडक्वार्टर है!”
पीछे से कुछ लोग भी हँसने लगे, किसी ने कहा — “लगता है नौकरी माँगने आया है।”
कबीर बस चुपचाप खड़ा रहा, बिना कुछ कहे।
तभी अंदर से निकली तनवी कपूर, कंपनी की एचआर हेड।
महंगे कपड़े, चश्मा, हाथ में फोन, और चेहरे पर घमंड की परत।
“क्या हुआ रवि?” उसने गार्ड से पूछा।
गार्ड बोला, “मैम, यह कह रहे हैं कि इनकी सीईओ से मीटिंग है।”
तनवी ने कबीर को सिर से पैर तक देखा और हल्के से हँस पड़ी।
“मिस्टर… क्या नाम है आपका?”
“कबीर शर्मा।”
“ओह मिस्टर शर्मा, मुझे नहीं लगता आपकी कोई मीटिंग हमारे सीईओ से हो सकती है।
यह कंपनी बहुत हाई-प्रोफाइल है, शायद आप गलत जगह आ गए हैं।”
कबीर ने शांति से कहा, “आप चाहें तो रजिस्टर चेक कर लीजिए।”
तनवी ने कंधे उचकाए, “ठीक है, बैठ जाइए। देखते हैं।”
वो लॉबी के कोने में जाकर बैठ गया।
लोग उसके कपड़ों, उसके झोले और उसकी सादगी पर फुसफुसाने लगे।
किसी ने कहा, “गाँव से आया लगता है।”
किसी ने मजाक उड़ाया, “यहाँ तो चाय भी महँगी है, यह क्या करेगा?”
कबीर बस मुस्कुरा रहा था।
वो जानता था, वक्त ही असली जवाब देगा।
कुछ देर बाद, एक जूनियर स्टाफ सौरभ मेहता उसके पास आया।
“सर, आप काफी देर से बैठे हैं, आपको कुछ चाहिए?”
कबीर ने कहा, “बस सीईओ से मिलना है, 11 बजे की मीटिंग है।”
सौरभ ने हैरानी से कहा, “सर, 11 बजे तो सीईओ की इन्वेस्टर मीटिंग है।”
कबीर मुस्कुराया, “शायद वो मीटिंग मुझसे ही है।”
सौरभ उलझन में था।
वो अंदर गया और सीईओ रवि मल्होत्रा के ऑफिस में बोला,
“सर, बाहर एक आदमी हैं, कहते हैं आपकी मीटिंग है।”
रवि हँस पड़ा, “वो कोई जोकर होगा, भेज दो बाहर। हमारे पास ऐसे लोगों के लिए टाइम नहीं।”
सौरभ धीरे से बोला, “सर, वो बहुत शांत हैं… सच्चे लगते हैं।”
रवि ने सख्ती से कहा, “यहाँ सच्चाई से नहीं, ब्रांड से काम चलता है।”
सौरभ वापस आया और कबीर से बोला,
“सर, उन्होंने कहा अभी मीटिंग नहीं होगी।”
कबीर ने बस मुस्कुराकर कहा,
“कोई बात नहीं सौरभ, वक्त आएगा तो वो खुद बुलाएँगे।”
घड़ी ने 11 बजाए।
कबीर धीरे-धीरे उठा और उस दरवाज़े की ओर बढ़ा जिस पर लिखा था —
“रवि मल्होत्रा — CEO, SkyWing Airlines.”
तनवी चीख पड़ी,
“मिस्टर शर्मा, आप अंदर नहीं जा सकते!”
पर कबीर रुक नहीं सका।
उसने दरवाज़ा खोला और अंदर चला गया।
रवि मल्होत्रा फोन पर था।
“हाँ बॉस, इन्वेस्टर मीटिंग फिक्स है,” उसने कहा और ऊपर देखा।
“कौन हो तुम?”
कबीर बोला, “कबीर शर्मा। आपसे 11 बजे मीटिंग थी।”
रवि हँस पड़ा, “तुम मेरे साथ मीटिंग किस हैसियत से करोगे?”
