कब्र के सामने चावल का भोग

बारिश की हल्की बूँदें गिर रही थीं। शाम का समय था, हवा पेड़ों के बीच से बह रही थी। कब्रिस्तान की पगडंडियों पर सूखी पत्तियाँ सरसराती थीं। उस वीरान वातावरण में एक काले सूट वाला आदमी धीरे-धीरे चलता हुआ अपनी पत्नी की कब्र की ओर बढ़ रहा था। उसके जूते गीली मिट्टी में धँस रहे थे। वह कोई साधारण आदमी नहीं, बल्कि शहर का नामी अरबपति था। लेकिन उसकी आँखों में गहरी उदासी थी। उसकी चाल में थकावट थी, जैसे वह किसी भारी बोझ के तले दबा हो।

वह अक्सर अपनी पत्नी की कब्र पर आता था। चुपचाप बैठता, अगरबत्ती जलाता और तस्वीर को देखता। लेकिन आज कुछ अलग था। आज उसकी पत्नी की कब्र के सामने एक दुबला-पतला लड़का घुटनों के बल बैठा था। उसके हाथों में सफेद चावल का कटोरा था, बगल में केले के पत्ते में लिपटे कुछ सादे व्यंजन रखे थे। वह चटाई पर सब कुछ सजाकर प्रार्थना कर रहा था।

अरबपति पास गया। उसकी साँसें तेज हो गईं। उसने गहरी आवाज में पूछा, “बेटा, तुम इस कब्र पर खाना क्यों चढ़ा रहे हो? यह मेरी पत्नी की कब्र है।”

लड़के ने सिर उठाया। उसकी आँखों में डर था। उसने धीरे से कहा, “मैं हर दिन यहाँ आता हूँ क्योंकि किसी ने मुझसे वादा किया था कि वह मेरे साथ खाने के लिए वापस आएगी।”

अरबपति हैरान रह गया। उसका दिल जोर से धड़कने लगा। बारिश तेज हो गई। दूर बिजली चमकी। वह लड़के के पास बैठ गया। “किसने तुमसे वादा किया था?”

लड़के ने सिर झुका लिया। “एक बहुत ही नेक औरत थी। उन्होंने कहा था कि वह मुझे कभी अकेले खाना नहीं खाने देंगी।”

अरबपति की आँखें कब्र की तस्वीर पर गईं। तस्वीर में वही चेहरा था, उसकी पत्नी। उसने लड़के के चेहरे को गौर से देखा। छोटी नाक, उदास आँखें, मासूमियत। उसे एक अजीब समानता महसूस हुई।

लड़का बोला, “हर शाम मैं यहाँ खाना लाता हूँ। उन्होंने कहा था कि जब वह नहीं रहेंगी, तो भी हर दिन के भोजन में मेरे साथ रहेंगी।”

अरबपति के मन में यादें उमड़ पड़ीं। उसकी पत्नी के आखिरी शब्द थे, “मुझे माफ कर दो।” वह बिना स्पष्टीकरण के चली गई थी। उसने कभी उसके दर्द को समझने की कोशिश नहीं की थी।

अरबपति ने लड़के से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम रोहन है। उन्होंने मुझे गले लगाया था, रोई थी और कहा था कि वह मेरी सबसे बड़ी गुनहगार हैं।”

अरबपति का दिल टूट गया। उसके हाथ लड़के के कंधे पर थे, लेकिन वह उसे गले लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। कब्रिस्तान की खामोशी में बारिश की आवाज गूंज रही थी।

“तो इतने सालों से तुम कहाँ रह रहे थे?”
“मेरा कोई नहीं है। मैं बाजार में छोटे-मोटे काम करता हूँ, दुकानों से बचा हुआ खाना माँगता हूँ। कभी-कभी वह आकर मुझे पैसे देती थीं, कपड़े खरीदती थीं।”

अरबपति की आँखों में आँसू थे। उसकी पत्नी के दिल में इतना बड़ा रहस्य था, एक बेटा जिसे दुनिया से छुपाया गया।

“अंकल, क्या आप उन्हें जानते हैं?”
अरबपति कुछ पल चुप रहा। फिर बोला, “मैं उनका पति हूँ।”

लड़का चौंक गया। बिजली चमकी। दो चेहरे—एक बूढ़ा, एक जवान—एक दूसरे को देख रहे थे।
अरबपति को लगा, उसकी बनाई दुनिया ढह रही है।

“क्या उन्होंने कभी आपके बारे में बात की थी?”
“हाँ, उन्होंने कहा कि आप अच्छे आदमी हैं, लेकिन बहुत व्यस्त हैं। उन्होंने आपके साथ बहुत गलत किया है।”

अरबपति को वे साल याद आए जब वह पत्नी को अकेला छोड़कर काम में डूबा रहता था। उसने सिर पकड़ लिया, “हे भगवान, मैंने क्या किया?”

अचानक बारिश में एक बूढ़ा आदमी छाते के साथ आया। उसने रोहन की ओर देखा, “मैं वह व्यक्ति हूँ जिसने इसकी रक्षा करने का वादा किया था। लेकिन उसने अलग रास्ता चुना और अब आखिरी रहस्य भी खुल गया है।”

अरबपति का दिल दहाड़ उठा। बूढ़ा आदमी बोला, “तुमने सिर्फ एक पत्नी नहीं खोई, तुमने उससे कहीं ज्यादा खो दिया। यह सब तुम्हारी खामोशी से शुरू हुआ।”

अरबपति घुटनों के बल गिर गया, “मैंने अपनी पत्नी के अलावा क्या खोया?”
“आपने बहुत पहले ही उसकी आत्मा खो दी थी।”

रोहन ने डरते-डरते पूछा, “मैं सच में आपका बेटा हूँ?”
अरबपति का दिल फट गया। वह बच्चे को गले लगाना चाहता था, लेकिन डर रहा था। बूढ़ा आदमी बोला, “तुमने पिता बनने का मौका भी खो दिया है।”

रोहन की आँखों में आँसू थे, “अंकल, क्या आपको सच में मेरी जरूरत नहीं है?”

अरबपति गिर पड़ा, “नहीं, ऐसा नहीं है! मैं सच में नहीं जानता था। अगर जानता, तो तुम्हें एक दिन भी दुख नहीं सहने देता।”

बूढ़ा आदमी बोला, “देर हो चुकी है। सब कुछ बहुत देर हो चुका है।”

अचानक कब्रिस्तान में एक सफेद परछाई दिखी—महिला की आत्मा। अरबपति कांप गया। वह परछाई उसकी मृत पत्नी की थी। उसकी आँखों में दर्द, गुस्सा और माफी का मिश्रण था।

“तुमने एक व्यक्ति को छोड़ दिया और बदले में अपना पूरा परिवार खो दिया।”
अरबपति ने रोहन को कसकर गले लगा लिया, “मुझे माफ कर दो। भले ही देर हो गई हो, मैं तुम्हें फिर कभी अकेला नहीं रहने दूंगा।”

सफेद परछाई बोली, “तुम्हारे पास तीन दिन हैं। सच्चाई को सामने लाने के लिए, नहीं तो मैं सब कुछ ले लूंगी।”

अरबपति ने वादा किया, “मैं सबको सच बताऊँगा।”

अगले दिन, उसने मीडिया के सामने अपने पापों की स्वीकारोक्ति की, अपनी पत्नी, बेटे और अतीत के बारे में सबकुछ बता दिया। समाज में हंगामा मच गया। पुलिस ने जांच शुरू की, प्रेस ने खबर फैलाई।

सफेद परछाई ने कहा, “यह सिर्फ शुरुआत है। अनसुनी आत्माएँ तुम्हें नहीं छोड़ेंगी।”

बंगले में अराजकता फैल गई। आत्माएँ बाहर निकल आईं। हर कोई अपने-अपने पापों के लिए कीमत चुकाने लगा।

अरबपति ने रोहन को कसकर गले लगाया, “अगर मुझे मरना पड़े तो मैं मरूँगा, लेकिन तुम्हारी रक्षा करूंगा।”

सुबह हुई। बारिश थम गई। कब्रिस्तान में रोहन चुपचाप बैठा था, उसके हाथ में चावल का कटोरा। उसने कब्र पर चावल रखा, हाथ जोड़कर प्रार्थना की और पेड़ों के बीच चला गया। उसकी छोटी परछाई धीरे-धीरे सुबह की रोशनी में खो गई।

कहानी का संदेश

पाप, क्षमा और प्रतिशोध का चक्र कभी खत्म नहीं होता। लेकिन देर से मिला प्यार, सच्चाई और स्वीकारोक्ति—यही रास्ता है घर वापसी का।

अगर यह कहानी आपको छू गई हो, तो कमेंट में जरूर बताइए। सच्चाई और माफी की ताकत को कभी कम मत समझिए।