कबीर शांत था।
“उसी हैसियत से, जिससे आपने आज तक किसी की पहचान नहीं की।”
रवि ने गुस्से में कहा, “बाहर निकलो, यह कोई जगह नहीं भीख माँगने की।”
कबीर ने अपने बैग से एक लिफाफा निकाला और कहा,
“पहले इसे पढ़ लीजिए, शायद ज़िंदगी बदल जाए।”
रवि ने कागज़ फेंक दिए,
“मुझे इन फालतू चीज़ों में दिलचस्पी नहीं।”
कबीर बोला,
“आपको होनी चाहिए — इनमें आपकी कंपनी की असली कहानी है।”
रवि चौंका।
“तुम कौन हो आखिर?”
कबीर बोला,
“वो आदमी, जिसने दस साल पहले इस कंपनी को बचाने के लिए अपनी ज़िंदगी दाँव पर लगाई थी।
और आज वापस उसे लेने आया है।”
कमरे में सन्नाटा था।
तनवी और विवेक अरोड़ा दरवाजे पर खड़े सब सुन रहे थे।
कबीर ने धीरे से कहा,
“कल सुबह 10 बजे जब मीटिंग होगी, तब सच खुद बोलेगा।”
वो चला गया — पीछे रह गए अहंकार, डर और शर्म।
अगली सुबह स्काइविंग एयरलाइंस के हेड ऑफिस में अजीब हलचल थी।
हर कोई पूछ रहा था — “वो आदमी कौन था?”
तनवी बेचैन थी, रातभर उसे नींद नहीं आई।
10 बजे दरवाज़ा खुला।
कबीर शर्मा अंदर आया — वही सादगी, वही शांति।
लेकिन आज उसके साथ एक व्यक्ति था —
काले सूट में, हाथ में ब्रीफ़केस, और चेहरे पर अधिकार का तेज़।
“सीईओ रवि मल्होत्रा को बुलाइए,” कबीर ने कहा।
रिसेप्शनिस्ट हकलाते हुए बोली, “सर, आपने…”
कबीर मुस्कुराया, “हाँ तनवी, मैं ही वो हूँ जिसे कल तुमने लॉबी में बैठाकर छोड़ दिया था।”
तभी रवि मल्होत्रा अंदर आया,
“मिस्टर शर्मा, फिर आ गए? कल का ड्रामा पूरा करने?”
कबीर शांत स्वर में बोला,
“आज ड्रामा नहीं रवि, सच्चाई दिखाने आया हूँ।”
सूट वाले व्यक्ति ने ब्रीफ़केस खोला, फाइलें निकालीं, और टेबल पर रख दीं।
“ये डॉक्यूमेंट बताते हैं कि स्काइविंग एयरलाइंस के 62% शेयर अब मिस्टर कबीर शर्मा के नाम पर हैं।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
रवि के हाथ काँपने लगे, उसने फाइल खोली —
हर पेज पर लिखा था “कबीर शर्मा — Founder Partner.”
तनवी और विवेक के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ गईं।
सारे कर्मचारी धीरे-धीरे खड़े हो गए।
कबीर ने कहा,
“दस साल पहले जब ये कंपनी दिवालिया हुई थी, तब इसे बचाने वाला कोई नहीं था।
मैं तब यहाँ एक इंजीनियर था।
मैंने अपनी माँ की ज़मीन बेची, घर गिरवी रखा,
और जो कुछ था, सब लगा दिया ताकि ये कंपनी उड़ान भर सके।
मगर जब सब ठीक हो गया, तब उन्होंने मुझे मिटा दिया — कागज़ों से, यादों से, और सम्मान से।”
रवि बोलने की कोशिश करने लगा, “कबीर… लेकिन तुम्हारे पास सबूत कहाँ थे?”
कबीर ने शांत स्वर में कहा,
“सबूत वो नहीं दिखाते जिनके दिल में सच्चाई होती है।”
फिर मुस्कुराकर बोला,
“कल तुमने मुझे मेरे कपड़ों से पहचाना था, आज मेरे कर्मों से पहचानो।”
वो आगे बढ़ा,
“अब ये कंपनी कुर्सी से नहीं, इंसानियत से चलेगी।
रवि, आज से तुम फील्ड ऑफिसर हो।
वो काम करो जो तुमने दूसरों से करवाया था।”
कमरे में सन्नाटा था, फिर तालियों की गूंज फैल गई।
कबीर ने सौरभ की तरफ देखा —
“सौरभ, तुमने कल इंसानियत दिखाई थी।
आज से तुम स्काइविंग एयरलाइंस के नए जनरल मैनेजर हो।”
सौरभ की आँखों से आँसू बह निकले,
“सर, मैंने तो बस इंसानियत निभाई थी।”
कबीर मुस्कुराया,
“वही तो असली काबिलियत है, बेटा।”
तनवी आगे आई, आँखों में पछतावा था।
“सर, मैंने आपको पहचाना नहीं, माफ कीजिए।”
कबीर ने कोमल आवाज़ में कहा,
“गलती हर किसी से होती है, पर जो उसे मान ले, वही बड़ा होता है।”
वो सारे स्टाफ की ओर मुड़ा,
“आज से इस कंपनी में हर कर्मचारी बराबर होगा।
यहाँ कपड़ों से नहीं, कर्मों से पहचान होगी।”
कमरा तालियों से गूंज उठा।
कबीर ने कहा,
“असली अमीरी पैसों से नहीं, सोच से होती है।”
सालों की मेहनत और सच्चाई के बाद,
स्काइविंग एयरलाइंस फिर से उड़ान भर रही थी।
नीचे रनवे पर रवि मल्होत्रा अब फील्ड स्टाफ की मदद कर रहा था।
किसी का बैग उठाता, किसी को रास्ता दिखाता।
उसके माथे पर पसीना था, पर दिल में सुकून था।
वो अब समझ चुका था — कुर्सी से नहीं, कर्म से इज़्ज़त मिलती है।
रिसेप्शन पर तनवी अब हर ग्राहक से मुस्कुरा कर कहती,
“सर, आपकी यात्रा शुभ हो।”
वो भी अब समझ चुकी थी — सादगी सबसे बड़ी शोभा है।
ऊपर ऑफिस की खिड़की से कबीर शर्मा नीचे देख रहा था।
हाथ में उसकी माँ की पुरानी तस्वीर थी,
जिसके नीचे लिखा था —
“जहाँ इंसानियत जिंदा हो, वहीं असली उड़ान होती है।”
उसकी आँखों में चमक थी।
सौरभ अंदर आया —
“सर, मीडिया तैयार है, पहली फ्लाइट उड़ने वाली है।”
कबीर मुस्कुराया, “चलो।”
नीचे रनवे पर फ्लैश की रोशनी थी,
रिपोर्टर माइक लिए खड़े थे।
एक ने पूछा,
“सर, आपने अपनी पहली फ्लाइट का नाम ‘कबीर एक्सप्रेस’ क्यों रखा?”
कबीर रुका, मुस्कुराया,
“ये फ्लाइट मेरे नाम पर नहीं, मेरी माँ के सपने पर है।
उन्होंने कहा था — बेटा, अगर आसमान छूना, तो अपनी ज़मीन मत भूलना।
आज मैं उड़ रहा हूँ, लेकिन मेरे पैर अब भी ज़मीन पर हैं।”
भीड़ सन्न थी।
तालियाँ गूंज उठीं।
फ्लाइट रनवे पर दौड़ी और आसमान में उठी —
जैसे सूरज की किरणें झुककर सलाम कर रही हों।
तनवी की आँखें भीगीं,
“सर, आपने हमें सिखाया कि इंसान कपड़ों से नहीं, दिल से पहचाना जाता है।”
रवि ने सिर झुका कर कहा,
“और मैंने सीखा कि कुर्सी नहीं, कर्म इंसान को बड़ा बनाते हैं।”
कबीर ने मुस्कुराकर कहा,
“अगर हर इंसान थोड़ा सा सम्मान बाँट दे,
तो इस दुनिया में कोई गरीब नहीं रहेगा —
न दिल से, न इंसानियत से।”
वो आसमान की ओर देखने लगा —
जहाँ कबीर एक्सप्रेस बादलों के बीच चमक रही थी।
उसने आँखें बंद कीं और कहा,
“माँ, तेरे बेटे ने तेरा सपना पूरा कर दिया।”
उसके होठों पर मुस्कान थी,
आँखों में आँसू थे,
और चारों तरफ गूंज रही थी वही भावना —
“सच्ची उड़ान आसमान तक नहीं, दिलों तक जाती है।”
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